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पद्य

न करो हिन्दी की चिन्दी
कविता

न करो हिन्दी की चिन्दी

वीणा मुजुमदार इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लिखो हिन्दी पढो हिन्दी सुनो हिन्दी कहो हिन्दी गुनो हिन्दी समझो हिन्दी भाषाओँ के माथे की बिंदी हिन्दी- दिवस मनाते हो दिनों बाद भूल जाते हो कहते हो राष्ट्रभाषा है हिंग्लिश में घुस जाते हो प्रांत अनेकों भाषाओं के ये एक राष्ट्र है हिन्दुस्तान नानाविध भाषाईयों की एक राष्ट्रभाषा है जान सरल सहज मीठी बोली लगती हमको प्यारी है भाव सभी अभिव्यक्त करती मनभाती शान हमारी है देश-विदेश में मान बढाती भाषा गौरव देती सम्मान हम हिन्दी के हिन्दी हमारी हिन्दी हमारी है पहचान छिद्रान्वेषी न बनकर करो हिन्दी का सम्मान मातृभाषा ये राष्ट्रभाषा ये दे दो इसको इसका सम्मान। परिचय : वीणा मुजुमदार निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
नवनीत
कविता

नवनीत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** समरसता के पथ पर रोपे, छल ने बेर बबूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। जले पंख सपनों के सम्मुख, नैन हुए रीते। शाकाहारी के जीवन में, छोड़ दिए चीते।। चलता है अब लाठी से ही, इस जंगल का रूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। ऊँची चिमनी ने वैचारिक, धुआँ बहुत उगला। पर्यावरण प्रदूषित करके, समझा हुआ भला।। भूख प्यास की कर दी उसने, सच में ढीली चूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। धुँधले नभ में अंतर्मन के, दृष्टि दोष जागे। खाई खोदी गई जिधर को, पाँव उधर भागे।। समझ रही है आज तर्जनी,कल की थी जो भूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
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कविता

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डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** नो दाग, नो धब्बे के, चाहे कितने ऐड बना लो कन्या-जीवन पर लगे दाग को, हरगिज़ नहीं मिटा सकते। चाहे कितने ए.सी., कूलर और बना लो जब तक नन्हीं कलियों की दुर्गति होगी बाला की अंतर्ज्वाला को, हरगिज़ शांत नहीं कर सकते। चाहे कितनी सीमेंट बना लो, मन के टूटे तारों में भग्न संवेदना की धारों में, न तुम जोड़ लगा सकते। चाहे भौतिकता की कितनी डोर बढ़ा लो नैतिकता का पुष्प सुखाकर, आध्यात्म का बीज मिटाकर मन का उद्वेलन, हरगिज़ खामोश नहीं कर सकते। भारत की पावन संस्कृति, नन्हीं आहों से तपती है कितने ही फुव्वारे लगवा लो, बच्ची के तप्त ह्रदय को मन के तपते अंगारों को, हरगिज़ शांत नहीं कर सकते। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापो...
हमारी हिन्दी
कविता

हमारी हिन्दी

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हिन्दी गौरव है, सम्मान है, है हमारी संस्कृति....! जैसे पाकर वर्षा को मुस्कुराती है प्रकृति....!! हिन्दी ज्ञान है, मान है, है हमारी सम्पत्ति....! जैसे संविधान में सभी को समानता है होती....!! हिन्दी सभ्यता है, प्रमाण है, है हमारी प्रगति....! जैसे किसी नेत्रहीन के आंखों में नयी ज्योति....!! हिन्दी भाग्य है, सौभाग्य है, है हमारी कृति....! जैसे हरी निर्मल बत्तियों पर ओस के मोती....!! हिन्दी शान है, अभिमान है, है हमारी प्रवृत्ति....! जैसे हर हिंदू के मुख पर आशा के बीज है होती....!! हिन्दी प्रेम है, समर्पण की भाषा है, है प्रभु की "आरति"....! जैसे "नील" गगन में नारायण की बनी हो आकृति....!! हिन्दी सार है, विस्तार है, है हमारी कोटि....! जैसे निर्धन के हाथों में एक रोज की रोटी....!! परिचय :- कु. आरती सुधा...
मधुमास की चांदनी
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मधुमास की चांदनी

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** था मधुमास का मौसम पड़ा था उल्टा अम्बर न जाने थी थाल भरी मोतियों आंगन में फैले दूध के झाग आकाश था या आंगन विभावरी थी चांदनी उजास था दीपक टिमटिमाते दुध के झाग आया है नवजीवन बालक मुस्कुराहट भरी जिंदगी था मधुमास का मौसम परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने क...
जुर्म-ए-अजी़म कर लिया है मैने
कविता

जुर्म-ए-अजी़म कर लिया है मैने

शुभम गोस्वामी 'मलंग' देवास (मध्य प्रदेश) ******************** कोइ जुर्म-ए-अजी़म कर लिया है मैने। ईक बेवफा पर यकीन कर लिया है मैने। उसका लौट कर आना मंजूर नहीं मुझको, उसके जाने पर यकीन कर लिया है मैने। उसकी आंंखो को नज्म, होंठो से गजल पड़ता हूं, दिल का माजरा कतई संगीन कर लिया है मैने। कोई सरहद क्यो नही बनाता गम-ए-हिज़्रा में, हंसी लूट गई है खुद को गमगीन कर लिया है मैने। तूफान कैसे कैसे उमड़ते होंगे दिल-ए-सहरा में, खुद को आईने में देख मुतमइन कर लिया है मैने। सर पीटेंगे ये कमसिन जवानी से भरे लड़के, जो एक बार फिर से इश्क हसीन कर लिया है मैने। परिचय :- शुभम गोस्वामी 'मलंग' निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय...
माँ तेरी गोदी में सो जावाँ
कविता

माँ तेरी गोदी में सो जावाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी जननी जनमदाता जन्मभूमि दूजी माता माँ नदिया मेरी जलदाता ये स्वर्ग मुझे नहीं भाता तीनों माओं पे मैं सदके जावाँ तेरी ... गोदी में माँ ... माँ सिंधु हिन्द का नाम दिया गंगा यमुना संगम कहलाया नर्मदा की अपनी अलग माया नीर नदियों का मैं बन जावाँ नीली चूनर माँ की मैं लहरावाँ तेरी ... गोदी में माँ ... नदी किनारे जन्मी गाथाएं भारत की कई सभ्यताएं जन जन की कोटि भाषाएं वंदेमातरम हाँ मैं गुनगुनावाँ नारा जयहिंद का जग में फैलावाँ तेरी ... गोदी में माँ ... तेरे घाटों पे तीरथधाम उद्योगधन्धों के कई काम व्यापार का विश्व को दे पैगाम तेरे नाम जीवन मैं कर जावाँ परचम प्रगति का दुनिया में फ़हरावाँ तेरी ...गोदी में माँ ... इन नदियों ने मुझे नहलाया मेरे बचपन को बहलाया मेरे सपनों को सहलाया उम्मीदों को मेरी है महकाया माँ...
कहाँ गई अब चिट्ठी प्यारी
कविता

कहाँ गई अब चिट्ठी प्यारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बीत गए अब चिट्ठी के दिन। सीख लिया जीना चिट्ठी बिन। सभी लोग लिखते थे चिट्ठी। होती थी वह खट्टी मीठी। चिट्ठी सभी खबर लाती थी। हाल सभी के बतलाती थी। अच्छी बुरी खबर सब लाती। दुख में सबका मन बहलाती। अगर नौकरी लग जाती थी। खोज खबर चिट्ठी लाती थी। पोस्टमैन घर घर जाते थे। डाकिया बाबू कहलाते थे। बुरी खबर जब भी लाते थे। उन पर ही सब झल्लाते थे। धीरजवान डाकिया बाबू। खुद पर वे रखते थे काबू। पलट जवाब नहीं देते थे। बातें सबकी सह लेते थे। खबर नौकरी की लाते थे। मन वांछित इनाम पाते थे। बाहर खड़े बुलाते रहते। बरसा जाड़ा गर्मी सहते। लिखती थी बिरहन मन बातें। दिन कटता कटती ना रातें। चिट्ठी पाते ही आ जाना। साजन अब ना देर लगाना। चिट्ठी माँ लिखती लल्ला को। रोज देखती हूँ बल्ला को। रोज खेलने तू जाता था। लौट...
क्या भर पायेगा सुराख
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क्या भर पायेगा सुराख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पैदा होते ही कराया गया अहसास, कहीं न कहीं है बहुत बड़ा सुराख, उनके हर प्रमुख मौके पर नाचते हम, हमारे मौकों पर कहां से ले आते वे गम, छूने से, घूरने से, परछाई पड़ने से, वैचारिक लड़ाई लड़ने से, वे खड़े रहते हैं भृकुटि ताने, आंख मूंदकर सिर्फ उनकी मानें, गालियां हमें भी सिखाया जाता है हम खामोश रहते हैं, पर वे गाली दे जाते हैं हमें जाति के नाम पर, सदा चोट पहुंचाते हैं हमारे सम्मान पर, क्या हम या हमारी जाति सचमुच घृणा के लायक हैं? या खुद के अहम को संतुष्ट करने हमें मान लेते खलनायक है? कुएं में, घाट में, चक्की में, तरक्की में, विद्यालय में, औषधालय में, कहां नहीं अहसास कराया जाता है छोटे बड़े सुराख? जबकि हम आदी हैं प्रेम बांटने के, सुराख पाटने के। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी ...
स्वामी विवेकानंद
कविता

स्वामी विवेकानंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वामी विवेकानंद जी के पावन अवतरण-दिवस की ढ़ेरों बधाईयाँ व शुभकामनाएं ! ॐ तत्सत ॐ तत्सत ॐ तत्सत ॐ तत्सत। है इसी में विश्वपूरित ॐ तत्सत ॐ तत्सत।। भुनेश्वरी मां उदर जाये विश्वेश्वर नरेंदर कहाये पाया परमहंसी कृपा जब स्वामी विवेकानंद जताये भूख ईश्वर प्राप्त की दीन दुखियों संग उपगत ... ॐ तत्सत.... शिकागो शहर में धर्म-चर्चा अमेरिका गये बिना पर्चा भाइयों बहनों कहा जब प्यार पाया बिना खर्चा "वसुधैव कुटुंब" है बताया भारत का मत ... ॐ तत्सत ... कर्म और धर्म का संग भी संजों के रखना सभ्यता व संस्कृति ध्वजा फहरा के रखना देश का स्वाभिमान जागे साथ वैभव-यश बढ़े जन-जन के मानस पटल पे भाव ऐसा भर के रखना ए ही संदेशा दे गए हैं यही सच्चाई है सास्वत ... ॐ तत्सत ... संवेदना मन मे जगे साथ सेवा...
अकेली
कविता

अकेली

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक शाम गुजारी एक शाम गुजारी पिया तेरे नाम, तेरे नाम नीले अंबर तले तेरा साथ न था मैं मायूस रही एक शाम। काली घटाएं थी दामिनी के साथ ठंडी हवाएं थी हरे पत्तों के साथ वृक्षों के साथ थी लचीली लताएं हर कोई था साथ साथ एक मै थी उदास एक शाम। अंधियारे के साथी तारों के हिलमिल अवनी के साथी दीपक की बाती। हर कोई तो साथ था अपने ही संसार में मैं अकेली अकेली थी एक शाम। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौ...
मन की डोर
कविता

मन की डोर

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मन की डोर, पतंग ज्ञान की, गुरुवर है आकाश, कैसे कांटे पतंग को भाव हमारा जान, ध्यान हमारा रहे हमेशा गुरुवर के हैं पास, ध्यान डोर की, पतंग प्रेम की, कैसे काटे गुरुवर महान, उड़ाओ या इसे काटो गुरुवर घटे तुम्हारा मान, नीचे गिरे तो चरण तुम्हारे, उड़ते मे हे दर्शन आप, सतरंगी पतंग में गुरुवर, भर दो सतरंगी रंग, सतरंगी इंद्रधनुष सा मै बिछ जाऊं दण्डवत कर, नहीं आशा की पतंग उड़ाऊ, नहीं चाह की डोर, भक्ति प्रेम ज्ञान मैं गुरुवर तो समर्थ है, नहीं काटेंगे मेरी डोर, गुरू आशा और विश्वास हे! काटे तो नहीं हार गुरूवर, नही काटे तो भी है जीत, पंतग (किरण) नीचे हे झुके गुरुवर के हैं चरण, ऊंचा उठे तो मिले गुरुवर के आशीष। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ...
राम न कोई आएगा
कविता

राम न कोई आएगा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीता सीता बनी रहे तो लज्जा कौन बचाएगा रावण है बहुतेरे लेकिन राम न कोई आएगा धर्म और संस्कृति की रक्षा हमें स्वयं करना ही होगा जो इस पर आक्षेप करेगा उससे मिलकर लड़ना होगा आतताइयों से अब तक जो जुर्म सहे हैं हम सबनें अब तक रहे नहीं रहना है करूणा के इस बंधन में इन कलंकितों की भाषा में इनको कौन बतायेगा रावण हैं..... नारी अपनी शक्ति दिखाओ आत्मबली बन जाओ तुम अपनी क्षमता को पुष्टित कर दुष्टों को ललकारों तुम धैर्यवान हो तुम कृपाण हो सृष्टि तुम्हीं हो पालक हो अद्भुत क्षमता वाली तुम हो तुम्ही समाज सुधारक हो चंडी बन संहार करो जो तुमको आज सतायेगा रावण हैं..... जिस धरती पर नारी का सम्मान नहीं हो पायेगा मानवता रोकेगी किसको मानव ही मिट जायेगा लज्जा के घूंघट से जिसनें रावण को ललकारा था पतिव्रत ...
ये दिल सुनता जा
कविता

ये दिल सुनता जा

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** तू तो पहले ही कदम मे डगमगा गया ये दिल मंजिल का रास्ता तो सम॔दरे आतिश से जाता है तू ने की है मोहब्बत जिससे उसकी तमन्ना तो सारा जहाँ करता है पाने की उसे लगन है तुझे तो, तू जान ले तेरी हर घडी आजमाइश है जिस शय की आरजू सै तुझे ये दिल वो शय तो बडी अनमोल है तू क्या मोल दे पायेगा उसका, की वहा सारे जहाँ की दौलत बेमोल है सच्चे प्यार के दो आंसुओं मेे, तुलता है परमात्मा क्या वो तुलसी दल तू उसे दे पायेगा जीवात्मा तेरी तो हर बात झूठी है प्यार झूठा, नफरत भी झूठी है इकरार झूठा और इन्कार भी झूठा है बता ये दिल आखिर तू दुनिया मे क्यों टूटा है जो आस तूने लगायी इन्सा के फितरत से दगा तो तुझे मिलना ही था, तेरे अपने कर्मों से किसी शक्स को अपना प्यार कैसे कहा तूने ये दिल तेरा प्यार तो कोई और है ...
खिलौने का सत्य
कविता

खिलौने का सत्य

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तू माटी का एक पुतला है तुझे माटी में ही मिलना है। बस कट पुतली बनकर ही मानव जीवन को जीना है। और मानव के पुतले को मानव से ही खेलना है। और फिर बर्षो के उपरांत तुझे माटी में मिलना है।। लिया है जन्म जिस घर में तूने। उसका महौल बहुत अच्छा है। न घर में कोई कलह आशांति है। पर दिलों में प्रेम आपार है।। आज मन बहुत विचलित है। न कोई गम है और न दुख है। न ही सोच में कोई अंतर है। फिर भी न जाने क्यों उदास है।। देख उदासी को मेरी सब ने तब आकर कारण पूछा मुझसे। नहीं है मन में जब कोई बात तो क्या उत्तर दू मैं उनको। पर देखो इस पुतले को जिसने कितना कुछ पाया है। तभी तो जग में भी इस ने बहुत ही नाम कमाया है।। परंतु आज इस को भी हुआ एहसास सत्य का। नहीं है अब भरोसा इसको जिसे एक दिन जाना है। और माटी के खिलौने को माटी में ही मिल जा...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सुख और दुख का डेरा है जिंदगी। उजाला तो कभी अंधेरा है जिंदगी।। छांव कहीं तपती धूप है जिंदगी। माथे चंदन कहीं धूल है जिंदगी।। मशहूर कहीं बदनाम है जिंदगी। सुबह तो कहीं शाम है जिंदगी।। टूटना हारना और है बिखरना जिंदगी। गिरकर खुद ही सम्भलना है जिंदगी।। कहीं छल-कपट से घिरी है जिंदगी।। दुश्मन कहीं अपनों से भिड़ी है जिंदगी।। झूठी आशाओं से उदास है जिंदगी। कहीं उम्मीदों की आवाज है जिंदगी।। खुशियाँ तो कहीं गमों का भंडार है जिंदगी। कड़वाहट तो कहीं मीठे रस की धार है जिंदगी।। माना कि हर कदम इम्तिहान है जिंदगी। पर फर्ज निभाते रहें तो आसान है जिंदगी।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बदलाव
कविता

बदलाव

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हालात मत पूछिए बदलते रहते हैं। समय मत पूछिए गुजरता रहता है। मोहब्बत मत कीजिए होती रहती है। दिल्लगी मत कीजिए दिलदार औरो से भी दिल लगाते रहते हैं। परिस्थिति मत देखिए स्थिति बदलती रहती है। हमसफर जल्दी मत बनाइए हमराही बदलते रहते हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
नूतन किसलय खिलते उपवन
गीत

नूतन किसलय खिलते उपवन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नूतन किसलय खिलते उपवन, आह्लादित होता तन-मन है। नव उजास लाया है दिनकर, नवल वर्ष का अभिनंदन है। नवल शांति की सरगम गूँजे, विषधर आंतकी दम तोड़े। सुघड़ चाँदनी शशि की बिखरे, दूर तिमिर-घन हो कर जोड़े।। नव उमंग है नव तरंग भी, मस्तक लक्ष्यों का चंदन है। आत्म-शक्ति के पावन पथ में, नव चिंतन का गंगाजल भी। उर सुरभित है कुसुमाकर -सा, पुलकित ममता का आँचल भी।। सद्भावों की नवल ज्योति में, यश-वैभव का गठबंधन है। नवल सृजन मनभावन कवि का, सत्य-अहिंसा पथ दिखलाए। धर्म-वेद की प्रखर ऋचाएँ, अंतस में विश्वास जगाए।। हुए संगठित भेद त्याग कर, सौगात मिली अपनापन है। नव निखार जीवन में आए कर लो स्वागत आगत का। नव कीर्ति की फैले पताका, नाम विश्व में हो भारत का।। उत्कर्षों की ज्योति जली है, भोर सुखद आई आँगन है। परि...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहाँ गए वो सच्चे रिश्ते अब बचे हैं सिर्फ बनावटी रिश्ते दिखावे का नकाब ओढ़े, लीपे पुते से नकली रिश्ते।। दिखते तो हैं रजतपुंज से पर दिलों में द्वेष से परिपूर्ण ये रिश्ते। जितनी खुशी ये बाहर दिखाते अंदर उतनी ही ईर्ष्या भरे ये रिश्ते इस दुनिया की महफ़िल से अब गुम से हो गए सच्चे रिश्ते महानता की अंधी दौड़ में, उलझते गए खूबसूरत से रिश्ते। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
मेरा संसार है वो
कविता

मेरा संसार है वो

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सबके सुबह उठने से पहले उठ जाती है वो, सबको खिलाने के बाद खाती है वो, सबको सुलाने के बाद सोती है वो, घर के हर सदस्य का ध्यान रखती है वो, पति से प्रेम बच्चों से प्यार करती है वो, घर में बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त करती है वो, ना कभी चेहरे पर थकान लाती है वो, साल में ना कभी छुट्टी मनाती हैं वो, ममता, करूणा, धैर्य की मूर्त है वो, प्यारी सी एक सुंदर सुरत है वो, बच्चों को दुलार, संस्कार देती है वो, हर सामाजिक रिश्ते से रखती है सरोकार वो, मेरे जीवन में लाई बहार हैं वो, मेरे लिये मेरा संसार है वो परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
आगत का स्वागत विगत को अलविदा
कविता

आगत का स्वागत विगत को अलविदा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** इंकलाब आएगा खुशी के गीत गाए जा । एकता अखंडता के साज को बजाए जा ।। राह में जो मुश्किलें मिलीं थीं भूल जा उन्हें क्या गिला अतीत से मिला है जो सजा उन्हें वक्त से मिला कदम तू कदम बढ़ाए जा ।। एकता अखंडता... धूप-छाँव भी तो जिंदगी का एक अंग है दूर होगी कालिमा मन में यदि उमंग है साम-दाम-दंड-भेद नीति को निभाए जा ।। एकता अखंडता... भाषा-धर्म-जाति-पाँति में नहीं विभेद हो कर्म भी करो वही कि ना कभी भी खेद हो मिल-मिला के नेह से प्रेम रंग चढ़ाए जा ।। एकता अखंडता... शौर्य में वृद्धि हो मान और शान हो स्वस्थ रहें सभी मर्यादा का भी भान हो दर्श दर्प का न हो सद्भावना बढ़ाए जा ।। एकता अखंडता... आ गया नवीन वर्ष तू आरती उतार ले पथ स्वयं प्रशस्त कर तू भविष्य सँवार ले क्या विषाद है तुझे हँस के मिटाए जा ।...
स्वागत भारत मां का
कविता

स्वागत भारत मां का

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पीला-पीला प्रकाश पुंज फैला फणीधर के विशाल भाल पर श्याम श्यामला के प्रांगण में फैले मोती बन नीलांबर पर गगन गहन गंभीर लगता इन टके सितारों की चमक से भू से लगता ऐसा मानो होती आरती हो गगन में। गरजते बादल ऐसे लगते बजाते हो आरती में शंख बसंत में चहकते पणृ पुष्प लगते उड़ते लगा पंख दीपक की बाती सी लगती टेसू के फूलों की कलियां डाली मंद-मंद पवन बहती हो जावेगी मतवाली। झर-झर बहता झरना कहता अस्फुट स्वर मैं कुछ बोध चट्टानों से मिलकर करता माता का जयघोष किल-किल किसलंयो से कलरव होता कोयल, कुकी कुक्कुट का करते हैं यह सब प्रथम पहर में स्वागत भारत मां का।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत...
पुरानी बातें पुरानी यादें…!
कविता

पुरानी बातें पुरानी यादें…!

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** भूल जाऊँ उसे कैसे याद हर पल आती है, मोहब्बत की है सब कुछ भूल कर उससे।। याद है वो दिन पहली मुलाकात का, मिले थे जब दो अजनबी बरसात में।। भूल गए वो गालियाँ जहाँ आना जाना हुआ, मिलते है कभी तो कोसते है वो हमें हम उन्हें।। घूमना फिरना उनके साथ अब यादे उनके साथ, जब से हुए जुदा सिर्फ नाम है याद।। कुछ याद आता है पुराना ख्वाब तो, पी लेते है। भूलने की खातिर उन्हें फिर याद कर लेते है।। पुरानी बातें पुरानी यादों में अब कोई दम नही, नया हमसफर नई राह में जब से चले हम।। बीत गया वो कल जो हमने देखा था, जो साथ मिला नया हम कोहिनूर हो गए।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है...
कोशिश हो रफ्तार की
कविता

कोशिश हो रफ्तार की

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। तानों से कुछ भटके तो, गानों से फिर महके भी शानों में कभी जो अटके, सम्मानों संग चहके भी जीवन के हैं स्वर्ण रथी, सारथी सोच परिहार की। अश्व चाल के चिन्ह मिले, जहां दिशा परिवार की उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। आधी दोस्ती मतलब ही, दुश्मनी आधी सुनते हैं। शतरंज मोहरे जैसे फिर, कदम चाल में घिरते हैं। खट्टे मीठे अनुभव पाते, ऐसी बातें कुछ यार की। कपट विश्वास का पुल, नैय्या कथा मझधार की। उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। गाड़ी जैसा होता जीवन, समतल पर रुकावट भी मिले सही डॉक्टर मिस्त्री, थोड़ी कभी बनावट भी थकावट वाले कलपुर्जे, चाहत सच्चे हथियार की।...
ओ मेरे बचपन के साथी
कविता

ओ मेरे बचपन के साथी

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** गुड्डे-गुडिया, चूरन की पुडिया, किसकी मां किसको दे जाती, सांझ-सवेरे, खेल-घनेरे, बेईमानी सबको भाती, कुश्ती मस्ती खींचातानी, हों-हों खो-खो बहुत सुहाती, ओ मेरे बचपन के साथी! अजीतगढ़ से चिमनपुरा, फिर से पैदल की मन में आती, सबका कब रास्ता कट जाता, जाने कब मंजिल दिख जाती, ओ मेरे बचपन के साथी! बायकाट किया, हड़ताल हुई, पड़ताल एक ही सवाल उठाती, उदंडी कोई, दंड सभी को, चुगली मुख पे, क्यों ना आती ? ओ मेरे बचपन के साथी! स्कॉलरशिप के पैसे मिलते, किसने किसकी फीस चुका दी, नई पोथी के टुकड़े करते, भोजन की हो जाती पाँती, ओ मेरे बचपन के साथी! जिम्मेदार हुए, घर बार छोड़कर, सारे साथी बिछुड़ गए, सेवानिवृत्त हो रही सभी अब, इतने दिन यूं ही पिछुड़ गए, जल्दी जल्दी दिन ढलते हैं, जल्दी जल्दी रातें जाती, ओ मेरे बचपन के साथी! ...