Sunday, May 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

गद्य

काली चामुण्डा और पॉंच भूत
कहानी

काली चामुण्डा और पॉंच भूत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पिछले दिनों की बात है। जब चाचा का धौलाने से फोन आया कि तुम्हारी चाची पिछले कुछ दिनों से बीमार है। मैंने यहां और आस पास के सभी डॉक्टरों को दिखा लिया परन्तु कोई आराम नहीं हो रहा है। मैंने पूछा, "डॉक्टरों ने क्या तकलीफ़ बताई है?" वह बोलें डॉक्टरों के कोई बिमारी समझ ही नहीं आ रही है। वो तो केवल दवा देकर ये कह देते हैं कि शायद इस दवा से आराम हो जाए। कल गाजियाबाद एक बडे अस्पताल में दिखा कर लगाऊंगा। मैंने कहा कि डॉक्टर को सारी तकलीफ अच्छे से बता देना ताकि वो अच्छी दवा दे सके। चाचा बोले कि बता तो दूंगा परन्तु कुछ बातें तो ऐसी है, जिन्हें बताने में ऐसा लगता है कि कहीं डॉक्टर सुनकर हंसी ना बनाएं। मैंने कहा, "हंसी क्यू बनाएंगे?" चाचा बोले कि रात के समय इसे सांस लेने में परेशानी होती है। यहां तक तो ठीक है परन्तु इसी के साथ ही ये अपने ही गले...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सुबह के दस बजे का समय सड़क पर काफी चहल-पहल शुरू हो गई थी, ठीक ऐसे समय मे एक सरकारी कार्यालय का चपरासी रामु अपने कार्यालय को खोलने और साफ-सफाई करने के लिए घर से निकलता है, तभी उसको पास में नास्ता करते हुए कचड़ा बीनने वाले को जलपान करते हुए देखा। यह वही कचड़ा बीनने वाला बिरजू था, जो रोज की तरह आज भी नास्ता कर रहा है। यह बिरजू रामु की पड़ोस में ही रहता था। जब आज रामु से रहा नही गया तो उसने पूछ ही लिया। क्यों रामु? तुमको बीमारी से डर नही लगता? बिरजू ने पूछा क्यो? तब रामु ने कहा- "अरे भई बिरजू तुम कचड़ा बीनने का काम करते हो, तुम यहाँ वहाँ घूमते रहते हो, तुम्हारे हाथ पांव कितने खराब रहते हैं, साबुन से अच्छे से धोकर जलपान किया करो, तुमको बीमारी हो सकती है।" तब वह बिरजू कहता है- "रामु काका तुम ठीक कहते हो पर क्या करें? ये हमारी मजबूरी है ब...
तीन परियाँ
स्मृति

तीन परियाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बालसुलभ रुचियों का भी एक अनोखा संसार है। कोई खिलौनों व मित्रों के साथ गपशप में मस्त रहते हैं तो किसी को गुड़ियों को सजाने में मजा आता है। परंतु मेरे अनमोल खिलौने थे परियों सी खिलखिलाती नन्हीं मुन्नी बच्चियाँ। बस मुझे ये कहीं भी मिल जाती पड़ोस या रिश्तेदारों में, उन्हें बहलाना व उनका ध्यान रखना मेरी दिनचर्या बन जाती थी। विवाहोपरांत मेरा सपना था कि मेरी प्रथम सन्तान बेटी ही हो। माँ बनने के अहसास से ही मैं आश्वस्त थी कि एक नाज़ुक सी कली ही मेरी बगिया में महकने वाली है। दिनरात सुंदर परियों के चित्रों से घिरी रहती और उन्हीं के सपने देखती थी। उसी दौरान मेरी मौसेरी बहन को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। और मुझे मिल गई मेरी परी। घर के बुजुर्गों की प्रतिक्रिया थी, "ये कैसा ईश्वर का न्याय? दोनों बहनें साथ साथ पली बढ़ी, एक को बेटा व दूसरी को बेटी क्यू...
पारदर्शी स्नेह
लघुकथा

पारदर्शी स्नेह

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नभ में सूर्यास्त की लालीमा छाई थी। धीरे सेअंधकार ने वातावरण को घेर लिया था। सुभाष ऑफिस से आते ही हाथ मुंह धोकर गैलरी में आ खड़ा हुआ। उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे।उसे घर के कोने कोने में बाबूजी का एहसास होता था। सुहानी उसकी मनःस्थिति समझकर भी विवश थी। सोचती थी शाम का धुंधलका सुबह होते ही दूर हो जाता है। वैसे ही सुभाष के जीवन में आई रिक्तता को भर तो नहीं सकती लेकिन सामान्य करने की कोशिश जरूर करूंगी। मैं उसकी जीवन संगिनी हूं। बाबूजी के एकाएक चले जाने से सुभाष के सभी अरमान लुप्त हो गये थे। मैं उन्हें पुनः जागरुक करूंगी। बाबूजी की आत्मा भी तो यहीं चाहती थी ना कि सुभाष सरकारी अफसर बनकर देश सेवा करें। ईमानदारी और कर्मठता का प्रदर्शन करें। "फोन की घंटी बजते ही, सुहानी ने आवाज लगाई।" "सुभाष जरा फ़ोन उठा लो मैं चाय नाश्ता बनाने में व्यस...
सपनों का संसार
कहानी

सपनों का संसार

भुवनेश नौडियाल पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) ******************** जीना और मरना, ये जीवन के दो पहलू हैं। इस संसार में जिसने जन्म लिया है, उसे मरना तो है ही, यह तो जगत विदित है। जीना और मरना यह तो ईश्वर के हाथों में है, ना तो मेरे हाथों में है, और ना दूसरे के हाथों में, किंतु माध्यम मैं भी बन सकता हूं, और कोई दूसरा भी। पर यह थोड़ी है, कि हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी प्राणी को पीड़ा पहुंचाएं, यह तो न्याय संगत नहीं है। यह तो आपके ऊपर है, कि आप किस प्रकार का जीवन जीना चाहते हैं। अपने सपनों का संसार या इस कहानी के जैसे- यह कहानी ऐसे किसान की है, जो अपनी जिंदगी से हार मान चुका है, और आगे जीना नही चाहता है। मानों की संसार के सारे दुख इसी को प्राप्त हुए हो, इस कारण से वह अपने बच्चे को जन्म लेने से पहले ही मार देना चाहता है। पर उसे क्या पता जो भाग्य में लिख...
जानवर जाने जानवर की भाषा
लघुकथा

जानवर जाने जानवर की भाषा

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक अजीब सा चिड़ियाघर था जो किसी शहर में न होकर एक गॉंव के जंगल में स्थित था। इस चिड़ियाघर में अन्य जानवरों के साथ गीदड़ो को भी रखा गया था जो देखने में बहुत खूॅंखार थे। उनके दॉंत डरवाने लगते थे और उनके दॉंतो में लम्बे-लम्बे दॉंत जिन्हें कीलें कहा जाता है, उनके खूॅंखार होने का प्रमाण देते थे। हमारे गॉंव के लोगों के खेत भी उसी चिड़ियाघर के आस-पास ही स्थित थे। एक दिन मैं अपने परिवार के साथ अपने खेत पर गया हुआ था और हम अपने खेत पर आम के पेड़ के नीचे बैठकर बातें कर रहे थे। तभी अचानक उस चिड़ियाघर से एक गीदड़ का बच्चा निकल कर हमारे पास आ गया। मैं उसे पकड़कर वापस चिड़ियाघर की तरफ ले जाने का प्रयास कर रहा था और इसी पकड़म पकड़ाई में उसका एक दॉंत मेरी उंगली में लग गया लेकिन मैं उसके दॉंत लगने के बारे में बिल्कुल भी चिंतित नहीं हुआ क्योंकि ...
सच्चा भक्त
लघुकथा

सच्चा भक्त

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कि तारिक घोषित हो चुकी थी। सभी पार्टियों के नेता अपनी अपनी पार्टियों के चुनाव प्रचार में लगें हुए थे। सभी पार्टियों के साथ गांव गांव से अलग-अलग लोग अपने नेता के समर्थन में प्रचार प्रसार में घूम रहे थे। एक व्यक्ति थे विदेश चौधरी जो भाजपा के समर्थन में भाजपा के नेता के साथ गांव गांव पार्टी का प्रचार प्रसार करा रहे थे। इससे पहले विदेश चौधरी ग्राम पंचायत के चुनावों में दो तीन बार प्रधान के साथ गांव में चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं और जिला पंचायत के चुनाव में भी दो तीन बार नेता के साथ चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं। मतदान का दिन आया। लोग सुबह से ही वोट डालने के लिए मतदान केन्द्र की ओर जा रहे थे। सभी के मन में एक ही विश्वास था कि जिस नेता को वो वोट देंगे, वह अवश्य ही जीतेगा लेकिन विदेश चौधरी के मन मे...
बदलाव
लघुकथा

बदलाव

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** काशीनाथ अभी बगीचे से लौटकर आँगन में आकर बैठे थे कि पुत्र शंभुनाथ ने आकर प्रणाम किया। "आज कैसे फुर्सत मिल गई?" शम्भू ने कहा- "कुछ नहीं आपसे आवश्यक बात करना थी इसीलिए आपके पास आया हूँ।" "बोलो क्या बात है?" "आपको तो पता ही है कि नीलम, सूरज बड़े हो रहे है, उन्हें पढ़ने के लिए कमरे की जरूरत है। मैंने सोचा आपको हाल के एक भाग में शिफ्ट कर दे तो अच्छा रहेगा। आप चिंता ना करे प्लाई से उस भाग को बनवा लेंगे।' उसने एक सांस में सारी बात कह दी। काशीनाथ मुस्करा दिए, फिर बाजार में सब्जी लेने चल दिए। बहु अनामिका सोचने लगी- "पापा जी की आज कुछ ज्यादा समय से लग गया तरकारी लाने में!" इतने में काशीनाथ जी घर आ गए। "शम्भू कहा है?" "ऑफिस गए है" बहू ने कमरे से जवाब दिया। शाम को लौटने पर उन्होंने शम्भू को अपने पास बुलाकर कहा- "बह...
हमारी संस्कृति हमारा आस्तित्व
आलेख

हमारी संस्कृति हमारा आस्तित्व

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मानव जीवन पुरी तरह से संस्कृति पर आधारित होता है। बिना सस्कृति के जीवन निर्वाह सम्भव नही है। संस्कृति हमारी और अपने देश की पहचान होती है। वैसे तो हर देश की हर प्रांत की अपनी अलग-अलग संस्कृति होती है। और सभी को अपनी संस्कृति से बेहद प्यार भी होता है। और इसी संस्कृति से ही मानव, समाज, देश उन्नति-प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो पाता है। और इसी से ही वह अपनी परम्पराएँ रीति-रिवाज, धर्म-आस्था-विस्वास, सामाजिक-एकता, खान-पान, रहन-सहन को अक्षुण बना पाता है। और इस प्रकार से वह अपनी संस्कृति का पोषण कर पाता है। और वह पुष्पित पल्लवित हो पाता है। आने वाली नई पीढ़ी के लिए वह मार्गदर्शन का काम करती है। और उसी मार्ग पर चल कर वह अपने आप को एक सुसभ्य इंसान बनाने में सफल हो पाता है। एक तरह से यह संस्कृति हमारी थाती है। हमारा धरोहर है। हमारी पूंजी है। हम...
वोट किसे और क्यों दूॅं ?
आलेख

वोट किसे और क्यों दूॅं ?

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** चुनाव आने से पहले ही गॉंवों के बीएलओ को वोट बनाने की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। जिसमें उन्हें उन युवाओं और युवतियों की वोट बनानी होती है जिनकी आयु अठारह वर्ष हो गयी हो और उनकी वोट काटनी होती है जिनकी मृत्यु हो चुकी है और जो लड़कियॉं शादी करके ससुराल जा चुकी है। प्रायः देखा जाता है कि बीएलओ अपने पक्ष के प्रत्याशी वाले लोगों की नयी वोट भी बना देते हैं और मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों और ससुराल जा चुकी लड़कियों की वोट भी नहीं काटते हैं क्योंकि मौका मिलने पर मृत लोगों की वोट भी किसी ना किसी पर डलवा दी जाती है और ससुराल जा चुकी लड़कियों को बुला लिया जाता है या उनकी वोट भी किसी और से ही डलवा दी जाती है। जो बीएलओ के विरोध वाला प्रत्याशी होता है उसके पक्ष की नयी वोट बनाने के लिए आवश्यक कागजात तो ले लिए जाते हैं परन्तु उनमें से आधे ही आगे...
डर
कहानी

डर

भुवनेश नौडियाल पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) ******************** यह कहानी कल्पना पूर्ण तो है ही, पर कल्पनाओं की जंजीर तोड़ कर यह हकीकत का दर्पण दिखाती है। यह कहानी अचानक प्रकृति की गोद में सोए सोए मस्तिष्क पटल में अंकित हो गई थी। इसलिए अपनी कलम से इस कहानी को लिखने की कोशिश की है। मैं अपने रोजमर्रा के कामों को समाप्त करके अपने आपको थका हुआ, और निद्रा देवी के आंचल में लिपट रहा था अर्थात नींद के आगोश में डूब रहा था, जैसे ही मुझे नींद की देवी ने अपने आंचल तले छुपा दिया, तो मैं अपनी कल्पना की दुनिया में गोते खा रहा था। मैं खुद नहीं जानता था, कि मैं कहां हूं वह तो जब नींद खुली तो पता चला कि मैं एक जंगल में हूँ या कल्पना की दुनिया में, कल्पना.... एक प्रश्न....? मन में इस प्रकार के प्रश्न प्रस्फुटित होते रहते हैं, पर आज अचानक यह प्रश्न मन में उदित हुआ, कल्पना.........
साहित्य की सबसे बड़ी धरोहर वसन्त ऋतु
आलेख

साहित्य की सबसे बड़ी धरोहर वसन्त ऋतु

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** "जीवन में उत्साह का प्रतीक- वैदिक साहित्य से लेकर उपनिषद वेद पुराण और महाभारत,रामायण सहित कालिदास और हिंदी साहित्य के इतिहास पर जब हम दृष्टि डालते हैं तो हम यह पाते हैं कि इन सभी कालों के कवियों ने ऋतुओं पर एक से बढ़कर एक सुंदर साहित्य सृजन किया है। पर वसन्त ऋतु के सौंदय पर जो वर्णन हुआ है,वह कहीं और अन्यत्र देखने को नही मिलता। विशेष करके कामदेव की ऋतुराज वसन्त पर जो लेखनी चली है वह साहित्य के इतिहास की अनमोल धरोहर मानी जाती है। जिसने हिंदी को उपकृत ही नही किया बल्कि इसे पुष्पित पल्लवित और सुरभित भी किया है। इस ऋतु में प्रकृति सोलह सृंगार से युक्त पलास महुए आम की सौरभता मदमस्त कराती सुरभित सुंदरता। फागुन के फाग की मस्ती और रंगीली वातावरण को उत्साह से भर देती है। इस वसन्त का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन विद्या दायिनी माँ...
संवेदना
लघुकथा

संवेदना

माधवी तारे (लन्दन से) इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ट्रिंग-ट्रिंगsss मोबाईल की रिंगटोन बज रही थी। रखमा की राह देखते-देखते घर के आवश्यक कार्य सम्पन्न कर प्रतिभा जरा-सी लेटी ही थी। ढेरे सारे काम अभी अधूरे थी। 'बाद में देखूँगी'- कहकर आराम करने के मूड में थी वह, पर दीर्घ काल तक बजती रिंगटोन ने हैरान कर दिया। फोन उठाना ही पड़ा। हैलो !! कौन बोल रहा है? आवाज अपरिचित-सी लग रही थी। मैं बोल रही हूँ मैडम! रखमा बाई की बड़ी बेटी हूँ। क्या कहना है? मॅडम जी! आज सवेरे मम्मी फिसलकर गिर गई है। उसके पैर में फ्रैक्चर हुआ है। उसे मैं सरकारी अस्पताल में प्लास्टर लगाने के लिये ले आयी हूँ। आधी-अधूरी बेहोशी की अवस्था में उन्होंने मुझे सिर्फ आपके घर में यह बात सूचित करने को कहा है। अरे, भगवान! ये कैसी आफ़त आन पड़ी है? अब क्या करूं? काहे का आराम? उठ जाओ, अधूरे सारे काम मुझे ही पूर्ण करने हैं। घर क...
घर वापसी
लघुकथा

घर वापसी

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "रमाकांत जी ! यहाँ से जाने के बाद हमें भूल तो नहीं जाओगे"? अरे ! कैसी बात करते हैं आप? बीच बीच में आप सब से मिलने आता रहूँगा। आज पूरे पाँच वर्षों बाद रमाकांत जी का पोता उन्हें लेने आया है, एक-एक दिन गिन रहे थे आखिर वह दिन आ ही गया। संगी-साथी छेड़ते रहते थे "अरे यार ! स्वीकार कर लो वृद्धाश्रम को, यही हम लोगों का घर है।" पर वे कहते रहे- न वह आवेगा जरूर। मृदुभाषी रमाकांत जी ने सबको बतलाया था कि बहू बेटा सड़क दुर्घटना में मारे गये, पोता नवोदय विद्यालय के होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है। उसको मैंने समझाया था- "कि तू पढाई पूरी कर, कुछ बन तब तक मैं वृद्धाश्रम में रह लूँगा।" आज वह एक अच्छी नौकरी कर रहा है, उसने मुझसे वायदा किया था कि नौकरी लगते ही वह मुझे लेने आ जाऐगा, और वह आ गया" कहते कहते खुशी से रमाकांत जी का गला रूद्...
शाकाहार – सर्वोत्तम
आलेख

शाकाहार – सर्वोत्तम

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आम के फल का स्वाद नहीं ले सकता। इसी प्रकार बीज रूप में जैसा आहार लिया जाता है, वैसे ही भाव-विचार और आचार होते हैं। आहार दो प्रकार के है- शाकाहार और मांसाहार। शाकाहार अहिंसामूलक है, तो मांसाहार हिंसामूलक। शाकाहार स्वास्थ्यप्रद है, तो मांसाहार रोगों का घर, शाकाहार मानवीय और सौन्दर्यपरक आहार है तो मांसाहार आसुरी और विकृतिपरक, in ७७ सात्विक है तो मांसाहार कालकूटविष, शाकाहार प्रकाश की ओर ले जाता है तो की गौरव गरिमा है। शाकाहार ही मानव के अन्दर संतोष, सादगी, सदाचार, स्नेह, सहानुभूति और समरसता जैसे चारित्रिक गुणों का विकास कर सकता है, मांसाहार कदापि नहीं। शाकाहारी का मन जितना संवेदनशील होता है मांसाहारी का नहीं हो सकता। शाकाहार का तात्पर्य है चारों ओर स्नेह और वि वास का वातावरण बनाकर प्रकृति के कण-कण को सह अस्तित्व की भावना स...
वो प्यारी सी मुस्कान लिए
लघुकथा, सत्यकथा

वो प्यारी सी मुस्कान लिए

स्वप्निल जैन छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के कुछ दिन बाद की बात है, मैं अपनी दुकान पर बैठा था, तभी कुछ ९-१० साल की उम्र के आस-पास की वो प्यारी सी मुस्कान लिए दिल में कुछ अरमान लिए हाथों में सिर्फ हां सिर्फ दो गुब्बारे लिए मेरे पास आई। मैंने पूछा हां बेटा बोलो, वो बिटिया बोली भैया मेरे गुब्बारे खरीद लो, मुझे जरूरत नही थी बलून की पर वो मासूम सी बच्ची निरास स्वर में उम्मीदों से बोली थी, उस समय तो मै सोच में पड़ गया कि इस बच्ची को क्या कहूँ। फिर आखिर मैंने उससे पूछ ही लिया बेटा क्या आप पढ़ाई भी करते हो, वो बोली नहीं मुझे खाने के लिये गुब्बारे बेचने जाना होता है, उस मासूम की इतनी बातें सुनते ही मेरा हृदय पसीज सा गया मैंने एक पल भी देर ना कि और उस बच्ची के दोनों गुब्बारे खरीद लिये, उसका चेहरा मंद-मंद खिल सा गया। वो प्यारी सी मुस्कान लिए कुछ बोली, भैया यदि आपके पा...
धूलगढ़ बना फूलगढ़
कहानी

धूलगढ़ बना फूलगढ़

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** धूल से भरा हुआ एक गॉंव था जिसमें चारों तरफ धूल ही धूल दिखाई देती थी। इस गॉंव की जमीन बंजर स्वभाव की थी।जिस कारण गॉंव में बहुत कम जमीन पर ही खेती होती थी और अधिकांश जमीन का हिस्सा खाली पड़ा रहता था। दूर- दूर तक केवल बड़े-बड़े खाली मैदान दिखाई पड़ते थे जिनमें धूल उड़ती रहती थी। गॉंव के लोग बहुत गरीब थे क्योंकि वो केवल इस बंजर भूमि में उतना ही अनाज पैदा कर पाते थे जितना उनका पेट भर सके। यहॉं के बच्चे भी गॉंव के प्राथमिक विद्यालय में पॉंचवीं कक्षा तक ही पढ पाते थे क्योंकि गरीबी के कारण कोई भी अपने बच्चों को शहर पढ़ने नहीं भेज पाता था। लंगोटिलाल और उसकी पत्नी लुंगीदेवी ने निश्चय कर लिया कि उन्हें कुछ भी करना पड़े परन्तु वो दोनों अपने बेटे गम्छासिंह को इतना पढ़ाएंगे की वो पढ लिखकर इस गॉंव की जमीन को सुधार सके। गम्छासिंह चौथी कक्षा ‌मे...
पारो
कहानी

पारो

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ********************  किसी स्टेशन पर रेलगाड़ी रुकी हुई थी, एक लड़का चाय की आवाज जोर-जोर लगाता हुआ आया, मैनें उससे एक चाय ली, चाय के पैसे देते हुए उससे स्टेशन का नाम पूंछा और चाय की चुस्की लेते हुए पारो (काल्पनिक नाम) के बारे सोचने लगा, वह बहुत ही सुंदर और अच्छे स्वभाव की लड़की थी, बचपन से कोलेज तक हम दोनों साथ में पढ़े थे, हम दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे, में उससे बहुत प्यार करता था, मगर हम दोनों कभी एक दूसरे से प्यार का इज़हार करने की हिम्मत नहीं जुटा सके। मेरी कोलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद मै आर्मी में लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हो गया, ट्रेनिंग के दौरान छुट्टी ना मिलने के कारण मै काफ़ी समय तक गांव नहीं आ पाया, ट्रेनिंग के बाद मेरी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में कर दी गई। एक दिन गांव से ख़त आया दादी की तबियत ठीक नहीं रहती और तु...
वसंत पर सरस्वती पूजा क्यों?
आलेख

वसंत पर सरस्वती पूजा क्यों?

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                     बसंत पंचमी हिंदुओं के प्रमुख त्यौहार में से एक है। वसंत ऋतु के आगमन पर उत्सव मनाने का यह दिन वसंत पंचमी है। एक पौराणिक कथा है, कि जब ब्रह्मा जी ने संसार की रचना की थी, तो उन्होंने देखा कि पूरी सृष्टि मूक है। यहां कोई बात नहीं कर रहा है, फिर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, और एक सुंदर स्त्री चार भुजाओं के साथ प्रकट हुई। उसके एक हाथ में वीणा थी। जब उन्होंनेे वीणा बजाई, तब उसकी आवाज इतनी मधुर थी, कि सृष्टि में स्वर आ गया। ब्रह्मा जी ने इस देवी को सरस्वती का नाम दिया। उसके बाद से इस दिन को वसंत पंचमी के तौर पर मनाया जाता है। मॉ सरस्वती ज्ञान की देवी है, इसकी वजह से मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व माना गया है। मां की पूजा करने से ज्ञान का विस्तार होता है, साथ ही साथ ...
स्वर की मधुरता
लघुकथा

स्वर की मधुरता

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** १० साल की आरिया काफी समय बाद आज अपने कमरे की खिड़की से, अस्ताचलगामी सूर्य की लालिमा से रक्ताभ हुए आकाश में पंख पसारे पक्षियों की चहचहाहट को केवल महसूस कर पा रही थी। ४ महीने पहले "कनेक्टिव टिशु डिसऑर्डर" नाम की बीमारी ने उसकी सुनने की क्षमता को छीन लिया था। आरिया मतलब मेलोडी माने स्वर की मधुरता। ४ साल की उम्र से ही आरिया का संगीत में रुझान था। जब उसकी उंगलियां गिटार पर चलती और खनकती आवाज़ में वो कोई गाना गाती तो लोग अपनी सुध बुध भूल जाते। संगीत के प्रति उसका लगाव धीरे-धीरे उसका जुनून बनने लगा था, उसका सपना था कि एक दिन वह एक मशहूर सिंगर बनेगी। लेकिन आज पक्षियों के कलरव ने उसे आशा की नई किरण दी थी। धीरे-धीरे आरिया में आत्मविश्वास बढ़ने लगा, क्या हुआ अगर वो सुन नहीं सकती थी, उसने संगीत को महसूस करना शुरू कर ...
संकट में आते मानव परिवार
निबंध

संकट में आते मानव परिवार

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** जनसंख्या नियंत्रण करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इसे नियंत्रित करने के लिए हमारी सरकार और अनेक सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं लगातार प्रयास कर रही है। इनके प्रयासों का परिणाम समाज में देखा भी जा सकता है। लेकिन जनसंख्या नियंत्रण को ज्यादा प्राथमिकता शिक्षित वर्ग ने दी है। इससे भी अधिक प्राथमिकता भारत की उच्च जातियों ने दी है। शिक्षित वर्ग और उच्च जातियों ने अपने परिवार को एक दम से सीमित कर दिया है। प्रायः देखा जाए तो उच्च जातियों में आजकल दो सन्तान पैदा करने का प्रचलन चल रहा है जिससे एक लडका और एक लड़की। अधिकतर परिवार तो प्रथम लडका होने पर दूसरी संतान के बारे में सोचते ही नहीं है। जनसंख्या नियंत्रण के हिसाब से ये सब उत्तम है परन्तु कभी सोचा है इसका इन परिवारों पर असर क्या होगा? इसके दो असर होंगे। प्रथम अनुकूल असर जनसंख्या निय...
सुंदर
लघुकथा

सुंदर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** पार्टी में रंग बिरंगे परिधानों में गहरे श्रंगार करे दादी की सहेलियों को देख आशू ने अपनी साधारण सी दिख रही दादी से कहा, "दादी, आपकी सब सहेलियां कितनी सुंदर लग रही हैं, आप उतनी सुंदर नहीं हैं।" अपने आठ वर्षीय पोते की बात सुन कपिला मुस्कुरा दी, कैसे वह इस बच्चे को बताए कि ये सब गाढ़े श्रंगार करके अपनी असली उम्र को छिपाने का प्रयास कर रही हैं। उसी रात में आशू के साथ टहलते समय ठंड से ठिठुरती एक गरीब वृद्धा को देख कपिला ने अपना शॉल कंधे से उतारकर उसको उढ़ा दिया। वृद्धा अत्यंत प्रसन्न होकर बोली, "बेटी, तू बहुत सुंदर है।" आशू ने अपनी दादी के चेहरे की ओर देखा, उसे अपनी दादी बहुत सुंदर लग रही थीं। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद वि...
नेहानुबन्ध
लघुकथा

नेहानुबन्ध

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम की लंबी उम्र बहुधा उसकी निस्वार्थता पर निर्भर करती हैं। मधु जब अपने बाबुल का अंगना छोड़ पी की देहरी आई तो मन मे एक दृढ़ संकल्प तो था पर एक अनजान सा भय मिश्रित आनंद भी था। बचपन से सौतली माँ के कठोर सानिध्य में पली मधु ने कष्टो व दुखो को बहुत नजदीक से देखा था। बात बात पर पिटना, भूखे ही सो जाना आदि की तो मधु को खूब आदत थी। पर कितनी भी कठोर क्यों न हो, मधु अपनी मां को हृदय से चाहती थी। ससुराल में तो धन दौलत वैभव सब कुछ मधु को मिल गया था। पर मधु माँ को नही भूल पाई थी। ससुराल में सिर्फ उसके ससुर और पति बस दो ही लोग थे। विवाह के लगभग एक साल बाद मधु के पिताजी यकायक चल बसे। घर का सारा काम मधु से करवाने वाली मां पर मानो वज्रपात पड गया। दुकान बंद हो गई और कुछ ही दिनों में खाने के लाले पड़ने लगे। मां को रह-रह कर अपनी सौत...
पितृ देव
लघुकथा

पितृ देव

जनक कुमारी सिंह बाघेल शहडोल (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी तुम सो रही क्या? एक हट्टा-कट्टा कद्दावर पुरुष श्वेत वस्त्रधारी, लम्बी श्वेत कपसीली दाढ़ी और सिर में बड़े-बड़े सफेद बाल, निर्मल छवि देख विनीता अचकचाकर उठ बैठी। उस महापुरुष के मुखमंडल पर ऋषि-मुनियों की तरह आभा झलक रही थी। विनीता चरण स्पर्ष करते हुए बोली-बाबा आप यहां ! बाहर कोई नही है क्या? बाबा जी आप यहां आने का कष्ट क्यों किये। मै वहीं आ जाती। नही बेटी-मुझे तुमसे ही मिलना था इसलिए मैं उधर गया ही नही। सीधे यहीं चला आया। अच्छा ! कहिए ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ। बेटी ! मैं बस यही कहने आया हूँ कि अब पितृ पक्ष आ गया है। लोग श्राद्ध के बहाने अनेकों तरह के दिखावे और भुलावे में आ जाते हैं। कम से कम पांच-सात पंडितों को आमंत्रित करेंगे। घर परिवार या दोस्तों को बुलाएंगे। एक वृहद भोज का आयोजन होगा। ऐसा लगेगा जैसे कोई जलस...
धोखा
लघुकथा

धोखा

महिमा शुक्ल इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रमा और राज साथ ही पढ़ते थे, रमा उसकी लच्छेदार बातों पर खूब हँसती जल्द ही बीस साला प्यार के गिरफ्त में आ गए दोनों। कस्मे-वादों की फेहरिस्त भी बना ली दोनों ने। रमा ने उसे अपना सब कुछ मान लिया, राज पर ऐतबार उसे इतना कि एक दिन घर से चुपचाप उसके साथ चल दी, सब कुछ छोड़-छाड़ कर अपना अशियाना सजाने के लिए। प्यार में डूबे दोनों ने रजत के एक दोस्त के यहॉँ पनाह ली। सपनों में खोयी रमा को अपना घर बनाने की तमन्ना थी, दो दिन बाद ही रमा बोली अब आगे? चलें कहीं और? नौकरी करनी होगी वरना कैसे चलेगा काम? रजत ने लापरवाही से कहा क्या जल्दी है? अभी आराम से रहो रमा ने फिर पूछा "पैसे कहाँ से आएंगे जो मैं लायी थी वो ख़त्म हो गए" अब रजत झटके से तुरंत बोला ये है ना सुरेश ये देगा। रमा को शंका होने लगी अरे तो चुकाओगे कैसे? रजत ने धीरे से कहा तुम चुकाओ...