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अखंड भारत के निर्माता : सरदार वल्लभभाई पटेल
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अखंड भारत के निर्माता : सरदार वल्लभभाई पटेल

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अनेक ऐसे वीर पुरुष हुए जिन्होंने अपने जीवन को राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित कर दिया। महात्मा गॉंधी ने जहाँ अहिंसा और सत्य का मार्ग दिखाया, वहीं पंडित नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण कि परिकल्पना की। परन्तु इन सबके बीच एक ऐसे पुरुष का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है जिसने भारतीय रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर भारत की अखंडता को स्थायी रूप प्रदान किया। वे थे सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें ससम्मान “लौह पुरुष” और “अखंड भारत के निर्माता” कहा जाता है। सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म ३१ अक्टूबर १८७५ को गुजरात के नडियाद नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता झवेरभाई एक साधारण कृषक थे और माता लाडबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। बचपन से ही वल्लभभाई में आत्मसम्मान, परिश्रम और दृढ़ संकल्प की भावना थी। उन्होंने...
हिन्दी दिवस
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हिन्दी दिवस

मोहर सिंह मीना "सलावद" मोतीगढ़, बीकानेर (राजस्थान) ******************** हिन्दी दिवस प्रति वर्ष १४ सितम्बर को पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। १४ सितम्बर १९४९ को ही संविधान सभा ने निर्णय लिया था कि हिन्दी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी क्योंकि भारत के अधिकतर क्षेत्रों में हिन्दी भाषा बोली जाती थी। इसलिए हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया गया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए वर्ष १९५३ से पूरे भारत देश में १४ सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्द दास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किए। हिन्दी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृत...
समाधान जरूरी है
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समाधान जरूरी है

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** आज सूर्योदय होने से पहले ही घर के आंगन में प्रातः काल की ताज़ा हवा का आनंद लेने के लिये मैं अपने दैनिक कार्य से एक दम फ्रि हो गया और जैसे ही घर से निकले के लिए कदम बढ़ाया तो आंगन मे देखा गमले में फूल खिल उठा था और उससे थोड़ी ही दूर में ऊपर से रस्सी से बंधा हुआ आज का अखबार दिखाई दिया मैं थोड़ा सा चिंता मे डुब गया। क्योंकि पेपर वाला रोज़ की तरह विलंब न करके समय से पहले ही अखबार पहुंचा दिया था। फिर क्या अखबार हाथ में आते ही मै खुद को पढ़ने से भला रोक पाता? तभी देखा कि गहरे काले काले मोटे अक्षरों से हेड लाइन को देख मैं तो शून्य सा हो गया लिखा यूं था कि- 'अविचारी वाहन चालक' हेड लाइन पढ़ते ही मैं आग बबूला हो गया। मन को थोड़ा शांत किया और मैंने सोचा कि आज सही समय आ गया है जवाब देने का, अक्सर सोसल मीडिया में चंद टी.आर.पी.पाने के चक...
स्वयं ही स्वयं को पहचानिये
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स्वयं ही स्वयं को पहचानिये

माधवी तारे लंदन ******************** बचपन से एक मराठी गीत रेडियो पर सुनना अच्छा लगता था। सुधीर फडके जी के स्वरों में वह गीत बहुत मधुर लगता। उसका अर्थ कुछ ऐसा था कि मानव जन्म में ही मनुष्य से देवत्व प्राप्त करने किया जा सकता है यही तुलसी रामायण का एक मुख्य तत्व है। यह लेख भी कुछ ऐसे ही विचारों से भरपूर है। हम अक्सर देखते हैं कि मनुष्य को स्वर्ण की बहुत चाह होती है। और इसी से आंका जाता है कि व्यक्ति कितना संपन्न है। इस शरीर के सौंदर्य में स्वर्ण और चांदी चार चांद लगाते हैं। लेकिन हम ये अक्सर भूल जाते हैं कि इस ईश्वर प्रदत्त शरीर की कीमत सोने चांदी से कहीं अधिक है और बहुत मूल्यवान है। लेकिन मनुष्य चौर्यमयी सोने का अधिक जतन करता है और शरीर रूपी सोने को बिलकुल भूल जाता है। हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि अनेक योनियों में भटकने के बाद हमें मनुष्य जन्म की प्राप्ति हुई है। सोने की लंका के गुणग...
सतरंगी दुनियां
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सतरंगी दुनियां

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** क्या कड़वे पौधे से मीठे फल आ सकता है? जी हां धैर्य एक कड़वा पौधा है पर फल हमेशा मीठे ही आते है। अपना बैंक बैलेंस देखकर खुश मत होइए जनाब, ऊपर वाला हिसाब तो आपके कर्मों का करेगा। चार लोग क्या कहेंगे? अक्सर कोई भी काम करने से पहिले हम सोचते है। चार लोग आपकी आपकी तेरहवीं पर कहेंगे "पूड़ी गरम लाना।" इसलिए उन चार लोगों में अपना अमूल्य समय बर्बाद न करें अपने कार्य में व्यस्त रहें। समय सबसे बलवान है। आप कुछ भी योजना बना ले पर होता वही है जो समय चाहता है। एक महिला सरकारी कार्यालय पहुंची और विधवा पेंशन का फार्म भरने लगी क्लर्क ने पूछा आपके पति को मरे कितना समय हुआ है? महिला ने बताया वो अभी बीमार है। फिर आप विधवा पेंशन का फार्म क्यों भर रही है? अरे भाई सरकारी काम में बहुत समय लगता है। जब तक मेरी पेंशन पास हो जायेगी तब तक शाय...
प्रकृति पूजक आदिवासी
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प्रकृति पूजक आदिवासी

मोहर सिंह मीना "सलावद" मोतीगढ़, बीकानेर (राजस्थान) ******************** विश्व आदिवासी दिवस ९ अगस्त को पूरे विश्व में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। भारत में सबसे पहले से रहने वाले आदिम लोगों के बंशज आदिवासी ही है। भारत की २०११ की जनगणना के अनुसार लगभग ११ करोड़ आबादी हैं जो भारत की लगभग 8.५ प्रतिशत हैं। आदिवासियों का जीवन धरती, जल, जंगल, वन्य जीवों के साथ एवं संपूर्ण मानवता के साथ परस्पर पूरक और संरक्षित है। भारत देश में आजादी के ७५ वर्ष बाद भारत के सर्वोच्च पद पर प्रथम आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू जो कि सबसे कम उम्र की प्रथम राष्ट्रपति भी है। आदिवासी शब्द दो शब्दों से आदि और वासी से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है उस देश के मूल निवासी अगर सिर्फ भारत की बात की जाए तो १० से ११ करोड़ की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा आदिवासियों का है आदिवासी समुदाय में मुंडा, संथाल, मीणा, भील, गरासिया, उरांव आदि अन...
चलो आज फिर मास्टरी कर लेता हूँ – भाग-1
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चलो आज फिर मास्टरी कर लेता हूँ – भाग-1

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** नोट- यह ज्ञान मेरे द्वारा हृदयंगम की गई अनुभूति और उसके मन्थन का निष्कर्ष है जो कई विद्वानों की मान्यताओं से भिन्न भी हो सकता है। इतर होने पर जिज्ञासु मुझसे सम्बन्धित विषय पर प्रश्न पूछ सकते हैं। कई जिज्ञासुओं ने जानना चाहा है कि - प्रश्न- देवनागरी लिपि में 'क','ख' 'ग' 'ज', 'प' आदि को अमात्रिक बताया जा रहा है क्या यह उचित है? उत्तर- "नहीं"। स्वर रहित वर्ण को ही अमात्रिक कहना सही है जैसे क्,ख्,ग्, आदि, किन्तु किसी वर्ण पर कोई भी स्वर होने पर वह मात्रिक हो जाता है। इसलिए क,ख,ग अमात्रिक नहीं हो सकते हैंं, क्योंकि इनमें अ स्वर मिला हुआ है। प्रश्न - सर ! अन्य मात्राओं की भाँति इन वर्णों पर कोई मात्रा (किसी स्वर का चिह्न) तो दिखाई ही नहीं दे रही है ? उत्तर- हमारी देवनागरी लिपि में सभी वर्णों की आकृति ...
प्रेम का दोष …?
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प्रेम का दोष …?

पं. भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** यदि मेरा हृदय किसी से अनजाने में, अनचाहे, पर अटूट प्रेम कर बैठता, और मैं उस प्रेम को केवल इसलिए कुचल देता क्योंकि वह समाज की निर्धारित सीमाओं के भीतर नहीं था? नहीं... मैं उस प्रेम को स्वीकार कर लेता। उस आकर्षण को, उस आत्मीयता को, उस जीवन भर के साथ का वचन देने वाले भाव को, विवाह के पवित्र बंधन में बाँध लेता। किन्तु यह कल्पना मात्र ही रोमांच उत्पन्न कर देती है। क्योंकि मेरा यह निर्णय, जो मेरे और मेरे प्रेमी/प्रेमिका के लिए जीवन की नई प्रभात होता, वही समाज के एक वर्ग के लिए काली घटा बनकर आता। और इस काली घटा के तले सैकड़ों जीवन नष्ट हो जाते- कोई अपने सम्मान के नाम पर आत्मघात कर लेता, तो कोई कथित 'सम्मान' बचाने के नाम पर हिंसा की भेंट चढ़ जाता। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, यह भारतीय समाज के उस क्रूर यथार्थ का काला पक्ष है जहाँ '...
योग से सहयोग तक की यात्रा
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योग से सहयोग तक की यात्रा

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** यात्रा तो हम सभी करते है पर आज हम जो यात्रा कि बात कर रहे वह यात्रा सफल यात्रा है और हम सभी को करना भी चाहिए आइये आज संक्षिप्त में हम योग, सहयोग और उसके लाभ पर बात करते है। हम सभी जानते है योग की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी, योग शब्द संस्कृत से आया जिसका अर्थ है जोड़ना एकजुट होना योग प्राचीनतम जीवन शैली जो मन आत्मा शरीर को संतुलित करने में मदद करती है योग एक यात्रा है ना कि कोई मंजिल। ऐसी यात्रा जो निरन्तर अभ्यास और समर्पण से आगे बढ़ती है। योग हमारे भीतर छिपे असीम सामर्थ्य को पहचानने और उसका उपयोग करने का साधन जिस दिन से योग जीवन का हिस्सा बनता है उस दिन से योग जीवन से दूर जाना दिखता है। युज शब्द के तीन अर्थ उपलब्ध समाधि, संयोग, संयमन। सुख दुख,मान अपमान सिद्ध-असिद्धि, आदि विरोधी भावों में भी समान रहने को ही भगवान ने ...
शरणागति
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शरणागति

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** मैं चाहूँगी कि यदि जीवन को धन्य करना चाहते हो तो शरणागति को समझते हुए आगे कैसे बढ़ना है- जानते हैं सर्वप्रथम शरणागति का अर्थ या संक्षिप्त परिभाषा किसी भी चीज़, ख़ासकर भगवान नारायण (कृष्ण) के या भगवान श्रीराम के प्रति पूरी तरह से समर्पण करना अपने अहंकार का त्याग और भगवान के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित रहना शामिल है। शरणागति या प्रपत्ति अति संक्षिप्त में कहूँ तो मन की वह अवस्था जिसमें भगवान से प्रार्थना की जाती है कि वे भक्त को बचाने का साधन बनें यह अनुभूति इस बात से जुड़ी है कि भक्त पूरी तरह असहाय है, पापी है,तथा उसके पास अन्य मोक्ष की कोई आशा नहीं। शरणागति का शाब्दिक अर्थ है शरण में आया हुआ व्यक्ति। शरणागति के मुख्य चार प्रकार बताए गए हैं जो हम इस तरह से जान सकते हैं … भगवान की आज्ञाओं का पालन करना। भगवान के नाम का जप कर...
मैं क्या हूँ ….?
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मैं क्या हूँ ….?

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** मनुष्य के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब वह स्वयं से यह प्रश्न करता है - "मैं क्या हूँ ?" यह प्रश्न केवल शरीर, नाम, या पहचान तक सीमित नहीं होता, बल्कि आत्मा, उद्देश्य, और अस्तित्व की खोज की ओर संकेत करता है। जब हम कहते हैं "मैं", तो हम क्या दर्शाते हैं ? क्या यह शरीर "मैं" है ? क्या यह विचार, भावनाएँ, या यादें "मैं" हैं ? या फिर कुछ और है जो इन सबसे परे है ? हमारा शरीर समय के साथ बदलता है - बाल सफ़ेद हो जाते हैं, चेहरा झुर्रियों से भर जाता है, लेकिन फिर भी भीतर एक एहसास बना रहता है कि "मैं वही हूँ।" इसका अर्थ यह हुआ कि "मैं" केवल शरीर नहीं हो सकता। यह तो केवल एक वाहन है, जिससे आत्मा इस संसार में कार्य करती है। मन हमें सोचने, समझने, और महसूस करने की शक्ति देता है। बुद्धि निर्णय लेने में सहायता करती है और अहंकार यह भावना देत...
अंतरतम का अग्निपथ
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अंतरतम का अग्निपथ

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** वाराणसी के घाटों पर प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम किरण जब गंगा के जल को स्पर्श करती, तो ऐसा प्रतीत होता मानो भगवान शंकर अपनी जटाओं से अमृत की धारा प्रवाहित कर रहे हों। किन्तु उस विशेष प्रभात में, पंडित विश्वनाथ की दृष्टि गंगा के तरंगों में नहीं, अपितु अपने हृदय के शून्य में अटकी थी। वेद-वेदांग के मर्मज्ञ, शास्त्रार्थ में अजेय इस पंडित के वक्षस्थल में अब केवल एक टूटे हुए सितार की ध्वनि गूँज रही थी। मंदिर के विराट शिखर के सम्मुख खड़े वे अपनी छाया से प्रश्न कर रहे थे- "क्या यह चोटी में बँधा रुद्राक्ष माला का टूटना उसी दिन का संकेत था, जब महादेवी ने प्रथम बार इस ओर दृष्टिपात किया था?" महादेवी... नाम ही उनके अस्तित्व का सार था। काशी की वह नृत्यांगना जिसके चरणों की थाप पर स्वयं नटराज प्रसन्न होकर तांडव करने लगते। जिस दिन वह संकी...
यूक्रेन युद्ध, नाटो और यूरोप, भारत
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यूक्रेन युद्ध, नाटो और यूरोप, भारत

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** विगत दिनों विश्व की सबसे बड़ी खबर यदि कोई थी तो वह ट्रंप और जेलेंस्की की नाटकीय मुलाकात और बच्चों की तरह लड़ना, विश्व स्तर की राजनीति और कूटनीति में इन दिनों का सबसे हल्का, स्तरहीन और सही मायने में भौंडा प्रदर्शन था, जिसमें सामान्य स्तर के शिष्टाचार को बलाए ताक रखा गया। यह सभी को पता है कि असली लड़ाई नाटो के विस्तार और रुस की घेराबंदी के मूल प्रश्न पर लड़ी गई। रुस की भौगोलिक स्थिति विघटन के बाद की स्थिति में किसी भी हालत में वह यह सहन नहीं कर सकता कि उसके समुद्री मुहाने पर नाटो चौकीदार बन कर बैठ जाए और उसके विशालकाय पोत निर्भय होकर अपने ही समुद्र से आगे नहीं बढ़ पाएं। यद्यपि संयुक्त सोवियत रुस के विघटन के पश्चात रुस की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के बावजूद पिछले सालों से चल रहे यूक्रेन युद्ध में खराब हुई है। जब रूस ने युद...
भारतीय ज्ञान परंपरा में जैन दर्शन का योगदान
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भारतीय ज्ञान परंपरा में जैन दर्शन का योगदान

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारतीय ज्ञान परंपरा अनेक दार्शनिक धाराओं से समृद्ध हुई है, जिनमें जैन दर्शन का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैन दर्शन न केवल आध्यात्मिकता का संदेश देता है, बल्कि यह तर्क, नैतिकता, अहिंसा और सामाजिक समरसता का भी आधार है। इसकी शिक्षाएँ हजारों वर्षों से भारतीय समाज और विश्व चिंतन को दिशा देती आ रही हैं। अहिंसा: भारतीय संस्कृति को दिया अमूल्य उपहार जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है, जिसे महावीर स्वामी ने अपने जीवन का आधार बनाया। उन्होंने कहा, "परस्परोपग्रहो जीवानाम्" अर्थात सभी प्राणी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। यह विचार भारतीय समाज में करुणा, सहिष्णुता और शांति की भावना को प्रोत्साहित करता है। महात्मा गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर भी जैन दर्शन का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। अनेकांतवाद: सहिष्णुता और तर्कशक्...
हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण
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हिंदी शब्दों का रोमन लिप्यंतरण

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** हिंदी के लिए प्रयुक्त देवनागरी लिपि में विश्व की लगभग सभी भाषाओं की ध्वनियों केलिए पृथक ध्वनिचिह्न प्राप्त हैं। कुछ नहीं भी हैं तो हिंदी का ´विकासशीलता´ का गुण उसे अपना कर नया चिह्न दे देता है यथा, क=क़, ग=ग़, ज=ज़ आदि। चूँकि अंग्रेज़ी स्वयं में एक वैश्विक भाषा का रूप ले चुकी है तथा हिंदी के लगभग सभी पौराणिक व ऐतिहासिक ग्रंथ अंग्रेज़ी में प्राप्त हैं, प्रकाशित हो रहे हैं। ऐसे मे समस्या तब आती है जब राम को Rama कृष्ण को Krishna, सुग्रीव को Sugriva, Omkara, Veda, Chanakya, Ashoka आदि लिखा जाता है तथा रामा, कृष्णा, नारदा, चाणक्या ओमकारा, वेदा, अशोका लोग बोलने भी लगे हैं। इससे मूल शब्दों के अर्थ का अनर्थ भी हो रहा है। अहिंदी भाषियों, अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ने वाले प्रवासी भारतीयों, विदेशों में जन्मे भारतीय बच्चों तथा भारत म...
न जन्म सहज न मृत्यु सहज
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न जन्म सहज न मृत्यु सहज

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** पुराने समय में महिलाएं प्रसव घर पर ही करती थी। उस समय दाईया होती थी जो सुरक्षित प्रसव कराती थी। अस्पताल जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। न कोई ज्यादा खर्च न कोई झंझट सरलता से प्रसव हो जाता था। वर्तमान युग में प्रत्येक प्रसव अस्पताल में हो रहा है और डॉक्टर पैसा कमाने के चक्कर में साधारण प्रसव के स्थान पर आपरेशन द्वारा प्रसव कराते है। बच्चे के जन्म के साथ परिवार में खुशियां आती है और प्रसव आपरेशन द्वारा होता है तो डॉक्टर का बिल बढ़ जाता है इसलिए आपकी खुशी के साथ साथ डॉक्टर भी खुश हो जाता है। पहिले जब कोई व्यक्ति बीमार या दुर्घटना ग्रस्त होता था तो डॉक्टर यथा संभव साधनों द्वारा उसका उपचार करते थे। उनकी भावना मरीज को ठीक करने की होती थी। जब हमारा उद्देश्य सही होता है तो स्वयं भगवान आपकी मदद करने के लिए आ जाते है और अक्स...
खुद से खुद की मुलाकात
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खुद से खुद की मुलाकात

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** ध्यान योग साधना से खुद को खुद के अंदर झाँककर, एक मुलाकात खुद ने खुद से की। मैं किस जगह और किस डगर पर हूं और मुझे कहां पहुंचना है? जब मैं खुद को खुद से पहचानी, तो महसूस किया मैं एक कवियत्री हूं मैं अपने भावों के द्वारा अपने विचार सबके सामने रखती हूं। मैं प्रकृति, एक दूसरे के भाव विचार, धरती, अंबर, जलवायु, हरियाली, नदी, पर्वत समन्दर से रूबरू होकर अपने भाव प्रकट करती हूं। मैं एक आर्टिस्ट हू मैं अपनी कला को प्रदर्शित कर, कविता के माध्यम से उसके अंदर तन्मय और लीन कर देती हूं, सोचने और समझने पर बाध्य कर देती हूं। अरे! मेरी कला तो इतने सालों तक छिपी हुई थी इन मंचो के द्वारा व आप सबके द्वारा पसंद करने पर मेरी कला को में प्रदर्शित कर सकी और अपने आप को पहचान सकी, की प्रभु ने भी मुझे कुछ सीखा कर भेजा है जो कला हर व्यक्ति में रह...
पितरों की शान्ति
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पितरों की शान्ति

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पिंड और प्राण का संयोग कोई विशेष लक्ष्य लिए होता है। वह पूरा होते ही वियोग निश्चित होता है। तात्पर्य यह हैं कि शरीर और आत्मा ये दोनों ही अलग है। आत्मा अविनाशी, चेतन ज्योति बिन्दु, शान्त स्वरूप होती है। शरीर हाड, मांस, रक्त से बनी भगवान की अनुपम कृति है। जिस अवचेतन में चेतनता आत्मा के संयोग से आती है। आत्मा में ८४, जन्मों के कर्मों का लेखा-जोखा जमा होता है। वह उसे जन्म मृत्यु के चक्र में पूरा करती है। इस प्रकार चार युग सतयुग त्रेता युग, द्वापर युग, कलियुग में आत्मा अपने घर ब्रह्म तत्व से स्थुल लोक पृथ्वी पर समय अनुसार आकर अपना पार्ट इस शरीर के माध्यम से सृष्टि रुपी रंगमंच पर अदा करती है। ठीक पांच हजार साल के सृष्टि चक्र में उसे चक्र लगाना होता है। अतः देह से ही सारे संबंध होते हैं। आत्मा ने देह छोड़ा वैसे ही सारे संबंध दूसरे जन्...
भेड़ियों का आतंक
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भेड़ियों का आतंक

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर का पुलिस थाना, समय दिन का ही कोई.., वैसे भी पुलिस थाने तो २४ घंटे खुले रहते हैं, आखिर अपराध कोई समय देखकर थोड़े ही किए जाते हैं। पहले अपराध रात को होते थे और थाने दिन में खुलते थे, तो बड़ी परेशानी थी। पुलिस वालों को अपनी नींद हराम करनी पड़ती थी। वैसे भी हरामखोरी पुलिस की कार्यप्रणाली में रहे तो ठीक है, अब ये ये नींद में भी आ गई तो पुलिस वालों ने बगावत कर दी। इसलिए उनकी सुविधा के लिए अपराध दिन में ही होने लगे, पुलिस वालों के ऑफिस टाइम से मैच करते हुए। तो हाँ, पुलिस थाने का सीन वैसा ही, जैसा देश के हर कोने में किसी भी पुलिस स्टेशन का हो सकता है। ऑफिस के बरामदे में चार पांच कुर्सियाँ डली हुईं, उनके आगे एक कॉमन राउंड टेबल बिछी हुई। कुछ राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का सा सीन है जी..। थाने की ...
आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता
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आदर्श शिक्षक की गुणधर्मिता

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ********************  अच्छा शिक्षक उत्साही, मिलनसार, सहज, शिक्षार्थियों के साथ तालमेल विकसित करने में सक्षम, अपने छात्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध, मिलनसार, शिक्षार्थियों में लोकप्रिय और आदर्श प्रतिमान के रूप में अपनी स्थिति के प्रति हमेशा सचेत होता है। एक अच्छे शिक्षक में कई तरह के हार्ड और सॉफ्ट स्किल्स भी होते हैं जिन्हें प्रभावी शिक्षकों को निखारना चाहिए, जैसे कि कक्षा प्रबंधन से लेकर भावनात्मक बुद्धिमत्ता तक। अपने सबसे अच्छे शिक्षक के बारे में सोचें। जब शिक्षकों के पास आवश्यक ज्ञान और कौशल होगा, तभी वे इतना बड़ा कार्य करने की स्थिति में होंगे। एक सफल या आदर्श शिक्षक वह शिक्षक होता है जिसे छात्र प्रसन्नता से याद करते हैं, अच्छी तरह से पढ़ाना जानते हैं कि प्रत्येक छात्र समझता है। यह वह शिक्षक है जो स्पष्ट रूप से, संक्षेप में और विषय पर ...
अनासक्ति भाव
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अनासक्ति भाव

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** द्वारिकाधीश स्वयं अनासक्ति के प्रतीक हैं। प्रेमघट भरा रहा, किंतु त्यागा वृंदावन तो पीछे मुड़ कर न देखा। अंदर तक भर गया था प्रेम तो बाहर क्या देखते। हम सांसारिक प्राणी अलग हैं। माया, मोह, धन सम्पत्ति, परिवार, यश सभी ओर लोलुप दृष्टि है। जब तक सब अपने पास न हो, मन में शांति नहीं। हम सब भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं येन केन प्रकारेण भौतिक सम्पन्नता पाने को। कोई अंतिम लक्ष्य नहीं। एक इच्छा पूर्ण हुई नहीं कि दूसरी तैयार आसक्त करने को। क्या करें, कैसे करें??? ईश्वर ने समस्या दी तो समाधान भी दिया। प्रेम व कर्म जीवन का अभिन्न अंग हैं अन्यथा सृष्टि चले कैसे। जीवन की राह में परिवार, भौतिक साधनों, धन सम्पत्ति,मित्र, समाज के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है। संगति का प्रभाव बलवान है, वह चाहेपरिवार, मित्र या पुस्तकों का हो। जैसे लोगों के बी...
ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४
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ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले-बिसरे कलाकार श्रृंखला – ४

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** (चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती, श्री व जी शब्द नहीं है) संकलनकर्ता - भीष्म कुकरेती ठंठोली मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण गाँव है। कंडवाल जाति किमसार या कांड से कर्मकांड व वैदकी हेतु बसाये गए थे। बडोला जाति ढुंगा, उदयपुर से बसे। शिल्पकार प्राचीन निवासी है। ठंठोली की सीमाओं में पूरव में रनेथ, बाड्यों, छतिंडा व दक्षिण पश्चिम में ठंठोली गदन (जो बाद में कठूड़ गदन बनता है), दक्षिण पश्चिम में कठूड़ की सारी, उत्तर में पाली गाँव हैं। ठंठोली की लोक कलाओं के बारे में निम्न सूचना मिली है - लोक गायन व नृत्य - आम लोग, स्त्रियां गाती हैं, गीत भी रचे जाते थे। सामूहिक व सामुदायक नाच गान सामन्य गढ़वाल की भाँती। घड़ेलों में जागर नृत्य भी होता है। बादी बादण नाच गान व स्वांग करते थे। बिजनी के हीरा बादी पारम्परिक वादी थे। कुछ लोग स्वयं स्फूर्ति...
गहरा गड़ा खूंटा
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गहरा गड़ा खूंटा

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जेंडर समानता की बात बहुत हो रही है, समान काम का वेतन अलग होना बहुत शर्म की बात इसलिए है कि मुर्मू जी राष्ट्रपति हो, सीतारामन सबसे बड़े लोकतंत्र में दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था का बजेट पेश करे, हलवा भी बने, तीखे प्रश्नों के जवाब भी आत्मविश्वास से देवे। पायलेट हो, वायुसेना में विशेष भूमिका में हो, सेना के ट्रूप का पुरुषों की टुकड़ी का गणतंत्र दिवस पर नेतृत्व करते देख सारी नारियां उछलने लगे, तब ऊंचे ओहदों डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर तक मे अंतर हो तो कुछ सोचने वाली बात है। कल एक बिल्डिंग का सिक्योरिटी ठेकेदार से बात हुईं कहने लगा, मैडम इस बिल्डिंग में चालीस प्रतिशत महिला कर्मचारी है, सुरक्षा की दृष्टि से छत आदि पर ताला लगवाना बहुत जरूती है, एक हादसा होने पर मेरी एजेंसी खतरे में पड़ जाएगी। माना एक की कमाई से घर नही चलता है। आज नर्सिंग घोटाले स...
कृष्ण जी की १६ हजार रानियों का सत्य
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कृष्ण जी की १६ हजार रानियों का सत्य

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ‌‌ कृष्ण जी के जीवनकाल में एक घटना घटी। नरकासुर नामक राक्षस ने १६ हजार स्त्रियों का अपहरण करके अपने महल में बंदी बनाकर रखा था। उसे कृष्ण जी ने नरकासुर को मार कर उन स्त्रियों को मुक्त कर दिया। इतने वर्षों तक राक्षस के यहां रहने के बाद उन्हें कौन स्वीकार करेगा, यह सोचकर सभी नदी में डूबकर जीवन समाप्त करने के लिए चल पड़ी। कृष्ण जी के पूछने पर उन्होंने अपने मन‌ की बात उन्हें बताई। इसपर भगवान श्रीकृष्ण जी ने उन्हें जीवन त्याग करने से रोका तथा कहा कि आप सबको मैं आश्रय दूंगा, आप मेरे साथ रहेंगी। कृष्ण जी तो बहुत सक्षम थे, उन सबके रहने के लिए महल बनवाकर उन्हें सुरक्षा प्रदान की। कृष्ण जी उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली राजा थे, उनकी सुरक्षा के घेरे में आने का किसी में साहस नहीं था। इस प्रकार वो भगवान की आश्रिता थीं, संरक्षण में थीं...
एक चेहरे पर कई चेहरे
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एक चेहरे पर कई चेहरे

माधवी तारे लंदन ******************** जब भी भारतीयों की प्रगति की बात होती है, विदेशों में बसे भारतीयों के गुणगान गाने को तत्पर रहते हैं और विदेशी लोगों को आमंत्रित करने का मौका हम ढूंढते रहते हैं। वहां रहने वाले भारतीय इस अवसर को संपन्न करवाने में हम जी जान से मदद करते हैं। लेकिन विदेशी समाज में रहकर खुद को साबित करना, अच्छे पद कर काम करना आसान नहीं होता. गलतियां ढूंढने को तैयार लोगों की घाघ नज़रों के बीच हर दिन अपने आप को प्रमाणित करना पड़ता है। कई देशों में भारतीय नर्सें काम करती हैं और उनके काम को काफी सराहा जाता है। लेकिन कई बार ऐसा भी सुनने में आता है कि आप्रवासी नर्से सारी तैयारी करके रखती हैं लेकिन उसका सारा श्रेय स्थानीय नर्सें ले जाती है, डॉक्टरों को जानबूझकर दिखाया जाता है कि स्थानीय कर्मचारी ही बेहतर हैं। अक्सर आयोजन में देखा जाता है कि आज भी हमारी गुलामगिरी की मानसिकता गई न...