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लघुकथा

नीरू की जिद
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नीरू की जिद

जनक कुमारी सिंह बाघेल शहडोल (मध्य प्रदेश) ******************** इस बार अर्धवार्षिक परीक्षा में नम्बर क्या कम आया कि नीरू पूरी तरह से जिद पर उतारू हो गई। कहने लगी कि मुझे तो दीदी वाला ही रूम चाहिए। दूसरे रूम में बाहर के शोर शराबे में पढ़ाई नहीं हो पाती। मुझे तो यही वाला रूम चाहिए। चारू प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है उसे किसी तरह का व्यवधान न हो इसलिए एकान्त कमरा दे दिया गया था। बार-बार समझाने के बाद भी जब नीरू नहीं मान रही थी तो नंदिता को अचानक उसकी और भी पुराने जिदें याद आने लगीं। सोचने लगी- इसे बार-बार हर बार दीदी की ही चीजें क्यों चाहिए? खीझ भरे मन में अनायास ही अतीत के पन्ने पलटने शुरू हो गए। जब अपने जन्म दिन पर उसने फ्राक के लिए जिद कर लिया था। बोलने लगी थी माँ मुझे भी अपने जन्म दिन में दीदी जैसी ही फ्राक चाहिए। नहीं बेटा! तुम्हारे लिए उससे भी अच्छी फ्राक आएगी। दीदी की ...
जो मुझे भा गई
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जो मुझे भा गई

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दो वर्ष पश्चात घर जा रहा हूँ। टेक्सी में बैठे-बैठे पत्रिका के पन्ने पलटने लगा। सौंदर्य प्रतियोगिता पर नज़र पड़ते ही मुझे बहन के ब्याह का नज़ारा याद आ गया। बहन की वह परी सी सहेली मानो आकाश से उतर कर आई हो। सितारों जड़ी झक श्वेत साड़ी व लम्बे लहराते बालों में बिखरी मोगरे की लड़िया। नाम मात्र के गहने कह रहे थे... मोहताज नहीं जेवर का जिसे खूबी ख़ुदा ने दी। उसका पूरी जिम्मेदारी से माँ का हाथ बटाना मैं आज तक नहीं भुला नहीं पाया। इसी बीच माँ पापा ने कई रिश्ते सुझाए। बहन से उस सुंदरी के बारे में कई बार पूछा। विदेश में रह रही बहन उसका पता नहीं लगा पाई। चाय की तलब लगने पर टेक्सी रुकवाई। रेस्तरां में लगा कि मोगरे की खुशबू फैल रही है। सामने टेबल पर श्वेत पौशाक में पीठ किए बैठी एक युवती बैठी है। हाँ, बस लम्बी चोटी ही लहराती दिखी। ज्यों ही वह पलटी म...
विश्वास
लघुकथा

विश्वास

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** रूपल का कॉलेज में ग्रेजुएशन का अंतिम साल था। परीक्षा शुरू होने के पहले सभी सहेलियों ने अंतिम पार्टी रखी थी। ग्रेजुएशन के बाद क्या करना है, फिर कब और कहां मुलाकात होगी, यही वार्तालाप चल रही थी। सीमा बीच में बोल पड़ी...अरे रूपल जी ...रंजन जीजू आई मीन रंजन बाबू का क्या होगा.. हमें भी तो बताओ। रंजन कॉलेज का सबसे होनहार व अनुशासित लड़का था। वह रूपल की सादगी व सुन्दरता पर मरता था। जब पहली बार रूपल कॉलेज ज्वॉइन किया था तो रूपल के पिता महेश बाबू ने रूपल से बस इतना ही कहा था की, बेटा तुम्हारे साथ मेरी लाज भी कॉलेज जा रही है। मेरी लाज अब तुम्हारे हाथों में हैं, यह हमेशा महसूस करना। मुझे पूरा विश्वास है मेरी बेटी मेरा शीश नहीं झुकने देगी। रूपल ने रंजन के बारे में केवल अपनी मां को बताया था। महेश बाबू घर के आंगन में चा...
नजीर
लघुकथा

नजीर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चंद्रकांत पांडे, जिसे बबलू पांडे........"भैया जी" कहकर पुकारता था। टीवी के हर चैनल पर सब उसके खूंखार अपराधी हत्यारे होने का सबूत दे रहे थे। जबकि....बार-बार उसकी आंखों के सामने चंद्रकांत पांडे का चेहरा सामने आ रहा था जब उसने आखिरी बार उसे देखा था। उसके चेहरे और आंखों में इतनी मायूसियत थी। वह खूंखार अपराधी जिसे मीडिया आंतकवादी भगोड़े का नाम दे रही थी जिस पर दो लाख का इनाम पुलिस रख चुकी थी। उसकी जिंदगी का सच यह था जिसे हर पार्टी उसे अपने साथ मिलना चाहती थी क्योंकि वह उनके लिए वोट इकट्ठी करने का माध्यम है और हर पार्टी एक से एक लालच देकर उसे अपनी तरफ करना चाहती थी उसको अपने हाथ की कठपुतली बनाने के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी नें कैसे मोहरा बनाकर आज एक खूंखार अपराधी घोषित कर दिया था। आज वह हार गया था। क्योंकि हर तरफ से ...
बटवारा
लघुकथा

बटवारा

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** घर भर में कोहराम मचा था, तारा जी सीढ़ी से गिर गई थी, सिर पर भारी चोट लगी थी, डाक्टर ने बताया कि शायद दिमाग की कोई नस फट गई थी, जो उन्हें यूं अचानक दुनिया को छोड़ अलविदा कहना पड़ा। यूं तो तारा जी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी थी, तीन बेटे थे, सभी की शादी हो चुकी थी और सभी अपने अपने परिवार में मस्त थे। लेकिन तारा जी का यूं अचानक जाना उनके पति राधेश्याम जी पर पहाड़ टूटने जैसा था, क्योंकि राधेश्याम जी थोड़े से अस्वस्थ रहते थे, और उन्हें हर पल तारा जी के साथ की जरूरत महसूस होती थी, असल में यही वह उम्र होती है, जिसमें हमें अपने जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, और जीवन साथी की जैसे आदत सी हो जाती है, इसी समय पर आकर हम जीवनसाथी का सही मायनों में अर्थ समझ पाते हैं, और फिर पूरी ज़िंदगी तो जिम्मेदारियों में निकलती ही है, ...
योग्यता पर भरोसा
लघुकथा

योग्यता पर भरोसा

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************  रोज की तरह दूर से आती मधुर संगीत की कर्णप्रिय ध्वनि आज माधवी को बिल्कुल नहीं भा रही थी ... पता नहीं लोग २४ घंटे क्यों संगीत सुनते रहते हैं?... उसके बेटे का चयन जो नहीं हुआ था-संगीत प्रतियोगिता में... योग्यता की कोई कद्र ही नहीं है... उसे चुन लिया जिसे संगीत की कोई समझ नहीं... बड़े बाप का बेटा जो ठहरा... एक कड़वाहट-सी उसके भीतर घुलकर उसके शरीर को कसैला बना रही थी... तभी महरी की आवाज ने उसे चौंका दिया- "बीबी जी हमार बचवा का एडमिसन बड़े सकूल में हो गया है ! वो मोहल्ला के सकूल वालों ने तो भरतीच नी किया था...पर मेरे को उसकी योग्यता पे भरोसा था..."कहकर अपने ‌काम में लग गई, लेकिन अनजाने ही माधवी को योग्यता पर भरोसा रखने का संदेश दे गई। अब माधवी का मन हल्का हो गया था। उसे अब वह संगीत की ध्वनि ‌पुनः मधुर लगने ‌‌लगी ...
आ गया है वो मेरी ज़िंदगी में
लघुकथा

आ गया है वो मेरी ज़िंदगी में

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** अपनी पचासवीं लघु कथा पुस्तक के विमोचन की ख़ुशी में मैं प्रकृति की गोद में अपना अकेलापन दूर करने के लिए राजस्थान से कश्मीर गई। सुबह की ठंडी-ठंडी हवाएँ मन को सहला रही थी व तन को रह-रह कर सुकून दे रही थी। हाथ में चाय का कप था। हल्की-हल्की बारिश की बूँदे भी थी जो बरस कर भी दिखाई नहीं दे रही थी। इतना मनोरम दृश्य किसी सूटकेस में भर करके मन सहेजकर रख लेना चाहता था। पलकें अकिंचन भाव से अनिमेष हो चुकी थी मानों पर्वत-शृंखलाएँ चिरनिद्रा में सो रही है बिलकुल शांत। इसी बीच एक कुत्ते के बच्चे की आवाज़ें आई। उसने मेरी मंत्रमुग्ध तंद्रा को भंग कर दिया था इसलिए मैं रौद्र भाव से उसकी ओर गई। मेरे आश्चर्य का ठिकाना तब नहीं रहा जब मैंने उसे एक छोटे से बालक के हाथ में देखा। दोनों में मासूमियत कूट-कूट कर भरी थी उतनी ही उनके चेहरे पर दरिद्रता भ...
अधिकार
लघुकथा

अधिकार

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीता का रो-रो कर बुरा हाल था।पति को खो देने की पीड़ा ने उसे तोड़ कर रख दिया था। अभी शादी को कुछ ही साल हुए थे। दो छोटे-छोटे फूल से बच्चे थे। जो रोज पापा का इंतजार कर रहे थे। मम्मी, पापा कब आएंगे? उनके मासूम सवालों के जवाब उसके पास नहीं थे। देखते ही देखते साल गुजर गया था। पर उसकी आँखों के आँसू सूख नहीं रहे थे। वह बुरी तरह से टूट गई थी। उसे अपने बच्चों का भविष्य अन्धकार में लग रहा था। कहने को पति का भरा-पूरा परिवार था। जेठ, देवर सभी थे। पर भाई के मरने के बाद, उसे कोई भी सहारा देने को तैयार नहीं था। उन्हें उसकी चिंता नहीं थी। पूरा परिवार ज़ायदाद के पीछे था। उन्होंने उसका हिस्सा भी हड़प लिया था। उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर, उसे घर से बाहर कर दिया था। वह अपनी माँ के घर पर ही निराशा में दिन तोड़ रही थी। माँ भी अपनी बढ़ती उम्र से परेशान ...
पिता
लघुकथा

पिता

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** एक पुरुष के दो बच्चे थे। वह पुरुष रोजाना अपने बच्चों के उठने से पहले काम पर चला जाता और शाम को बच्चों के सो जाने के बाद घर आता। बच्चों की मां उन बच्चों के पूरा दिन काम करती। उनके लिए खाना बनाती, स्कूल भेजती, उनके वस्त्र बदलवाती और उनको पढ़ाई करवा कर उन्हे सुला देती। बच्चों ने कभी अपने पिता को नहीं देखा था। बच्चों का बचपन बीता। बच्चे बढे होने लगे। एक दिन बच्चों ने अपनी मां से कहा कि मां हम दोनो ने आपको अपने साथ काम करते, समय बिताते देखा है। पिता जी को कभी भी नही देखा। ऐसे में तो उनके बिना भी हम बड़े हो सकते हैं। उनका हमारे जीवन में क्या कोई काम है? मां को उस दिन आश्चर्य हुआ और एहसास हुआ कि बच्चे तो अनजान है पिता के उनके जीवन में योगदान के। मां ने बच्चों को अपने पास बिठाया और समझाने लगी। कि तुम्हारे पिता अपना पूरा समय तुम्हारा जीव...
डोर पतंग की
लघुकथा

डोर पतंग की

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** चेतन गुस्से से भरा, नाश्ते को बिना मुंह से लगाए, लंच बॉक्स छोड़कर ऑफिस के लिए निकल गया। वीणा के दिल पर जैसे कोई हथौड़ा मार गया हो। ऐसा वाकया अक्सर ही होता था, जब चेतन उसके करे काम में कोई-न-कोई नुस्क निकाल, अपना दंभ साकार कर लेता था। वीणा को चेतन के जीवन में आए मात्र छह महीने हुए थे, पर शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब वह किसी न किसी बात पर न चिल्लाया हो। वीणा से अब उसका उग्र स्वभाव बर्दाश्त के बाहर हो गया था। अभी तक वह यही सोचकर चुप रही कि शायद चेतन का व्यवहार बदल जाएगा, पर ऐसा कुछ न होने पर उसका धैर्य जवाब देने लगा। अंततः वीणा ने तय कर लिया कि अपनी मां को हर दिन की एक-एक बात बताएगी। वह चेतन को छोड़ने तक का मन बना चुकी थी। मकर संक्रान्ति का पावन पर्व था। वीणा ने देखा कि चेतन हाथ में कई रंगीन पतंगें और चरखी लेकर सीधे छत पर चला ग...
रिटायरमेंट
लघुकथा

रिटायरमेंट

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** रिटायरमेंट के बाद खुद से सम्मुख होने का मौका मिला। जिंदगी बेफिक्री से उनके कंधे पर सर रख कर थकान मिटा रही थी... रिटायरमेंट के बाद मंडवारिया जी एक दम फ्री हो गए थे। बच्चों की शादियां कर दी थीं। बस एक सपना था कि रिटायरमेंट के बाद मिले पैसों से पत्नी को विदेश की सैर करवानी है। सो टिकट ऑनलाइन बुक करवाया। स्विट्ज़रलैंड में होटल बुक करवाया। बच्चों को पहले ही खबर कर दी थी। बच्चे खुश थे कि पापा अब तो अपनी जिंदगी मम्मी के साथ खुल कर जिएं। आखिर वो दिन भी आ गया। पहली बार हवाई जहाज में सफर करने का मौका मिला। नौकरी के दौरान जिम्मेदारी के बोझ ने कभी जिंदगी को खुल के जीने का मौका ही नहीं दिया। कभी होम लोन, कभी बच्चों की पढ़ाई तो कभी बच्चों की शादी की चिंता। पत्नी की दबी हुई आकांक्षाए मन में घुटती रहीं। कभी कोई शिकायत नहीं की। बस पति,...
दोस्ती की मिसाल
लघुकथा

दोस्ती की मिसाल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** दिनेश के पिता राजीव पिछले कई दिनों से बेटे को कुछ उदास देख रहे थे। आखिर आज पूछ ही लिया। क्या बात है बेटा, तबियत ठीक नहीं है क्या? नहीं पापा। आपको बताया था कि पंकज के एक्सीडेंट के कारण उसकी बहन सोनी की शादी रुक गई। मगर बेटा इसमें हम क्या कर सकते हैं? यही तो मैं सोच नहीं पा रहा हूँ पापा! सोनी के सामने जाता हूँ तो जैसी उसकी राखियां उलाहना देती हैं कि तू कैसा भाई है, तेरा दोस्त बिस्तर में है और तू......। दिनेश रो पड़ा। देखो बेटा। बात गंभीर है। अच्छा होता तुम मुझे ये बात और पहले बताते तो.... मगर अब तुम तीनों को परेशान होने की जरुरत नहीं है। सोनी की शादी मैं कराऊंगा, शादी उसी लगन में ही होगी। तुम मुझे पंकज के घर ले चलो। आज ही हम सोनी की होने वाली ससुराल चलेंगे और बात करेंगे। साथ उन दोनों को यहीं ले आयेंगे,...
सरहद पर दीवाली
लघुकथा

सरहद पर दीवाली

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ********************                                       आज प्रकाशपर्व दीपावली है। सरहद पर तैनात भारतीय सैनिक दीपावली पूरे उत्साह से मना रहे हैं। उनका विश्वास था कि यह सरहद ही उनकी आन बान और शान है, जिसकी रक्षा करना ही उनका सबसे बड़ा धर्म है। आज वे सरहद पर मोमबत्ती जलाकर उजास की आराधना कर रहे हैं। सरहद को जगमग देख पाकिस्तान के सीमाप्रहरी भी निकट आ गये। एक पाकिस्तानी सैनिक ने कहा "दीपावली की मुबारकबाद !" लीजिए मीठा मुँह करिये "कहते हुऐ भारतीय सैनिकों ने मिठाई उनकी ओर बढा दी।" आज दोनों ओर प्रेम और सौहार्द्र का वातावरण था। सरहद के दोनों ओर के सैनिकों के मन में भाईचारे की पवित्र जोत प्रज्ज्वलित हो रही थी, और वे सोच रहे थे काश! यह सरहद नहीं होती तो अच्छा होता। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्या...
भाषाई निपुणता
लघुकथा

भाषाई निपुणता

सीमा तिवारी इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** आर्यन चुपचाप बैठ जाओ और मुझे शाम की रूप चौदस की पूजा की तैयारियाँ करने दो | माँ की ये बात सुनकर नौ वर्ष का मासूम आर्यन आकर बरामदे में चुपचाप बैठ गया | भैया आप पीछे अटाले में रखे लकड़ी के पटियों से भोलू के लिए शेड बना दो | माँ काम कर रही है और पापा ऑफिस गए हैं | मुझे देखते ही वो मुझसे बोला | मैं जो कि आर्यन के घर पेइंग गेस्ट हूँ और पीएच. डी. कर रहा हूँ | गृह मालकिन की अनुमति से शेड बनाने में जुट गया | तुम्हारा भोलू आएगा ? मैंने पूछा | हाँ कल वो पटाखों की आवाज से बहुत डर गया था | जोर-जोर से भौंक रहा था तो मैंने उसे बिस्किट देकर कोने में बिठाकर उस पर बोरा डाल दिया था | देखना भैया वो आज भी आएगा | आर्यन विश्वास से बोला | शेड तैयार हो गया था | सब त्यौहार मनाने में व्यस्त थे | आर्यन नए कपड़े पहन कर दरवाजे पर खड़ा भोलू का इंतजार क...
दिवाली के पटाखे
लघुकथा

दिवाली के पटाखे

निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद (झारखंड) ******************** श्याम ओर मोहन दोनों में घनिष्ट मित्रता थी। दोनों एक-एक दूसरे पर हमेशा समर्पण का भाव रखते है। स्कूल से कालेज तक दोनों टापर थे मोहन फर्स्ट तो सोहन सेकेंड। मोहन जानता था की श्याम जान बूझकर सेकेंड होता है एक प्रश्न हल नहीं करता की मोहन फर्स्ट हो जाए ये बात मोहन के पिताजी भी जानते थे उनकी दोस्ती का लोहा सभी मानते थे। एक साल पहले श्याम के पिता का देहांत होगया था वो एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। उसके घर के हालात ठीक नहीं थे। दीपावली आरही थी, श्याम चिंतित रहता था इस साल दीवाली कैसे मनेगी घर में छोटी बहन भी थी माँ ओर बहन के कपड़े तो जरूरी थे। श्याम की चिंता मोहन से छिपी न रही उसने पूछा श्याम क्यों परेशान हो सच कहो दोस्ती की कसम। श्याम कसम के आगे मजबूर हो गया बोला अब मेरी आगे की पढ़ाई नहीं हो सकती मुझे कही नौकरी करनी पड़ेगी ...
पीढ़ी का अंतर
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पीढ़ी का अंतर

मंजिरी "निधि" बडौदा (गुजरात) ******************** हेलो कैसी है? तबियत तो ठीक है ना? रोहिणी ने कल्पना से पूछा l कल्पना बोली हाँ बस ठीक ही हूँ l बेटा बहु बच्चों के साथ आज नखराली ढाणी गए हैं l मैं घर पर ही हूँ l सही है इच्छा तो हमारी भी बहुत होती है कि हम भी बाहर जाए परन्तु संकोच वश बेटा बहु से कह नहीं पाते क्या करें l चलो तो अपना ध्यान रखना l बीच बीच में फोन कर लिया कर कल्पना l इतना कह कर रोहिणी ने फोन रख दिया l माँ मैं वीणा और परी पिक्चर देखने जाने वाले हैं और खाना भी बाहर ही खाकर आएंगे l आप खाना खा लेना l रोहित ने कहा l मेरे तो पैर दुःख रहे हैं मैं नहीं आती रोहिणी ने जवाब दिया l दादी आप भी चलो ना l प्लीज दादी l परी ने कहा l बेटा, दादी मॉल में जाकर क्या करेंगी? ना तो उन्हें एस्कलेटर चढ़ना आता है और ना ही वहाँ कोई मंदिर है कहकर वीणा हँस दी l उन्हें तो सिर्फ मंदिर जानें में ही दिलचस्प...
दोस्त
लघुकथा

दोस्त

निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद (झारखंड) ******************** अब्दुल ओर राम दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी। दोनों के परिवार वाले भी उनकी दोस्ती से खुश रहते थे। दिवाली दशहरा में राम के नये कपड़े आते तो अब्दुल के भी साथ में आते ईद में अब्दुल के कपड़े बनते तो राम के भी बनते। दोनों की दोस्ती की मिसाल दी जाती कोरोना काल में राम के पिताजी कोरोना की चपेट में आ जाते है हॉस्पिटल में इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो जाती है। राम घबरा जाता है वह क्या करे उसने सभी रिश्तेदारों को पड़ोसियों को फोन किया परंतु सबने आने से मना कर दिया। राम को समझ में नही आ रहा था वह क्या करे। तभी उसे अब्दुल का ख्याल आया उसने तुरंत फोन किया। ओह ये तो बहुत गलत हुवा तुम घबराओ मत म़ैं पापा के साथ तुरंत पहुँचता हुँ। थोड़ी देर में अब्दुल अपने पिता, चाचा ओर भाई के साथ हॉस्पिटल में आता है। अब्दुल के पिता ने राम को सांत्वना दी ओर अ...
माँ पर अटल भरोसा
लघुकथा

माँ पर अटल भरोसा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पांडाल से नौ कन्याएँ सज-धजकर गरबा मंडल के आयोजक महिला और पुरुषों के छोटे से समूह के साथ मूर्तिकार के यहॉं पहुँची। उसमें से पहुँचते ही अंशी बेटी बोल पड़ी- "अरे अंकल ये क्या कर रहे हो? माँ के तिलक को आँख जैसा क्यों बनाया?" उन्हीं में से मिशी बोली- "और ये आँख से आग क्यों निकल दी आपने?" शक्ति संचय करता तीसरा नेत्र प्रज्वलित कर मूर्तिकार ने पलटकर देखा। उसका मन प्रसन्न हो गया शक्ति स्वरूपा माँ के नौ बाल रूप देख बरबस ही हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया। भावविभोर हो मन ही मन कहने लगा माँ तुम्हारे दर्शन से साधना सफल हुई। अंशी अपने नेत्र फैलाकर जवाब की प्रतीक्षा में देखने लगी मूर्तिकार कुछ कहता उसके पहले ही उसकी माँ ने जवाब दिया- "अरे अंशी बेटू माँ के नेत्र से आग नहीं निकल रही। यह तो शक्ति नेत्र है।" ओ! तो....इससे पॉवर मिलेगा मम्मा "ह्म्म्म ...
दादा-दादी का गाँव
लघुकथा

दादा-दादी का गाँव

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ********************                                         चिड़ा-चिड़ी, उड़ते-उड़ते आखिर भीरू गाँव पहुँच ही गये। अब उनकी थकान काफूर हो चुकी थी, गाँव की सीमा पर एक आम का पेड़ था, जिस पर बहुत से पक्षी बैठे थे। जब वे वहाँ गये तो परदेसी जानकर वहाँ की चिड़ियों ने उनका स्वागत किया। अपना परिचय देते हुए, चिड़ा बोला- "मेरे दादा-दादी का गाँव है यह। मरने के पहले उन्होंने कहा था, कि हमारे गाँव कभी भी जरूर जाना। नदी में नहाकर किनारे के पेड़ों पर खा पीकर विश्राम कर लेना।" "कहाँ हैं नदी?" वहाँ रहने वाले चिड़े ने दुःखी स्वर में कहा "ये जगह-जगह गड्डे देख रहे हो न। यही नदी थी।" अतिथि चिड़ियाँ ने पूछा- "और पेड़?" नदी नहीं तो पेड़ कहाँ? अच्छा खासा छोटा सा जंगल था। शहर स विकास नामक जानवर आया और उसने सब तबाह कर दिया। बड़ी दूर से आए चिड़ा-चिड़ी जो वहीं बसने का सपना लेकर...
उखड़ा बरगद
लघुकथा

उखड़ा बरगद

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ********************                                           सवेरे-सवेरे शोर सुनकर मैं घर के बाहर आया, देखा लोगों का एक हूजुम घर के आगे खड़ा था। मुझे देखते ही एक नेतानुमा आदमी आगे बढ़कर कर्कश स्वर में चिल्लाया- ’’आप गाँव में नये-नये आए हो, आप की हिम्मत कैसे हुई, बरगद का पेड़ लगाने की? किससे पूछा आपने?’ मैं हकबका गया। सूझ नहीं पड़ रहा था कि मैं क्या जबाव दूँ। जुम्मा-जुम्मा गाँव में आये पन्द्रह दिन ही हुए थे, और यह बिन बुलाये मुसीबत। जीप में घूमने निकला था, रास्तें में जड़ से उखड़ा छोटा सा बरगद का पेड़ मिला, सोचा, गाँव की खाली पड़ी जमीन पर लगा दूँगा। ऐसा ही किया, पर सिर पर ऐसी मुसीबत आऐगी, सोचा न था। सोच में डूबा ही था कि फिर से नेतानुमा आदमी गुर्राया "बड़े होकर बरगद पूरी जमीन घेर लेगा, रास्ता बंद हो जावेगा, समझे।’’ मैं गिड़गिड़ा कर माफी माँगने...
दमन
लघुकथा

दमन

प्रदीप कुमार अरोरा झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** "सुन बे छुट्टन," "थोड़े प्याज के टुकड़े और ले के आ।" झोपड़ीनुमा ढाबे में ठेठ पीछे की ओर परंपरागत पाट वाली खाट पर बैठे ट्रक ड्रायवर की आवाज सुनकर आठ वर्षीय दीनू चौक उठा। किसी और दुनिया में मगन, तख्ते पर फैले पलेथन (सूखे आटे) पर अभ्यास हेतु कुछ अक्षर उकेर रही उसकी अंगुली अचानक थम गई। पिता ने रोटी बेलते-बेलते आँखें तरेरी। दीनू सहम गया। गरीब की जिंदगी के जटिलतम ग्रंथ का सार दीनू ने तत्काल पढ़ लिया। शराब की गंध दीनू के स्वर्णिम स्वप्नों पर हावी होती चली गई। परिचय :- प्रदीप कुमार अरोरा निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : बैंक अधिकारी प्रकाशन : देश के समाचार पत्रों में सैकड़ों पत्र, परिचर्चा, व्यंग्य लेख, कविता, लघुकथाओं का प्रकाशन , दो काव्य संग्रह(पग-पग शिखर तक और रीता प्याला) प्रकाशित। सम्मान : अटल काव्य सम...
भाग्य की कसौटी
लघुकथा

भाग्य की कसौटी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता (विषय मुक्त) में तृतीय स्थान प्राप्त लघुकथा।) शब्द संख्या- २०५ ब्याह की विदाई में नाइन पायल पाकर चहकने लगी, "अम्मा ! बहु आपकी चाँद का टुकड़ा है। भैया के साथ जोड़ी भी खूब जमती है। बुलाओ ना, ज़रा नज़र उतार दूँ।" यशोदा हँसती है, "तेरे मुँह में घी शक्कर। चल, दूल्हा-दुल्हन दोनों को एक साथ भेजती हूँ।" वन्दनवार अभी सूखे भी नहीं हैं। नई नवेली दुल्हन अपने प्रियतम के साथ मगन है। "पूर्णा ! बताओ ना, अपनी मनपसंद जगह। अच्छा ठीक है, मैं ही तय करता हूँ ।" कहते हुए पार्थ अपनी प्रिया को आग़ोश में ले निहारता है। और चल देता है टिकिट बुक कराने। तूफान कभी कहकर आता है भला। सड़क हादसे से पूर्णा के मेहंदी भरे हाथ मंगलसूत्र उतारने को मजबूर हो गए। ...
बंधमुक्त
लघुकथा

बंधमुक्त

सुरेखा सिसौदिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता (विषय मुक्त) में द्वितीय स्थान प्राप्त लघुकथा।) शब्द संख्या- ४६९ बगीचे में पौधों को पानी देते मिश्राजी के मन मस्तिष्क में अपनी बेटी का मुरझाया चेहरा घूम रहा था। तीन दिनों से घर में तनाव था। तनाव का कारण था बेटी पलक का राज्य स्तरीय बेडमिंटन स्पर्धा में जाने को इच्छुक होना परंतु मिश्राजी के अनुसार खेल से अधिक महत्वपूर्ण थी पढाई व गृहकार्य दक्षता। उचित उम्र में कैरियर बनना व गृह कार्य, दोनों का अपना अपना महत्व है। मिश्राजी रूढ़ीवादी तो न थे पर वर्तमान परिपेक्ष्य में अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर अत्यंत चिंतित थे। उन्हें अपनी बेटी पर तो पूरा विश्वास था परंतु समाचार पत्रों में छपने वाली आये दिन की ख़बरों के कारण हि...
जरूरत
लघुकथा

जरूरत

सतीशचंद्र श्रीवास्तव भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** (१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता (विषय मुक्त) में प्रथम स्थान प्राप्त लघुकथा।) शब्द संख्या- १९२ "कहिए, क्या परेशानी है? मनोरोग चिकित्सक ने पूछा। "जी, कुछ भी नहीं!" "फिर, यहाँ आने का मकसद?" "म...म...मैं तो..., इससे पहले कि बेटा हिचकिचाहट के साथ अपनी बात पूरी करता, साथ में आई उसकी माँ बीच में ही बोल पड़ी, "डाक्टर साहब मैं ही इसे आपके पास लेकर आई हूँ, वो भी बड़ी मुश्किल से। माँ, हूँ इसकी। इसलिए, मन नहीं माना। देखिए, इसका चेहरा कितना बुझा जा रहा है। बस, अपने आप में ही खोया रहता है। ईश्वर की कृपा से घर में किसी चीज की कमीं नहीं। फिर भी इसका हाल तो देखिए! इसे देखकर कोई कहेगा कि ये नौजवान है?" "ठीक है, आप परेशान न होइए। मैं अभी देखता हूँ।" मनोच...
अवनी
लघुकथा

अवनी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** महामारी में बहू की मृत्यु के बाद और बेटे की नौकरी छुटने के बाद भी सविता काकी ने हार न मानी गांव की महिलाओं के कपड़े सीने के कारण सब उन्हें सविता काकी कहते सविता अपने बेटे को हिम्मत दिलाने के साथ कक्षा सातवीं में पढ़ रही अपनी पोती अवनी को भी दुलारती अच्छी बातें कहती शाला में सारी खेल सुविधाएं होने के कारण अवनी अच्छा निशाना लगाती, पढ़ाई में भी तेज और अन्य गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करती शिक्षकों ने उसकी लगन देखकर उसे तीरंदाजी के लिए अन्य शहरों में भेजा अवनी वहां प्रथम आई हर दिन उसे प्रोत्साहित करती घर पर सिमित साधनों से वह निशाना लगाती पिता सब देख खुश होते पर बेरोजगारी की टीस उन्हे झकझोर देती अन्य चार शहरों में प्रथम आने के बाद शाला की ओर से उसे राज्य स्तरीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में भेजा इस प्रतियोगिता में भी अवनी अव्वल रही राज्य ...