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पद्य

मन के मीत
कविता

मन के मीत

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे मन के मीत मेरे मन की थी कल्पना कोई भोली-भाली अल्पना आती है मुझे बार-बार सपना बाहों में भरकर उसको अपना बना लेते हो मेरे मन के मीत मुझे तुम बहुत याद आते हो सपनों में क्यूँ सताया करते हो रोज-रोज मिलने का वादा करते हो अपना वादा रोज तोड़कर मुझे रुलाते हो मेरे मन के मीत जब तुमसे मेरा नेह हुआ है मन मेरे वश में नहीं तेरा हो गया है तुम बिन मेरी कोई खुशियां नहीं है याद आते ही मेरे आंखों में भर जाते हो मेरे मन के मीत तुम मेरे जीवन की संगिनी हो हे प्रिय मेरे नैनों में तुम समाए हो इसलिये बारम्बार मेरी नींद उड़ाते हो मन मे बसे मनमीत तुम बहुत याद आते हो परिचय :-  राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' निवासी : बागबाहरा (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : प्राचार्य सरस्वती शिशु मंदिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बागबाहर...
रस-श्रृंगार
कविता

रस-श्रृंगार

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** मदमस्त नयन के प्याले से, छलकाओ प्रेम हृदयवन में। कुंदन सम ज्योत्स्ना का भी, आलिंगन कर लो मधुबन में।। हिम स्वम् धराशायी होवे, अभिमान पूस का हुआ जिसे। ठिठुरन सलज्ज हो स्वीकारे कामिनी ने ऐंसा छुआ मुझे।। ललिता अधरों की दिखलाओ, शीतल ऋतु धराशायी होवे। मन्मथ के बाणों से छलनी, हे! स्वयं सुलोचन बलखाओ।। हो सप्तप्रभा सी नूतन तुमपर, स्वेत रंग यूँ रहा झलक। इठलाती दरिया को ओढ़े, हिम चादर देखूँ ज्यों अपलक।। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम मूल निवासी - जिला कटनी, मध्य प्रदेश वर्तमान निवास - जबलपुर मध्यप्रदेश पद - स.उ.नि.(अ), पदस्थ - पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश शिक्षा - समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर सम्मान - जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मा...
नमन योद्धा
कविता

नमन योद्धा

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मातृ भूमि के वीर पुत्र! आप के सम्मान में उठे हुए मस्तक प्रणाम करते हैं गर्व से तनी हुई छाती और अवरुद्ध कंठ से भी आप के गुणगान करते हैं। आप का जाना साधारण नहीं था साजिशों की बू आती है गद्दारों के मन में पनपते रंजिशों के भास आती है। योद्धा घर पर नहीं पर्यण करते वीर गति को पाते हैं दुश्मनों के चक्रव्यूह में अभिमन्यु अकेले ही लड़ते हैं। नमन वीर सिपाही ! तुम्हे नमन! भारत मां महान बनाने वाले आप को नमन। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिं...
बाबा गुरु घासीदास
कुण्डलियाँ

बाबा गुरु घासीदास

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** बाबा घासीदास हैं, दया धरम के मूल । आए हैं संसार में, सबके हरने शूल ।। सबके हरने शूल, ज्ञान का दीप जलाए । सत्य मार्ग पर आज, हमे चलना सिखलाए ।। कहे *राम*कर जोर ,बना लें हिय को ढ़ाबा । चलें सभी उस ओर ,दिखाए पथ जो बाबा ।। ज्ञानी हैं संसार में, सबमें उनका नाम । आए इस कलिकाल में, करने सुंदर काम ।। करने सुंदर काम, सत्य का मार्ग दिखाया । दिया सभी को ज्ञान, प्रेम का फूल खिलाया ।। कहे *राम*मतिमंद ,शुद्ध है इनकी वाणी । बाबा घासीदास, परम हैं यह तो ज्ञानी ।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
क्षणिक अंधेरा
कविता

क्षणिक अंधेरा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अंधेरों से डर लगता है उजाले कोसों दूर है कदम दर कदम बढ़ते हैं मगर मंजिल अभी दूर है गुफाओं के अंधेरे कंदराओं के अंधेरे अतीत के महलों के अंधेरे हर कदम पर अंधेरे हैं घेरे चलती हूं इसी आशा में कभी तो मंजिल मिलेगी उजाले की उम्मीद में सूरज की रोशनी मिलेगी छट जाएंगे जीवन से अंधेरे फिर नई सुबह होगी कहता है दिल मेरा मत डर इन अंधेरों से क्षण भर में मिट जावेगे अपनी रख बुलंद हौसले परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवा...
तुम्हारी बातों में
गीतिका

तुम्हारी बातों में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मधुरिम सी मनुहार, तुम्हारी बातों में। है अनुपम शृंगार, तुम्हारी बातों में।।१ शब्द-शब्द है स्रोत,अपरिमित ऊर्जा का, भरे सरस उद्गार, तुम्हारी बातों में।।२ संदर्भों के अर्थ, निकलते बहुतेरे, भावों का विस्तार, तुम्हारी बातों में।।३ खिलें हर्ष के पुष्प, महकता कुसुमित मन, मधु ऋतु सरिस बहार, तुम्हारी बातों में।।४ घायल हुए अनेक, समर में नैनों के, चले तीर-तलवार, तुम्हारी बातों में।।५ आशाओं के बाग, उजड़ते देखे जब, सुलगे स्वप्न हजार, तुम्हारी बातों में।।६ रहे बाँचते मौन, हृदय के पन्ने पर, खबरों का बाजार, तुम्हारी बातों में।।७ 'जीवन' के अनुबंध, हुए जिसके कारण, मिला न वह सुख सार, तुम्हारी बातों में।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचन...
हम पंछी कहलाते हैं
कविता

हम पंछी कहलाते हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** हिंदू-मुस्लिम नहीं जानते, खुद को बस पंछी जानें। मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा को, बस अपना ही घर मानें। मंदिर के पीपल पर बैठे, कभी चर्च गुरुद्वारे पर। मस्जिद की चोटी पर बैठे, उड़ते एक इशारे पर। पावन मनसे कलरव करते, कभी ना बंटते कौमों में। मस्जिद द्वार तबर्रुख खाते, दाने चुगते होंमों में। मंदिर की चोटी से उड़कर, फिर मस्जिद पर जाते हैं। क्या अल्ला क्या ईश्वर मिलकर, मधुर तराने गाते हैं। जाति धर्म में नहीं उलझते, गीत बतन के गाते हैं। ओ मानव तुम बतलादो क्यों, हम पंछी कहलाते हैं।। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवासी : निवाड़ी शिक्षा : एम.एस.सी एम.एड स्वर्ण पदक प्राप्त सम्प्रति : वरिष्ठ व्याख्याता शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक २ निवाड़ी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
अंधकार को चीरता सूरज
कविता

अंधकार को चीरता सूरज

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। अंधी रातें, काली रातें सर्दी के यौवन में जमती जीवन की राहें। अंधकार ने जब अपने यौवन का जाल बिछाया ठिठुरती सर्दी ने अंधकार को दीनों-दुखियों बच्चों-बूढ़ों का कठिन काल बताया, देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। मत घबराओ, मत घबराओ पप्पू-गप्पू,चीनू-लक्की, अम्मा-बाबा, नाना-नानी, नहीं रहा सदा समय एक सा अंधकार अब हुआ है बूढ़ा, यौवन भी इसका हुआ ढला ढला सा। देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। काली रातें, बीती रातें भोर हुआ अब नभ जग थल में व्योमनाथ आए लिये रश्मियां संग में मानो प्राणी मात्र को जीवन दान मिला रश्मियों से। सात घोड़ों के रथ में होकर सवार देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। नई आशाओं का अंकुर जन्मा, समय भी फिर से अंगड़ाई लेकर नए कलेवर में आया तुमको, मुझको, हमको,...
जाड़े की धूप
कविता

जाड़े की धूप

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** माह दिसम्बर में जब सर्दी की ऋतु आती है। मोटे ऊनी कपड़े पहनते जाड़े की धूप सुहाती है। ठंडी ठंडी की सर्द हवाएं कितना सबको भाती है। लापरवाही की अगर तो खाँसी बुखार सताती है। गर्म पकोड़ी भुजिया संग घर बैठ मौज मनाते है। सुबह सवेरे धूप सेकने रोज बगीया में जाते है। छोटे होते दिन इतने की संध्या का पता न चलता है। रोजीरोटी के जुगाड़ में निर्धन को बड़ा अखरता है। गजक रेवड़ी गर्म मूंगफली खाना अच्छा लगता है। काजू बादाम गोंद पाक के लड्डू सहर्ष सबको जँचता है। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने प...
पता नहीं क्यों
कविता

पता नहीं क्यों

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कार्यक्रमों में लेटलतीफी तो सुधरती नहीं कभी, आमंत्रितों को समय कम होता, पता नहीं क्यों? कुछ कवियों को शायद श्रोता रूप कबूल नहीं अपनी सुनाकर चले जाते लोग, पता नहीं क्यों? सुंदर संदेश कथन काव्य संपदा भगवत कृपा है सुनने का रोग नहीं पालते कुछ, पता नही क्यों? वक़्त वक़्त के वक्ताओं से व्यक्तित्व छाप मिलती अनावश्यक ज्यादा बोलते कुछ, पता नहीं क्यों? जुबान में कमान और साथ साथ लगाम है जरूरी तर्क विहीन तथ्यों पर टिके रहते, पता नहीं क्यों? बड़े-बड़े वादे संकल्प तो केवल प्रदर्शन रूपी शान प्रतिबद्धता में अति गरीब रहते हैं, पता नहीं क्यों? सम्मान कोई खेतों से उगती फसल तो नहीं विजय पाने और काटने जैसा समझते रहे, पता नहीं क्यों? सामान्य व्यवहारों की कद्र कर पाना मुमकिन नहीं कुछ भला भी भुला डालते हैं लोग, पता नहीं क्यों? कमजो...
राष्ट्र याद करेगा
कविता

राष्ट्र याद करेगा

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** विपिन तुम्हें राष्ट्र याद करेगा, विपिन तुम्हें राष्ट्र याद करेगा | उत्तराखंड की धरा में जन्म लेकर, तुमने देश का नाम अमर किया || विपिन .... सेना के सर्वोच्च पद पर जब बिपिन, तुमने अवकाश ग्रहण किया | संकल्प केवल सच्ची सेवा का, शुभसंकल्प तुमने तो कर लिया || विपिन .... इसलिए अतिरिक्त पदभार लिया, विधि ने तो कुछ और स्वीकार किया | निकले माँ भारती के लाल तुम, सेना में जो परिवर्तन किया || विपिन .... शिखाकर समयबद्धता सैनिकों को, अंकित स्वर्णाक्षरों में नाम किया | भौगोलिक विषम परिस्थिति में, सर्वोच्च पदभार ग्रहण किया || विपिन .... गर्व करता उत्तराखंड तुम पर, तुमने जो यह पद ग्रहण किया | राह थी अत्यंत कठिन पर, माँ भारती के लाल तुमने ग्रहण किया || विपिन .... रहकर प्रतिकूल परिस्थितियों में, जो तुमने कुछ कर दिखाया है | कर ...
काशी
कविता

काशी

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** महिमामय शिवत्व को प्रकाशित करती काशी शिव के पावन त्रिशूल पर विराजित काशी नृप हरिश्चन्द्र की सत्य साधना बताती काशी राम चरित के रचयिता तुलसीदास की काशी पंडितों, विद्वानों, संगीतज्ञों, गुणज्ञों की काशी गंगा के अति पावन जल को सरसाती काशी भौतिकता में अध्यात्म की अलख जगाती काशी शिव की अवर्णनीय दुति दमकाती काशी सगरे जग में पावनता की छटा दिखाती काशी धरा पर पुनीत धर्म की ध्वजा लहराती काशी रहते हैं यहाँ अर्द्धनारीश्वर ईश्वर अविनाशी पुण्य सलिला अविरल गंगा है यहाँ सुखराशी मोक्षदायिनी, सुखदायिनी यव कल्याणी काशी नत मस्तक हैं आकर यहाँ सब भारतवासी। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : द...
रुख़सारो से लाली
कविता

रुख़सारो से लाली

आरिफ़ असास दिल्ली ******************** आंसू तेरे अब्सारो से गिरने नही देंगे दर्द दिल को तेरे किसी को देने नही देंगे शिक़वा कोई हो तो शिक़ायत करना रुख़्सारों से लाली तेरे जाने नही देंगे हर लफ्ज़ कहता है कहानी मेरे दिल की दिल की दुनिया मे किसी को आने नही देंगे मर्ज़े मोहब्ब्त की दवा है तेरे पास जख्म दिल के किसी को दिखने नही देंगे यादें तेरी छुपाके रखी है हम ने सीने में क़तरा क़तरा यादों को बहने नही देंगे रातो को जागकर मांगा है तुझे रब से ज़ुदा तुझे जिंदगी से अब होने नही देंगे !! परिचय :- आरिफ़ असास नर्सिंग अफसर निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
फिर से मिल जाये
कविता

फिर से मिल जाये

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** वह नशा कहां, जब निशा जगाकर, बातों में खो जाते थे, दशा दिशा से श्वास मिलाकर, हाथों में सो जाते थे, बचपन में लौट के देखा तो, मिली कहीं ना तन्हाई, जाड़े की रातें, घोर अंधेरा, लिपट भाई के रात बिताई, सपने लेकर, भोर जगाते, सूर्यदेव से गर्मी पाते, बाहों में बाँह डाल इतराते, सबकुछ खोकर मुझे मनाते, जंगल में दंगल कर रूठा तो, मेरे हंसने पर खुशी मनाये, काश! मेरे बचपन का भाई, एक बार फिर से मिल जाये। एक पेट से जन्म लिया है, एक ही मां का दूध पिया है| पोशाक सिलाई, थान एक, पढे पढ़ाये, एक दीया है, मुझे जिताकर, जोर की ताली, मेरी थाली रहे न खाली, होती कोई चीज निराली, अपने हिस्से की मुझको डाली, भूलूं कैसे, मुझे चोट लगे, तेरी आंखों से आंसू आये, काश! मेरे बचपन का भाई,एक बार फिर से मिल जाये। चुका देता, मेरा उधार, लड्डू मुझको,चूरा खुद खाये,...
हम और सर्दी
कविता

हम और सर्दी

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** ठंडी हवा ठंडा मौसम प्रिय की याद दिलाती है रजाई में मोबाइल चलाना चैटिंग की पुरानी याद सताती है।। चले आये अब कहाँ सर्दी में घर मे छुप जाते है दोस्तो के संग चाय पीना कड़ाके की ठंड में याद बहुत आती है।। ठंड की ढेरो कहानी है बचपन मे बिन नहाये स्कूल जाना और टीचर को धूप में क्लास लगाने की फ्री सलाह दे डालना।। अब तो बस इत्ती सी कहानी है चार दोस्त मिलकर कचड़ा जला देते है ओर चार पड़ोसी ओर आ जाते है सेक के सब अपने हाथ सरकार को बुरा कहते है।। ठंड है चली जाएगी मुश्किल वक्त भी कहा टिकता है मफलर स्वेटर पहनो सर्दी का मजा ले लो।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधु...
तिरस्कृत मन
कविता

तिरस्कृत मन

जगदीशचंद्र बृद्धकोटी जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) ******************** स्तब्ध मन हो रहा है जब क्रोध बांटा जा रहा है। अनगिनत अवहेलनाओं से पुकारा जा रहा है। खुद की कुंठा को छिपाने मुझको रोका जा रहा है। कटु वचन से शब्दभेदी बाण मारा जा रहा है। मगर भ्रम उत्पन्न करके सत्य छुपता क्या कभी? अन्ध बन स्वीकारने से द्वन्द छिड़ता क्या कभी? मूक बन खुद की जिसे अवहेलना स्वीकार है। द्वन्द क्या छेड़ेगा वह कायर उसे धिक्कार है। ये लड़ाई हो गई है अब मेरे अधिकार की। रोक ना पाएँगी मुझको वेड़ियाँ संसार की। प्रत्येक जीवन के सफर का यह अनोखा पर्व है। जिसको अपनी स्वाभिमानी पर सदा ही गर्व है। निन्दकों की बात का उसपर न पड़ता फर्क है। उसके लिए द्युलोक क्या यह धरा ही स्वर्ग है। परिचय :- जगदीशचंद्र बृद्धकोटी निवासी : जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
स्वयं चले आये
गीतिका

स्वयं चले आये

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सींते जा रहे, उधड़ता जाता है- ये भाग्य क्या-क्या गुल खिलाता है। कर्म की घड़ी को, जो न देता विराम निश्चित ही एक दिन मंजिल पाता है। स्वयं चले आये , बहुत दूर उजालों से- अंधेरों में हमको अब हौवा डराता है। चढ़कर उतरना है, उतरकर चढ़ना है। प्रतिदिन ही सूरज, यही तो बताता है। अर्जुन बनकर कुरुक्षेत्र में उतरना तुम- अभिमन्यु बार-बार युद्ध हार जाता है। एक हाथ मे शस्त्र, दूसरे से कृपा बरसे ऐसा प्रतापी ही श्रेष्ठ शासन चलाता है। वीर नहीं, वह तो केवल बिजुका ही है- जो आवश्यक होने पे शस्त्र न उठाता है। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाश...
हवा तेरे शहर की
कविता

हवा तेरे शहर की

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** तेरे शहर की हवा बड़ी सर्द थी उस पर तेरा ख़य्याल तेरे ख़य्याल से मेरा दिल बेताब सा पर कुछ मलाल तुझे सीने से लगाने का सबब उफ्फ तेरी गर्म साँसे क्या ख्वाहिशें थी कि उफ्फ रूह का खो गया होश तेरी चाहत या तेरी तलब किस्मत में ना कहीं मिली तलब बे-सबब हाथ दुआ में उठाकर सुकून ना मिली आधी रात में जो बात थी चाँद भी पूरे शबाब पर था तुझसे जुदा चैन ना मुझे ना ही चाँद दिल बेताब था उस सर्द हवाएँ सुरमई शाम की कुछ जुदा जुदा सी थी मेरे सिहरती जिस्म की सिहरन तेरे जिस्म की कसक थी छेड़ कर गुजर जाती थी वो तेरे शहर की सर्द हवाएँ ना जाने कितनी देर तक खामोशी थी दिल-ए-समंदर ऐसे सर्द फिजाओं में कोई चिराग जला ना आतिशदान तेरे इश्क़ की गर्म जर्द अगन से जिंदा रहा ऐ दिल-ए-नादान फिजाँ में हवा भी खफा खफा दिल रहा जवां जवां सर्द ...
भाव भीनी श्रद्धांजलि
कविता

भाव भीनी श्रद्धांजलि

प्रभा लोढ़ा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देश संताप में था डूबा, भारत वासी की आँखें नम वीर जाँबाज़, भारत सपूत विपिन रावत अपने अनेक वीर फ़ौजी व सहचरी मधुलिका के साथ छोड़ चला सबको। करते हम नमन सत् सत् प्रणाम। छा गई वीरानी पंछी भूल गया गुनगुना, सागर ने समेट लिया लहरों को पुरवाई भूल गई राह को, काँप उठी धरती बन्देमातरम उदघोष गूंज उठा नभ में। सात फेरे के बंधन में बंध मधुलिका ने साथ निभाया, जीवन मरण में रही साथ । अनेक फ़ौजी ने वीरगति पाईं वीर शौर्य महान थे देश के पहरेदार थे निष्काम भाव से सेवारत थे, जीवन के हर पल सक्रिय थे मानव की आशा के नव निर्माण थे। करते हम नमन सत् सत् प्रणाम।। परिचय :- प्रभा लोढ़ा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और पठन में रुचि बचपन से थी। आपने दिल्ली से बी.ए. मुम्बई से जैन फ़िलोसफ...
शहादत
कविता

शहादत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** भारत मां की आंखों से गंगा-जमुना बह निकली। महावीरों की सांसें जब काल विमान ने निगली। मातृभूमि के रखवालों को कैसे भारत भूलेगा, फटती है छाती धरती की बर्फ हिमालय पिघली। वीर क़फ़न तिरंगा ओढ़कर मां के आंचल सो गये, पाकर वीरों का सान्निध्य पुण्य हुईं धरती जंगली। शून्य हुईं पिता की आंखें बिलख रहे इनके बच्चे, मातृभूमि के सच्चे रक्षक छोड़ गए मां की अंगुली। हे बलिदानी वीरों व्यथित रहेगा ऋणी देश हमारा, हृदय से स्वीकार करें मेरे श्रद्धा सुमन भर अंजलि। जनरल बिपिन महान का दिया मधुलिका ने साथ, बरसों याद रहेगी शहादत यह केसरिया रंगीली। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
जीवन हारी
कविता

जीवन हारी

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** स्पन्दित उर जग, कटु सत्यों से, विस्मित उर जग, के क्रन्दन से, मांग रहा है मुझसे, मैं जाऊं बलिहारी, जीवन क्या हारी? कोमल पग ध्वनि, मम उर अंकित, नयनों में करुणा, धन संचित, नेह प्यालियां भर भर, लुटवाऊँ में झारी। जीवन क्या हारी? सुख मम जन, पीड़ा हर लेवें, उर मंदिर तव प्रतिमा, मैं हूँ एक पुजारी। जीवन क्या हारी? परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंद...
हौंसला मेरा बढ़ाओ जरा
कविता

हौंसला मेरा बढ़ाओ जरा

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** हौंसला मेरा बढ़ाओ जरा, तुम मेरे साथ आओ जरा दुश्मनों से तो मार खाए नहीं, दोस्तों को भी आजमाओ जरा मार डालेगी वरना जहनी शिकन, होश में हूं, और थोड़ा पिलाओ जरा कौन अपना है कुछ पता तो चले, शम्मा कुछ देर बुझाओ तो जरा दिल में महसूस धड़कने होंगी, हाथ संजीव से मिलाओ तो जरा हम तो तैयार ही बैठे हैं, हो सके यारों, गले लगाओ जरा आस्तीन में छुपा के रखते हो, दोस्तों मौका है, चलाओ तो जरा परिचय :- नितेश मंडवारिया निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
तेरी ईर्ष्या में …
गीत

तेरी ईर्ष्या में …

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तेरी ईर्ष्या में क्या रखा है, जरा प्यार करके तो देख। यह जिंदगी बड़ी प्यारी है जरा यकी करके तो देख। ये जिंदगी कितनी हसीन होगी, किसी को उपहार दे के तो देख। तेरी ईर्ष्या में..... इस ईर्ष्या में बड़ी तपन है, इसे शीतल करके तो देख। यह शोला है और अगन है, तू इसको बुझा के तो देख। इसी धरा में जन्नत उतर जाएगी, किसी को उपकार करके तो देख। तेरी ईर्ष्या में..... ये ईर्ष्या ये जलन बड़ी बुरी है, इस जलन को तू बुझा के देख। मन को मन से ये करती दूरी है, तू जरा सा पास आ के देख। ये जिंदगी तेरी सवँर जाएगी, तू जरा सा प्यार करके तो देख। तेरी ईर्ष्या में..... परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
स्त्री हूं मैं
कविता

स्त्री हूं मैं

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों स्वतन्त्र होकर भी परेशान हूँ मैं अपनी हस्ती से अनजान हूँ मैं कहने को तो हूँ सब ऐशो आराम में, लेकिन फिर भी सबकी मर्जी की ग़ुलाम हूँ मैं।। न कभी मन की चाह व्यक्त कर पाई मैं, और खुद को भी तो न कभी समझ पाई मैं हमेशा झुकती रही सबकी खुशियों की खातिर लेकिन कभी अपनी ही खुशी नही समझ पाई मैं हमेशा बस बन एक गुड़िया सी इठलाई मैं भरा है फौलाद मुझमें भी, दुनिया को कहाँ समझा पाई मैं?? हाँ नारी हु, झुकना मेरा स्वभाव है लेकिन अकड़ना मुझे भी आता है, अगर बात हो स्वाभिमान की तो, खुद को साबित करना भी भाता है।। कमजोर नहीं, खुद्दार हुँ मैं इस धरा पर जीवन की सूत्रधार हु मैं।। आदर मान सम्मान की हकदार हूं मैं, हाँ इस दुनिया मे बराबर की हिस्सेदार हु मैं।। स्त्री हूँ मैं, हाँ स्त्री हूँ मैं.... परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ ...
तुम में हम
कविता

तुम में हम

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं लिख रहा हूं तुमको तुम पढ़ लेना खुद को अगर न समझ आये कुछ तो पूछ लेना फिर हमको। वैसे तुम बहुत समझदार हो फिर भी कुछ समझ ना आए अपने बारे में कुछ तुमको तो नासमझ समझ कर ही पूछ लेना हमको। मैं सोच रहा हूं तुमको मैं लिख रहा हूं तुमको। फिर भी तुमको लगे हम नहीं है आपके तो पढ़ लेना हर बार हमारी शायरी में खुद को। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...