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पद्य

कलुष-कल्मष हृदय से
गीतिका

कलुष-कल्मष हृदय से

रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि कोलार रोड, भोपाल (म.प्र.) ******************** यदि कलुष-कल्मष हृदय से त्यागना है. हो अगर संकल्प दृढ़ सम्भावना है. राष्ट्र का गौरव बढ़े हो नाम जग में, मन-हृदय में शुभ्र मंगल कामना है. स्वर्ण चिड़िया था कभी भारत हमारा, चमचमायेगा पुन: प्रस्तावना है. मोह-मत्सर दम्भ-लालच त्यागकर अब, सत्य का दामन सभी को थामना है. नित्य कर चिंतन-मनन निज दोष देखें, इंद्रियाँ संयम-नियम से माँजना है. पाठ पूजा हो न हो सेवा जरूरी, कर्मनिष्ठा प्रेम ही तो साधना है. देश में हो एकता मिलकर रहें हम, 'रवि' परम प्रभु से यही बस प्रार्थना है. परिचय :- रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि' निवासी : कोलार रोड, भोपाल (म•प्र•) * २००५ से सक्रिय लेखन। * २०१० से फेसबुक पर विभिन्न साहित्यिक मंचों पर प्रतिदिन लेखन। * विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित। * लगभग १० साझा संकलनों मे...
वो जमाना
कविता

वो जमाना

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** छंद मुक्त कविता आज जब अपने पिताजी की उस जमाने की बातें याद आती हैं, तो सिर शर्म से झुक जाता है। माँ बाप और अपने बड़ों से आँख मिलाने में ही डर लगता था, उनकी किसी बात को नकारने की बात सोचना भी सपना लगता था। घर में भी अपने बड़ों के बराबर बैठना सिर्फ़ सोचना भर था, अपने लिए कुछ कहना भी कहाँ हो पाता था। बस चुपके से धीरे से अपनी बात दादी, बड़ी माँ या माँ से कहकर भी खिसकना पड़ता था। रिश्तों के अनुरूप ही सबका सम्मान था, परंतु हर किसी के लिए हर किसी के मन खुद से ज्यादा प्यार था। उस समय दूश्वारियां भी आज से बहुत ज्यादा थीं, परंतु प्यार, लगाव, सबकी चिंता हर किसी के ही मन में हजार गुना ज्यादा थीं। आज भी मुझे इसका अहसास है क्योंकि मैंने भी ऐसा ही काफी कुछ देखा है, अपने बाप को बड़े ...
एक कोशिश और
कविता

एक कोशिश और

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ एक कोशिश फिर से करते हैं, टूटी हुई शिला को फिर से गढ़ते हैं। आओ एक कोशिश फिर से करते हैं... हाँ, मैं मानता हूँ इरादे खो गए, हौसले बिखर गए, उम्मीद टूट चुकी, सपनों ने साथ छोड़ दिया, हमने कई अपनों को गवाया, अपनों से खूब छलावा पाया, तो क्या हुआ? अभी तक जिंदगी ने हार नहीं मानी है, कोशिश करने की फिर से ठानी है, आओ एक कोशिश फिर से करते हैं... हौसलों में बुलंद जान भरते हैं, उम्मीदों को नई रोशनी देते हैं, सपनों को फिर निखारते हैं, इरादों को जोड़ते हैं, हार का मुंह तोड़ते हैं, आओ एक कोशिश फिर से करते हैं... जीवन में इंद्रधनुष लाते हैं, दुनिया को खुशियाँ दे जाते हैं, आओ फिर सपनों की उड़ान भरते हैं, आओ एक कोशिश फिर से करते हैं....। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रद...
मैं अभी हारा नहीं
कविता

मैं अभी हारा नहीं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* इतना भी नकारा नहीं हूँ, दीन बेचारा नहीँ हूँ, मै धधकती एक ज्वाला, भोर का तारा नहीँ हूँ, सोच लो, समझ लो, मै अभी हारा नहीँ हूई। तुम कहाँ पहचान पाएँ, हम कई बार आये, कभी ईसा तो कभी सुकरात बनकर बिष पिया और मुस्कराए, राख हो जायें जो जलकर, मै वो अंगारा नहीँ हूँ, सोच लो समझ लो, मै अभी हारा नहीँ हूई। मै महाराणा की हिम्मत, मै शिवाजी की वसीयत, मै भगतसिंह की हूँ छाया, बुद्ध गौतम की नसीहत, मै गर्जता एक सागर, रेंगती धारा नहीँ हूँ, सोच लो समझ लो, मै अभी हारा नही हूँ। फिर उठी गम की घटाएँ, फिर हुई बोझिल दिशाये, आसमां सर पर उठायें, फिर चली पागल हवाएँ, मै जीवन की इक हकीकत, व्यर्थ का नारा नहीँ हूँ, सोच लो, समझ लों मै अभी हारा नहीँ हूँ। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगर...
मनवा काहे को घबराय
कविता

मनवा काहे को घबराय

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मनवा काहे को घबराय ये दुनिया एक सराय खुशियाँ बिखेर ले प्राणी, जहाँ आयु घटे ना आय। निज' भाव' गिराना मत, 'भाव' भाव से कहता है आप आपसे मिलकर, आप आपसे सुनता है आपाधापी साथ चलेगी, जीवन जंग तू लड़ता जाये मानव काहे को घबराय... 'ताज' साक्षी प्रेम का, 'ताज' तख़्त न भूल कभी प्रेम पेज 'दो बेर' मिले, या 'दो बेर' का संग सभी 'हार' न तू अपनी बाजी, पग पग 'हार' मिलेंगे आय मनवा काहे को घबराय.... 'मांग' भरी जब तूने, अब 'मांग' रहा ये अंश है, शह 'मात' का खेल सयाना, 'मात' पिता का वंश है 'घराना' रहता याद तभी, जब घर आना तू कहता जाय मनवा काहे को घबराय.... 'बाज' आएं उन करतूतों से, जहाँ 'बाज' झपट्टा चलता है कन्धों में दम हो तब ही कन्धों पे दुपट्टा रहता है विजय विशालतम बना रहे, विजय पताका फहराता जाय मनवा काहे को घबराय ये दुनिया...
मूक शब्दों को समझाना
कविता

मूक शब्दों को समझाना

कीर्ति दिल्ली विश्वविद्यालय ******************* वफादारी के चर्चों में कई सदियां गुजर गई जब मानव ने होश सम्भाला समाज में अपना स्थान पाया उसे अपने पालतू के रूप में युगों-युगों से अपने साथ ही पाया थोड़ा सा अपनापन थोड़ा सा प्रेम और थोड़ी सी सहानभूति उसे तुम्हारा कर्जदार बना जाती हैं उसे चुकाते-चुकाते उसकी अंतिम सास भी तुम पर कुर्बान हो जाती हैं चिलचिलाती धूप, भारी वर्षा, या हो कडकडाती ठंड दृढसंकल्प प्रदान करने का सुरक्षा तुम्हे और अधिक हो जाता हैं उसका प्रबल उसका मेहताना बस दो रोटी ही तो होता हैं परंतु तुमसे उसका लगाव तुम्हारी भुख से कही अधिक होता हैं कौन कहता है पशुओं में भाव नही होते वह परेशान होते है वह रोते है वह दुखी भी होते है परंतु मानव की भांति वह औरो को दोषी नही कहते हैं साथ तुम्हारे खेलना उसका तुम्हे बच्चे जैसा आनंद कराता है जीवन के क...
हवा बहती जाए रे
गीत

हवा बहती जाए रे

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** मन्द-मन्द, ठंडी-ठंडी। हवा बहती जाए रे ... मन मन्दिर में मिलन की घण्टी बजती जाए रे ....! तेरे मन की भाषा को कब से पढ़ते-पढ़ते अब जुदाई को भी सहा नहीं जाए रे ......! मेरे मन की कलियां खिल-खिल जाए रे... उनकी प्यारी प्यारी यादें मन में बहती जाए रे........! कब तक तड़पाओगे प्रीत की डोरी से बांध के..... प्यार के मौसम में मिलन की प्यास बढ़ती जाए रे.........! प्रेम के सागर में मन की बातें करते-करते.... कल-कल यौवन की नदियां थर्र-थर्र मचलती जाए रे.....! मेरे मन का गीत कब सुनोगे तुम ... गाते-गाते आंसुओ से आंखें छलकी जाए रे.....! रूप सागर को कब आ कर निहारो-गे..... मेरे अल्हड़पन की अब तो मुस्कान थमती जाए रे.....! मुझे नैनों में बसा कर घूंघट के पट कब खोलोगे..... भरी गगरिया यौवन की अब छलकी जाए रे.......!!! परिचय ...
गरीब
कविता

गरीब

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** साहब, बेशक गरीब हूं, ऐसा वैसा थोड़ी हूं, सबको पसंद आ जाऊं, पैसा थोड़ी हूं, लालच में इंसानियत भुला दूं, इतना लाचार थोड़ी हूं, मेरे दोस्त जरूरत में करना कभी याद, दिल का अमीर हूं... लाख सितम सहता हूं, क्योंकि गरीब हूं, दाने दाने को रहता हूं मोहताज, ऐसा बदनसीब हूं, ईमानदारी की रोटी ही रास आता है, आदमी अजीब हूं, मेहनत से दो रोटी पाकर संतुष्ट रहता हूं, ऐसा खुशनसीब हूं... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
बधाई
कविता

बधाई

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत आनंदमय की होती है ये बधाई जब हम किसी की खुशी में शामिल हो जाए हर खुशी की बधाई देने में जो आनंद आता है किसी के जन्मदिन या शादी या शुभ अवसर में देते हैं हम बधाई बधाई में बधाई कोई दे दे तो और आनंदमय हो जाता है वो पल ये दौर भी कितना सुहाना हो गया है दूर-दूर से बधाई एक संदेश से ही आ जाती है बधाई सब मिलकर दे दो बधाई किसी का दिन बन जाए आपकी एक बधाई से बहुत आनंदमय की होती है ये बधाई जब किसी की खुशी में शामिल हो जाए परिचय : संध्या नेमा निवासी : बालाघाट (मध्य प्रदेश) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
एक पंथ दो काज
हास्य

एक पंथ दो काज

पवन सिंह पंवार नसरूल्लागंज (मध्य प्रदेश) ******************** कुछ लोग बड़े सयाने बनने लगे, कट कापी पेस्ट कर ज्ञानी बनने लगे हैं। अरे इतना ही ज्ञान यदि तुममें भरा है, तो संत महात्मा या राजनेता क्यों नहीं बना है। पैसा भी मिलता और सम्मान भी पाता, इस तरह एक पंथ दो काज हो जाता। परिचय :- पवन सिंह पंवार पिता : स्व. श्री रामेश्वर पंवार कार्यक्षेत्र : सहायक संपरीक्षक, संचालनालय स्थानीय निधि संपरीक्षा विभाग म.प्र. जन्म स्थान : नसरूल्लागंज, जिला- सिहोर (मध्य प्रदेश)। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
प्रेम संदेश
कविता

प्रेम संदेश

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश को निहारते मोर सोच रहे, बादल भी इज्जत वाले हो गए बिन बुलाए बरसते नहीं शायद बादल को कड़कड़ाती बिजली डराती होगी सौतन की तरह। बादल का दिल पत्थर का नहीं होता प्रेम जागृत होता है आकर्षक सुंदर, धरती के लिए धरती पर आने को तरसते बादल तभी तो सावन में पानी का प्रे -संदेशा भेजते रहे रिमझिम फुहारों से। धरती का रोम-रोम, संदेशा पाकर हरियाली बन खड़े हो जाते मोर पंखों को फैलाकर स्वागत हेतु नाचने लगते किंतु बादल चले जाते बेवफाई करके छोड़ जाते हरियाली और पानी की यादें धरती पर प्रेम संदेश के रूप में। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ...
वक्त कहाँ
कविता

वक्त कहाँ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुम्हें सोचने का वक्त कहाँ तुम्हें भूलने का वक्त कहाँ तुम्हें बुलाने का वक्त कहाँ आ जाते तुम ख्वाबों में तो अच्छी बात थी तुम्हें मिलने का अब वक्त कहाँ। तुम्हें कुछ कहने का वक्त कहाँ तुम्हें कुछ सुनाने का वक्त कहाँ समझ लेते खुद ही दिल की तन्हाइयों को तो अच्छी बात थी गम सुनाने का अब वक्त कहाँ। दिल लगाने का वक्त कहाँ दिल बहलाने का वक्त कहाँ रूठ कर मनाने का वक्त कहाँ तुम खुद ही इश्क कर लेते हमसे तो अच्छी बात थी बार-बार इजहार करने का वक्त कहाँ। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
कही हमनें ज़ुबानी और थी
ग़ज़ल

कही हमनें ज़ुबानी और थी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कही हमनें ज़ुबानी और थी। हक़ीक़त में कहानी और थी। सभी ने बात पूछी और पर, हमें अपनी सुनानी और थी। परिंदों की उड़ानों में वहाँ, हवाओं की रवानी और थी। किनारें जा मिले मझधार में, नदी की वो जवानी और थी। कमाई,नाम ,शोहरत,दाम से, हमें इज्ज़त कमानीऔर थी। यहाँ आबाद थे सब शहर पर, ख़ुशी की राजधानी और थी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
माँ सरस्वती की वंदना
भजन

माँ सरस्वती की वंदना

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** माँ तुम्हारी वंदना में क्या लिखूं, तुम ही बताओ। यदि मेरा है हृदय निर्मल, आके निज आसन लगाओ। माँ तुम्हारी वंदना..... तुम ही हो विद्या की देवी, सबको विद्या दान करती। कवि के अंतर भाव देकर, भक्ति रस का सृजन करती। गीत कवि लिखते रहें, स्वरबद्ध करके तुम गवाओ। माँ तुम्हारी वंदना..... तुम ही स्मृद्धिदात्री, भक्तों पे करुणा बहाती, जो हैं जग माया में उलझे, उनको हो तुम ही जगाती। लिख रहा है "प्रेम" महिमा, बैठ अंतर गुनगुनाओ। माँ तुम्हारी वंदना....... मेरा कुछ भी नहीं जग में, क्यों कि खाली हांथ आया। तुमने दे संस्कारी बच्चे सुख स्मृद्धि से सजाया। "प्रेम" के गीतों को माँ तुम, श्रेष्ठ भक्तों से गवाओ। माँ तुम्हारी वंदना.... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
चक्षु बंद कर मैं तुम्हें पढूँगा
कविता

चक्षु बंद कर मैं तुम्हें पढूँगा

प्रदीप कुमार अरोरा झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** मैं तो हूँ कर्म पथ का राही, नित जीवन के स्वप्न बुनूँगा, कहते जाओ जो कहना है, सबकी मैं हर बात सहूँगा। मेरी चुप्पी ताकत मेरी, तुम चाहो कमजोरी कह लेना, यही आचरण कवच है मेरा, इसे धारण मैं किये रहूँगा । दिल ही तो है दिल की बातें, आकर मुझसे कह लेना, संकेतों की वाणी सुन लेना, समर्थन के ही शब्द कहूँगा। घर मेरा सराय नहीं है, आओ तो आकर मत जाना, बिन लहरों के कहो बालू पर, नौका बन मैं कैसे बहूँगा। मेरा लक्ष्य तेरा हो जाये, हो तेरा लक्ष्य फिर मेरा, पहुँच शिखर तुम लहराना, ध्वजदंड-सा मैं तुम्हें धरूँगा। दिल ही तो है दिल की बातें, जब दुनिया दोहराएगी, तब-तब बाहुपाश में लेकर, चक्षु बंद कर मैं तुम्हें पढूंगा। परिचय :- प्रदीप कुमार अरोरा निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : बैंक अधिकारी प्रकाशन ...
मिट्टी के घर
कविता

मिट्टी के घर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी खेल-खेल में, मिट्टी के घर बनाती है। और दूसरे ही पल, गिरते ही, जिंदगी बदल जाती है। जिंदगी खेल-खेल में, मिट्टी के घर बनाती है....। कितनी हसरतों से, सहेज कर सपनों को, महलों को धीरे-से थपथपाती है। नन्ही-सी एक ठेस से, रेत-सी जिंदगी की तस्वींरें बदल जाती है। जिंदगी खेल-खेल में, मिट्टी के घर बनाती है....। हर बार बिखर के, फिर से, सपने सहेजती है। जिंदगी के खेल में, रेत-सी कितनी बार, बनती और बिगड़ती है। लेकिन यह खेल, फिर भी...कहां छोड़ती है। जिंदगी खेल-खेल में.... परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
ये आंखे
कविता

ये आंखे

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** प्रकृति की अनमोल रचनाओ मे से एक है ये आंखे, एक दूसरे का साथ निभाने की मिसाल है ये आंखे! प्यार जताने की क्षमता रखती है ये आंखे, गुस्सा दर्शाने का भी जरिया है ये आंखे! साजन के प्रति प्यार से भरी है ये आंखे, भाई के प्रति दुलार से भरी है ये आंखे! बच्चो के प्रति ममता दर्शाती है ये आंखे, दुष्टो पर अपना क्रोध बरसाती है ये आंखे! साथ कैसे निभाया जाता है सिखलाती है ये आंखे, खुशी के आंसू हो या नमी गम की, एक साथ भर आती है ये आंखे! जरा संभाल कर रखना इन आंखो को, क्योकि मरने के बाद भी जिन्दगी दूसरो की रोशन कर जाती है ये आंखे! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
कही लगता नहीं
कविता

कही लगता नहीं

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सीने से लगाकर तुमसे बस इतना ही कहना है। की मुझे जिंदगी भर तुम अपनी बाहों में रखना।। मेरी साँसों में तुम बसे हो दिलपे तुम्हारा नाम लिखा है। मैं अगर खुश हूँ मेरी जान तो ये एहसान तुम्हारा है...।। मुझे आँखो में हरपल तेरी ही एक तस्वीर दिखती रहती है। दिल दिमाग पर तू ही तू हर पल छाई रहती है।। भूलकर भी मुझे छोड़ने का तुम कभी इरादा मत करना। वरना मेरी मौत का पैग़ाम तुझे जल्दी ही मिल जायेगा।। देख नहीं सकता तुझे मैं अब किसी और के बाहों में। क्योंकि ये दिल अब तेरे बिन कही और मेरा लगता नहीं।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंद...
दौर ए ज़िन्दगी
कविता

दौर ए ज़िन्दगी

रुखसाना बानो अहरौरा, चुनार, (मिर्ज़ापुर) ******************** एक दौर वो भी था ज़िन्दगी का, बातों की कीमत समझते थे लोग। हाँ में हाँ कम मिलाते थे लोग, शाम होते ही चौपले सजाते थे लोग। चलता था दौर गुफ्तगू का, अपनी-अपनी उलझन सुलझाते थे लोग। मुलाक़ातों का सिलसिला था, पड़ोसी के घर आते-जाते थे लोग। दुःख हो या सुख हो, शादी हो या मय्यत, मिलकर रस्म निभाते थे लोग। गिले-शिकवे भी बहुत होते थे, बाद नाराज़गी के हँसकर गले लगाते थे लोग। घृणा, द्वेष तो था कल भी, प्रेम से ईर्ष्या की आग बुझाते थे लोग। लो आया दौर तरक्क़ी का, स्वार्थ में दूसरों को गिराने लगे हैं लोग। महफिले तो बहुत सजती हैं आज भी, अब गले कम लगाते हैं लोग। बस हाथ ही तो अब मिलते हैं, नफरत के दिए दिल में जलाते हैं लोग। रिश्ता कितना भी हो करीब का, अब बहुत दूर का बताते हैं लोग। परिचय :-  रुखसान...
हरियाली
कविता

हरियाली

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अस्त हुआ रवि अंबर मे ढल आई है शाम चलो-चलो रे कि वृदंवो अपनी-अपनी धाम धीर धीर घटा घनघोर आए अमर अवनी के भूतल में हरी-हरी हरियाली छाई वसुंधरा के अंतर तल में गाओ गाओ खग वृदो गाओ तुम गान करने स्वागत वर्षा ऋतु का मधुर गाओ पणो पुष्पो हर क्षण अवनी निखरी पाकर जल कण परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
वृक्ष
कविता

वृक्ष

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्राण वायु भण्डार वृक्ष हैं जीवन के आधार वृक्ष हैं देते हैं वे शीतल छाया सुख का शुभ संसार वृक्ष हैं फल प्रदान करते हैं अगणित स्वप्न करें साकार वृक्ष हैं फूल पर्ण शाखा फल या जड़ इन सबका का आगार वृक्ष हैं जीव-जन्तुओं को आमंत्रण देते बारम्बार वृक्ष हैं विहग बनाते नीड़ डाल पर जग में बहुत उदार वृक्ष हैं अंग-अंग इनका उपयोगी सतत करें उपकार वृक्ष हैं कभी पालना बन जाते हैं कभी बनें अंगार वृक्ष हैं जब 'रशीद' आरी चलती है सहते दुखद प्रहार वृक्ष हैं परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोव...
देख सुन कभी
कविता

देख सुन कभी

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बहती हवा को कभी सुना है नही सुना न अब सुनो वो गीत जीवन के गाती है। खिले हुए फूलों को कभी गौर से देखा है नही देखा न अब देखो होते उसमे जीवन के रंग है। उगते सूर्य की सुगंध को कभी महसूस किया नही न अब करो उसकी सुगंध रश्मियों के साथ आंखों से अन्तस् में उतर जाती है। बारिश की किरणों से आलोकित हुए कभी नही न अब भीगना बारिश में सारे शरीर से प्रकाश की किरणें फूटने लगती है देखा कभी प्रसव वसुधा का नही न देखना उसकी कोख से नवांकुर कैसे निकलते है। आत्मा का नृत्य देखा कभी नही न कर कुछ परोपकार होंठो पर वो नृत्य कर रही होती है। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पु...
जनक दरबार
कविता

जनक दरबार

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** दरबार सजा मिथला नरेश का धनुष रखा महादेव का बैठे थे अनेक भूप जो थे बडे़ कुरुप उन्हीं में था कमल सा रुप राम लखन का सुंदर स्वरुप सीता को भाया राम रुप सामने उनके थे सब कुरुप दरबार में शंखनाद हुआ शक्ति दिखाने का वक्त हुआ राजाओं ने आजमायी ताकत आ गई उनकी आफत पूरी ताकत लगा कुछ नहीं मिला धनुष उठाना तो दूर नही हिला सारे राजा हो गए बेकार जनक के मन में था हाहाकार सोचा मेरा गलत था विचार तभी उठे राम सुकुमार पहले किया राम धनुष प्रणाम फिर किया किसी से नहीं हुआ काम एक हाथ से धनुष उठा दिया चढ़ा चाप मध्य से तोड़ दिया जनक सुता संग नाता जोड़ दिया अचानक आ गयीं हों आंधी महादेव की भंग हो गई समाधि तीनों लोक एक साथ हिल गए मानों देवासुर आपस में भिड गए बिष्णु सहित शेषनाग भी डोल गए ब्रहमा भी आसन छोड़ गएगए परशुराम को आभास हुआ महाद...
मेरी कलम नहीं मेरे वश में’
कविता

मेरी कलम नहीं मेरे वश में’

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी कलम नहीं मेरे वश में मुझे ‘क’ से कविता लिखनी थी, कविता के लिए कविता लिखनी थी। बड़े शब्द सँजोए थे मैंने, एक प्रेम धार जो बहनी थी। पर ‘क’ से कातिल दिखा गई जो खाते हैं झूठी कसमें....... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ख’ से खुश मिजाज होकर मुझको, कुछ गीत खुशी के लिखने थे, बोली मुझसे खामोश रहो, तुम कुछ तो धीरज धरा करो। जो खास तुम्हारे बनते हैं, धोखा है उनकी नस-नस में........... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘ग’ से गर्वित होकर मैं कुछ क्षण, अपने गणतंत्र पे इतराया। बोली चौकन्ने रहो सदा, बुन रहा जाल काला साया। जो पाक नाम से दिखते हैं, है ज़हर भरा उनके मन में.......... मेरी कलम नहीं मेरे वश में ‘घ’ से घर लिखना चाहा तो, बोली घमंड किस बात का है? माँ-बाप रहें वृद्धाश्रम में, बेटा-बंगले में सोता है...
अष्टांग योग पर दोहे
दोहा

अष्टांग योग पर दोहे

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** चंचल मन को रोकना, लोगों योग महान। स्थिर चित्त से ही मिला, करते हैं भगवान।। योग भोग में एक ही, अंतर जान सुजान। जाना आना एक को, मुक्ति एक की जान।। मन शरीर को शुद्धकर, कर लो तुम उद्धार। योग करो निशिदिन यहां, भवसागर हो पार।। प्रकृति, पुरुष भेद का, हो जाता है ज्ञान। तम के गम का योग से, होता रहा निदान।। आठ मंजिली योग की, कर बिल्डिंग में वास। रोग नहीं फटके कभी, मानव तेरे पास।। 'यम ''नियम''आसन' हो या, करें' समाधि' ध्यान। आठ अंग के योग में, है इनका अवदान।। 'प्राणायाम' हम करें, या हो 'प्रत्याहार'। करें 'धारणा' योग तो, तन में रहे निखार।। यम (सामाजिक नैतिकता) 'सत्य' 'अहिंसा' धार ले, 'ब्रह्मचर्य' ले ठान। 'अपरिग्रह' 'अस्तेय' से, होते लोग महान।। नियम (व्यक्तिगत नैतिकता) 'स्वाध्याय' 'तप '...