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पद्य

माँ को मै पलको पे रख लूँ
कविता

माँ को मै पलको पे रख लूँ

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** माँ को मै पलको पे रख लूँ, उनकी बाते सर पर रख लू, गुढ रहस्य की बाते माँ मै, इतिहास के पन्ने हे माँ में, जीवन के सब सपने माँ में, खाने का भण्डार है (अन्नपूर्णा) माँ में, बीते दिनो की याद है माँ में, संस्कृति और संस्कार है माँ में, मान और सम्मान है माँ में, दुनिया के हर अनुभव माँ में। घर मै एक वर्चस्व ही माँ है, घर की एक रौनक ही तो माँ है, बच्चो का तो सब कुछ माँ है, जीवन का एक पथ ही माँ है, भले बुरे की पहचान है माँ में, मन के भाव की पहचान है माँ में, गम को पीना खुशी से रहना, सबको लेकर साथ है चलना, यही भाव तो माँ रहता, घर मै सदा सजग है रहना, चौकन्ना सदा ही रहना, यह सब तो माँ मै ही रहता, मेरा तो यह अनुभव दिल का, बिन माँ के हम (बच्चा) पथ विहीन है रहता, जीवन का पथ माँ से मिलता, शिखर को छूने का सा...
औरत के अनेकों रूप
कविता

औरत के अनेकों रूप

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** औरत के रूप है अनेक, कोई दुष्ट तो कोई है नेक। कोई धारण करे सीता का रूप, तो कोई है सुपर्णखा का स्वरूप।। कोई है साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप, तो कोई धरे कुलक्षिणी का रूप। कोई बढ़ाये अपने कुल का मान, तो कोई करे पूर्वजों का अपमान।। कोई बनाये अपने घर को ही स्वर्ग, तो कोई गृहनाश करके बनाए नर्क। कुछ औरतें कहलाते हैं मर्यादित, तो कोई है डायन से परिभाषित।। कोई पति का दुःख-दर्द सुलझाए, तो कोई कोर्ट-कचहरी में उलझाए। कोई प्राणनाथ के रहे जीवनभर साथ, तो कोई करे पीठ पीछे ही आघात।। कोई अपने स्वामी को आबाद करे, तो कोई घर-परिवार को बर्बाद करे। कोई पति से बेइंतहा मोहब्बत करे, तो कोई उसके नाम से ही नफ़रत करे।। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्...
देर भी अंधेर भी
कविता

देर भी अंधेर भी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** झूठे दिलासों में जीने वालों इस जिंदगी में देर भी होता है, और अंधेर भी होता है, बस आश्वासन थोक में मिलता है, हर गली हर चौक में मिलता है, नेता ने दिया अधिकारी ने दिया, निजी ने दिया सरकारी ने दिया, मगर हकीकत कुछ और है, क्यों बदलता नहीं कोई दौर है, पुलिस वालों की जरूरत हो तो देर, डॉक्टर की जरूरत हो तो देर, मौक़ा देख मरीज निकल लेता है देर सबेर, परिजन झुंझलाहट में ऊपर देखते हैं, और कहते हैं उनकी यहीं मर्जी थी, लेकिन लोगों की आस फर्जी थी, यहां कोई किसी की आस पूरा करने वाला नहीं है, अंधेरे में खुद जलाना पड़ता है दीप खुद से बेवक्त होता उजाला नहीं है, प्रकृति का सब ताना बाना है जिसका कोई चितेर नहीं है, कभी धोखे में रह मत कहना कि यहां देर है अंधेर नहीं है, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहोगे त...
मैं बनाम तुम
कविता

मैं बनाम तुम

नील मणि मवाना रोड (मेरठ) ******************** इंस्टेंट मैगी सा रिश्ता क्यों हो गया इतना सस्ता सरे बाजार जुड़ता है फिल्मों सा जलवा बिखेरता है चंद लम्हों की चमक-दमक दिखा सिमटने लगता है दो परिवारों का विश्वास चंद पलों में दरकने लगता है। कहां गया वो अपनापन, समर्पण, त्याग… रिश्ता निभाने का वो भाव, एक टीम का सुविचार, हमारे फैसले, हमारा अधिकार हमारी खुशी, हमारा घर, हमारे बच्चे ‘हम तुम अपने’ क्यों ‘स्व’ बदला अहम् में, आया एहसान, त्याग का हिसाब असंतोष, ईर्ष्या, आक्रोश व बहिष्कार का विचार विद्रूप और हिंसक, क्रोध भरा अहंकार। कल्पना लोक में विचराते मीडिया के झूठे इश्तहार बच्चों को बहकाते नकारात्मकता ओढ़ाते विवेकशीलता का संतुलन डगमगाते रिश्तों में षड्यंत्र की दरारें डलवाते ये इश्तहार वास्तविकता पहचानें कल्पना लोक से उबरें ना भटकें बने होशियार। परिचय :- नील मणि...
वक्त
कविता

वक्त

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त के हालात से नजर मिला के चलो नजारा चैन का देखोगे नजर मिला के चलो किनारा करेगी दुनिया वक्त भी साथ न देगा न होगे दरख्त के साये दामन थाम के चलो। राहे कदम का साक्षी राहे कदम पर चलता साये दरख्त के हो न हो फिर भी दामन मिलेगा सुकून का। वक्त कब होगा कैसा जाने ना कोई रफ्ता-रफ्ता जिन्दगी से सीखो सुकुन से जीना। नजारा चैन का देखोगे नजर मिला के चलो। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्र...
याद उस जमाने की
कविता

याद उस जमाने की

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** याद आती है उस जमाने की प्यार मोहब्बत से बने पकवानो की। चुल्हे पर बनी रोटी की सौंधी-सौंधी खुशबू,बेमिसाल, माँ के हाथ की घेवर जैसी फूली-फूली रोटी की महक। क्या स्वाद था माँ के हाथ की आलू काधा और आलू बैंगन की साग और साथ मै ज्वार मक्का की रोटी वो भी चूल्हे पर बनी, प्यार से माँ थाल परोसती, पास बैठकर हमे खिलाती, गरम-गरम रोटी, ऊपर से माखन की गोटी कर मनवार माँ है देखो प्यार से देखो भात खिलाती, देखो केसे लाड़ लडा़ती। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी...
ग्रीष्म
कविता

ग्रीष्म

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। हवा मचलकर लपट फैंकती, पोखर तप्त उबलती है।। दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द्धरात अज्ञारी जैसी, सुबह-शाम अखबारों सी।। सिगड़ी जैसा दहक रहा घर, देहरी धू-धू जलती है। गरमी फैंक रही है गरमी, तपती सड़क पिघलती है।। सीना सिकुड़ गया नदियों का, नहरें नंगीं खड़ीं दिखीं। कुए-बावड़ी हुए बावरे, झीलें बेसुध पड़ीं दिखीं।। उतरा हुआ ताल का पानी, पहुँच गया पाताल तलक। हरी सब्जियाँ ग़म में डूबीं, दाल सुखाने लगी हलक।। आस-पास के बोरिंग सूखे, सरकारी नल चले गए। हैण्ड पम्प में रेत आ गया, ऐसे प्यासे छले गए।। घातक तपन धूप की बेटी, घर के कोने-कोने में। उमस और धमकों को लेकर, उलझी खेल खिलौने में।। बनकर बहू ससुर घर आई, लदी सुहाने सोने में। मगर सास पर अपना गु...
पिताजी
कविता

पिताजी

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे लिए आन बान, शान है पिता धरती का साक्षात भगवान है पिता..!! सब रिश्तों का एक मिसाल है पिता अपनों के लिए बनते ढाल है पिता..!! छाले हो पांव में नहीं दिखाते है पिता कंधे पर बैठाकर भी घुमाते है पिता..!! पैरो पर खड़ा होना सिखाते है पिता सही, गलत का राह दिखाते है पिता..!! जिम्मेदारियों का बोझ उठाते है पिता गम सहकर भी मुसकुराते है पिता..!! अपनो कि हर चाह पूरी करते है पिता दो में से दो रोटी देना जानते है पिता..!! भूखा रहकर बच्चों को खिलाते है पिता जिंदगी जीना बच्चों को सिखाते है पिता..!! डगमगाते कश्ती का खेवनहार है पिता बच्चों के लिए मानो पूरा संसार है पिता..!!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जा...
निशाचर
कविता

निशाचर

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** देखो तो आज इस जमाने में, बिना अखबार के समाचार आया है। दिन के उजियारे को मिटाने, निशाचर के रूप में अंधकार आया है।। जो दिन में डरा-डरा सा रहता है, वो शाम ढलते ही भौंकने आया है। रात के अंधेरी सुनसान - गली में, राहगीरों का रास्ता रोकने आया है।। जिसको खुद दिशा का पता नहीं, वो मेरी दशा बिगाड़ने आया है। मुझसे जबरन झगड़ा करके, शराब का नशा निकालने आया है।। इंसान कुत्ता बनकर भौंक रहा है, शाम होते ही गली - चौराहों में। मुझे जान मारने की धमकी देने आया है, बहुत नफरत भरी है उसकी निगाहों में।। उसके पैर राह में डगमगा रहा है, फिर भी न जाने क्यों चिल्ला रहा है। मेरा उससे कोई दुश्मनी ही नहीं, फिर भी वो मुझ पर तिलमिला रहा है।। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (...
लड़ना भी जरूरी है
कविता

लड़ना भी जरूरी है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां लड़ाकू हूं, लड़ते आया हूं अभी तक, बिल्कुल नहीं हूं कमजोर क्योंकि, प्रेम और अहिंसा का पाठ पढ़ाया जाता है कमजोरों को, किया जाता है प्रयास उन्हें देने के लिए मेडल सत्य और नैतिकता की, जबकि जीत का निर्णय करता है केवल और केवल ताक़त, जिसके विरुद्ध नहीं करता कोई हिमाकत, लड़ना अहम अंग है जिंदगी का, जो लड़ने से कतराता है, गायब हो जाते हैं पल भर में उनकी सुख-सुविधा, उनके हक अधिकार, सबसे ताकतवर लड़ाई है विचारों की, इस माटी के कण-कण के हिस्सेदारों की, बैठे बैठे कौन किसका हक़ खा रहा है, ध्यान किसी का इस ओर नहीं जा रहा है, भूखों को सुनाया जाता है धर्म की बातें, भूलाकर उनके द्रवित मर्म की बातें, जिस दिन कर गया घर, दिमाग में भरा हुआ डर, उस दिन से हो जाता है चेतना शून्य बड़ा से बड़ा लड़ाका, और बलवान...
अनंत सनातन
कविता

अनंत सनातन

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** दिन बीत जाते हैं मगर नहीं बीतता वह लम्हा जो हमें अपने ईश के समीप ले जाता है। अवधि बीत जाती है मगर नहीं बीतता वह पल जो हमें जड़ता से चेतन की ओर सदा के लिए ले जाता है। समय बीत जाता है मगर नहीं बीतता वह क्षण जो हमें शाश्वत के करीब ले जाता है। वक़्त बीत जाता है मगर नहीं बीतता वो निमिष जो हमें अविनाशी के निकट ले जाता है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
ससुराल के बीते दिन
दोहा, हास्य

ससुराल के बीते दिन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** स्वर्णिम युग ससुराल का, याद करे दामाद। पर अब कुछ भी है नहीं, केवल है अवसाद।। ख़ातिरदारी है नहीं, अब सूना मैदान। बिलख रहे दामाद जी, रुतबे का अवसान।। स्वर्णिम युग पहले रहा, खाते थे पकवान। अब तो सारे मिटे गए, ससुराली अरमान।। कितना प्यारी थी कभी, जिनको तो ससुराल। उनको दुख अब सालता, अब वह गुज़रा काल।। अब ख़ातिरदारी नहीं, शेष बची है याद। अब मुरझाने लगे गया, पौधा तो बिन खाद।। स्वर्णिम युग ससुराल का, केवल है इतिहास। दर्द घिरे दामाद जी, जीते अब बिन आस।। पहले हलुआ, पूड़ियाँ, रबड़ी, काजू, खीर। अब तो केवल हाथ है, कसक, कष्ट सँग पीर।। स्वर्णिम युग ससुराल का, शायद आता लौट। जैसा पहले दौर था, वैसा हो फिर हौट।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए ...
स्वीकार
कविता

स्वीकार

नील मणि मवाना रोड (मेरठ) ******************** स्वयं को स्वीकार कर तो देखो चित्त को साध कर तो देखो मन की लगाम थाम कर तो देखो गुण अवगुण स्वीकार कर तो देखो ना चोर कहे मैं चोर ना हिंसक कहे मैं हिंसक ना क्रोधी कहे मैं अक्रोधी ना निकम्मा कहे मैं लुल गंदगी छिपे ना इत्र छिड़काने से छिपे रोग को उजागर कर तो देखो स्वीकार लो सत्य को खुलकर बह जाकर तो देखो ज्ञान रोशनी है मन के अंधेरे तक पहुंचा कर तो देखो। परिचय :- नील मणि निवासी : राधा गार्डन, मवाना रोड, (मेरठ) घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
कलियुग की बलिहार
गीत

कलियुग की बलिहार

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नारी अस्मत लूटते, बात बडी गंभीर। भूले नर संस्कार हैं, कैसी है ये पीर।। देख पुकारे द्रोपदी, खतरे में है लाज। दुःशासन हर ओर है, ठौर न मिलती आज। कलियुग की बलिहार है, कैसा है संसार। नारी विपदा में बड़ी, होता नित्य प्रहार।। मानवता अब रो रही, पाँव पडी जंजीर। नारी अस्मत लूटते, बात बडी गंभीर।। बने पुजारी वासना, दुश्मन है ये देह। अब समूल यह नष्ट हो, इनसे कैसा नेह।। काँप रही अब नार है, नाव पडी मझधार। दानव अब शूली चढें, जो धरती पर भार।। दया दृष्टि प्रभु जी करो, दृग से बहता नीर। नारी अस्मत लूटते, बात बडी गंम्भीर।। नर पिशाच ही अब करें, नारी का अपमान। संतति संस्कारित न हो, तो बोझ खानदान।। जब कुकृत्य बच्चे करें, दंडित हों हर बार। मात मिलेगी अब इन्हे, नारी की ललकार।। अबला से सबला बनी, नारी बहुत अधीर। ना...
क्यों रातें जल्दी ढलती है
कविता

क्यों रातें जल्दी ढलती है

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** सारे दिन अवसाद को ढोया जीवन के अनगिन झमेले रातें ही तो बस अपनी है जहाँ पूरी शांति मिलती है क्यों रातें जल्दी ढलती है एक आस लिए इंतजार करूँ शशि सम पिय का दीदार करूँ मिलन के क्षण जब आते हैं साँसें बिन बात मचलती है क्यों रातें जल्दी ढलती है मद छलकाये उजली चाँदनी ज्वार उठे, चुप मन मंदाकिनी भुजपाश बढाये तन ताप देह पिया मेरी जलती है क्यों रातें जल्दी ढलती है पलकों की छुअन, रजनी रीती कैसे कहूँ, मन पर क्या बीती बातों में वक्त बीत गया लाज लगे, क्या कहती मैं क्यों रातें जल्दी ढलती है जाने कितनी मन भरी पीर बक जाता सब नयन नीर पिया मिले तो धीर धरूँ मैं यूँ ही जान ये निकलती है क्यों रातें जल्दी ढलती है परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य ल...
मीठी मनवार
कविता

मीठी मनवार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** माँ की देखो मीठी मनवार बचपन से करती वह प्यार। पुचकार-पुचकार माँ दुध पिलाती, जिद्दी पर माँ उसे सहलाती, अपने हाथ माँ सीर पर घुमाती, मीठा-मीठा लाड़ लडाती, रोने पर माँ दुखी होजाती, कही नजर ना इसे लग जाये, अपने आँचल से उसे छुपाती, राई लून से नजर उतारे, काला टीका उसे लगावे, मीठी मनवार करे देखो लाड़। पलना झुले देखो लाल। पैरो पर माँ उसे लेटाती बडी हिफाजत से उसे नहलाती, नैनो मे कही नीर ना ढल जाये देखो कैसे उसे बचाती। माँ तो बस माँ होती हैं, मीठी मनहार से उसे सुलाती। मीठी मीठी लोरी गाती, पलने मै माँ उसे सुलाती। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्...
प्रश्न सेना पर
कविता

प्रश्न सेना पर

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** प्रश्न देश की युद्धनीति पर  सेना की गुप्त नीति पर सेना पर, युद्ध विराम पर? देश की गुप्तनीति को करें उजागर क्या ये देश भक्ति हैं देश भक्ति पर चोट नहीं है? जरा सोचिए क्या जीवन का लक्ष्य है केवल रण करना अगणित मांगें सूनी करना बूढ़ी गोदें रीती करना भाईदूज राखी पर्व मिटा देना बच्चों के सिर से पिता की छांव हटा देना  यही लक्ष्य प्रश्नकर्ता का?  भारत का लक्ष्य बड़ा है युद्ध की रणभेरी लिए खड़ा है पर किसकी खातिर? आतंकवाद को धूल चटाना दुनिया के आतंकी दल को जन्नत की हूरों से मिलवाना आतंकी अड्डे मिट्टी में मिलाना आतंक मचाने वालों का करके पर्दाफाश आतंकी रावण के दस शीष कटाना उसकी आतंकी सेना को कर ध्वस्त आतंकवाद को जड़ से मिटाना आमूलचूल कर परिवर्तन धरती से आतंक हटाना घृणा,द्वेष आतंक के पालक को सुंदर संदेश बत...
राह मे
कविता

राह मे

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जिन्दगी की राह मे मिले क ई साथी थे गुजर गए, गुजर गए वो फासले हर कोई नया मिला हर किसीने शिकवे किए फिर-फिर दिल के आईने मे झाँककर देखा कर गए फासले चले गए दूर बहुत दूर रह गए अकेले कल जो अपने साथ थे परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि...
काले-काले जामुन
कविता

काले-काले जामुन

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** काले-काले जामुन खट्टे मीठे काले जामुन, बच्चे बूढ़े सबको भाये जामुन, काले-काले गोल मटोल, फायदे करते है भरपूर। ब्लड प्रेशर को कंट्रोल है करते, मोटापे को दूर है करते हैं, चेहरे को चमकाये जामुन, फाइबर भरपूर रहते हैं जामुन। कोई खट्टे कोई मीठे, खाते ही दाँत कटकटाये जामुन, खाते ही देखो हम आँख मिचते, बस जामुन तो बस होते है जामुन। देखो खट्टे खट्टे जामुन। मीठे जामुन गुटली कड़वी, चूस चुस कर खाते जामुन। मौसम का एक फल है जामुन, स्वास्थवर्धक होते हे जामुन। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतन...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उमङ धुमङ धटा गहराती उपवन के तरु लहराए मेरी बगीया के आगंन मे तुम आते, आते सकूचा ऐ। बादलो की बौछार देती निमन्त्रण बार, बार हरित पर्ण और पुष्प भी करते प्रतिक्षा हर पल व। कहते मादक सुगन्ध हमनै बिखरा ई झरना झीले झूम झूम कर करते तेरी अगुवाई जन कहते पकृती भरमा ई। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान ...
नव बीज
कविता

नव बीज

सौ. निशा बुधे झा "निशामन" जयपुर (राजस्थान) ******************** नदी जो बहकर आई! पवन बरखा संग लाई! उपवन, नव अम्बर नीला, कल-कल, झर-झर, शेष सहस्त्रधारा, कुसुम लता पल्वित, सुमन सागर, न्यारा प्यारी, चंचल नैन निहारे, धरा विस्तार करे, जल धारा, यौवन नित, नव जीवन सारा। वंदन अभिलाषा प्राकृतिक सौन्दर्य, नव कोपल करे "स्वर्णिम" दृश्य भविष्य प्यारी नायरा।। परिचय :- सौ. निशा बुधे झा "निशामन" पति : श्री अमन झा पिता : श्री मधुकर दी बुधे जन्म स्थान : इंदौर जन्म तिथि : १३ मार्च १९७७ निवासी : जयपुर (राजस्थान) शिक्षा : बी. ए. इंदौर/बी. जे. मास कम्यूनिकेशन, भोपाल व्यवसाय : एनलाइन सेलर असेंबली /फ़िलिप कार्ड /अन्य प्रकाशित पुस्तक : स्वयं की मराठी संकलन लघुकथा (मधुआशा 2024) एवं विभिन्न पटल पर पुरस्कार एवं समाचारपत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित स्वरचित कविता/कहानी इत्यादी।...
कंचन मृग छलता है अब भी
गीत

कंचन मृग छलता है अब भी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कंचन मृग छलता है अब भी, जीवन है संग्राम। उथल-पुथल आती जीवन में, डसती काली रात। जाल फेंकते नित्य शिकारी, देते अपनी घात।। चहक रहे बेताल असुर सब, संकट आठों याम। बजता डंका स्वार्थ निरंतर, महँगा है हर माल। असली बन नकली है बिकता, होता निष्ठुर काल।। पीर हृदय की बढ़ती जाती, तन होता नीलाम। आदमीयत की लाश ढो रहे, अपने काँधे लाद। झूठ बिके बाजारों में अब, छल दम्भी आबाद।। खाल ओढ़ते बेशर्मी की, विद्रोही बदनाम। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सत...
मेंढक कब बोलेंगे
कविता

मेंढक कब बोलेंगे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** असीम संभावना का धनी आषाढ गर्मी से बेहाल, सूखे होंठ उदास बैठा है खेत की मुंडेर पर। मुंह मोड़े तीतर पंखी बादली, अलनीनो के प्रेम से बदहवास फिरती दूर गगन के छोर पर। किसान तीर्थ कर आया अलसुबह, खेत सी धरा पावन कही नहीं। मेहनतकश पसीने से, इस रज का कण कण सिंचित है। दंडवत कर निहार थे कुएं की गहराई को, गहरी वेदना से। पानी उतर गया था जिसका, पाताल में अश्विन की बादली सा। आते हुए गांव के पलसे में, नज़र ठिठकी तालाब पर चौतरफ किनारे की हरी भरी दूब सूख गई थी, महाजन की आत्मा सी। जो ठिठहरी सा चीक-चीक करता है दिनभर। जौंक सा तालाब के बाहर, निर्मम चूस रहा है सदियों से। पोखर में नहीं बचा था पानी जिसमें तैर सके कछुए और मछलियाँ, नहा सके छलांग लगाकर नंगदडंग बच्चे। औरतें पिला सके गुनगुनाती हुई गाय, भैंस, बकरियों को...
आजादी
कविता

आजादी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ख़ौफ़ से आज़ादी ही हमारी सच्ची आज़ादी है जिस पर मैं तुम्हारे लिए दावा ठोंकता हूँ मेरी मातृभूमि! पीढ़ियों के बोझ से आज़ादी अपना सिर झुका कर चलते रहना अपनी कमर की हड्डियाँ तोड़ लेना और भविष्य की पुकार पर मूंद लेना अपनी आँखों को नींद की बेड़ियों से चाहिए हमें आज़ादी. जिससे तुम रात के सन्नाटे में ख़ुद को जकड़ लेते हो और उस सितारे पर ज़ाहिर करते हो अपना अविश्वास जो सत्य की साहसिक राहों तक हमें ले जाना चाहता है आज़ादी अपनी क़िस्मत की अराजकता से. जिसकी पालें अंधी और अनिश्चित हवाओं के सामने कमजोर पड़ती जाती हैं और पतवार हमेशा चला जाता है मौत के माफ़िक कठोर और ठंडे हाथों में कठपुतलियों की इस दुनिया में रहने के अपमान से आज़ादी. जहाँ हरकतें बद-दिमाग़ तंत्रिकाओं के ज़रिए शुरू होती हैं नासमझ आ...
पतंगबाजी
कविता

पतंगबाजी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** हाथ में चरखी, चरखी में लिपटा धागा, चौकोर कागज की रंगीन पतंग हवा की मस्ती की लहरों में उड़ाता उड़ाने की ख़ुशी में सबसे हर्ष आनंद बढ़ाता सेहत बढ़ती, मिलती ताजी धूप प्रफ़ुल्लित मनमस्त हो चला जाता खुले वातावरण में चरखी औऱ डोर घुमाता कागज की सुंदर रंगीन पतंग आकाश में देख, ह्रदय खूब हर्षाता फेफड़ों में लाभकारी पतंग से खुशियाँ भारी पाता अच्छा ब्रीडिंग व्यायाम करता भारी ऑक्सीजन पर्याप्त मिलता ताकत भारी पतंगबाजी में करता प्रकृति से शरीर की प्रक्रिया नजरें प्रकृति से लड़ती लड़ता मन खुशियां मिलती न्यारी आसमान में उड़ाकर रंगीन पतंगों को रोगमुक्त का उपाय पतंग उड़ाकर मन को बढे चाव शरीर की पीड़ा जटिल रोग दूर होती पतंगबाजी से अनेक बीमारी एकाग्रता बनाए रख उड़ाए पतंग उड़ाए पतंग भगाओ परेशानी पतंग उड़ाने...