प्रकृति जीवन है
अजयपाल सिंह नेगी
थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल)
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प्रकृति जीवन है,
जीवन ही प्रकृति
प्रकृति प्राण है,
आत्मा भी प्रकृति
प्रकृति मरुस्थल में नदी,
मीठा झरना है प्रकृति
प्रकृति पृथ्वी है, जगत है,
धरा है प्रकृति
प्रकृति कलम है, दवा है,
सस्कृति की गवाह है प्रकृति
प्रकृति परमात्मा की
स्वयं में गवा है प्रकृति
प्रकृति अकेली है,
अकेले में ही है प्रकृति
इसका का महत्व कम नहीं
हो सकता कभी, होने पर
दुनिया सशक्त न हो सकती कभी
मैं अपनी चंद पंक्तियाँ,
प्रकृति के नाम करता हुँ
प्रकृति के निस्वार्थता को
ह्रदय से प्रणाम करता हुँ
परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी
निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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