मौत
डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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बैठे है कब से मेरे सिरहाने आस-पास वे भी,
जिन्हें फुर्सत ना थी कभी मुझसे मुलाकात की।
जिन्हें पसंद ना थी मेरी शक्ल फूटी आंख भी,
अब दर्शन को भीड़ लगी है सारी कायनात की।
जिनसे तोहफे में नसीब ना हुआ इक बोल भी,
आज वे भी मुझ पर बरसा रहे फूल कचनार की।
तरसे- रोये है मुश्किलों में हम एक कन्धे को,
और अब बानगी देखिए जरा हजारों कन्धों की।
कल दो कदम साथ चलने वाला ना था कोई,
अब गणना असंभव है साथ चल रहे कारवां की।
कमबख्त जिंदगी मौत से बदत्तर लगी आज,
कितने रो रहे यहां कमी नहीं चाहने वालों की।
परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार)
निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
आप ...




















