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पद्य

अन्नदाता
कविता

अन्नदाता

सीताराम सिंह रावत अजमेर (राजस्थान) ******************** तपते सूरज में पसीने से नहाता किसान दुनिया का अन्नदाता भीख मांग कर क्यों बीज लाता? क्यों फांसी पर लटक जाता ? क्यों अन्नदाता को दो वक्त का अन्न नहीं मिलता क्यों इतनी जी तोड़ मेहनत के बाद चेहरा नहीं खिलता आखिर क्यों किसान का चेहरा एक सवाल होता उचित दाम के न मिलने पर रोता क्यों किसान के सपने को मार दिया जाता इसलिये कि वो एक अन्नदाता है। इसलिये कि वो आपको सवाल नहीं पूछता या किसान का कोई मूल्य नहीं होता। परिचय :- सीताराम सिंह रावत निवासी : अजमेर (राजस्थान) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
चाह नहीं
कविता

चाह नहीं

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लहरेंं आती रहीं कभी धूप की तपिश लेकर और कभी आती रहीं छावँ की ठंडक लेकर। इन आती-जाती रही लहरों के मोहपाश में बंधा रहा मैं, न जाने कब तक बेहोंशी में। सामने खड़ी थी बन याघक कुछ मांगती थकी-मांदी जिंदगी सिमटी, अनजान सी। अचानक, उछाल लेती जलराशि से स्नात मैं शून्य में समाहित था राग-विराग से दूर मैं। परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)। निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहें २- गिरहें का सिंधी अनुवाद ३- माटी कहे कुम्हार से सम्मान : गिरहें पर म.प्र. लेखिका संघ भोपाल से गिरहें के अनुवाद पर तथा गिरह़ें पर शब्द प्रवाह द्वारा तृतीय स्थान संप्रति : सहायक निदेशक (रा.भा.) कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,श्रम मंत्रालय...
कौन कहता है
कविता

कौन कहता है

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कौन कहता है यहांँ मस्जिदोशिवाले हैं। अपनी आंँखों में महज़ प्यास है, निवाले हैं।। तंगदस्ती कहांँ-कहांँ पे मार देती है, वक़्त ने कितने ही बेवक़्त सितम ढाले हैं।। कोई बादल बिना पूछे बरस नहीं सकता, आसमां तक भी सियासत के बोलबाले हैं। बस्तियांँ जलती रहें, मस्तियांँ भी चलती रहें, अजीब शय हैं, ख़ुदाई का शौक़ पाले हैं। मत करो, ज़िक्र से उनके लहू उबलता है, तन पे उजले लिबास, मन के बड़े काले हैं। मेरा वका़र जो ललकार उन्हें देता है, मखमली जूतियांँ पैरों में नहीं, छाले हैं। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सक...
मोबाइल
कविता

मोबाइल

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम से, कोने- कोने से बातें हो जाती है। रिश्तों में दुरियाँ बढती चलीं जाती हैं, अब इसे जीवन कहे या मृत्यु कहे..... वाह! मोबाइल क्या नाम दिया है..... दुनिया भर की खबर देख लेते हैं, मानव सोच को सकारात्मक करते। अपना उधोग इससे कर सकते हैं, पर मानव इसका दूरउपयोग क्यों करते..... अब मोबाइल अपनी हर आवश्यकता पूरी करते..... ना दिन का पता ना रात का, बस मोबाइल पर समय गुजर जाता। पास होने पर अजनबी लगते, मोबाइल पर बातचित हो जाती हैं...... यह सुंदर दुनिया मोबाइल में खो जाती हैं........ परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक ...
भइया से बोली भउजी
कविता

भइया से बोली भउजी

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** इक दिन भइया से बोली भउजी करत के कंघी इया साल त सईया देखा लड़बय हमहू सरपंची भइया बोले बोट न पउबै नाहक होइ नामूजी आँखि तरेरि भइया कइ भन्नाय के बोली भउजी मिली बोट कइसे न देखी सोचेंन हयन सरल उपाय चमकती साड़ी सेट पहिनब हमजोरिन संग बागब गांव नैनन कजरा जुड़ा म गजरा ओठन पोटिकै लाली चारि जने के बीच बइठि पुनि मारब नयन कटारी परी बोट जिन्हा सजि धजिकै इस्कूले कय हम जाय मतदान परभारीसे हसि हसि अपने कैतिक लेब मिलाय कइसेउ मइसउ जीति गयेन जो तुहु कहउबय सरपंचपति दांत निपोरे अब तकि बागेउ लहि जाइहि तोहरउ घती अधिकारीन क साथ मिलाउब नाली रोड़ खूब बनबाउंब रुपिया पइसा पास म होइ सहर अपनउ बगला होइ आंगन बाड़ी केर पंजीरी दरिया अउ आबास बड़े मनई जे गाँव के जोरिहि हम से हाथ जेतकी जोजना सरकारी सगरिन से करब कमाई सुनब केहू कै न करब ऊहै जो हमरे मन म आई ...
बेरोजगारी
कविता

बेरोजगारी

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** बिगड़े ना बोल नाही अइसे दबेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। हमरा के चाही नाही मेवा मलाई। नोकरी के आस प्यास देता बुझाई। जिनगी के खोल जनि अइसे उकेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। बीतता उमिर अब पाकता डाढ़ी। रोईं अकेले बन्द कइके केवाड़ी। नइया उमिरिया के मारे हिलकोरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। मुहर हव लाग गइल देहियाँ पे भारी। लम्पट आवारा सभे बुझे अनारी। जुआ ना दारू नाही गांजा क डेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। रोटी ना भात रात कइसे बिताईं। छोटकी बेमार बिया कइसे सुताईं। गऊवां के लोग कहें हम्मे लखेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। माई के सस्ता दवाई उधारी। ओहु पे चल रहल रउआ के आरी। मछरी के अस कस नाहीं दरेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। परिचय :- धीरेन्द्र पांचाल निवासी : चन्दौली, वाराणसी, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं ...
हुनर बदलने का
कविता

हुनर बदलने का

सपना मिश्रा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** वक्त बदलता है तो हालात बदलते हैं लोग बदलते हैं तो जज्बात बदलता है किस्मत बदलती है तो जीवन बदलता है जीवन बदलता है तो एहसास बदलते हैं एहसास बदलते हैं तो अपने बदलते हैं बदलने का हुनर तो पूरी दुनिया के पास है वादा करके निभाने में बड़ा फर्क होता है कोई पाकर बदलता है तो कोई खोकर बदलता है नतीजे बदलते हैं तो रिश्ते भी बदलते हैं यह हुनर है या फितरत मौसम से भी ज्यादा इंसान बदलते हैं... परिचय :- सपना मिश्रा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
मन
कविता

मन

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** वक्त बुरा नहीं होता, बुरे होते विचार, मन मेरा प्रसन्न हो तो,लोग करें प्यार, मन को काबू कर, बन सकता महान, मन मंद वेग मेें हो, बन जाए पहचान। मन की गति समझ नहीं पातेे, कितने, जगत हुये पंडित और हजारों विद्वान, मन पर काबू किया, साधु, संत महान, काबू से बाहर मन, राक्षस उन्हें जान। फूल सा मन था, जब होता था बच्चा, मेरा मन कहता था, दिल का हूं सच्चा, काम मन से किया, लगता था अच्छा, छल पट से दूर था, इसलिए था बच्चा। हुआ युवा,मन जवां, करता उल्टी बातें, मेरे मन से सोच में, कट जाती थी रातें, मन मलिन हो गया, कुत्सित थे विचार, मन की मेरी समझे, घट का जन प्यार। हुआ बुजुर्ग आज मैं, नहीं रहा ये जवां, बुरे भले विचार पले,नहीं रहा मन जवां, सोच विचार करता, शुभ वक्त दिया गवां सूखा पेड़ बन गया, खुश्क हो गई हवा। एक दिन मेरा मन, यूं कहने लगा मुझसे, अभी वक...
वही इंसान तो…
ग़ज़ल

वही इंसान तो…

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** वही इंसान तो अक्सर सही मंजिल नहीं पाता। जो सच्ची राह पर अपनी कभी चलकर नहीं जाता। सभी मुश्किल उसे इस राह की हैरान करती है, कभी जो हौसला अपना यहाँ लेकर नहीं आता। वो बातें हैं यहाँ उसके लिए इक फ़लसफ़े जैसी, हक़ीक़त में जिन्हें अपने अमल में जो नहीं लाता। निभाते हैं सभी उसकी रिवायत को शराफ़त से, बना रहता है जब उसका सभी से कुछ न कुछ नाता। कभी वो ख्वाहिशें उसकी यहाँ पूरी नहीं होती, कि जिसको ये नहीं भाता कि जिसको वो नहीं भाता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जा...
गावों की गलियां
कविता

गावों की गलियां

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** शहर को छोड़ कर आज आया हूं गावों की गलियों में। गलियों की दीवारों को देख कर, बचपन के शरारती दिनों की यादें ताजा हो गई हैं। गलियों को देखकर याद आ गए वो दिन, जब में नंगे पाव भागता था इन गलियों में, शोर मच जाता था इन अरियो में, जब मां डंडा लेकर भागती थी पीछे, कान पकड़कर लाती थी नीचे, जब चलता हूं गलियों में तब आती है महक इन गलियों की तब दिल रोता है जोर से क्यू चला गया मैं गावों की गलियों को छोड़ कर इन शहरों की आबाद गलियों में। शहर को छोड़ कर आज आया हूं गावों की गलियों में। खेतो में लहराती इन फसलों को देखकर मानो स्वर्ग का एसास हो रहा हो, रग बिरंगी उड़ती हुई तितलियां, मानो स्वर्ग की परियों का एसासा करा रही हो आज दिल बोहत खुश है मैने शहरों की आबाद गलियों को छोड़ कर गावों की गलियों में आया हूं। परिचय :- रमेश चौधरी निवासी : पाली (राजस्थान) शिक्...
गुरु वहीं जो जीना सीखा दे
कविता

गुरु वहीं जो जीना सीखा दे

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** गुमनामी के अंधेरे से उजाले की पहचान करा दे तराश दे हिरे की तरह दुनिया के रास्ते पे चलना सीखा दे कर देता है कायाकल्प सबका सच और झूठ से साकार करा दे मार्ग सच्चा दिखाऐ हमेशा पराये में भी अपनों का अहसास करा दे जलकर स्वंय दीपक की भांति शिष्य की नई पहचान दिलादे मुश्किलों से लडने की हौसला बढादे वह इतना समझदार बना दे बतलाऐ जीवन का सूत्र जीत जाना ही सब कुछ नहीं हारकर जीतने की हुनर सीखा दे गुरु वहीं जो जीना सीखा दे आपकी आपसे पहचान करा दे... परिचय :-  खुमान सिंह भाट निवासी : रमतरा, बालोद, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिं...
पापा मै भी पढूंगी
कविता

पापा मै भी पढूंगी

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** पापा मुझे क्यों नहीं पढ़ाया अल्पायु मे ही ब्याह कराया बेटी की उम्र में, मुझे माँ बनाया दहेज के नाम से भी बहुत सताया। सत्य-अहिंसा की मै राह चलूँगी बेड़ियाँ अशिक्षा की मै तोडूंगी जड़ें भ्रष्टाचार की उखाड़ फेकूंगी पढ़-लिख कर समाज को सुधारूँगी। बंधनों को समाज के, तोड़कर पढूंगी मगर उजियारा समाज में करूँगी आवाज अन्याय के विरुद्ध उठाउंँगी खुशियों के पलों का आगाज करूँगी। उड़ान कल्पना सी मै भी भरूँगी जुल्मों-सितम से भी लड़ जाऊँगी वीरांगना समान वीरता दिखाऊंगी शत्रुओं को भी मै धूल चटाऊंगी। दिन जब आपके गुजर जायेंगे उम्र से आप लड़ ना पायेंगे वारिस आपसे मुकर जायेंगे सहारा तब मेरा ही, आप पायेंगे। तन जवाब जब, आपका देगा बोझ आपको फिर, बेटा समझेगा पालन तब आपका, मै ही करूँगी इसलिये पापा मै भी पढूंगी। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वा...
मां तारा
कविता

मां तारा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मां तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार- मैं अकिंचन एक भिखारी मांगता हूं तेरी प्यार! दश "महाविद्याओं"में तू अद्वितीय तू ही पालनहार- जो कुछ मैं हूं हे माते तेरी ही कृपा कटाक्ष! मैं अबोध तेरी पुत्र तेरी बिन मैं हूं अनाथ- माँ तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार! मैं भटका हूं इस निशा रात्रि में धधक रही चिता मसान- मध्य रात्रि में भयाक्रांत चारों तरफ है सुनसान! द्वारिका नदी में वर्षा से हो रही है तीव्र प्रवाह- माँँ तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार! मैं अकिंचन एक भिखारी मांगता हूं तेरी प्यार- बीत चुकी है कई वर्ष न मिट सकी है प्यास! मां तारा तेरी मिलन की चाह में भटक रहा महाशमसान- वरद अभय मुद्रा में मां तू अडिग हो तू ही पालनहार! महाशमसान में साधक गण सभी कर रहे करुण पुकार- इस नश्वर संसार में मां सुनो मेरी करुण पुकार- श्रृंगाल -शिवा, भैरवी ,योगिनी की आ...
बेटी
कविता

बेटी

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। उन्मुक्त गगन में पंछी जैसी, निच्छल, अविरल नदियाँ सी लाखों स्वप्न हिय में भरकर परी लोक की परियों जैसी। सुंदर मन, कोमल तन से जो लगे गुलों में फूल सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। घोर तम में दीपशिखा जैसी जीवन समर ने अमृत वर्षा सी प्राणों में स्पंदन को भरकर कानन में टेसू के जैसी नाजुक है कमजोर नही जो लगे नूर में मेरी हूर सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। प्रचंड शीत में सूर्योदय जैसी, उष्ण बयार में शीत फुहार सी। दो कुलों की मर्यादा सहेजकर परिवारों की मनुहार जैसी उदासी में मुस्कान भरे जो लगे ईश्वर का उपहार सी बेटी। रिश्तों की हरियाली बेटी, जग में सबसे न्यारी बेटी। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (ह...
साहित्य साधना…
कविता

साहित्य साधना…

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** साहित्य है एक साधना, लोकहित की यह कामना, नीजहित में मानव पतित, साहित्य जनहित की आराधना, साहित्य संगम रहा ढूंढ़, साहित्यकारों का महाकुंभ, शपथ बेहतर भविष्य बनाना, आओ करें साहित्य साधना, सृजन का यह अद्भुत जुनून, बोल सकता यही अंधा कानून, इसका साधक कब कहां डरा, इससे भयभीत कितना बेमौत मरा, फिर भी एक सवाल कठिन, पूछता सबसे कलमकार बिपिन, अंधकार घना और क्यों भयभीत धरा, परिवर्तन की दरकार, कैसे बदले विचारधारा... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
कविता

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है यहाँ न रिश्तों की परवाह है न खुशियों की चाह है ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है... हर तरफ मतलब ही मतलब ... और सिर्फ बेमतलब का ही शोर है।। न बच रही कहि मानवता, और न ही प्रेम का कहि छोर है।। अपने स्वार्थ की खातिर, नए रिश्ते बना लेते है लोग, या यू कहे कि गधे को भी बाप बना लेते है लोग।। भरोसा उठ रहा सबका यहाँ इंसानियत और ईमानदारी से... भरोसा उठ रहा सबका यहाँ रिश्तों की वफादारी से... ये बेदिल, और मतलब परस्तों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है।। रुचि!!!! दुनिया के मिलने की चाह को छोड़ अब खुद के मिलने को तलाश कर... खुद को खुद में ही खोजकर अब खुद पर ही विश्वास कर।। छोड़ सब उम्मीदों को अब... ये इंसानी लाशों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२...
बच्चों का दर्द
कविता, बाल कविताएं

बच्चों का दर्द

सपना दिल्ली ******************** कोई तो समझे बच्चों का दर्द शिक्षा के नाम पर हम पर होता अत्याचार बस्ता तले दबे कंधे चारों पहर बस पढ़ाई का क़हर। घर में पढ़ाई स्कूल में पढ़ाई वापिस आकर टूशन में पढ़ाई इतना ही नहीं घर आने पर फिर पढ़ाई। जीना मुश्किल कर दिया है इस पढ़ाई ने हम बच्चों का सोते-जागते दिमाग में चलता रहता बस पढ़ाई-पढ़ाई का ही दृश्य। जैसे ही पढ़ाई से ध्यान भटके शुरू हो जाती घर पर डांट स्कूल में डांट टूशन में डांट जैसे सबने हमे डाँटने की डिग्री ही पाई हो। न उछल-कूद न कोई शरारत न मौज-मस्ती मानो बचपन ही सिमट गया हमारा, इस पढ़ाई में। सबको लगता बच्चा होना सबसे आसान न कोई टेंशन न कोई परवाह जीवन में बस मौज-मस्ती! होता बिलकुल उलट पढ़ाई का बोझ लादा जाता इतना नीचे दबकर दम घुटा हम मासूमों का। बच्चा क्यों नहीं बन जाते एक दिन के लिए हमारे जैसा फिर समझ पाओगें हमारे मन के मासूम अहसासों को। फिर तुम बच्च...
कोरोना से बचाव ही ईलाज है।
कविता

कोरोना से बचाव ही ईलाज है।

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए कर लो आप सर-सफाई, स्वंय और परिवार को लो कोरोना बीमारी से बचाई। सर्वप्रथम घर के रोज उपयोग वाली चीजों का करोआप रोज-रोज सफाई, तभी आप और आपका परिवार का कोरोना बिमारी से बचाव हो पाई। स्कूल-कालेज वाले करावे रोज सेने-टाईजर का छिड़काव और सफाई, समाजिक दुरी बना के करे सावधानी से पढ़ाई। कोरोना बिमारी उसको कभी न लगे भाई, जो कोई करे रोज-रोज सर-सफाई। सर्वप्रथम अपने घर-परिवार के प्रति सकारात्मक सोच रखे भाय, सभी को दो कोरोना संक्रमरण से बचाव के उपाय से अवगत कराय। जो कोई नातेदार-रिस्तेदार घर आय, आप दो कोरोना से बचाव के उपाय समझाय। पड़ोसियो से मिल कोरोना से उतपन्न आपातकालीन स्थिति का योजना लो बनाय, कोरोना संक्रमित या बीमारो की सूची लो बनकर औरलोगों को दो अवगत कराय। अगले कुछ दिनों तक कोरोना संक्रमित से मिलने ...
मजबूर शव-यात्रा
दोहा

मजबूर शव-यात्रा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कलयुग को कोसा बहुत, संकट में हर बार। सीमा पार युद्ध संग, कोविड की भी मार ।। महामारी ग्रहण में, बहुत विरोधी तंज। कलयुग की इस दशा पे, घोर त्रासदी रंज।। द्वापर काल कृष्ण से, मिला खूब संदेश। छल कपट से लूट भाव, होगा हर परिवेश।। घरों घर रावण बैठे, लाते कितने राम। कोविड छाए हर गली, नहीं शेष अब धाम।। विरोध सहमत फेर में, सतत बढ़े प्रभाव । महामारी फंद कहे, खेलो अपने दांव।। परे हुए माया मोह, अब जीवन की चाल। हाल बिगाड़े बुरी तरह, सपने सब विकराल ।। धन-बल के तमाशबीन, जड़ बुद्धि के अधीन। सुरक्षा साधन भूलकर, हो गए अति मलीन।। बिंदास जीने वाले, बुरी तरह लाचार। कोविड डर आतंक से, भूले निज आधार।। अंतिम पथ प्रस्थान में, मात्र जरूरी चार। शव-यात्रा भी मजबूर, सूनी बिन परिवार।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति :१९७...
शब्दों के पैमाने
कविता

शब्दों के पैमाने

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** यदि कुछ बनने को कहूं तो सागर बन सकते हो क्या? जैसे वह अमृत हो या गरल, खुद में पचाकर शांत रहता है। वैसा धीरज तुम भी दिखा सकते हो क्या? अगर नहीं, अगर नहीं तो बोलो मत, चुप बैठो। संविधान ने स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की दी है, शब्दों से घाव करने की नहीं। भाषा के गलत प्रयोग से तुम जो इतना ज़हर फैला रहे हो मानवता को जला रहे हो। जो संबंध ही नहीं बचे तो अकेले रह सकोगे क्या? अकेलेपन की व्यथा सह सकोगे क्या? ये भारत देश है जहाँ हर तरह के फूल खिलते, हर विचार के लोग मिलते। अपनी घृणा को त्याग, इस पावन मही पर स्नेहिल भाषा की गंगा फिर बहा सकते हो क्या? हिंन्दी जो देश की आन,बान शान है, हिन्दी प्रेमियों के गर्व की पहचान है। हिन्दी तो हिंद के जन जन की जान है, इसे बोलने में लेकिन कभी गलत संधान न हो। हिन्दी है प्यार, स्नेह की भाषा, इससे किसी का...
आस रहती है
कविता

आस रहती है

संजय जैन मुंबई ******************** न खुशी की कोई लहर, हमे आगे दिखती है। जीवन और मृत्यु का डर, अब हमें नहीं लगता है। बस एक आस दिल में, सदा हम रखते है। अकाल मृत्यु न हो, इस काल में।। न कर पाते क्रिया कर्म, न बेटा निभा पाते धर्म। अनाथो की तरह से, किया जाता अंतिम क्रियाकर्म। न उनको चैन मिलता है, न परिवारवालो को शांति। मुक्ति पाई भी तो, बिना लोगो के कंधों से।। किये होंगे पूर्वभव में, कुछ उसने बुरे कर्म। तभी इस तरह से, उसे मिली है मुक्ति। इसलिए मैं कहता हूँ, करो अच्छे कर्म तुम। और सार्थक जीवन जीकर, पाओ अपनी मुक्ति को।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे ...
दिनकर
कविता

दिनकर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** साहित्य जगत के "अनल" कवि का, धैर्य जब चक्रवात पाता है। तब "दिनकर "भी "दिनकर" से, दीप्तिमान हो जाता है। "ओज" कवि "रश्मिरथी "पर, जब-जब हुंकार लगाता है। "आत्मा की आंखें " कैसे ना खुलेगी। पत्थर भी पानी हो जाता है। साहित्य जगत के "अनल "कवि का। "भारतीय संस्कृति के चार अध्याय" रच कर, भारत का विश्व में नाम किया। "कुरुक्षेत्र "रच कर। आधुनिक गीता का निर्माण किया। "शुद्ध कविता की खोज" में निकला। "उजली आग का स्वाद" चखा। रेणुका, उर्वशी, रसवंती, यशोधरा का द्वंद गीत लिखा। सपना देख के "सूरज के विवाह" का। "हारे को हरी नाम "भज कर। अंतिम इतिहास रचा। कैसे भूल सकता। साहित्य दिनकर को, उसने जो इतिहास रचा। "अर्धनारीश्वर "की सार्थकता को, साहित्य वन में छोड़ चला। साहित्य भूला नहीं सकता। ज्ञान, पदमभूषण, भूदेव के अधिकारी को। सिमरिया की माटी क...
डर लगता है
कविता

डर लगता है

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सहमा - सहमा सारा शहर लगता है कोई गले से लगाए तो, डर लगता है। आशीष लेने कोई नहीं झुकता यहाँ स्वार्थ के चलते पैरों से, सर लगता है। अपना कहकर धोखा देते लोग यहाँ ऐसा अपनापन सदा, जहर लगता है। इंसान-इंसान को निगल रहा है ऐसे इंसान-इंसान नही, अजगर लगता है। साजिश रच बैठे हैं सब मेरे खिलाफ छपवाएंगे अखबार में, खबर लगता है। साथ पलभर का देते नही लोग यहाँ टांग खींचने हर कोई, तत्पर लगता है। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल...
तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है।
कविता

तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है।

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम्हे अब भूल ही जाऐं तो अच्छा है। ये फासले और भी बढ़ जाऐ तो अच्छा है। तुम्हारी चाहतें तो हमको नही हुई हासिल, तू अब गैर ही बन जाए तो अच्छा है। हमारी तो उम्र गुज़र गई तेरी चाहत में, अब तू इस आग में ना जले तो अच्छा है। बरसों से थी दुआ की तू मेरे साथ रहे, शुक्र है तू अब मेरे करीब नही तो अच्छा है। क्या फर्क पड़ता है तुझे कि मैं कैसा हूँ, तुझे मेरी याद ही ना आये तो अच्छा है। वैसे भी तूने मुझे कहीं का तो छोड़ा नही, तू अब मेरे सामने ही ना आये तो अच्छा है। दिन किये थे खर्च खराब की थी रातें, ऐसा वक्त तुम्हारा ना आये तो अच्छा है। तुमने जो किया वो सरासर गलत था, प्यार का अर्थ कोई धोखा बताए तो अच्छा है। रहता था तेरी मोहब्बत का साया मेरे साथ। अबतो तेरी परछाई भी ना हो तो अच्छा है। मोहब्बत की सज़ा तो जहन्नुम से बत्तर है, अब तो बस मौत ही मिल ज...
आंसू
कविता

आंसू

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिय, आंसुओ को बहने न देना! जब कभी मन भर आये, रख सिर अपनो के कांधे, मन को हल्का कर लेना,.... आंसुओ को बहनें न देना!.... सुख के दिन सदा न रहते, दुख सबके जीवन में आते, दिल को "आह" न कहने देना,.... प्रिय, आंसुओ को बहने न देना!.. जब रिश्तों की दीवार दरकती, साथ सदा कड़वाहट लाती, कटु वचनों को जब्त कर लेना,.... प्रिय, आंसुओ को बहने न देना!..... हृदय जब पीड़ा से भर जाये, और जब सहन न होने पाए, बन पर्वत खडी हो जाना,...... प्रिय, आंसुओ को बहने न देना!.... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...