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पद्य

चाहे जैसी यार देख लो
गीत

चाहे जैसी यार देख लो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** चाहे जैसी यार देख लो , नई पुरानी कलम मिलेगी। जूते सीती रेदासी या, चंवर ढुलाती कलम मिलेगी।। पेबंदों से इज्जत ढकती, ममतामयी लिए दो आंखें। बच्चों के भूखे पेटों में, लुकमें देती कलम मिलेगी।। सीमाओं की रखवाली में, रत कलमो के साथसाथ ही। कभी प्यारमें कभी भक्तिमें, डूब दीवानी कलम मिलेगी।। कामुकताके कीचड़ में गुम, किए हुए श्रंगार कीमती। कोठों की गौरव गाथाएं, तुमको गाती कलम मिलेगी।। जूते सजते शोकेसों में, ये दस्तूरे दुनिया है अब। फुटपाथों पर राह देखती, मेडल वाली कलम मिलेगी।। कुछ आवाज बनी जनताकी, झोपड़ियों से बाहर आकर। कुछ बंगलोंमें मक्खन खाती, नौकरशाही कलम मिलेगी।। कागज पर चलने वाली तो, "अनंत" बिखरी देखोगे तुम। मगर दिलों पर चलने वाली, कम ही दानी कलम मिलेगी।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई ...
दक्ष चालीसा
दोहा

दक्ष चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* ब्रह्म कमल से ऊपजे, प्रजापति महाराज। चार वरण शोभित किया, करता नमन समाज।। जय जय दक्ष प्रजापति राजा। जग हित में करते तुम काजा। वेद यज्ञ के तुम रखवारे। कारज तुमने सबके सारे।।२ दया धरम का पाठ पढाया। जीवन जीनाआप सिखाया।३ प्र से प्रथम जा से जय माना। अति पावन है हमने जाना।४ पूनम गुरू असाड़ी आना। जा दिन को प्रगटे भगवाना।५ पीले पद पादुका सुहाये। देह रतन आभूषण पाये।।६ रंग गुलाबी जामा पाई। पीतांबर धोती मन भाई।।७ कनक मुकुट माथे पर सोहे। हीरा मोती माला मोहे।।८ सौर चक्र भक्ति का दाता। पांच तत्व में रहा समाता।।९ चंदन तिलक भाल लगाई। कृष्ण केश अरु मूंछ सुहाई।१० बायें भुजा कृपाण को धारे। दाहिने हाथ वेद तुम्हारे।११ ब्रह्मा आपन पिता कहाये। विरणी से तुम ब्याह रचाये।१२ पुत्र सहस दस तुमसे आये। कन्या साठ रही हरषाये१३ हरिश्चंद्र ने सत को साधा। प...
सुमिरन
कविता

सुमिरन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जिंदगी का क्या भरोसा ये किसी को पता नहीं मृत्यु अटल सत्य ये सब को पता। स्वस्थ मन तन मीठी वाणी अपनाकर तनाव को मस्तिष्क से परे कर दो पल आराध्य को याद करो। जीवन की दौड़भाग में ये कार्य भी उतना ही आवश्यक जितना माता -पिता की सेवा। क्योंकि इच्छाए अनंत होती हर कोई एक दूसरे से बड़ा बनना चाहता इस होड़ में उम्र गुजरती जाती बाकि रोजी रोटी की जुगाड़ में गुजरती। जीवन को पटरी पर लाना बीमारियों और महँगी शिक्षा से उभरना चाहता इंसान मगर ,फिर तनाव घर बसा लेता मस्तिष्क में। जीवन चक्र में उलझ कर भूल जाता इंसान आराध्य को याद करना किंतु विपत्ति में स्वतः याद आजाते अपने अपने आराध्य जिनका सुमिरन कुछ तो कम करेगा मस्तिष्क में तनाव। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल ...
मन वियोगी
गीत

मन वियोगी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** आधार छंद- सार्ध मनोरम मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ समान्त- अल, पदान्त- रही हूँ, मन वियोगी बर्फ जैसी गल रही हूँ। मैं अँधेरी रात प्यासी ढल रही हूँ।।१ याद में जलने लगा है मन मरुस्थल, वेदना की बन सदी मैं खल रही हूँ।।२ अनमना शृंगार तन को टीसता अब, बिन पिया के ज्वाल सी मैं जल रही हूँ।।३ हो गई गायब हँसी इस आरसी की, रोशनी को मैं विरहिणी सल रही हूँ।।४ छल भरा है मानसूनी प्रेम तेरा, प्रीत के पथ मैं सदा निश्छल रही हूँ।।५ कल्पना की डोर थामे आज 'जीवन', सर्जना के पंथ पर मैं चल रही हूँ।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...
सपने
कविता

सपने

सपना दिल्ली ******************** सपने देखना जितना सरल प्राप्त करना उन्हें कठिन है उतना ही। सपने को पूरा करने में करना पड़ता है, ख़ुद से संघर्ष होना पड़ता है परिवार के ख़िलाफ़ भी कभी ठोकर खाकर गिरना भी पड़ता ख़ुद को हिम्मत देकर, ख़ुद ही संभलना पड़ता। नाकामयाबी पर लोगों के कड़वे वचन, अमृत समझ पीना पड़ता। फिर भी अपने सपने को पूरा करने की मन में आस अभी बाकी है... अपनी कामयाबी दिखाना, अभी बाकी है। मेरी नाकामयाबी के जो क़िस्से सुनाते फिरते हैं, उन्हीं के मुँह से वाहवाही सुनना अभी बाकी है। आँसू  के घूँट भी पीना है... नहीं छोड़ना है, संघर्ष का दामन सपनों को हकीकत में बदलकर कामियाब होकर दिखलाना अभी बाकि है। परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्र...
नारी है नारायणी
कविता

नारी है नारायणी

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** नारी है नारायणी, नारी नर की खान, नारी से ही उपजे नर, ध्रव प्रहलाद समान। घर परिवार का सबका, रखती ध्यान अनन्य गुणों की खान। बंधनों के निबद्ध भावनाओं की स्वतंत्र, अभिव्यक्ति हैं नारी। कटीली नागफनी राहों मे गुलाब है नारी। सोच का आंकडा बनाना, जटिलताएं विवशताऐं, समाज की समस्याएं, रुढ़ी वादी परम्पराऐं, सब निभाती नारी। झरणें की मानिन्द शान्त, कितनी पीड़ाऐं सहती, है नारी। रिश्तों की परिधि में घिरकर सब कुछ, सहती है नारी। दुर्गा लक्ष्मी अहिल्या, सीता सावित्री मीरा, न जाने कितने रुप है नारी। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती...
तो कितना अच्छा होता
कविता

तो कितना अच्छा होता

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** इस संसार में कोई देश ना होता धरती सबकी माता, पिता अंबर होता ब्रह्मांड सारा एक ही परिवार होता सारा मानव एक साथ ही रहता। तो कितना अच्छा होता। इस पृथ्वी पर एक ही धर्म होता ना मंदिर बनता, ना मस्जिद बनता गुरुद्वारा और गिरिजा ना बनता संपूर्ण मानव प्रकृति पूजक होता। तो कितना अच्छा होता। इस धरा पर एक ही समाज होता ना अल्पसंख्यक, ना कोई पिछड़ा होता मनुष्य भी किसी को दुख न देता एक दूसरे का समझ रहा दुखड़ा होता। तो कितना अच्छा होता। मानव-मानव एक ही वर्ग मे रहता ना निम्न, मध्यम, ना उच्च वर्ग होता एक दूसरे का हमेशा सहयोग करता मानव-मानव के प्रति समभाव रखता। तो कितना अच्छा होता। दुनिया में धन दौलत ना होता तो कोई किसी का बेरी ना होता मानव एक दूसरे से घुलमिल रहता दुखों को सभी के मिलकर सहता। तो कितना अच्छा होता। इस संसार में भेदभाव ना होता ...
खामोशी और शब्दों का खेल
कविता

खामोशी और शब्दों का खेल

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खामोश रहे फिर भी कहे, यह अजब खेल होता है, देख-देख इन नजारों को, दर्द में आंखें भिगोता है। दृश्य- १. लुट गया सुहाग अबला, मौन दर्द में वो रहती है, उसकी आंखें जगत को, कष्टों के आंसू कहती है। दृश्य- २. हार गया सैनिक युद्ध में, मौन अपने को छुपाता है, उसके दिल के शब्द ही, खामोश हाल बताता है। दृश्य- ३. मलयुद्ध लड़ा पहलवान, हार गया लगा एक दाव, लोग उसको निहार रहे हैं, खामोशी कहे डूबी नाव। दृश्य- ४. फेल हो गया मेहनत कर, खामोश है लगता है डर, आंखें उसकी बोल रही, कैसे जाऊंगा अपने घर। दृश्य- ५. मृत्यु शैया पर लेट रहा , खड़े परिजन चारों ओर, खामोश सभी कुछ कहे, नहीं दो प्रभु विपत्ति घोर। दृश्य- ६. अमीर स्वाद लेता मिठाई, गरीब की आंखें ललचाई, खामोश रहे फिर भी कहे, हमने बासी रोटी ही खाई। दृश्य- ७. बूढ़े को निकली लाटरी, खुशी के मारे हुआ मौन, धन देख उ...
मेरी बूढ़ी माँ
कविता

मेरी बूढ़ी माँ

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** कभी हँसता खेलता बचपन था उनका भी सखि हर विपता से दूर बिन चिंता के उनके थे लम्हें सखि समय होता है बहुत ही बलवान कभी-कभी सखि वक्त ने ली करवट व्याह हुआ दुल्हन बनी मेरी बूढ़ी माँ ससुराल में पाई गईं सबसे बड़ी छोटे थे देवर और ननदें सखि फिर भी नहीं घबराई घर को लेकर सास संग वो चली सखि फिर वो दिन भी आया उन्हें माँ बनने का सौभाग्य मिला सखि जिसमें उन्होंने ढूँढ़ा अपना बालपन जब माँ बनी मेरी बूढ़ी माँ जीवन के पन्ने पलटे और वो बन गईं चार बच्चों की माँ सखि पालन-पोषण किया सबके व्याह भी रचाए उन्होंने सखि उस पर विधाता को भी दया ना आई उनपर सखि सुहाग छूटा और पिता का साथ छूटा विधवा बनी मेरी बूढ़ी माँ जिन्दगी अब भी वही है नाती, पोते हैं पर कभी-पिता की कमी भी खलती है सखि पिता की पेंशन है हर सुख से लदी है पर तन्हाई उनके साथ है सखि कभी वो (पिता) याद आए तो...
ढिलाई बनी बुराई
कविता

ढिलाई बनी बुराई

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई,कितनों ने अपनाई। समयचाल ने कर्म ज्ञान महिमा समझाई बेफिक्री लापरवाही ने निज सूरत दर्शाई परिणाम साक्षी खुद की कुशल चतुराई बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई। समझदार को इशारा या चपत चिपकाई मानव चले यथेष्ट अथवा हार गई खुदाई भ्रमित परिवार चुकाता जिसकी भरपाई बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई। बिन पैरों चलकर सच बन जाए वरदाई सच सुन पाने का साहस सत्व सुखदाई बुराई रूपी रावण का अंत करे अच्छाई बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई। श्रेष्ठ मार्ग में निरंतर मिलती है कठिनाई प्रभु 'राम-कृष्ण' जीवन झलक प्रभुताई दर द्वार के दामन दहके दारुण हरजाई बचपन की ढिलाई ने जीवन राह बताई सबको ही सिखलाई कितनों ने अपनाई। कहा सुना 'समरथ क...
घर
कविता

घर

संजय जैन मुंबई ******************** न गम का अब साया है, न खुशी का माहौल है। चारो तरफ बस एक, घना सा सन्नाटा है। जो न कुछ कहता है, और न कुछ सुनता है। बस दूर रहने का, इशारा सबको करता है।। हुआ परिवर्तन जीवन में, इस कोरोना काल में। बदल दिए विचारों को, उन रूड़ी वादियों के। जो घरकी महिलाओं को, काम की मशीन समझते थे। और घरके कामो से सदा, अपना मुँह मोड़ते थे।। घर में इतने दिन रहकर, समझ आ गये घरके काम। घर की महिलाओं को कितना होता है काम। जो समयानुसार करती है, और सबको खुश रखती है। पुरुषवर्ग एकही काम करते है, और उसी पर अकड़ते है।। देखकर पत्नी की हालत, खुद शर्मिदा होने लगा। और बटाकर कामों में हाथ, पतिधर्म निभाना शुरू किया। और पत्नी का मुरझाया चेहरा, कमल जैसा खिल उठा। और मुझे सच्चे अर्थों में, घरगृहस्थी समझ आ गया।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं...
मां
कविता

मां

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। मां करती जीवन साकार। बिन तेरे यह जग बेकार। मां ईश्वर का अहसास, जन्नत होता मां का प्यार। मां..... मां बिन प्रभु भी लाचार। चुकता नहीं मां का उपकार। मां खुश होती है, जग में जीवन अपना वार। मां..... मां अनगिनत तेरे प्रकार। तूं ही दुनिया की सरकार। भिन्न नहीं ईश्वर से मां, बनता नहीं बिन मां संसार। मां..... संतान में मां होती संस्कार। मां ही जग की तारनहार। प्रकृति संवारने में होती, ईश्वर को मां की दरकार। मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
आधुनिक मानव
कविता

आधुनिक मानव

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** पूर्व मानव समाज में एकता गाव-गाव घर-घर रहे भाय, दादा बाबा के समय में पिता जी अकेले कमाय। एक बड़ा परिवार का खर्चा पिता जी के कमाने से चल जय। एक दूसरे के दुख-सुख को रहे मिल-जुल बटाय। दस पंद्रह सदस्यों का भोजन एक जगह रहे पकवाय। कृषन सुदामा के बचपन के मित्रता को कभी नहीं दिये भुलाय। द्वारिकाधीश होने पर भी सुदामा को लिए गले लगाय। आधुनिक मानव तुने ये मानव समाज दिये कैसा बनाय। आधुनिक मानव कितना मतलबी हुआ जाय। अपने बड़े-बड़े घर को दिये तुने चिड़िया का घोसला बनाय। बिन स्वार्थ के कोई किसी का हाल-चाल भी न पुछे भाय। आधुनिक मानव तू कितना मतलबी हुआ जाय। माँ-बाप को तूने क्यो दिया भूलाय। जो माँ-बाप तुम्हे बड़ी मेहनत से पढ़ाय। पल भर में तुमने क्यो दिये भूलाय। मानव तुने आधुनिक मानव समाज ये कैसे दिये बनाय। एक-दूसरे मित्र की मित्रता को दिये...
जाता लम्हा
कविता

जाता लम्हा

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** जाता लम्हा मेरे लिये रूक जा कुछ बात मेरे से भी कर जा सदियों से इंतजार किया जिसका चांदनी रात मे अमृत बरसा कर जा दिल का इरादा चाॅद भी जान रहा सितारो की बारात ले कर जा समुद्र की लहरे शहनाई बजा रही मौजे अपनी जगह नृत्य कर जा साहिल ने भी देखो करवट बदली ए पलों आज उनको मिला कर जा कभी के बे कशी में जीये जा रहे है बारात फूलों की मोहन सजाकर जा परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
गाँव की खुशबू
कविता

गाँव की खुशबू

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** गांँव: सोंधी-सोंधी माटी की खुशबू! सुरम्य हरियाली बिखरी चहुँओर भू!! भोर की लाली क फैला है वितान! कंधे पर हल रखकर चल पड़ा किसान!! शीतल सुरभित मंद पवन मन हरसाय! प्रदूषण मुक्त वातावरण अति भाय!! अमराई में कूके विकल कोयलिया ! कामदेव-बाण-सी आम्र मंजरियांँ !! अनगिन सरसिज विहंँस रहे हैं ताल में!! सारा गांँव गुँथा सौहार्द्र-माल में!! खेतों-झूमे शस्य-श्यामल बालियाँ ! खगकुल-कलरव से गुंजित तरु डालियाँ!! पक्षियों का कूजन हर्षित करता हृदय! बैलों की घंटियों की रुनझुन सुखमय!! नाद पर सहलाता होरी बैलों को! चाट रही धेनु मुनिया के पैरों को!! चूल्हे पर पकती रोटियों की महक! सबके मुखड़े पर पुते हर्ष की चमक!! यहांँ सभी उलझन सुलझाती चौपाल! हर बाला राधा हर बालक गोपाल!! मर्द गाँव का सिर पर पगड़ी सजाए! और आंँचल में हर धानी मुस्काए!! लज्जा की लुनाई में नारी लि...
रंगों से रंगी दुनिया
गीत

रंगों से रंगी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी ही नहीं रंगों से रंगी दुनिया को मेरी आँखें ही नहीं ख्वाबों के रंग सजाने को। कौन आएगाआँखों में समाएगा रंगों के रूप को जब दिखायेगा रंगों पे इठलाने वालों डगर मुझे दिखाओं जरा चल सकूँ मै भी अपने पग से रोशनी मुझे दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... याद आएगा, दिलों मे समाएगा मन के मित को पास पाएगा आँखों से देखने वालों नयन मुझे दिलों जरा देख सकूँ मै भी भेदकर इन्द्रधनुष के तीर दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... जान जायेगा, वो दिन आएगा आँखों से बोल के कोई समझाएगा रंगों को खेलने वालों रोशनी मुझे दिलाओं जरा देख सकूँ मै भी खुशियों को आँखों मे रोशनी दे जाओ जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पित...
स्त्री….. तुम हो
कविता

स्त्री….. तुम हो

सुनीता पंचारिया गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) ******************** घर आंगन की दहलीज में, पूजा घर की महक में, तुम हो ....... रसोईघर के स्वाद में, बर्तनों की खन -खनाहट में, तुम हो.... भोर का सूर्य, सांझ का तारा, तुम हो ...... बगिया का महकता फूल, और फूल की खुशबू, तुम हो......... निर्झर झरनों में, नदियों की कल -कल में तुम हो.... बाल मन की किलकारियो में, बुजुर्गों के अंतर्मन में तुम हो .... बहनों का दुलार, भाइयों का रक्षा सूत्र, तुम हो...... ममता की छाँव, और प्यार की आस में तुम हो....... मान मर्यादाओं में, विचारों व संस्कारों में, तुम हो ....... संगीत के सुरों में, वायु के झोंकों में, तुम हो........ होली के रंगों में, विजय की लक्ष्मी, तुम हो..... गौतम की यशोधरा, और राम की सीता, तुम हो...... क्योंकि ....................... मां में ............ बहन में ...... बेटी में ....... बहू में ......... पत्नी में ....
कर्मो का हिसाब है जिदंगी
कविता

कर्मो का हिसाब है जिदंगी

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** कभी-कभी उदासी की, आग है जिदंगी। कभी-कभी खुशियों का, बाग है जिदंगी । हँसता और रूलाता, राग है जिदंगी। खट्टे-मीठे अनुभवों, का स्वाद है जिदंगी। चंद लम्हों को पाने की होड़ है जिदंगी। रिश्तों में, एक खूबसूरत मोड़ है जिदंगी। कोरे कागज पर लिखी, किताब है जिदंगी। प्यार का एक महकता गुलाब है जिंदगी। जागी आंखों का एक ख्वाब है जिंदगी। अपने किऐ हुए, कर्मो का हिसाब है जिदंगी। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंद...
मायाजाल
कविता

मायाजाल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** सूरज आहिस्ता आहिस्ता धरती के आगोश में समा जाता है, हम जमीन से पत्थर उठा कर बेवजह दरिया के सीने पे मारते है देखते है उठती हुई तरंगे जो साहिल से टकराती है तरंगे दिल पर चोट करती है हमआँखों का बांध टूटा पाते है सन्नाटे की बज़्म में न जाने कब तक अपने गीत सुनाते है और न जाने कब तक स्याह आसमा में सितारों के पैबंद लगाते है रात की सिसकियों की महफ़िल शुरू होती है हर निगाह में सवाल होता है हम गुमसुम से क्यो बैठते है मुसलसल कदमो की आहट आती है कोई नज़र नही आता ये कोई राह का जादू है या हमआगत को देख नही पाते है ये हवा का शोर रक्स करते पत्ते ये रात बड़ी अजीब है कोई जरूर हमारे करीब आता है हम है कि उससे दूर भाग जाते है हर रोज सूरज डूबते ही शुरू होती है ये वारदातें हम अपना जिस्म छोड़ कर न जाने क्या क्या खोजते है। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३...
प्रश्न पूछती धरती
कविता

प्रश्न पूछती धरती

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** बहुत दिनों से बन्जर, परती, काई पडी़ हुई | प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई || तुम्हीं बताओ कब तक हमें रुखाई टोंकेगी, मिलने से कब तक हमको परछाईं रोकेगी; कब तक पीछा छोडे़गी, रुसवाई अडी़ हुई || प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई||१|| कभी अँटरिया चूम-चूम बदरा झूमे, बरसे , आखिर कब तक बूँद-बूँद को,प्यासा मन तरसे ; सपने अँखुवायें, अब तो अँगनाई बड़ी हुई || प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई||२|| सुधियों की बैसाखी लेकर जब मिलते हो तुम, सोनजुही की कलियों जैसे, कब खिलते हो तुम; बीच हमारे सौतन-सी तनहाई अडी़ हुई || प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई||३|| तिल-तिल मर-मरके, जीवन दे देके ऊब गई, सागर तक क्या पहुँचे नदिया खु़द में डूब गई; खु़द की, खु़द से कितनी बार लडा़ई बडी़ हुई || प्रश्न पूछती धरती, ले अँगडा़ई खडी़ हुई||४|| ...
ये जो मेरी हिंदी है
कविता

ये जो मेरी हिंदी है

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** ये जो मेरी हिंदी है कितनी प्यारी हिंदी है सजी राष्ट्र के माथे पर, जैसे कोई बिंदी है।। हजार वर्ष में युवा हुई गई षोड़शी सत्रह में पहले पन्ने मुखर हुई, जलती रही विरह में।। बनी विधान में रानी है अलंकृता हुई नागरी है धाराएँ तीन सौ निकली, ४३ से ५१ तक सारी है। पंचमुखी,दस में भाषें है दक्षिण पथ प्रतिगामी है अश्व वेग से दौड़ रही, दुनिया देती सलामी है। मान मिला तो खड़ी हुई सत्रह बोलियाँ जड़ी हुई रही कौरवी अधर अधीरा, राष्ट्र भाव में बढ़ी हुई।। शोभा इसकी बढ़ती है जन आशा में चढ़ती है कुछ दुष्टों की खातिर, इसकी आन बिगड़ती है। साहित्यभूमि में ढली हुई मानक पोषित पली हुई विश्व सोचता सीखे हम, यहाँ दुराशा मिली हुई। ये जो मेरी हिंदी है कितनी प्यारी हिंदी है सजी राष्ट्र के माथे पर, जैसे कोई बिंदी है।। परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा उपनाम ...
हाल, वक़्त की
ग़ज़ल

हाल, वक़्त की

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हाल, वक़्त की हर तैयारी रखते हैं। लोग वही जो ज़िम्मेदारी रखते हैं। रस्ता, दूरी, मुश्किल, मंज़िल सोच-समझ, साथ सफ़र के वो हुशियारी रखते हैं। सुनकर, पढ़कर लोग उन्हें समझें-बूझें, बातें ऐसी अपनी सारी रखते हैं। आते-जाते जीवन के जितने लम्हें, यादें उनकी मीठी-खारी रखते हैं। काम कोई, कब आ जाये तंग मौके पर, सबसे अपनी दुनियादारी रखते हैं। कहते तो हैं वो सब अपने मन की, लेक़िन जैसे बात हमारी रखते हैं। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है...
मैं हूँ अपनी हिन्दी भाषा
कविता

मैं हूँ अपनी हिन्दी भाषा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** अपने मन के उद्गारों को, भावों और अभावों को, पावन कर अपने विचारों को, देकर मेरी अविरल धारा। पूरी कर लो अभिलाषा, मैं हूँ सरल सबल परिभाषा, मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा। अपने बौद्धिक विकास में, मेरे आदान-प्रदान से, अज्ञान-अंधकार को मेटो, मेरा प्रकाश पुंज है सारा। मिटा लो पूरी ज्ञान पिपासा, मैं हूँ सरल सबल परिभाषा, मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा। जब करोगे मेरा सम्म्मन, जितना दोगे मुझको मान। अम्बर सा प्रसारित होगा, जग में अपने देश का ज्ञान। पूरण करूँ सारी आकांक्षा, मैं हूँ सरल सबल परिभाषा, मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा। बंगाली,पंजाबी हो या सिंधी, सबके भाल की मैं हूँ बिंदी। संस्कृत सब बोलियों की माता, मैं बनी सबकी भाग्य विधाता। अब ना करो मेरी उपेक्षा, मैं हूँ सरल सबल परिभाषा, मैं हूँ अपनी हिंदी भाषा। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम...
हिंदी भाषा
कविता

हिंदी भाषा

संजय जैन मुंबई ******************** हिंदी ने बदल दी, प्यार की परिभाषा। सब कहने लगे मुझे प्यार हो गया। कहना भूल गए, आई लव यू। अब कहते है मुझसे प्यार करोगी। कितना कुछ बदल दिया, हिंदी की शब्दावली ने। और कितना बदलोगें, अपने आप को तुम। हिंदी से सोहरत मिली, मिला हिंदी से ज्ञान। तभी बन पाया, एक लेखक महान। अब कैसे छोड़ दू, इस प्यारी भाषा को। ह्रदय स्पर्श कर लेती, जब कहते है आप शब्द। हर शब्द अगल अलग, अर्थ निकलता है। इसलिए साहित्यकारों को, हिंदी भाषा बहुत भाती है। हर तरह के गीत छंद, और लेख लिखे जाते है। जो लोगो के दिल को छूकर, हृदय में बस जाते है। और हिंदी गीतों को, मन ही मन गुन गुनते है। और हिंदी को अपनी, मातृभाषा कहते है। इसलिए हिंदी को राष्ट्रभाषा भी कहते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी ...
कन्या भ्रूण हत्या
कविता

कन्या भ्रूण हत्या

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** कन्या भ्रूण के हत्यारे नरपिशाचों के विरुद्ध धिक्कारती स्वरचित रचना गायत्री, सावित्री, दारा, गार्गी, उपाला कन्या थीं। गंगा, गौरा, सिया-जानकी वंश वृद्धिका कन्या थीं। प्रजापति की वीर पुत्रियाँ प्रकटे जिनसे अस्त्र सहस्त्र। रण में विजयी राम बने वो शस्त्र जननी भी कन्या थीं। शक्ति के मंदिर में जाकर शक्ति को दुत्कार रहा। मानव चाहे पुत्र जन्म नित स्वारथ यूँ चित्कार रहा। जिससे चाहे जने पुत्र ही वह माता भी कन्या है। गर्भ में कन्या मार रही जो वह 'दुष्टा' भी कन्या है। दानव बनता मानव देखो निरत अजन्मी मार रहा। वधु चाहिए बेटे ख़ातिर इतना जबकि जान रहा। एक दिन वधु भी नहीं मिलेगी गर तेरी यह नीति रही। विधुर सरीखे जीवन होगा सुनले मेरी खरी-खरी। ढूढ़ने जाता जिस कन्या को मैया के नवरातों। उन दुर्गा का दोषी है जगता जिनके जगरातों में। न्यायशील प्रकृति शास्वत ...