तुम अजेय हो
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
इन्दौर (मध्य प्रदेश)
********************
सुनो! स्वयं के विश्वासों पर, ही जगती में टिक पाओगे।
गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है, यही अन्यथा मिट जाओगे।।
साहस - शुचिता से भूषित तुम, धरती माँ के दिव्य पुत्र हो।
घबराहट से परे शौर्य की, सन्तानों के तुम सुपुत्र हो।।
तुम अतुल्य अनुपम अजेय हो, बुद्धि वीरता के स्वामी हो।
स्वर्ण पिंजरों के बन्धन से, मोह मुक्ति के पथगामी हो।।
चलते चलो रुको मत समझो, जीवटता का यह जुड़ाव है।
संघर्षों में मिली विफलता, मूल सफलता का पड़ाव है।।
करते हैं संघर्ष वही बस, पा पाते हैं मंजिल पूरी।
भीरु और आलसी जीव की, रहती हर कामना अधूरी।।
भरो आत्मविश्वास स्वयं में, स्वयं शक्ति अवतरण करेगी।
बैशाखी पर टिके रहे तो, कुण्ठित आशा वरण करेगी।।
घोर निराशा भरी कलह का, जीवन भी क्या जीवन जीना ।
तज कर निर्मल नीर नदी का, गन्दी नाली...