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पद्य

तामस की कारा
गीतिका

तामस की कारा

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** खपी पीढ़ियाँ सपनों में ही, हुआ न उजियारा। कब तक हो भिनसारा भाई, कब तक भिनसारा।। तेल चुका ढिबरी का सारा, बाती राख हुई। आसमान तक अँधियारे की, हँसमुख साख हुई।। सधन हुई है दिन-प्रतिदिन ही, तामस की कारा।। नकबज़नी में रोटी के, नख, घिस-घिस टूट गए। पुस्तक का घर मावस के कुछ, गुंडे लूट गए।। चौराहों पर बेकारी का, चीख रहा नारा।। श्वास-श्वास पर पूरब के हैं, प्रतिबंधित पहरे। जब-जब सोचे निकले बाहर, पाँव धसे गहरे।। खर्च हो गया भूख-प्यास पर, दम-खम था सारा।। स्वर्ण-श्रंखला में बँध घंटे, भूल गए बजना। आठ पहर विरुदावलियाँ ही, उनको जो भजना।। रुद्ध हुई गंगा यमुना की, समरस जलधारा।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आयीं माँ दुर्गे हमारे द्वार
भजन

आयीं माँ दुर्गे हमारे द्वार

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** डोली पे होके माँ सवार आयीं माँ दुर्गा हमारे द्वार धूप दीप और नैवेद्य चढाऊँ पावन पूत कलश बिठाऊँ आरती उतारूँ मैं बारम्बार आयीं माँ दुर्गा हमारे द्वार स्वागत में माँ के गीत गाऊँ धुन पे गरबा नाच नचाऊँ झमक झूमूँ होके मैं तैयार आयीं माँ दुर्गा हमारे द्वार दु:ख हरण हित तू माँ आयीं दुष्ट दलन हित पाँव बढ़ायी पहनाऊँ तुझे मैं विजयी हार आयीं माँ दुर्गा हमारे द्वार। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भाषा में) सम्मान : नव सृजन संस्था द्वारा ...
हिंदी से लगाव
कविता

हिंदी से लगाव

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मैं रोज हिंदी में बोलता हूँ रोज हिंदी के नए शब्द ही लिखता हूँ रोज में हिंदी ही रुचि से पढ़ता हूँ अनुवाद सिर्फ हिंदी में करता हूँ गद्य पद्य हिंदी में रोज लिखता हूँ हिंदी भाषा का ज्ञान लिखने पढ़ने में रोज व्यवहारित करता हूँ लेखकों कवियों रचनाकारो की रोज नवीन पुरानी अनमोल पुस्तकें सुबह से शाम फुर्सत में रोज संग्रह करता हूँ फुर्सत में रुचिकर रचित ज्ञान अन्तर्मन से पढ़ लेता हूँ रोज नए नए रोचक ज्ञान की खुराक पढ़कर लिखकर अनमोल ज्ञान से तृप्त हो लेता हूँ हिंदी की पुस्तकों का भरपूर खजाना उनका एक-एक पन्ना मन मस्तिष्क में भर लेता हूँ हिंदी की पुस्तकों से रोज असीमित ज्ञान के भंडार को रोज प्रेम से भर लेता हूँ यही है पूंजी सँजोकर रोज सुरक्षित रखता हूँ हिंदी की गहराई में खुशियों को ही नहीं सबके बीच हिंदी ज...
नवरात्रि कलश स्थापना
कविता

नवरात्रि कलश स्थापना

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सबसे पहले साफ स्थान से मिट्टी लायें, अब गंगाजल छिड़कर उसे पवित्र बनायें। मिट्टी को चौड़े मुंह वाले बर्तन में रखें, तत्पश्चात उसमें जौ या सप्तधान्य बोएं। उसके ऊपर कलश में जल भरकर रखें, कलश के ऊपरी भाग में कलावा बांधें। कलश जल में लौंग, हल्दी व सुपारी डालें, दूर्वा और रुपए का सिक्का डालना न भूलें। कलश के ऊपर आम या अशोक के पल्लव को रखें, अब एक नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर रखें। नारियल को कलश के ऊपर श्रद्धाभाव से रखें, इस पर माता की चुन्नी और कलावा जरूर बांधे। मातारानी की कृपा से कलश स्थापना सफलतापूर्वक हो गई, फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पूजा की बारी आ गई। नौ दिनों तक मां दुर्गा से संबंधित मंत्रों का जाप करना है, श्रध्दा-भक्ति के साथ उनकी विधि-विधान से पूजा करना है।...
पथ सभी अवरुद्ध हैं
गीत

पथ सभी अवरुद्ध हैं

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** पथ सभी अवरुद्ध हैं अब, नेत्र भी देते छलावे। कुंडली भी मौन बैठी, झूठ निकले आज दावे।। रक्त भी पानी हुआ है, अस्थि पंजर आज तन भी। पाश यम का बाँधता है, रूह काँपे और मन भी।। प्राण-पंछी उड़ गए हैं, कर चुके देखो दिखावे। मौसमी बदलाव लाया, साथ जहरीली हवाएँ। घोंसले सब लुट गए अब, आसुरी ये आपदाएँ।। सिर शनीचर है चढ़ा भी, कौन अब आकर बचावे। मौत से परिणय हुआ है, नृत्य तांडव हो रहा है। ढेर लाशों के लगे हैं, श्वान बैठा रो रहा है।। सिर झुका झींगुर चले अब, दादुरों के हैं बुलावे।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति...
विजयादशमी
कविता

विजयादशमी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को। आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को। अन्तर्मन में दीप जला, सत्य विजयभव कहने को। आना सद् चरित्र करने, मैं आहुत करूं दशहरे को। असुरों सा संहार करें, काम,क्रोध,मद, लोभ को। वंचक कपटी मन से, प्रभु दूर करें मनोरोग को। धर्म पथिक रहूं सदा, नमन सीता के सम्मान को। कलयुग का केवट करता, नित वंदन श्रीराम को। असत्य पर सत्य की जीत, दोहराना इतिहास को। कलयुग कर दो त्रेता को, अवध मेरे हिंदुस्तान को। हर घर याद दिला दो, इंसा भूल गए भगवान को। मन मंदिर में मानव देखो, क्यूं पूजता लंकेश को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
ईश्वर स्वयं सृष्टि संचालक
कविता

ईश्वर स्वयं सृष्टि संचालक

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जो सर्वज्ञ सर्वव्यापी है, स्वयं सृष्टि निर्माता। पालक संहारक दुनिया का, ईश्वर है कहलाता। दिव्य अलौकिक शक्तिपुंज जो, जग का पालन करता। ईश्वर स्वयं सृष्टि संचालक, सुख करता दुख हरता। करते हैं उद्धार आप ही, आप कर्म फल दाता। खेबनहार आप भक्तों के, सब जग शीश झुकाता। तारक ज्ञान प्रदाता ईश्वर, सबका दुख हैं हरते। सकल जगत के दुख विदीर्ण कर, सुखमय जीवन करते। ईश्वर अंश जीव अविनाशी, तुलसीदास बताते। सभी जीव निज देह त्याग कर, धाम उन्हीं के जाते। अपनी सृष्टि देखकर ईश्वर, मन ही मन मुस्काते। कर्मों में रत देख मनुज पर, कृपा दृष्टि बरसाते। निर्मल मन वाले मानव से, प्रभु प्रसीद रहते हैं। स्वयं जगत के ईश्वर ऐसा, श्री मुख से कहते हैं। विनती परमपिता ईश्वर से, चरण शरण पा जाऊँ। शुभाशीष पाकर ईश्वर ...
किस कीमत पर
कविता

किस कीमत पर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उसने कहा कि देखो अवाम को उनसे कितना प्यार है, जरा उनकी कड़ी मेहनत तो देखो चारों तरफ बहार ही बहार है, दरअसल ठाठ था राजसी राजाओं का, जबकि जोर था हर ओर फिजाओं का, खाने को तरसते लोग, औरों पर बरसते लोग, गुजर रही थी जिंदगी दान के दाने पर, पहुंच जा रहे कई लोग मौत के मुहाने पर, छा गई है भुखमरी की घटा घनघोर, बढ़ गए हैं गरीब कई कई करोड़, बाहर ढिंढोरची पीट रहा था ढिंढोरा कर दी है हमने गरीबी दूर, नहीं नजर आएगा कोई भूखा मजबूर, कोई पास आने को तैयार नहीं, परिस्थितियां उन्हें स्वीकार नहीं, पर है हल्ला सब तरफ कि जोर शोर से बज रहा है डंका, मत रखो मन में कोई सुबहा शंका, धड़ल्ले से चल रहा रोज स्तुति गान, बांट रहे देशभक्ति पर रोज रोज ज्ञान, नजरों को बांध दिखा रहा जादू जादूगर, बो रहे हो जहर बताओ क...
पितृ नमः
गीत

पितृ नमः

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आशीषें देने धरती पर, पितर पहुँच ही जाते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते। पितर देव रूपों में होते, सदा भला ही करते। आशीषों से सदा हमारा, पल में घर वो भरते।। साथ सदा ही देखो अपने, शुभ-मंगल ले आते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते।। क्वार मास का पखवाड़ा तो, पितरों को है लाता। श्रद्धा और नेह के सँग में, पितरों से मिलवाता।। पितर हमारे कोमल दिल के, बस मंगल बरसाते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते।। रीति-नीति कहती है हमसे, हम चोखे हो जाएँ। भाव सँजो लें उर में अपने, श्रद्धा के गुण गाएँ।। जीवन का हर क्षण महकेगा, शुभ के पल हैं आते। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान से, पितर तृप्त हो जाते।। तर्पण-अर्पण,पूजा-वंदन, अभिनंदन की बेला। देवलोक के पितर धरा पर, आकर भरते मेला।। ख़...
स्वछंद पंछी की तरह
कविता

स्वछंद पंछी की तरह

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* कितनी उन्मुक्तता है स्वतंत्र विचरण करते हैं। सम्पूर्ण धरा और गगन के बीच ना आने का व्यय ना ही वाहन शुल्क देना है आय व्यय का ब्यौरा पर क्या इनके ह्रदय में शांति की अनुभूति है ? संभवत: नहीं क्योंकि शांति होती तो इधर उधर विचरण करने की आवश्यकता नहीं होती। तो फिर इस स्वच्छंदता रूपी स्वतन्त्रता का परिणाम क्या है ? फिर भी सभी उन्मुक्त सभी स्वछंद रहने को आतुर रहते हैं पंछी की तरह परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
ऊपरी कमाई का जाल
हास्य

ऊपरी कमाई का जाल

राकेश कुमार दास पिपिलि, पुरी ******************** (१) आओ आज थोड़ा ऊपरी करें। धीरे-धीरे खेल की शुरुआत करें, सीसीटीवी की नज़रों से पहले करें, ईमान को पीछे छोड़ आगे बढ़ें, आओ आज थोड़ा ऊपरी करें। (२) घर के लिए एक चमचमाती कार लाएँ, सुख-सुविधा के खातिर ए.सी. लगाएँ, दूसरों के हक़ को चुपचाप दबाएँ, आओ आज थोड़ा ऊपरी करें। (३) शादी को धूमधाम से सजाएँ, मटन भोज में सबको बुलाएँ, धन-दौलत से रुतबा दिखाएँ, आओ आज थोड़ा ऊपरी करें। (४) सरकारी–ग़ैरसरकारी सब जगह चलाएँ, तनख़्वाह पर हाथ कभी न लगाएँ, ऊपर से रिश्वत की थैली सजाएँ, आओ आज थोड़ा ऊपरी करें। (५) निर्दोष, अशिक्षितों से खर्च करवाएँ, हर काम में अपना लाभ ही पाएँ, लालच की सीढ़ी पर ऊपर चढ़ जाएँ, आओ आज थोड़ा ऊपरी करें। (६) ऊपरी कमाई का जाल बुनाएँ, अपने बच्चों को भी यही राह दिखाएँ, नीति–सत्य को पीछे छोड़ जाएँ, आओ आज थ...
तुम्हारी सदा हो जय जयकार
भजन

तुम्हारी सदा हो जय जयकार

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अम्बे, जगदंबे, जग जननी तुम जग की हो पालनहार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … जय माँ लक्ष्मी, सरस्वती तुम सब के जीवन का आधार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … नौ रुपों की महारानी हो तुम तुम्हारी महिमा अपरंपार। बड़े बड़े असुरों का तुमने कर दिया संहार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … नौ तत्वों की रचना तुम्हारी सुन्दर ये संसार। जलचर, थलचर, नभचर सब मे तुम्हारी शक्ति का संचार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … नौ रात्रि सा प्यारा न जग मे दूजा है त्योहार। भक्ति रस मे डूबे जग सारा ख़ुशियाँ मिले अपार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … जगमग दीप जलाएँ सब बाँधें बंदनवार। मंगल गीत तुम्हारे गाएँ माँ आओ हमारे द्वार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … जय महा काली, शेरावाली सब पर करो उपकार। अपने भक्तों को दर्शन दे दो माँ सुनलो सब की पुकार। त...
दुर्गा दाई
आंचलिक बोली, कविता

दुर्गा दाई

प्रीतम कुमार साहू 'गुरुजी' लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सगा बरोबर तँय ह दाई आथस चइत कुंवार म चउँक पुरा के दियना जलाएँव गली खोर दुवार म !! नव दिन बर तँय आथस दाई करके बघवा सवारी संझा बिहिनिया तोर सेवा गावंय जम्मों नर-नारी !! कुंवार महीना बड़ मन भावन पाख़ हवय अंजोरी जग-मग जग-मग जोत जलत हे दाई तोर दुवारी !! नाक म सुग्घर नथली सोहे अउ पऊरी पैजनिया माथ म चमकत तोर टिकली, कनिहा म करधनिया !! तँय दुर्गा तँय काली कहावस तही हर खप्पर धारी दानव मन के नास करइया जय हो दुर्गा महतारी !! हाथ जोर के बिनती करत हँव सुन ले मोर महमाई भगतन मन के भाग जगादेय झोली ल भर दे दाई !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू, गुरुजी (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अलविदा ना कहना
कविता

अलविदा ना कहना

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** सारी दुनिया है फ़िदा, इस आँख में आँसू मेरे है। मत कहो तुम अलविदा, इस आँख में आँसू मेरे हैं॥ काम तेरा नेक था और, नाम तेरा नेक था। सच कहूँ तो लाख में तू ही, अनूठा एक था॥ यह जगत तेरा दीवाना, प्यार तुमसे कर रहा। ज़िंदगी भर साथ रह, इकरार तुझसे कर रहा॥ आपके जाने से सच में, कोई मेरे साथ ना। वो चाय चुस्की न होगी, नाश्ते की बात ना॥ प्रेम दिल से है मेरा, इस प्रेम को झुक जाइए। कह रहे हैं हम आपसे, श्री मान जी रूक जाइए॥ दिल मेरा ख़ुशहाल होगा, हर खुशी आ जाएगी। ज्ञान की सुंदर महक, दिल में हमारे आयेगी॥ मत होइए सबसे विदा, इस आँख में आँसू मेरे। मत कहो तुम अलविदा, इस आँख में आँसू मेरे॥ परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। ...
प्रारब्ध, पुरूषार्थ, भाग्य
कविता

प्रारब्ध, पुरूषार्थ, भाग्य

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मन ने मन से पूछा कौन पैदा होता है अपने साथ कामयाबी ले कर प्रत्युत्तर भी दिया मन ने सही है ... कोई पैदा नहीं होता मगर ... पैदा होता है वो अपने जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ कर्मों का प्रारब्ध लेकर ... मन ने फिर कहा क्यों उलझाते हो शब्दों के मकड़जाल में अनेकों को देखा है शून्य है परिश्रम के नाम पर मगर ... पाते हैं ... सुख-सुविधा अपरंपार अकूत धन भंडार तब ... मन ने समझाया अपने ही मन को यही कहलाता है पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का खेल कहा जाता है प्रारब्ध ... मन अशांत व्याप्त थी जटिल कुंठा घूम रहे अनेकों प्रश्न फिर मनु क्यों करे पुरूषार्थ तुरंत उत्तर आया आवश्यक है पुरूषार्थ अन्यथा क्षीण हो जाता है प्रारब्ध सात्विक हो पुरूषार्थ तो सोने पर सुहागा प्रारब्ध गुणित हो जाता है और यदि...
मेरी बूढ़ी अम्माँ
कविता

मेरी बूढ़ी अम्माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सुघड़ता और संस्कारों की बुलन्द इमारत हैं बूढ़ी अम्मा, भोजन, पापड़ और अचार बनाती, बिना नाप जोख के अद्भुत स्वाद, दिलाती। जो घर के सारे काम, एक साथ करते हुए, सारे प्रबंधन को मात देती उनके हर काम में सुघड़ता दिखती! फिर भी नहीं कही गई कोई कहानी कोई किस्से उनके लिए, जिसने अपने हाथों के स्वाद से, अपने व्यवहार से, पीढ़ी-दर-पीढ़ी को तृप्त किया और सँवारा है ! बल्कि उन बूढ़ी होती काया पर आधुनिक न होने का प्रश्न चिन्ह लगाया है !! सभी को खुश रखना, सदा सबका आभार जताते रहने में सारी उम्र बिता दी ! समय ऐसा भी आया नहीं कोई और अम्मा, उन बूढ़ी अम्मा के पद चिन्हों को ग्रहण करना चाहती, नहीं आत्मसात करना चाहती उनके सद्गुण भरे आचरण को, क्यूँ की इनकी योग्यता की कोई डिग्री, कोई प्रमाणपत्र नही...
जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही
ग़ज़ल

जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ********************         २१२२ २१२२ २१२२ २१२ जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही हंसते गाते ही गुजर जाए जरूरी तो नही मुश्किलों के साथ इसका है पुराना राब्ता रात ना हो दिन ही दिन आए जरूरी तो नही उम्र भर का साथ मिल पाना तो मुश्किल है बहुत अब वफा हर वक़्त मिल जाए जरूरी तो नही रात दिन में ही बदल जाते हैं रिश्ते आजकल जिंदगी भर को निभा जाए जरूरी तो नही दर्द अपना दर ब दर गाना नही अच्छा जरा हर समय पर हँस के दिखलाएजरूरी तो नही कब से आंखों में समंदर सा है इक ठहरा हुआ इस वजह भीगी नजर आए जरूरी तो नही कश्मकश जद्दोजहद में कैसे होती है बसर चीख कर ये बात बतलाए जरुरी तो नही आदमी जिंदा है गर तो दर्द भी होगा उसे मुर्दा कुछ अहसास कर पाए जरूरी तो नही परिचय :- मुकेश सिंघानिया निवासी : चाम्पा (छत्तीसगढ़) शपथ : मेरी कविताएँ और गज...
तू है जगत पिता
भजन

तू है जगत पिता

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तू है जगत पिता तो मैं भी तेरा ही वंशज हूं। तूने करुणा बरसाई तो जीवों में अग्रज हूं। तू है जगत पिता तो मैं भी तेरा ही वंशज हूं। मैं संसारी जग में आया जगमाया में डूबा, मैं मेरा में सीमित रहकर जीवन से था ऊबा। तेरी सेवा जब पाई थोड़ी जीवन में रस आया, सुमिरन का जब जाम पिया तो जग का कुछ ना भाया। तेरे सृजन के रस में डूबा भंवरा हूं, पंकज हूं। तू है जगत पिता तो मैं भी तेरा ही वंशज हूं। तेरी कथा सुनना-सुनवाना ही अब मुझको भाता, तेरा नाम जपता, जपवाता इसमें ही दिन जाता। जितनी सांसे हो खाते में निज सेवा में रखना, तेरे नाम से तृप्त आत्मा अब जग का क्या चखना। राह का एक कंकड़ था, अब तेरे चरणों की रज हूं। तू है जगत पिता तो मैं भी तेरा ही वंशज हूं। तेरे भक्त गाली भी दे तो तेरा प्रसाद ही समझूं , मान और अपमान ...
हिंदी की महिमा
कविता

हिंदी की महिमा

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** हिंदी आन है, हिंदी मान है, हिंदी, हिंद की पहचान है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी शब्द है, हिंदी प्रबंध है, हिंदी वर्ण की व्याख्या है। यह देवनागरी की जान है।। हिंदी प्रीत है, मनमीत है , हिंदी सात सुरों का संगीत है, हिंदी युगों-युगों का गीत है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी धरती है, हिंदी आकाश है, हिंदी चांद है, हिंदी चकोर है, हिंदी सूरज का अखंड प्रकाश है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी गंगा है, हिंदी यमुना है, हिंदी नर्मदा की जलधार है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी प्राण है, हिंदी त्राण है, हिंदी हर जन की पालनहार है, हिंदी रोम-रोम से होता आत्मसार है, यह देवनागरी की जान है।। विष्णु है, हिंदी राम है, हिंदी कृष्ण का भागवत ज्ञान है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी ओम है, हिंदी ओमकार है, ...
खिसियानी बिल्ली
कविता

खिसियानी बिल्ली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कर नहीं पा रहा कुछ भी छोटा है तो छोटा ही सोचे, हंस-हंस कर लोग बोले खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बहुत उम्मीद पाल, जल्द बदल सकता है हाल सोच नेताजी ने चुनाव लड़ा, होकर निर्दलीय खड़ा, घोषणाएं बड़ा-बड़ा, सेवा की आस में चुनाव में पड़ा, पर ये क्या किस्मत निकला सड़ा, जमानत जप्त करा शर्म से गड़ा, सात पीढ़ी के लिए तो थे सोचे, पर खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बड़े साहब से थी मधुर संबंध की चाह, शायद निकल आये तरक्की की राह, चापलूसी में गुजर रही जिंदगी पर किस्मत निकला श्याह, साहब दोस्ती न सका निबाह, असमंजस है अब किस तरीके से साहब का मोर पंख खोंचे, खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बादलों से आलिंगन करते पर्वतों की श्रृंखला है अपार। ऊंचे ऊंचे पर्वतो के मध्य श्वेत झरनों की धार। ऊँचे पर्वतो से यात्रा करके मिलते हैं धरती से आज। हर पल मे बरसते देखो एक पल मै ओझल हो जाते, अपने आंचल में है समेटे बादलो का बिखर रहा है जाल। हरियाली अपने यौवन पर फल-फूल रहे हैं झाड़। कभी गरजते कभी बरसते कभी मौन हो जाते आप। देख नजारा प्रकृति का टकटकी लगाये अखियां आज। देखो दृश्य ओझल ना हो जाये स्वर्ग उतरा धरती पर आज। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्...
बांके बिहारी
स्तुति

बांके बिहारी

डॉ. राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** किंचित चिंतन चीते मन में प्रभु, राही को त्राहि हुए सब ग्रामा। भय क्लेश सबे दुनिया अरु, जन-जन आश तुम्ही हो श्यामा।। सीस शिखी उर-बाहु प्रलंब, कमल नैन, बंकिम दृग भौंहें। कर मुरली लकुटी धरी लाठी, ग्वाल बाल गौ सुन्दर सोंहैं।। मायापति के माया को न जाने, खरारी नित नव नाच नचावें। आन बसों "राधे" मन मंदिर, ग्वालिन यमुना तट बाट जोरावें।। राह खरो वहशी दरिंदा एक, गोपिन व्याकुल हुए परमात्मा। कहत "राधे" बांके बिहारी को नाम, त्राण मिटाओ वसुधा विश्वात्मा।। परिचय :-  डॉ. राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सम्मान : कोरबा मितान सम्मान २०२१ (समाजिक चेतना एवं सद्भाव के क्षेत्र में) शिक्षा : हिन्दी साहित्य (स्नातकोत्तर) अतिरिक्त : रेल प...
भारत का कीर्ति नाद
छंद

भारत का कीर्ति नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ऋषि मुनियों का देश यहाँ पर मेघ सुधा बरसाते। स्वर्ग त्याग देवता कुटी में बसने को ललचाते।। कवियों की यह धरा जहाँ भावना अछल उठती है। यहाँ सृजन के लिए स्वयं लेखनी मचल उठती है।। अविनाशी वह ब्रह्म यहाँ नव लीलाएँ रचता है। ले-ले कर अवतार स्वयं माँ की गोदी भरता है।। नदियाँ गातीं गीत यहाँ हर झरना भजन सुनाता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत माता।।१।। जिसके बच्चे बचपन से ही रण रचना करते हैं। जबड़े पकड़ बबर सिंहों के दाँत गिना करते हैं।। कच्ची कली खेलती हँसती मर्दानी बन जाती। अबला बाला रण में झाँसी की रानी बन जाती।। मरे हुए पति को जीवित करने को अड़ जातीं हैं। यहाँ नारियाँ सत के बल पर यम से भिड़ जातीं हैं।। यहाँ प्रकृति की हंँसी देखकर मुकुलित मन इतराता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत म...
महत्व सिंदूर का
छंद

महत्व सिंदूर का

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** महत्व सिंदूर का समझ वो सके न कभी, सैलानियों का पूछ धर्म चुन-चुन मार रहे। बार बार खाके मार अक्ल न आई कभी, आतंकी ठिकानो में अब ढूंढ ढूंढ मार रहे। प्रहार सिंदूर का वो सह न सके कभी भी, नंगे, भूखे हरकतें अब, कायराना कर रहे। अब तक बच रहे, अब बच न पाएंगे कभी, सिंदूर का बदला "श्याम" सिंदूर से कर रहे। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - कोदरिया महू (म.प्र.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
कल नही आज
कविता

कल नही आज

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कल नही आज आज नही अभी अभी नही इसी क्षण भावो के सागर की लहरे कूल से टकराती स्याही बन लेखनी मे उतरती कागज पर कुछ लिखती लेखनी यही है हाँ यही है कवि की कविता की कहानी। सूरज की किरणो से आगे कवि हेदय भाव भावो के बवन्ङर को नव रसो का स्पर्श कविता को श्रृंगारित करता गाता जाता कवि सरिता के कूल किनारे वीर गान आनन्द गान गाता जाता अपनी मस्ती मे कुछ हंसाता कुछ रूलाता जाता। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवा...