मुझे अफसौस रहेगा
गगन खरे क्षितिज
कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश)
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वक़्त कभी रूकता नहीं,
समय के चक्र को खुद
आदमी ने अवरूद्ध कर दिया
साथ ही मौत का जिम्मेदार हैं,
मौत के सौदागर बन गये
हवाओं में ज़हर नहीं घुला,
पत्थरों के जंगल आज की समस्या है,
वन उपवन, जल-थल उजाड़कर
अब आंसू बहा रहा है।
फिर उसने आकर कहा मौत हूं मैं
पहचाना हमदम हूं तेरी,
तेरी जिज्ञासा को जानकर
आई हूं करीब तेरे आदमी
आदमी का दुश्मन है,
ज़िन्दगी का उसके लिए कोई
मायने नहीं वहां ईश्वर को
झुठलाने लगा है,
उसकी बनाई सृष्टि को
अणु परमाणु हथियारों से
तबाही मचाने वाला है।
अगर समय रहते नहीं जागा
तो महाप्रलय आयेगा
सब नष्ट हो जायेगा।
मौत हमेशा समय के चक्र
साथ होगी परन्तु जिन्दगी नहीं
फिर कई युगों तक मुझे जिंदगी के
आने का इंतजार रहेगा
मुझे कभी दोष न देना
मुझे दुःख है पत्थर दिल नहीं गगन
इंसानौं की तबाही याद रहेगी
हम दर्द साथी में आंसू बहाती रह...
























