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कविता

खौफ
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खौफ

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** भाग दौड़ की जिंदगी में ठहराव सा आ गया, ऐसा लग रहा जैसे नया युग आ गया। गली चौबारा शांत सा दिलों पे तूफ़ान सा आ गया, रह रहकर इंसान भय पे अपने पर आ गया। न किसी की निंदा न कोई पर चिंता, दूरियां बना रहा मानव घर को बनाकर पिंजरा। सोना, चांदी, धन कोई काम नहीं आ रहा, थोड़े में गुजारा करने की हुनर सा आ रहा। अनहोनी आशंका से घिरता हुआ मन, अब जीवन पाने कि आस में मर रहा है इंसान। खूबसूरत जिंदगी के सपनों के झरोंखे ने प्रकृति ने भी क्या खूब नजारे दिखाए है। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak1...
बादलों के उस पार
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बादलों के उस पार

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बादलों के उस पार जो उजाला है वो मुझे चाहिए घिर गई है मेरी बस्ती गहन अंधकार में। कतरा कतरा रोशनी मुझे चाहिए। जो प्रज्वलित है भीतर हमारे वो ज्योतिर्मय भाव मुझे चाहिए। झर रही नयनो से आशा की किरणें स्पंदन सांसो में होता रहे जगमगाता जीवनदीप मुझे चाहिए। घर की देहरी पर खिंच रखी है लक्षमण रेखा उस जीवन रेखा के ऊपर प्रकाशपुंज रूप "दीपक" मुझे चाहिए। मुझे चाहिए। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
स्वर्णिम अतीत
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स्वर्णिम अतीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सुखी थे घर-घर सब परिवार! लुटाते थे आपस में प्यार! नहीं थी मध्य उच्च दीवार! जुड़े था संबंधों के तार! प्रदूषण मुक्त सभी आवास! दूर होकर थे कितने पास! उरों मैं थी आलोकित आस! हमेशा रहता था विश्वास! शान्ति शाला के थे सब छात्र! मनुज थे सब आदर के पात्र! परिश्रम करते थे दिन-रात्र! बुरे व्यक्ति थे कुछ ही मात्र! घरों में पशुपालन था आम! बहुत कम करते थे आराम! शुद्ध थे दूध-दही हर ग्राम! नहीं था मिलावटों का काम! लगे अब सब सपनों-सी बात! कहाँ हैं वे स्वर्णिम दिन-रात! बहुत बदले से है हालात! समय लाया है झंझावात! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•...
कसक
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कसक

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** अन्जान डगर थी स्याह था अन्धेरा, यह कदम लड़खडा़ते बढ़ते चले गये। लगती रही ठोकरे पाव घायल हो गये, अन्जानी तलाश मे खोते चले गये। मृगमरीचिका के जैसे बजे ख्वाव अक्सर, बढ़े जो कदम तो खोते चले गये। सजी न कोई महफ़िल बजे न साथ कोई, बिन साथ के ही मदहोश होते चले गये। पग में बंधे न नूपुर ने गीत गुनगुनाया , अनजाने में पांव यूं ही थिरकते चले गये। मिलन की ललक थी अतृप्त सी तृषा थी, मिट न सकी तृषा, हम मिटते चले गये . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपन...
राम तुम्हारे नाम
कविता

राम तुम्हारे नाम

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं। तुम्हें बुलाने को हम आतुर, मंत्र उच्चारे हैं।। रावण से ज्यादा बलशाली दानव आया है, इससे कौन लड़ेगा प्रभु जी, आप सहारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... अदृश्य शक्ति का भेदन कैसे हम कर पायेंगे, इसके आगे कैद हुये हम बड़े बेचारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।.. देखो कैद में आज अयोध्या का जन मानस है। रोती अंखियां राम तुम्हारी राह निहारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... ऐसे निर्मोही बने रहोगे कौन पुकारेगा, प्रकटो हे श्रीराम भक्त जन तुम्हें पुकारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्...
एक दिया जलाएंगे
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एक दिया जलाएंगे

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** भारत को कोरोना मुक्त बनाएंगे, हम भारत वासी हर घर मे दिया जलाएंगे, हर भारत वासियो को सलामत रखना सिखायेंगे, हर क्षण को देश के नाम जीवन देंगे, हम सभी सामाजिक दूरियों का पालन करेंगे, जीवन को महामारी से स्वयं एव समाज को बचाएंगे, समाज मे जागरुकता एव ज्ञान का दिपक जलाएंगे, बिमारियों से सभी से दूर भगायेंगे, विश्व मे अपना भारत का नाम ऊचाँ करायेंगे, कोरोना से जीत कर हम विश्व को दिखलायेंगे, हम सभी भारत के सेना, पुलिस, डॉक्टर साथ-साथ हाथ बढ़ाएँगे, जीवन को कोरोना मुक्त स्वयं एव समाज से करायेंगे, घर मे रहकर लॉक डाउन का पालन जी-जान से करेंगे, ना घर से निकलेंगे और ना समाज को घर से निकलने देंगे ! . परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्य...
शांतिदूत बन जायेंगे
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शांतिदूत बन जायेंगे

डाॅ. सुधा चैहान ‘‘राज’’ इंदौर (म.प्र.) ******************** भारत के दो वीरों ने..... नया इतिहास रच डाला देश की एकता तोड़ रही, उस धारा को बदल डाला।। अब भी स्वार्थ की डाली पर, कुछ विषधर ऐसे लिपटे हैं जो अपने विषदंतों से, हरदम जहर उगलते हैं।। देश की एकता अखंडता उनको रास नहीं आई सीमा पर जब हुई शांति उनकी तबीयत घबराई।। राजनीति की रोटियां अब, वो किस तंदूर में सेंकेंगे भोली-भाली जनता पर अब कैसे दंगा थोपेंगे।। केशर की क्यारी में देखो अमन चैन लहराये है अब अच्छे दिन आयेंगे, ये नैना स्वप्न दिखाये है।। धरती का स्वर्ग कश्मीर हमारी सचमुच जन्नत बन जायेगी डल के पानी में कश्ती अब गीत विकास के गायेगी।। हर बच्चे को शिक्षा होगी, हर घर में रोटी होगी जन जन को न्याय मिलेगा, नहीं आतंकी गोली होगी।। तीनों रंग तिरंगे के अब शांति संदेश सुनायेंगे कश्मीर से कन्या कुमारी तक भारत एक बतायेंगे।। धर्म निरपेक्षता ना...
हे मां शेरावाली
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हे मां शेरावाली

शुभा शुक्ला 'निशा' रायपुर (छत्तीसगढ़) ******************** काल के फंदे से हमको छुडाओ हे मां शेरावाली।। करोना के पंजे से हमको बचालो हे वैष्णव महारानी मां...... हे शारदे किरपा करो महामाई बचा लो मैंया छुडा लो भैया चरणों में तेरी जयकार जयकार रे... हे शारदे... धरती पे कैसा वाइरस आया मौत का खतरा छाया मुंह फैला कर मासूमों को अपना ग्रास बनाया तुझपे सबकी है श्रद्धा अपार बचालो मैया छुड़ा लो मैया चरणों में तेरे जयकार जयकार रे... हे शारदे... वैसे तो इंसा ने खुद अपने पाव कुल्हाड़ी दे मारी जैसी उसकी करनी थी तो ये सजा भी कम ही है माई सबका जीवन हुआ दुश्वार बचा लो मैया छुड़ा लो मैया चरणों में तेरी जयकार जयकार रे... हे शारदे... तुम हो हमारी प्यारी माता भक्तो की दुख हरता जिसका नहीं गर कोई जगत में तेरे प्रेम से भरता अपने बच्चो को तू ही सम्हाल ओ शेरा वाली, पहाड़ा वाली चरणों में तेरी जयकार जयकार री हे...
जाने क्यों
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जाने क्यों

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लोग ना जाने क्यों घरों से बाहर जा रहें है। और निकलते ही पुलिस के डंडे खा रहे है। पता है की दूरी बनाने के आदेश आ रहे है। फिर इकट्ठे होकर क्यों तमाशा बना रहे है। कुनकुना पानी पीना है, साबुन से हाथ धोना है। स्वच्छता बनाना है, घरों में लॉकडाउन होना है। खुदतो नियम पालते नही दूसरों को बता रहे है। इसीलिए तो रोज़ाना पुलिस के डंडे खा रहे है। मोदी जी प्रणाम करना सबको सिखा रहे है। संयम से रहना अबतो टीवी पर दिखा रहे है। २२ को घण्टी ०५ को दीपक भी जला रहे है। चौराहे पर प्रसाद के लिए साहब बुला रहे है। बुरे समय मे भी लगता है अच्छे दिन आ रहे है। तभी तो हंसते हंसते पुलिस के डंडे खा रहे है। सरकार की सख्ती प्रशासन को गलत बता रहे हैं। कुछ कहते है जनता को जबरजस्ती सता रहे है। स्वास्थकर्मी भी आपके लिए अब मार खा रहे है। खुद के परिवार को छोड़ आपक...
प्रकृति की शक्ति
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प्रकृति की शक्ति

सीमा रानी मिश्रा हिसार, (हरियाणा) ******************** दिल में कब से यही शोर है मचा हुआ, यह मानव-जाति किस ओर जा रहा? अपने ही हाथों खुद को बर्बाद कर रहा, गलती से खुद को खुदा समझ रहा। प्रकृति को दूषित करने पर तुला हुआ, शायद उस अदृश्य शक्ति को है़ भूला हुआ। पर जब भी मानव संतुलन बिगाड़ता है़, प्रकृति किसी न किसी रूप में सुधार लेती है़। हम उसका विनाश करते हैं जब भी, तो वो भी हमारी जान लेती है़। पशुओं के साथ पशु मत बनो, खाने के लिए अन्न-फल-सब्जियाँ हैं, उनसे ही अपना पोषण कर लो। जीने दो सबको और खुद भी जियो, कुदरत के हर संकेत को अब तो समझो। मानव हो मानवता के राह पर ही चलो, गलतियों से सीखो, जिंदगी हँस कर जी लो। . परिचय :- सीमा रानी मिश्रा पति : डाॅ. संतोष कुमार मिश्रा पता : हिसार, (हरियाणा) पद : शिक्षिका आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
कर्तव्य पटल पर
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कर्तव्य पटल पर

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। कोई व्याधि आँधि प्रकृति तांडव। हिंसक उत्पात करे संभव। भूमि का दांव लगे वैभव। तब निडर प्रवर रण प्रबल पुलिस।। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। व्यभिचार कुठार हो क्रूर कर्म। आतंकवाद सब मेटे धर्म। ना समझे जन जब नीति मर्म। संकट मोचन ज्यों प्रखर पुलिस।। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। दारिद्र छुद्र डाका चोरी। वैमनस्य विवाद बहुत-थोरी। परिवार पृथक कहीं छेड़-छाड़। कुछ नियम तोड़ जब बनें ताड़। ना हो समाज से विलग पुलिस। हर समाधान कर सुफल पुलिस। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पटल पर अटल पुलिस।। करे कोई राष्ट्र से गद्दारी। बेईमानी हावी अरु मक्कारी। बढें विवादित उत्पाती। लाठी कर धर फिर संभल पुलिस। प्रत्येक विपत में सबल पुलिस। कर्तव्य पट...
जननी जन्मभूमि
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जननी जन्मभूमि

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं तुम्हारी मातृभूमि, प्रिय वत्स! तुम मेरे हो स्नेह सिक्त स्पर्श लुटाया, ममता का आंचल ओढ़ाया, वात्सल्य से सींचा तुमको, गोद में अपनी पाला-पोसा... मृदु फलाहार कराया। पुष्पों की सुगंध से... जीवन तुम्हारा महकाया। गंगा के अमृत जल में अवगाहन करा, जीवन पुनीत बनाया। मैं तुम्हारी मातृ भूमि... प्रिय वत्स तुम मेरे हो। मैंने तुमको, वेदों का ज्ञान कराया, उपनिषदों का पाठ पढ़ाया। ऋषि मुनियों की तपश्चार्य से, जीवन तुम्हारा चमकाया। यहा 'धर्म' आधार जीवन का विचारों का संस्कारों का। मुझे छोड़ तू गया विदेश, मैं ताकती रही निर्निमेष। आज बर्बर देशों ने, असभ्यता के अवशेषों ने... विकट संकट में तुम्हें त्याग दिया, छोड़ सम्बल, तुमसे किनारा किया। यह देख मेरे हृदय पर कुठाराघात हुआ... जिजीविषा को देख तुम्हारी, परिजनों में भी दिखी लाचारी।। अन्न-धन अपा...
द्रोपदी की लाज
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द्रोपदी की लाज

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** काश ! इंसान-इंसान की तरह जी सकता फटी वेदना की चादर को दर्जी सी सकता !! ना लुटती कहीं भी किसी द्रोपदी की लाज सुन सकते दीन, हीन, दुखियों की आवाज !! थम जाये रहजनी, डकैती, हत्याओं का दौर कोई निर्बल ना बने किसी सबल का कौर !! गरीबी, भुखमरी, ना रहे कुपोषण का साया लोकतंत्र को लूट सके ना कुबेर की माया !! लौट सकें फिर सुकून के दिन जो बीत गये हैं फिर बरसें वो बादल जो बरस के रीत गये हैं !!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आश...
पलायन से वापसी
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पलायन से वापसी

दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) जावरा म.प्र. ******************** सब है अपने अपने घरों में अब कौन ले सुध इनकी ये कैसे हालात है ये कैसी बेबसी है ना कोई आशिया है ना कोई सहारा है जाए तो जाए कहां जाए तो जाए कैसे ना सड़क पर कोई वाहन ना ट्रेक पर कोई ट्रेन चले जा रहे है निराशाओं में निराशाओं का ना कोई पारावार है खाने पीने के है लाले पैरों में पड़ गए है छाले कंठ है सूखा पेट है भूखा हाथो में नौनिहाल सिर पर गठरी चले जा रहे है बेतहाशा बचाने को जान अपनी कोरोना का ये कैसा रोना है भूख प्यास से मर जाना है चले थे घर से पलायन कर कुछ रोजी रोटी कमाने को मा बाप को घर छोड़ कर आज ये कैसे हालात है चले जा रहे है बस चले जा रहे है पलायन वापसी पर। . परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉ...
पलायन
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पलायन

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** पेट की खातिर कमाने को अभी गये थे जो निर्धन आज कोरोना ने मझधार में डाला दहल गये वो मन दहलाया सारी दुनिया को हुये लाचार सभी जन जन क्या करना वहाँ पर रहे के लौट जायेंगे अपने घर हैं मजबूर काम के जरिये भूख से सारे रहे तरस किया पलायन बिन गाड़ी और पैदल ही सब लिए निकल सौ दो सौ चार सौ मीटर की दूरी को ना लाया ज़हन दो-दो बच्चे कंधों पर और गठरी धरी दूजे के सर पर तरस जो खाये वो फंस जाये ना खाने वाला निर्मम महामारी का जाल बिछाया खुद के लिए खुद करो जतन कई रोज लग जायेंगे तब पहुचते अपने घर तब सारे सीएम ने सोचा भरो गाड़ी पहुचादो घर सोचो तनिक छुआछूत की बीमारी लग गयी अगर क्या घर में खुश रह पाओगे गर बीमार हुए जन जन घबराओ ना विनती है हाथ जोड़कर सरिता की वक्त पड़ा है आन ना हिम्मत टूटेगी लाचार बन . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश ...
अप्रैल फूल
कविता

अप्रैल फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अप्रैल फूल कही खिलता नहीं मगर खिल जाता मजाक के घर में एक अप्रैल को क्या, क्यों, कैसे ? अफवाओं की खाद से और उसे सींचा मगरमच्छ के आँसू से लोगों ने इस अप्रैल फूल को इसीलिए ये पौधा झूठ के गमले में फल फूल रहा वर्षो से लोग झूठ को भी सच समझने लगे क्या अप्रैल फूल के बीज फैलने लगे है पूछे, तो लोग कहते -हाँ बस एक अप्रैल को ही दुकानों पर मिलते है आप को विश्वास हो तो आप भी लगाने के लिए ले आए घर की बालकनी में और आँगन में लोगो को जरूर दिखाए आपके यहाँ एक अप्रैल का फूल खिला ताकि उन्हें कुछ तो विश्वास हो आप पर एक अप्रैल को भी सुंदर सा फूल खिलता है जैसे वर्षों बाद खिलता है ब्रह्म कमल जिसे सब ने देखा है मगर अप्रैल फूल कभी नहीं देखा शायद एक अप्रैल को ही हमे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो? . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालज...
देश प्रेम
कविता

देश प्रेम

स्तुति झा पटना ********************** देश प्रेम देश प्रेम का गीत गाया हुँ मैं। इस वतन की मोहब्बत में आया हूँ मैं। मान सकता नहीं हार कभी अपने दिल में भारत लाया हुँ में। ज़िदगानी मेरी तु कर इतना कर्म देश मेरा हो भारत हर एक जन्म तिरंगे से इतना इश्क है मुझे आखिरी वक्त तक साथ रखना इसे।। देश प्रेम का गीत गाया हुँ मैं।। मिट्टी की खुशबू महक खेत की मुस्कुराहट यहां दिल नेक की इबादत यहां इश्क़ है यहां भारत हमारा जान हैं यहां। देशप्रेम का गीत गाया हु मैं...... इस वतन की मोहब्बत में आया हुँ मैं.....।। . परिचय :-  स्तुति झा निवासी : पटना जन्म : २२.०९.१९९२ प्रकाशित पुस्तकें : साझा काव्य संग्रह (नई काव्य धारा और हमारे अल्फाज़) सम्मान : साहित्य प्रहरी सम्मान/विशिष्ट रचना सम्मान। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...
माला
कविता

माला

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** पिरोया एक एक शब्द तो कविता बन गई एहसास और जज्बात की माला बन गई धागा था इस कदर मजबूत की पक्की हो गई रिश्ते और अरमानों की हमजोली बन गई मजबूती मेरे प्यार की इसमें गण गई बिखरे शब्दों को पीरोकर एक पंक्ति बन गई मेरे विश्वास को रखकर तराजू में जो तोला समेटकर शब्दों को गूथकर जज्बातों को वजनदार बन गई पीरो या एक एक शब्द तो माला बन गई इश्क की एक मजबूत सी कविता बन गई . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिण...
स्वयं को सतर्क रखें
कविता

स्वयं को सतर्क रखें

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सयंम बरतो, मत घबराओ, कोरोना पर स्वछता बरसाओ। दूर रहेगा यह कोसो तुम से। डर जाता सफाई की धूम से। हाथों धो साबुन से पहले। चाहे खेलो इक्का-दहले। रुमाल को औजार बनाओ। सभी बीमारी दूर भगाओ। महामारी ऐसी फैली है जग में। स्वच्छ पानी रखो अपने जग में। लापरवाही ना जरा सी बरतो। नही तो बीमार हो जाओगे परसो। सर्दी, खासी, और जुकाम। इनका कर दो काम-तमाम। सावधानी बस एक ही उपाय। डॉक्टर को मिलन कहे को जाये। सजग रहो, सतर्क रहो,कोरोना से। बाद में मिल लेना अपनी सोना से। अफवाहों पर ना ध्यान लगाएं। आज ही सेनेटाइजर अपनाएं। हमदर्द का संदेश सबके हित में। खुशी मिलेगी कोरोना से जीत में। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा - बी.ए (बी.टी.स...
एक कोरोना
कविता

एक कोरोना

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** एक कोरोना तोड़ रही, सैकड़ों कमर है। अच्छी बात आज इस लाॅकडाऊन की यही प्रकृति हो रही देखो कितनी निर्मल है। अच्छा तो होता कि, ये आवाज न आती कि मौत टहल... रही, पहर दोपहर है। हाथ तंग हो रहे हैं, दंग हो रहे हैं हम दवाइयों की शीशी बच्चों के बोतल चाय के कुल्हड़ सब खाली हो गए। घर में अँधेरा, बस इन्तजार ... कब हो सवेरा। कहती सरकार है, दुकानों में राशन... अजी भरमार है। पर क्या खाली जेबें देती, भला क्या कभी किसी को राशन है। घरों में बस बैठे नहीं, हम दुबके हुए हैं। आश यह लिए कि, मेरा भारत समर्थवान है। अजी आश नहीं, मेरा विश्वास कहिये। . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (...
वादे भरोसे
कविता

वादे भरोसे

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** हरित दूर्वा विछौना देख हुआ मन प्रफुल्ल जैसे, मनुहारी छवि देख तेरी प्रमुदित हुई बैसे ही। कोकिल ध्वनि सुन हर्षित हुआ जन जन जैसे, सुन मधुर वानी तेरी हर्षाई वैसे ही। दिल की बगिया में ज्यों, खिल उठे मधुमासी पुष्प, मुस्करा उठे अमराई में, मधुर आम्र बौर के मृदु गुच्छ। पल पल वहे वासन्ती वयार जैसे, दिल में उठी मन्द हिलोर बैसे ही। इतराये थे तरु नूतन पत्र धारण कर, वक्त ने कैसा यह रंग दिखाया है, सहसा गिरे तरु पत्र विलग हो, पतझड़ ने ऐसा कहकर मचाया है। मिलन को आतुर पपिहा चांद से जैसे, विरहिन मिलन को प्यासी हुई बैसे ही। कोकिल की कुहू-कुहू भंवरों की गुंजार हुई, आवारा बादल की रिमझिम फुहार हुई, विरह से आतुर विरहिन अकुलाए जैसे, तेरे मिलन को आतुर हुई बैसे ही। वादे भरोसे पल पल मिले सदा, मुस्कराए होंठ भी मेरे यदा कदा, सागर से उभरे ज्वार भाटा जैसे पल-पल उबलते अ...
धोखा खाये बैठा हूँ
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धोखा खाये बैठा हूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** खुद के किरदार को आईना बनाये बैठा हूँ, मैं तेरा हर जुर्म जमाने से छिपाये बैठा हूँ!! तेरे जैसे अपने, ना मिलें दुश्मन को भी, कि मैं तेरा अपनापन, आजमाये बैठा हूँ!! कद्र नही की तूने कभी मेरे जज़्बातों की मैं तो तेरे दुख, दर्द में आसूं बहाये बैठा हूँ!! जब रहे जीवन में तेरे अंधेरों के घनेरे साये, चिरागों के मानिंद खुद को जलाये बैठा हूँ!! भूले भटकों को सही राह दिखाये बैठा हूँ पर ये सच है, मैं तुझसे धोखा खाये बैठा हूँ!!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यि...
मत निकलो बाहर मरने के लिए
कविता

मत निकलो बाहर मरने के लिए

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ज़िन्दगी पड़ी है काम करने के लिए। मत निकलो बाहर तुम मरने के लिए। थोड़े से दिन की बात है घर मे ही रहो, तैयार रहो सबको सतर्क करने के लिए। आया है कोरोना और जाएगा भी सही, यूं ही चुपचाप ना बैठें हम डरने के लिए। नज़र रखो घर मे आने जाने वालों पर, कुछ है तो नही संक्रमित करने के लिए। साबुन से धोते रहें लगातार हाथों को, ताज़ा भोजन लीजिये पेट भरने के लिए। मीठा खाना और ठंडा पीना बन्द है, गर्म पानी ठीक गला तर करने के लिए। नवरात्रि में में हम मंदिर भी न जाएं, वो भी घर है नमाज़ अदा करने के लिए। दिल्ली यूपी बॉर्डर पर भीड़ लगी है, वो लाचार है पैदल पलायन करने के लिए। दिल्ली में सिस्टम क्या सोया हुआ है?, लोग सड़क पर उतरें है अब मरने के लिए। किसी को नसीब नही हुआ दानापानी, कोई अगर देदे तो उसकी है मेहरबानी। जहां देखो इसी बात का हो रहा है रोना,...
विराट कैनवास की छत्रछाया
कविता

विराट कैनवास की छत्रछाया

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** "गर तेरी आवाज़ पे कोई न आये तो फिर चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला रे.." गुरुदेव आपको पता था की चलते जाओगे तो कारवां बनता जायेगा अगर आज होते तो नहीं ले पाते अकेले चलने का प्रण क्योंकि कारवां के पीछे भी रचा जाता षडयंत्र तब आप अलग-थलग पड़ जाते और अधूरा रह जाता आपका शांति निकेतन की परिकल्पना हे विश्वकवि-आज के इस इंसानी रोबोटिक भीड़ में कहाँ खोज पाते मिली के उस काबुलीवाले को या डाकघर के "अमल" के उस दही बेचने वाले को और उनके निश्छल प्रेम, गुरुदेव कहाँ है वह बंकिमचन्द्र चन्द्र जिन्होंने आगामी प्रजन्म को बचाने अपने गले की माला उतार कर आपके गले में डाली थी और आप भी उन परम्पराओं को निभाते हुए आह्वान किये थे उस "विद्रोही धूमकेतु" (काजी नजरुल इस्लाम) को, गुरुदेव आज के संवेदनहीन सामाजिक टीले और राख होते देश भक्ति के स्तूप पर कैसे लौटाते नाईट उप...
मैं समय हुँ
कविता

मैं समय हुँ

एम एल रंगी पाली राजस्थान ******************** मित्रो ... मैं समय हुँ, मैं बहुत बलवान हूँ ....!! मैं बोलता कम हूँ मगर, बहुत कुछ कर गुजरता हूँ ..!! जिसने मुझे पहचान लिया, मैने उसे सम्भाल लिया ...!! जो भी मुझसे टकराया, वो बहुत ही पछताया .....!! इतिहास उठा के, देख तो लो जरा, कुछ भी न बचा उसका, मुझसे जो न डरा ..!! चाहे हो रावण, कौरव और कंस, झेलना पड़ा उनको भी मेरा ही दंश ......!! मैं कब पलटी मार जाऊ, खुद को भी नही पता, दुर्दशा होगी उनकी जो प्रकृति से करेगा खता ..!! ये कोरोना भी प्रकृति का ही है एक कहर, रहो घरों में कैद वरना, सुने पड़ जायँगे शहर ....!! "रांगी" कहे सम्भल जाओ ए जहाँ वालो, करो नेकी बन्दों की, और अपने आप को बचा लो ..!!! . परिचय :-  एम एल रंगी, शिक्षा : एम. ए., बी. एड. व्यवसाय : अध्यापक जन्म दिनांक : २३/०६/१९६५ निवासी : सांवलता, जिला. - पाली राजस्थान आप भी अप...