आखिर तू है क्या
शरद सिंह "शरद"
लखनऊ
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ऐ जिन्दगी! जिन्दगी निकल रही है,
पर न जान सकी,
ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या।
तू गुल का गुलिस्ताँ है,
या गम की गजल है को,
ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या।
तू रात्रि का गहन अन्धेरा है,
या दिन का चमकता उजाला है,
ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या।
तू खुशनुमा फूलों की महक है,
या नुकीले काँटो की गहन पीडा़ है,
ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या।
कोकिल की कूक पपिहा की रटन है,
या अन्जान कर्णभेदी कर्कश ध्वनि है,
ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या।
तू चन्दा की शीतल चाँदनी है,
या सूर्य की तपती दुपहरी है,
ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या।
तू सपनो मे छायी खुशनुमा खुमारी है,
या डरी सहमी रात अन्धेरी है
ऐ जिन्दगी! तू ही बता तू है क्या।
अब तक न जान सकी,
ऐ जिन्दगी! तू ह बता तू है क्या।
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लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थ...