गणित संग मेरी वार्तालाप
गणित संग मेरी वार्तालाप
रचयिता : भारत भूषण पाठक
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हे गणित तू फिर आ गयी ।
काली घटा बन कर मुदित मन को आह्लादित करने।।
परन्तु कोई बात नहीं आ ही गयी है तो मित्रवत ही रहना।
था बचपन से अपन दोनों का एक दूसरे को मुश्किल सहना।।
अब तो मेरे उम्र का लिहाज कर।
शिक्षक हूँ मैं आज अब तो कुछ समझा कर।।
मत ला वो बड़े-बड़े सवालों का महासागर ।
करने में पार आती थी जिसमें समस्याएं अपरम्पार ।।
ऐ गणित अब कितना रुलाएगी।
क्या होगा ऐसा कोई दिन जब तूँ समझ आ जाएगी ।।
अभी भी त्रिभुज के सर्वांगसम होने का भय बड़ा सताता है।
ले यह जान और जान के खुश हो जा।
मुँह मोड़ ले या प्रेयसी बन जा।।
क्यों एक भयकारी पत्नी सम प्रतीत होती है।
चाहता हूँ मनाता हूँ फिर भी रुठती ही जाती है।।
कहता ह...