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गीत

भक्ति गीत
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भक्ति गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** आदि-अंत से परे निरन्तर, गुण में अपरम्पार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालनहार हो। जड़-चेतन के हो निर्माता, ॠणी सकल संसार है। धन्य नहीं है कौन सृष्टि में, कहाँ नहीं आभार है। दीन दयाल न तुम-सा कोई, करुणा-पारावार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। वेद-पुराण भागवत गीता, ग्रंथ और क़ुरआन में। पावन पद या कथन व्यस्त्त हैं, तेरे ही गुणगान में। कुछ कहते हैं निराकार हो, कुछ कहते साकार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। तुम हो एक सभी के स्वामी, लेकिन नाम अनेक हैं। होना एक तुम्हारा फिर भी, जग में धाम अनेक हैं। कहीं भक्त हैं कहीं नास्तिक , सबके तारनहार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
पायल छनक गई
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पायल छनक गई

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। मैं नहीं चाहती मन के, पट धड़कन खोले, मैं नहीं चाहती पायल, की रुनझुन बोले। मैं नहीं चाहती सोचो, में हो खलल कोई, मैं नहीं चाहती प्रीतम, का तन मन डोले।। पर क्या करती पग फिसला, बेबस हुए कदम, सागर लहराया अखियां, मेरी छलक गई। बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। वो मेरी ही यादों में शायद खोए थे, मनहर वो ख्वाब मिलन के कई संजोए थे। मैं खुशियों की सौगातें लेकर आई थी, सावन प्यासे अधरों पर साजन बोए थे।। तड़पी थी मैं आलिंगन, में उस पल उनके, दिल बहका मेरा मेरी, सांसें महक गई। बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। यूं दर्ज समय के पृष्ठों पर पल हुए विकल, मन में थी मीठी दोनों तरफ बहुत हलचल। बातें होती थी आंखों की तब आं...
फैशन
गीत

फैशन

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** फैशन का यह दौर सुहाना लगता है। अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है। पल भर में कैसे बदलते है नक़्शे। अब तो हर लड़का शबाना लगता है। फैशन का यह दौर सुहाना लगता है। अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है।। कैसे कैसे वो परिधान को पहनता है। और कैसा कैसा करता है अपना श्रृंगार। फर्क समझा आता नहीं है इसमें लोगो को। कौन नर और कौन मादा है सही में। अब तो फैशन से बहुत डर लगता है। अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है।। नाक-कान छिदवाकर वो बालो को बढ़ता है। पहनकर नारी परिधान आकर्षित करता है। बहुत गजब का आजकल का ये फैशन है। तभी तो अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है।। फैशन का यह दौर सुहाना लगता है। अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर क...
महाशिवरात्रि
गीत, भजन

महाशिवरात्रि

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** चलो भक्तों शिव के शिवाले, शिवलिग पर जल चढ़ाले। शिव शंभू को मनाने शिवाले चले, चलो सभी चले जल चढ़ाने चले। चलो भोले बाबा को मनाने चले, शिवलिग पर सभी जल चढ़ाने चले। गंगधारी बम भोले को मनाने चले, चलो भोले भंडारी को मनाने चले। मस्ती में झूमते गाते नंगे पैर चले, चलो भक्तों त्रिपुरारी के धाम चले। सुबह चले, दोपहर चले और शाम चले, हम शिव-भक्त लगातार झूमते चले। आओ चले जटाधारी को मनाने चले, जब निकले, भोले का ही नाम निकले। भक्तों चले भोले-बाबा को मनाने चले, झूमते-गाते हम शिव के शिवाले चले। औघड़दानी को, भोले को मनाने चले, चलो शिव-भक्तों हम जल चढ़ाने चले। त्रिपुरारी, त्रिशूलधारी को मनाने चले, चलो भक्तों शिवाले जल चढ़ाने चले। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह ...
आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है
गीत

आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** गीता रामायण वेद महावीर, गुरु ग्रंथ कबीर की वाणी है, खोना पाना आना जाना, यह जीवन बहता पानी है, संग रहने, सुख दुख सहने की, कहने की रीत पुरानी है, आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है !१! हार जीत खुशी आघात प्रीत, जो शब्द नहीं कह पाते हैं, भाव भरे निज आंखों से, गिरते आंसू कह जाते हैं, टप टप गिरते आंसू ही, उस पल की अमिट निशानी है, आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है !२! बिना मां के बच्चों की व्यथा, कितनी मायें बन जाती हैं, सौतेली मां चाची ताई, मौके पर काम ना आती हैं, सब जानते हो तुम श्याम प्रभु, क्या छुपी है, जो समझानी है, आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है !३! भूखे मां-बाप का दर्द नहीं, वे भोजन बांटने जाते हैं, माँ के दूध की शर्म नहीं, कुत्ते बिल्ली को दूध पिलाते हैं, अपमान पी आशीष दें जो, वे ...
तेरे ही सपने आते हैं
गीत

तेरे ही सपने आते हैं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** रात दिवस सोते जगते बस, तेरे ही सपने आते हैं। तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। तेरी आदत पड़ी हुई है, पीछा नहीं छुड़ा पाता हूँ। पलपल-पगपग पर तेरे ही, साए से मैं बतियाता हूँ।। अधर लिए पर अमृत तेरे, मुझे दूर से तरसाते हैं। तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। अभी यहां थी, अभी वहां थी, मन कैसे समझाऊं अपना। छलिया वक्त छल गया मुझको, चैन कहां से लाऊं अपना।। पीछे दौड़ न नश्वर जीवन, के नश्वर पल समझाते हैं। तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। ख्वाबों में तू राह बताती, जो चाहे वो करवाती है। जिस्म भले दो होकर रह लें, जान जुदा कब हो पाती है।। यादों के बादल आ आकर, के दिश-दिश से टकराते हैं, तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। कहां छुपाऊं मैं पागलपन, तुझे देखती आंखें मेरी। मेरी आंखों में तुझको पा, खोज ...
नारी का निश्चय
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नारी का निश्चय

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गिरती रही उठती रही फिर भी चलती रही। कदम डग मगाए मगर पर धीरे धीरे चलती रही। और मंजिल पाने के लिया खुदसे ही संघर्ष करती रही। और अपने इरादो से कभी पीछे नहीं हटी।। गिरती रही उठती रही...।। ठोकरे खाकर ही मैं दुनियां को समझ पाई हूँ। हर किसी पर विश्वास का फल भी भोगी हूँ। लूट लेते हैं अपने ही अपने बनकर अपनो को। क्योंकि गैरो में कहाँ इतनी दम होती है।। गिरती रही उठती रही..।। दुनियांदारी का अर्थ तभी समझ आता है। जब कोई विश्वास अपना अपनो का तोड़ देता हैं। और अपने फायदे के लिए अपनो को ही डस लेता है। फिर इंसानियत की दुहाई देकर खुदको महान बना लेता है खुदको महान बना लेता है।। गिरती रही उठती रही फिर भी चलती रही..।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैन...
वासंती गीत
गीत

वासंती गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** वन-उपवन शोभायमान हैं, पर्ण-पर्ण आनन्दित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। हरी-हरी पत्तियाँ झूमकर, पुष्पों से कुछ कहतीं हैं। कलियाँ सुनकर उनकी बातें, भाव सरित् में बहती हैं। डाली-डाली तरु-पादप की, हुई सुसज्जित-शोभित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। रंग-बिरंगी विविध तितलियाँ, फूलों से मिलने आईं। उनका स्वागत हुआ सुखद तो, भावुक होकर मुस्काईं। सुन्दर सुमनों से चर्चा कर, तितली वृंद प्रफुल्लित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। कीट-पतंगो का मेला है, विहग दूर से आए हैं। सुमन समूहों ने सह स्वर में, स्वागत गीत सुनाए हैं। कोयल छेड़ रही है सरगम, भ्रमर गान भी गुंजित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ ...
कहानी… मेरे पापा की
गीत

कहानी… मेरे पापा की

संजय जैन मुंबई ******************** पापा जी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ। उनके त्याग बलिदान को अपने बच्चो को सुनता हूँ। ऐसे पापाजी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ...।। जन्म लिया उन्होंने ने बड़े जमींदार के घर में। बड़े बेटे बनकर उन्होंने निभाया अपना कर्तव्य। यश आराम से जिंदगी जी रहे थे परिवार के सब। भगवान की कृपा दृष्टि से सब अच्छा चल रहा था।। और भाई बहिन माता पिता का प्रेम बरस रहा था। ऐसे पापा जी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ...।। भाई बहिन के प्रेम में वो ऐसे रहे थे। उन्हें उनके अलावा कुछ और नहीं दिखता था। भाई बहिन पर वो अपनी जान नीछावर करते थे। ऐसे पापाजी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ...।। पर समय परिवर्तन ने कुछ ऐसा कर दिखाया। भाई-बहिन और पिता ने मुँह मोड़ लिया बेटे से। कल तक जो सबको बहुत प्यारे भाई लगते थे। अब वो ही सब की आँखो में खटकने लगे। २६ सालों के साथ रहने का अब अंत हो...
संघर्षो के नाम किया है
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संघर्षो के नाम किया है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** हाथ उठाने वालों की तुम, लाइन में हमको मत रखना। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। ऊपर वाले ने जो हमको, सोच समझ की दौलत दी है। अच्छा और बुरा समझें हम, बुद्धि दी है ताकत दी है।। हमने कब अपना माना ये, उसका जीवन उसका माना। इसीलिए तो सारा जीवन, संघर्षों के नाम किया है।। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। अपमानों के लड्डू पेड़ों, से इज्जत की रोटी प्यारी। हमने मेहनत की खुशबू से, अपनी किस्मत सदा संवारी।। हाथ पसारे नहीं रहे हम, नहीं मांगकर हमने खाया। लम्हा-लम्हा हर परिवर्तन, संघर्षों के नाम किया है।। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। आग लगाने वालों ने तो, हरदम आग लगाई बढ़कर। झुलसाकर अपने मधुबन को, हम ने आग बुझाई बढ़कर।। नहीं देखती आग राह के, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों को। हमने सत्य न्याय का आंगन, स...
विद्या की माता शारदे
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विद्या की माता शारदे

संजय जैन मुंबई ******************** वो ज्ञान की माता है सरस्वती नाम है उनका-२। वो विद्या की माता है। शारदा माता नाम उनका। वो ज्ञान की माता है।। हाय रे मनका पागलपन मुझ से लिखवाता है। क्या मुझे लिखना क्या वो लिखवता ये तो वो ही जाने-२। मन में मेरे वो आकर लिखवाते है मुझसे।। वो ज्ञान की माता है..।। इधर जिंदगी झूम रही है उधर मौत खड़ी। कोई क्या जाने कब आ जाये मेरा बुलावा जी-२। और क्या लिखना मुझको रह गया है अब बाकी। वो ज्ञान की माता है...।। मेरे दिल और ध्यान में सदा रहती है माता जी। जो कुछ भी मैं लिखता और गाता उनके कृपा दृष्टि से-२। मैं उनके चरणो में वंदन बराम्बार करता। वो ज्ञान की माता है..।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और...
हुआ दर्द से प्यार
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हुआ दर्द से प्यार

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** तुम्हीं बताओ कैसे तोड़ूँ किये हुए अनुबंध? आँखें खोलीं, मिली पाॅव को दलदल की सौगात, सीख लिया तब से नयनों ने जगना सारी रात, पीर महकने लगी उठी आँसू से मधुर सुगंध। पथरीली राहें पाॅवों में पड़ी अनेकों ठेक, संघर्षों का साॅझा चूल्हा रहा उन्हें था सेक, जुड़ा पसीने का पीड़ा से मिसरी सा संबंध। साथ चले फिर गये छोड़कर नदिया के मॅझधार, जैसे-तैसे बाहर आये बैठे हैं इस पार, अब कुछ झुके हुए से लगते तने-तने स्कंध। और वज़न कुछ बढ़ा शीश पर लेता दर्द हिलोर, कितनी दूर और रजनी से होगी सुंदर भोर, साॅसें थोड़ी इनी-गिनी सी टूटेगा फिर बंध। साथ पुराना दर्द लगे अब अपना मुझको यार, टीस उठे तो लगता उसने जतलाया है प्यार, अंत समय तक साथ निभेगा अनुपम किया प्रबंध। परिचय :- महेश चंद जैन 'ज्योति' ...
मैं सुगन्ध हूँ
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मैं सुगन्ध हूँ

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** मैं सुगन्ध के झोंके जैसा, महक रहा हूँ गुलशन में। बसा हुआ हूँ मैं पुष्पों में, खिलती कलियों के मन में।। कैसे आया मैं फूलों में इसका मुझको ज्ञान नहीं, महकाता केवल दुनियाँ को और न जाता ध्यान कहीं, मैं बचपन के भीतर चहकूँ दहकूँ उफने यौवन में।.... भोर हुए नवजीवन पाता साँझ ढले मुरझाता हूँ, झरता है जब पुष्प डाल से कहाँ किधर खो जाता हूँ, रंगों से क्या लेना मुझको देना सीखा जीवन में।..... मेरे रूप हजारों महकें विदुर गुणी इन्सानों में, नहीं भूलकर रह पाता हूँ हैवानों शैतानों में, पाँखुरियों में घर है मेरा नहीं मिलूंगा कंचन में।.... मुझसे प्यार करो तो आओ अपना मुझे बना लेना, थोड़ी देकर जगह मुझे तुम अपने हृदय बसा देना, महका दूंगा अंतर्मन को गंध उठे ज्यों चन्दन में।... परिचय :-महेश चंद जैन 'ज्योति' निवासी : महोली ‌रोड़, मथुरा घोषणा पत्र : मैं ...
सोच समझकर वोट किया तो
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सोच समझकर वोट किया तो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** अपने मत से तुम्हें बनानी, है कल की सरकार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो, हों सपने साकार प्रिये।। लिए पोटली अब वादों की, नेताजी द्वारे द्वारे। जाकर बांट रहे गारंटी, कर देंगे वारे न्यारे।। कहते हैं कल नहीं रहेगा, है जो हाहाकार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो.... भूखे को हम खाना देंगे, बेघर को हम घर देंगे। शिक्षा बिजली गैस विवाह का, इंतजाम भी कर देंगे।। बिन मेहनत कैसा होगा सुख, सपनों का संसार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो... हरे लाल भगवा नीले सब, सेवा की ही .बात करें। सेवा के पर्दे के पीछे, देखा अक्सर घात करें।। कहते चाय पकौड़ी बेचो, अच्छा है व्यापार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो... धनवानों को बेच न दें ये, देश अमन के रखवाले। जरा गौर से देखो इनके, जीवन के चिट्ठे काले।। है अडानी अंबानी इनके, सचमुच खेवनहार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो......
ध्वज-गीत
गीत

ध्वज-गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** अपने प्यारे ध्वज पर हर पल, गर्वित हिन्दुस्तान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। केसरिया है त्याग प्रदर्शक, श्वेत शांति दिखलाए। हरा रंग है समृध्दि सूचक, चक्र उन्नति गुण गाए। मातृ भूमि का अपना यह ध्वज, गौरव का गुणगान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। यह निशान अपने भारत का, यह तो अपना मान है। यही हमारा सच्चा सुख है, यह अपनी मुस्कान है। प्राणों से प्रिय सतत तिरंगा, आन-बान है, शान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। सदा जिएँगे और मरेंगे, इस झण्डे के वास्ते। आँच न आने देंगे इस पर, कभी किसी भी रास्ते। नर-नारी, बच्चा या बूढ़ा, हर कोई क़ुरबान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाष...
इंतजार
गीत

इंतजार

संजय जैन मुंबई ******************** मेरा दिल खाली खाली है किसी दिल वाली के लिए। लवो पर जिसके रहता हो सदा ही संजय संजय। बना कर रखूँगा उसको अपने दिल की रानी। तो आ जाओ मेरे दिलमें खुला है मेरे दिल का द्वार।। अभी तक न जाने कितनो ने पुकारा है। तभी तो हिचकियाँ मुझे आ रही है बार बार । जो भी हो तुम दिलरुबा सामने तो आ जाओं। और झलक अपनी तुम मुझे जरा दिखा जाओं।। मेरे दिल की धड़कने नहीं है अब मेरे बस में। न जाने कौन है वो जो इन्हें तेजी से धड़का रहा। और अपनी धड़कनो को मेरे दिलसे मिला रहा। न खुद सो रहा है और न मुझे सोने दे रहा।। बीस की उम्र से लेकर बहुत मुझे वो सता रहा। पर अपने चेहरे को वो अभी तक छुपा रहा है। कसम से पता नहीं मुझको क्यों वो इतना सता रहा। शायद कोई पूर्व जन्म का बंधन हमसे निभा रहा है। इसलिए मैं भी उसका इंतजार कर रहा हूँ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान म...
बड़ा आसान था गिरिधर
गीत

बड़ा आसान था गिरिधर

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बड़ा आसान था गिरिधर, बता दिल तोड़ कर जाना! मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? दर्द यमुना का तो सुनते, कदम के शूल तो चुनते। तजा पनघट तजी राधा, तजा सारा वो याराना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बजी वंशी बहुत प्यारी, लगे चितवन बड़ी न्यारी। उसे भी छोड़ बैठे तुम, किसे दूँगी मैं अब ताना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? तड़प कर गोपियाँ रहतीं, विरह कैसे भला सहतीं? चमन के पुष्प हैं सूखे, कहें तितली नहीं आना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? कुँआ भी प्यास का मारा, हृदय मेरा रहा खारा। नयन से मोतियाँ बिखरीं, धरा पहने तरल बाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बिछायी द्यूत की क्रीड़ा, सही जाये न यह पीड़ा। कहूँ कैसे बनी धीरा, यही तुमको है समझाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला ...
बेबस पंछी ना कट जाएं
गीत

बेबस पंछी ना कट जाएं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** चीनी मांझे हत्यारे हैं, उन्हें कदापि ना अपनाएं। याद रखें चीनी मांझों से, बेबस पंछी ना कट जाएं।। आज मकर संक्रांति है तो, तिल गुड़ के हम लड्डूखाएं। गुल्ली दंडा खेलें या फिर, मनचाही हम पतंग उड़ाएं।। ध्यान रखें पर दाना लाने, पंछी जो आकाश में जाएं। उनके जीवन की हम रक्षा, करें अपाहिज नहीं बनाएं।। जो मांझे विपदा बरसाते, घर बच्चे भूखे मर जाते। क्यों गुणगान करें उनका हम, क्यों खरीद के हम ले आएं।। चीनी मांझे हत्यारे हैं, उन्हें कदापि ना अपनाएं। याद रखें चीनी मांझों से, बेबस पंछी ना कट जाएं।। पौष मास में मकर राशि में, जब सूरज आ जाता लोगों। फसलों का त्योहार पर्व ये, घर-घर रंग दिखाता लोगों।। खिचड़ी पोंगल ये कहलाता, लोहड़ी नाम सुहाता लोगों। पूजा की जाती प्रकाश की, जीवन गीत सुनाता लोगों।। देसी मांझे अपने मांझे, उनपे ही विश्वास जताकर। रंग बिरंगी उड़...
युवा शक्ति जागो रे
गीत

युवा शक्ति जागो रे

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** जागो-जागो, जागो रे जागो सेवा का हथियार हाथ में "मुझको नही तुझको" के नारे से दुखियों के दुःख-दर्द को मिटाना है ........ जागो ....! पर, पीड़ा को मिल मिटाएंगे एक दूजै के सहारे से आगे बढ़ना है कष्ट ना पाए कोई दुखियारा आओ अपने हाथों से देश बनाना है। जागो रे....! बच्चा-बच्चा समझे अपनी जिम्मेदारी गाँव-गली में अनपढ़ रहे न कोई शिक्षा की अलख जगाने को आओ मिलकर ज्योत से ज्योत जलाना है। जागो रे ...! जन-जन को राष्ट्र हित में आना है कुरीतियों को मिल जड़ से मिटाना है विकाश की गंगा बहाने की खातिर बस्ती-बस्ती सेवा की अलख जगाना है। जागो रे ...! अपनी ताकत को तुम पहचानों आओ सेवा की मशाल जलाएं युवा-शक्ति के हाथों देश बदलने "नाचीज़" युवा-युवतियों को जगाना है। जागो रे ....!!! "मुझको नही तुझको" के नारे से दुखियों के दुःख-दर्द को मिटाना है जागो रे ....!!! परिचय :-...
राष्ट्रभाषा बने एक दिन
गीत

राष्ट्रभाषा बने एक दिन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सारी जनता भारत की जब, इसको गले लगाएगी। विश्वगगन में हिंदी ऊँचा. तब परचम लहराएंगी।। हिंदी के पहरेदारों से, मेरी सतत यही आशा। राष्ट्रभाषा बने एक दिन, हिंदी ये है अभिलाषा।। हिंदी में साहित्य सृजन ही, नई भोर को लाएगी। विश्व गगन में हिंदी ऊँचा, तब परचम लहराएंगी हिंदी को मां समझने वालों, हिंदी में व्यवहार करो। लिखना पढ़ना हिंदी में हो, मत इससे इनकार करो।। गौरवमयी राष्ट्रभाषा की, पदवी जब मिल जाएगी। विश्वगगन में हिंदी ऊँचा, तमिल तेलुगू मलयालम हो, भले मराठी गुजराती। सब हिंदी की छोटी बहनें, कोई नहीं खुराफाती।। बड़ी बहन का साथ दिया तो, शिखर नए छू पाएगी। विश्व गगन में हिंदी ऊँचा, तब परचम लहराएगी।। चाहे जितनी भाषा सीखें, हिंदी का सम्मान करें। ममता सदा मातृभाषा ही, दे सकती है ध्यान करें।। अनंत पहुंची दूर तलक तो, हिंदी यह रंग लाएगी। विश्वगगन में ...
अभी अधूरा अभिनन्दन है
गीत

अभी अधूरा अभिनन्दन है

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** दीपक अभी नहीं जल पाया, माँ के मन की आशा का। अभी अधूरा अभिनन्दन है, अपनी प्यारी भाषा का।। यों तो सिंहासन पर हमने, लाकर इसे बिठाया है, पर अपने ही हाथों से, विष प्याला इसे पिलाया है, टूट गया है कच्चा धागा, इसकी मन अभिलाषा का। अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(१) बड़े अनूठे अक्षर अनुपम, अद्भुत शक्ति भरे प्यारे, अनुस्वार लगते ही करते, ब्रह्मनाद मिलकर सारे, हर अक्षर है एक योगिनी, अंत न ज्ञान पिपासा का। अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(२) अब तक मान दिया है थोथा, फिर भी तो मुस्काते हैं, देख रहे दुर्दशा मौन हम, मन में नहीं लजाते हैं, दूर करो अँधियार आवरण, तोड़ो धुंध कुहासा का। अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(३) छंद गीत कविता मल्हार का, नीर अमिय सम पिलवायें, रसिया राग रागिनी के फल, मेवा व्यंजन खिलवायें,...
तिरंगा
गीत

तिरंगा

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** जियें भारत देश मेरा, जियें भारत देश मेरा। तीन रंगों से सजा तिरंगा मेरा। सारे जग से न्यारा है, यह तिरंगा प्यारा है। देश के वीर जवानों ने, तिरंगे की शान बढ़ाई है।। जियें भारत देश... वीरों ने बलिदान दिया, अंग्रेजों को मार भगाया। तब जाकर हमनें, यह तिरंगा फहराया है।। जियें भारत देश... गली-गली फहराऍं तिरंगा, भारत की शान बढ़ाएंगे। झंडा ऊंचा रहे हमारा, यही गीत दोहराएंगे।। जियें भारत देश.... तिरंगे में तीन रंग को, अपने जीवन में भरना है। केसरिया रंग साहस का, श्वेत रंग सच्चाई का।। जियें भारत देश... हरा रंग हरियाली लाता, जन-जन में खुशहाली भरता। नील गगन में फहराओं तिरंगा, लहर-लहर लहराओं तिरंगा।। जियें‌ भारत देश मेरा, जियें भारत देश मेरा तीन रंगों से सजा तिरंगा मेरा।। परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्...
सुख के नगमे ही गाए हैं
गीत

सुख के नगमे ही गाए हैं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गाए हैं। वक्त चाल से अपनी ही चलता हरपल, हमको तो बस अपने फर्ज निभाने थे। जैसा आया मौसम भोग लिया हमने, आलस ने पर ढूंढे कई बहाने थे।। अपने मन का होतो सुख ना हो तो दुख, मन पर अंकुश ने ही सुख बरसाए हैं। जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।। अलविदा बीस, इक्कीस विदाई देता है, नहीं शिकायत तुमसे तुम इतिहास बने। याद करेंगे लोग तुम्हें ना भूलेंगे, वे सारे तुम जिनके खातिर खास बने।। कुछ व्यक्ति भगवान बने जीवन देकर, कुछ ने सेवा कर जीवन उजलाए हैं। जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।। घर में रहकर जीने का आनंद लिया, छोड़ी भागम भाग तो राहत पाई है। काम "अनंत" दूसरों के आए तब ही, दूर गई दु:ख दर्दो की परछाई है।। जनहित से जो भटक गए रहबर अपने,...
प्रेम दीप
गीत

प्रेम दीप

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में। दंभ द्वेष छल तम मिट जाये, नय अभिनंदन में।। दीप्त देह से, फिर उजियारा, कर्मों का फैले। धुल जाये आबद्ध चित्त जो, भ्रम में है मैले।। ज्योतित हो फिर करुण प्रेमरस, उर के दर्पण में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (१) आलोकित पुरुषार्थ पुंज से, भू परिमंडल हो। चिर प्रदीप से, दिग दिगंत तक कणकण उज्ज्वल हो।। कुटिल वृत्तियों, के चंचल पग, जकड़े बन्धन में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (२) विषम तटों के, तट बन्धों से, दीवारें जोड़े। कलुष भेद के, निंदित बंधन आओ हम तोड़े।। रुचिर प्रेम की, सघन उर्मियाँ, थिरके चिंतन में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (३) परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचन...
जलियांवाला बाग सुनाता
गीत

जलियांवाला बाग सुनाता

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** अमर शहीदों ने खूं से जो, लिख दी उसी कहानी को। जलियांवाला बाग सुनाता, डायर की मनमानी को।। ब्रिटिश हुकूमत ने जब हम पर, रौलट एक्ट लगाया था। स्वतंत्रता के मतवालों को, नहीं एक्ट वो भाया था।। उसका ही विरोध करने को, सभा एक बुलवाई थी। जनरल डायर को लेकिन वो, फूटी आंख न भाई थी।। महंगा पड़ा मगर उसको भी, करना इस नादानी को। जलियांवाला बाग सुनाता, डायर की मनमानी को।। शांत सभा पर चली गोलियां, कत्लेआम हजारों का। भला नहीं यह काम विश्व ने, माना था हत्यारों का।। तब चूलें अंग्रेजी शासन, की डोली तम छाया था। आजादी के सूर्योदय का, समय निकट यूँ आया था।। और अंततः हुए स्वतंत्र हम, हरा के दुश्मन जानी को। जलियांवाला बाग सुनाता, डायर की मनमानी को।। वाहक "अनंत" समरसता का, था उधमसिंह निर्भीकमना। तीनों धर्म जोड़ने को ही, राम, मोहम्मद, सिंह बना।। उसने ही तब दो गोली...