हो बंद शहादत सीमा की
अख्तर अली शाह "अनन्त"
नीमच (मध्य प्रदेश)
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सीमाएं आग उगलती जब,
सैनिक जब मारे जाते हैं।
व्यवहार बिगडते मुल्कों के,
आंसू जनता के आते हैं।।
भूमि के टुकड़ों के खातिर,
क्या लड़ना बुद्धिमानी है।
सरकारों का यूँ बैर भाव,
रखना लोगों नादानी है।।
सीमाएं जब तय हो जाती,
क्या रोज बदलती रहती हैं।
दीवारें क्या मानव हैं जो,
उठ-उठकर चलती रहती हैं।।
फिर क्या होता है सीमा पर,
क्यों शांत पड़ोसी लड़ते हैं।
हथियारों को हाथों में ले,
इक दूजे पे क्यों चढ़ते हैं।।
हो राजाओं का राज अगर,
सीमाओं का विस्तार करें।
निर्दोष जहां कुचले जाएं,
बेरहम सिपाही वार करें।।
अब राजाओं का राज नहीं,
सब की ही इज्जत होती है।
हो छोटा बड़ा भले कोई,
वोटर है ताकत होती है।।
जब बने पड़ोसी दुःख क्यों दें,
मानवता का विस्तार करें।
सुख-दुख बांटें मिल बैठ सभी,
मिल-जुल के सब त्योहार करें।।
इन्सानी गरिमा को समझें ,
ह...