जलियांवाला बाग सुनाता
अख्तर अली शाह "अनन्त"
नीमच
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अमर शहीदों ने खूं से जो,
लिख दी उसी कहानी को।
जलियांवाला बाग सुनाता,
डायर की मनमानी को।।
ब्रिटिश हुकूमत ने जब हम पर,
रौलट एक्ट लगाया था।
स्वतंत्रता के मतवालों को,
नहीं एक्ट वो भाया था।।
उसका ही विरोध करने को,
सभा एक बुलवाई थी।
जनरल डायर को लेकिन वो,
फूटी आंख न भाई थी।।
महंगा पड़ा मगर उसको भी,
करना इस नादानी को।
जलियांवाला बाग सुनाता,
डायर की मनमानी को।।
शांत सभा पर चली गोलियां,
कत्लेआम हजारों का।
भला नहीं यह काम विश्व ने,
माना था हत्यारों का।।
तब चूलें अंग्रेजी शासन,
की डोली तम छाया था।
आजादी के सूर्योदय का,
समय निकट यूँ आया था।।
और अंततः हुए स्वतंत्र हम,
हरा के दुश्मन जानी को।
जलियांवाला बाग सुनाता,
डायर की मनमानी को।।
वाहक "अनंत" समरसता का,
था उधमसिंह निर्भीकमना।
तीनों धर्म जोड़ने को ही,
राम, मोहम्मद, सिंह बना।।
उसने ही तब दो गोली...








