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बच्चों का दर्द

सपना
दिल्ली

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कोई तो समझे
बच्चों का दर्द
शिक्षा के नाम पर
हम पर होता अत्याचार
बस्ता तले दबे कंधे
चारों पहर
बस पढ़ाई का क़हर।

घर में पढ़ाई
स्कूल में पढ़ाई
वापिस आकर
टूशन में पढ़ाई
इतना ही नहीं
घर आने पर फिर पढ़ाई।

जीना मुश्किल कर दिया है
इस पढ़ाई ने
हम बच्चों का
सोते-जागते दिमाग में
चलता रहता
बस पढ़ाई-पढ़ाई का ही दृश्य।

जैसे ही पढ़ाई से

ध्यान भटके
शुरू हो जाती
घर पर डांट
स्कूल में डांट
टूशन में डांट
जैसे सबने हमे
डाँटने की डिग्री
ही पाई हो।

न उछल-कूद
न कोई शरारत
न मौज-मस्ती
मानो बचपन ही सिमट गया
हमारा, इस पढ़ाई में।

सबको लगता
बच्चा होना सबसे आसान
न कोई टेंशन
न कोई परवाह
जीवन में बस मौज-मस्ती!

होता बिलकुल उलट
पढ़ाई का बोझ
लादा जाता इतना
नीचे दबकर

दम घुटा
हम मासूमों का।

बच्चा क्यों नहीं बन जाते
एक दिन के लिए
हमारे जैसा
फिर समझ पाओगें
हमारे मन के मासूम अहसासों को।

फिर तुम
बच्चा होने का
सही मतलब समझोगे
कद्र करना सीखोगे
हमारी भावनाओं का।

परिचय :- सपना
पिता- बान गंगा नेगी
माता- लता कुमारी
शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी)
साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता तथा प्रपत्र वाचन एवं विभिन्न पत्रिकाओं/ संपादित पुस्तकों में विभिन्न विषयों पर शोधालेख प्रकाशित। साथ ही साहित्य सिनेमा सेतु वेबसाइट पर कुछ कविताओं का प्रकाशन।
निवासी- दिल्ली
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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