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देवतुल्य परिवार मिले

डॉ. राजीव पाण्डेय
गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)
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प्राणवंत हो सुप्त भावना,
हो पूरण सब मनोकामना।
वाणी में अमृत घुलता हो।
बाँहो का हार मचलता हो।
अग्रज के सम्मुख हम नत हो।
आदर्शों में अध्ययनरत हों।
हो बीजारोपण ममता का।
जहाँ पाठ पढ़े सब समता का।
कर्मठता का मूल्यांकन हो।
हर योग यहाँ मणिकांचन हो।
घर घर मे तुलसी सेवा हो।
हर मूर्ति यहाँ सचदेवा हो।
जहाँ वेद ऋचाएं गुंजित हों।
आशीषों से अभिनन्दित हों।
घर प्रगतिशील कल्पना हो।
जीवन में नई अल्पना हो।
मुरली की तान बिखरती हो।
मंदिर घण्टा ध्वनि बजती हो।
जीवन का कोना कुसुमित,
रोज यहाँ त्योहार मिले।
संस्कृतियों के संरक्षण हित
देवतुल्य परिवार मिले।

सुरभित क्यारी सी गंध मिले।
उन सुमनों पर मकरन्द मिले।
उन पर भृमरों का गुंजन हो।
कली का अलि से अभिनन्दन हो।
जहाँ पक्षी करते होंकलरव।
हो गन्ध गंध में हर अवयव।
खुशियां डूबी अभिलाषा हो।
समरसता की परिभाषा हो।
अतिथि भाव में सत्कार मिले।
सबको मुट्ठी भर प्यार मिले।
साधु संत सेवा में अर्पण।
दीन दुखी के लिए समर्पण।
स्वार्थ सिद्ध से मुक्त भावना।
प्रभु के प्रति आसक्त कामना।
मयूरा जैसा मन नृत्य करे।
खुशबू में डूबे कृत्य करें।
जहां प्रीत प्रेम की गागर हो।
वहाँ नेह स्नेह का सागर हो।
घर घर में प्रेम गंगा से,
अधरों पर रसधार मिले।
संस्कृतयों के संरक्षण हित
देवतुल्य परिवार मिले।

परिचय :- डॉ. राजीव पाण्डेय
निवासी : वेबसिट, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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