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मानव की मानवता

विरेन्द्र कुमार यादव
गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश)
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मानव की मानवता का हो गया पतन,
इसलिए बीमार है विश्व व सारा वतन।
खो रहे है सभी अपने चयन व अमन,
मानव ही ने किये सारे दूषित ये पवन।
जंगल काट बनाये कारखाने व भवन,
कोरोना बीमारी के जिम्मेदार है कवन।
मानव आंक्सीजन के स्रोत करे गमन,
कैसे बचाये मानव स्वयं का ये जीवन।
प्राकृति से बधि है हमारी जीवन डोर,
कोरोना ही कोरोना फैला चारों ओर।
हे!मानव तुम हैवानियत को दो छोर,
निकाल दो मन से छिपा है जो चोर।
चल नहीं रहा है मानव का कोई जोर,
हे! मानव मानवता ही धर्म-कर्म मोर।
सच्चाई से मानव आप मुख न मोड़,
प्राकृति से सच्चा रिश्ता लो तुम जोड़।
लौट आयेगा सबका चयन और अमन,
खुशहाल हो उठेगा अपना सारा वतन।

परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव
निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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