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प्रकृति और किसान

सपना मिश्रा
मुंबई (महाराष्ट्र)
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                             प्रकृति हमारी माता है, हमारी जगत जननी है। प्रकृति के द्वारा है हम सभी प्राणी पृथ्वी पर जीवित रह पाते हैं। प्रकृति के द्वारा ही हम पृथ्वी पर अपने जीवन को सुचारू रूप से चला पाते हैं और सरलता पूर्वक अपना जीवन बिताते हैं, क्योंकि पृथ्वी पर उपस्थित सभी छोटे-बड़े प्राणियों को प्रकृति के द्वारा कुछ ना कुछ मिलता रहता है ,जिससे सभी प्राणियों का जीविकोपार्जन होता है और सभी प्राणी सांस ले पाते हैं।
प्रकृति सदा देना जानती है और हमेशा कुछ न कुछ देती रहती है। उदाहरण के तौर पर :- शुद्ध जल, शुद्ध हवा, फल, सब्जियां, जड़ी बूटियां और भी बहुत सारी आवश्यकताओं की वस्तुएं इत्यादि हमें प्रकृति से ही प्राप्त होता है।

कभी-कभी तो मन करता है कि प्रकृति के विशाल और ममतामयी गोंद में जाके बैठ जाऊं और उसके प्रेम को महसूस करूं, उसका आलिंगन करने, उसकी हवा रूपी लोरी को सुनते हुए मैं सो जाऊं। हम सभी को अपनी प्रकृति से शिक्षा लेनी चाहिए और इसी तरह सभी के जीवन को खुशियों और प्रेम से भर देना चाहिए।

कवि नरेंद्र वर्मा प्रकृति का बखान करते हुए लिखते हैं की –

“हे प्रकृति कैसे बताऊं तू कितनी प्यारी,
हम सबको तू जीवन देती,
जल और ऊर्जा का तू भंडार देती,
परोपकार की तू शिक्षा देती,
यह प्रकृति तू सबसे प्यारी।”

कवि ने अपने चंद शब्दों से ही प्रकृति के संदर्भ में अपने सभी मनोभावों को बड़े ही बारीकी के साथ व्यक्त कर दिया।
इसी तरह बहुत सारे महान कवियों ने प्रकृति की सुंदरता का बखान अपने शब्दों में किया है। उनकी कविताओं में प्रकृति के प्रति प्रेम और आदर को बड़ी सजीव ता के साथ महसूस किया जा सकता है।
प्रकृति हमारी माता है और हम सभी उनकी संतानें हैं। इसके लिए हमारा कर्तव्य और धर्म यही कहता है कि, हमें अपने माता की सदा रक्षा करनी चाहिए। उनको आदर व सम्मान देना चाहिए। हम सभी को इतनी सुंदर, अद्भुत ममतामयी, विशाल और वृहद प्रकृति का संरक्षण करना चाहिए और उससे सदा प्रेम करते हुए कभी छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। जिससे कि उसका कोई भी नकारात्मक प्रभाव हमारे ऊपर ना पड़े क्योंकि माता और अपनी जगत जननी को नाराज करना मतलब अपने ही विनाश का कारण स्वयं बनना है। इसलिए सदा ऐसे कर्म करना चाहिए जिससे प्रकृति रूपी सुंदर मां की विशाल गोदी हम सभी प्राणियों के लिए सदैव खुला रहे और प्रकृति रूपी मां का ममतामयी आँचल रूपी आशीर्वाद हमारे ऊपर सदा बना रहे और हम सभी प्राणी फलते और फूलते रहे और अपनी प्रकृति की सेवा भी करते रहे।

इसी तरह हमारे किसानों की निर्भरता भी प्रकृति के ऊपर ही होती है। यदि प्रकृति खुश है तभी किसान भी एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकता है क्योंकि किसानों की खुशहाली का सबसे प्रमुख कारण प्रकृति है। प्रकृति के द्वारा ही किसानों का खेती कर पाना संभव हो पाता है और हम सभी को तरह- तरह के अनाज खाने को मिल पाते हैं।

“पेट जो भरता लोगों का
मिट्टी से फसल उगाता है
उस किसान की खातिर तो
यह धरा ही उसकी माता है।”

कोई भी देश बिना किसान के और बिना गांव के परिपूर्ण नहीं होता है। उसकी पूर्ति तभी संभव है जब वहां गांव और किसान दोनों हो। यदि हमारे देश में अन्नदाता ना हो तो संपूर्ण देश भूखा ही मर जाएगा।ऐसे भगवान रूपी अन्नदाता और किसान को मेरा शत-शत प्रणाम है।
भारत की ७५% जनसंख्या गांव में निवास करती है। कृषि हमारे देश का महत्वपूर्ण और मुख्य व्यवसाय है। इसलिए हमारे देश को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। हमारे भारत में कुल मिलाकर लगभग ७०% भारतीय लोग किसान है। ऐसा कहा जाता है कि किसान हमारे देश के रीड के हड्डी हैं।
किसानों के बखान में मैं शब्दों की माला को जितना पीरों पाऊं वह बहुत ही कम है, बल्कि शब्द कम पड़ जाएंगे उनके गुणगान और उनकी विशेषताओं को बताने के लिए। धन्य है ऐसे किसान जो कड़ी धूप में, सर्दियों में, प्रचंड गर्मियों और बरसातों में दूसरों का पेट भरते हैं।
आज वर्तमान समय में प्रतिवर्ष ३ से ४ हज़ार किसान आत्महत्या कर रहे हैं क्योंकि वर्तमान समय में हमारे अन्नदाता को वह लाभ नहीं मिल पा रहा है जिसके वे हकदार हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य बनता है कि वे “जय जवान जय किसान” के नारे को चरितार्थ करें और उनके मनोबल को बढ़ाते हुए उनके हक के लिए लड़े जिससे हर किसान के भीतर एक उम्मीद की हरियाली ललहा उठे, उनका मन उस प्रकार से खिल उठे जैसे बारिश के मौसम में चारों तरफ हरा रंग ही रंग दिखाई देने लगता है।
किसान हमारे देश का ताज है, हमारे देश के आभूषण और अलंकार है, प्रकृति द्वारा दिए गए उपहार है और प्रकृति की सुंदरता तभी तक बनी रह सकती है जब तक हमारे देश में किसान है। किसान हमारे देश के बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ग हैं। इनके मेहनत और मजदूरी की ही देन है जो हम दो वक्त की रोटी खा पाते हैं, इसलिए सबसे बड़े कर्जदार तो हम हैं जो अपने अन्नदाता के लिए आवाज बुलंद नहीं कर सकते हैं उन्हें पूजने के बजाय हम उनके ऊपर हो रहे अत्याचारों को देखते और सुनते हैं।
इसलिए आइए आज हम सब मिलकर अपने अन्नदाता रूपी भगवान के मनोबल को बढ़ाने के लिए हर संभव वह प्रयास करें जिससे कि उन्हें न्याय और उनका अधिकार उन्हें मिले। उनके मेहनत और मजदूरी का हक उनको वापस मिले और हमारे देश की दो वक्त की रोजी रोटी की गाड़ी चलती रहे जिससे कोई भी व्यक्ति भूखा ना मरे।
और अंत में यह कहा जा सकता है कि, प्रकृति और किसान का आपस में बहुत ही घनिष्ट संबंध होता है। प्रकृति के सानिध्य और उसके छत्रछाया में रहकर ही किसान का खेती करना संभव हो पाता है। किसानों के लिए धरती माता ही उसका आंगन होती हैं, आसमान उसका घर होता है और सूर्य का प्रकाश उसके लिए उसके घर का दीपक। जिसके साथ किसान तालमेल बिठाते हुए अन्न की उपज करता है और अपने परिवार के साथ समाज और देश का पेट भर पता है।

परिचय :- सपना मिश्रा
निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र)

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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