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रिश्ते…

प्रभा लोढ़ा
मुंबई (महाराष्ट्र)
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आज हुई ज़िन्दगी से मुलाक़ात,
हंस कर पूछा मैंने क्यों है इतनी नाराज़
कभी गुदगुदा कर हंसा देती है
तो कभी रुला देती है, क्या तेरी यही चाहत है?

सोच समझ कर दिया जबाब उसने
हँसती गाती आती हूँ तुम्हें सिखा जाती हूँ
रिश्तों को हमेशा रखना ज़िन्दा,
ये ही है तुम्हारी ख़ुशी का अनमोल ख़ज़ाना ।।

माँ पत्नी बहना, ये है जीवन के मोती
दादा पिता चाचा ये है रंगीन धागे
दादी नानी बुआ है जीवन की ख़ुशबू
बेटी बेटा बहू व जवाई है सब अपने ।।

रिश्तों की महत्ता को मत भूलो
प्रेम से रखो सबको अपना बनाकर,
गलती होने पर मुस्कुरादो रिश्तों की यही खूबी
माफ़ी माँगने से रिश्ते और होते मज़बूत ।।

मित्र सखा, ये तो है प्रेम के प्याले,
मीठे रस से तृप्त होती है मन की बगिया,
आँधी तुफान भी नहीं उजाड़ सकते झुक जाते हैं जो पेड़
रिश्तों की भी यही है अपूर्व महिमा
सँभाल कर रखना हर रिश्ते को,
अनमोल रत्न है ये सफल सुखी जीवन के।।

परिचय :- प्रभा लोढ़ा
निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र)
आपके बारे में : आपको गद्य काव्य लेखन और पठन में रुचि बचपन से थी। आपने दिल्ली से बी.ए. मुम्बई से जैन फ़िलोसफी की परीक्षा पास की। आप गृहणी की भुमिका निभाते हुए कई संस्थाओं में सक्रिय है। आपकी समाज सेवा, धार्मिक कार्य, असहाय बच्चे व महिला शिक्षा में विशेष रुचि है। आपकी जीवन यात्रा, उड़ान, उमंग ये तीन स्वरचित काव्य संकलन प्रकाशित हुईं। कॉफ़ी-टेबल बुक माँ, और हेपी ६५वां बर्थडे दो किताबें प्रकाशित हुई। शिक्षा घर घर पहुँचे यह आपका स्वप्न है।
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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