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अधिकार, मुक्ति, सुरक्षा

प्रवीण त्रिपाठी
नोएडा

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अधिकार बनाम कर्तव्य..
माँगते अधिकार निज कर्तव्य भूले हम सभी।
एक कर से क्या बजी संसार में ताली कभी?
देश में उन्नति तभी जब काम सब मिल कर करें।
जब समाज न जागता हर दृष्टि से पिछड़े तभी।।1

मुक्ति…
मुक्ति शब्द विचित्र है पर अर्थ इसके हैं कई।
भाव के अनुरूप इसकी नित्य व्याख्या हो नई।
मुक्ति तन को, मुक्ति मन को, सँग विचारों को मिले।
सत्य जब जाना उसी पल नींद जैसे खुल गई।।2

सुरक्षा…
नित सुरक्षा चक्र का पालन सभी मिल के करें।
दूरियाँ हों देह में विस्मृत नहीं मन से करें।
सावधानी रख हमेशा युद्ध हम यह जीत लें।
*संगठित हो कर कॅरोना दूर इस ग्रह से करें।।

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परिचय : प्रवीण त्रिपाठी नोएडा


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