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माध्यम वर्ग का अजब पहाड़ा

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़ (हरियाणा)

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आओ पढ़ें, मध्यम वर्ग का
ये अजब पहाड़ा।
सँघर्ष है जिसकी नियति,
न कभी जीता, न हारा।।

अमीर-गरीब के बीच पिस रहा
मैं ही कर्णधार हूँ।
हर टैक्स की अदायगी की
मैं ही तो पतवार हूँ।
मेरा जीवन नीति से नहीं,
नीयत से चलता है।
न जाने क्यों, हर शासक
मुझे ही छलता है।।

चुप रह जाना हर बार मेरी
विवशता मत समझो।
स्वयं ही कुछ महसूस करो,
जानो और परखो।
रख स्वाभिमान बरकरार
कैसे हमारी जिंदगी है कटी।
उजली दिखती कमीज़ के नीचे
है हमारी बनियान फटी।।

जुटा हिम्मत, कर व्यवस्था
आराम के साधन जुटा लेते है।
न बन पाये कभी बात तो
अपनी जरूरत घटा लेते हैं।
हर बार ही तुमने हमें
थकाया है, भरमाया है ।
हर संकट में जबकि
मध्यम वर्ग ने ही तुम्हें
बचाया है।।

जिन पर लुटा दिया तुमने
लाखों करोड़ों का अम्बार।
भाग गये विदेश वो,
कर के तुम्हें पूरी तरह से लाचार।।

मत भूलो हम ही हैं, अर्थ
व्यवस्था के मूल किरदार।
हम ही तो हैं रौनक है बाजार की,
हम ही हैं आधार।।

हम ही हैं, जो जरूरत के हिसाब से
अपना घर चलाते हैं।
वक्त पड़े तो हम अपनी हिम्मत से
घर की जरूरत बन जाते हैं।।

महाविपदा के आरंभ में, हमने
कितने ही जरूरत मन्दों को खिलाया हैं।
आज हम को पड़ी जरूरत तो
कोई भी काम नही आया है।।

गरीब गिड़गिड़ाये, धनाढय धमकाये
तो तुमको खूब समझ आता है।
मध्यम वर्ग की बेबसी का तुम पर
कोई असर नज़र नहीं आता है।।

महीने के आखिरी दिनों में
हो जाता है, हमारा अलग ही कायदा।
खुद भूखे रहे कर, बच्चों को भी
समझाते हैं, उपवास का फायदा।
राह पकड़ें क्रांति की,
मत कराना हमसे ऐसी भूल।
जो अब तक रहे फूल से कोमल,
बन जाएंगे त्रिशूल।।

परिचय :- राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’ कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
निवासी : बहादुरगढ़ (हरियाणा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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