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Tag: अशोक कुमार यादव

मुस्कान सौंदर्य
कविता

मुस्कान सौंदर्य

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** अंग सौंदर्य आभा हीरक दिव्यमान। सुरलोक की अप्सरा मेरी मुस्कान।। काले कुंतल कमर झूले वृहद रेशमी। लट मुख शोभित घुंघराले लुभावनी।। सुरम्य मुख चंद्रमा की सोलह कलाएं। निशा की प्रहर जगमग करती लीलाएं।। कनिष्ठ कर्णफूल लटक कर टिमटिमाते। लाल भाल बिंदिया प्रिय देख शरमाते।। ग्रीवा शोभित मोती जड़ित नौलखा हार। प्रियतम दृश्य अंकित छवि झलका प्यार।। हस्त कोमल साजन नाम मेहंदी चित्रकारी। विश्व सुंदरी, मोहिनी लगती हो बड़ी प्यारी।। मानसरोवर हंसिनी सदृश कृश कमरिया। मोंगरा, चमेली की खुशबू लेता सांवरिया।। चंचल चाल मृगी चलती बन मिस इंडिया। मैं छूलूं तुझे और पालूं तब आए निंदिया।। जिस दिन जब छुओगी आसमान की बुलंदी। तब मिलेगी सुख,शांति, अशोक, गर्व, आनंदी।। आपके जीवन में सदा खुशियों की बहार हो। चारों दिशाओं में तुम्हारी ही जय-जयकार ...
मृतात्मा
कविता

मृतात्मा

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जन्म लिया था मानव बन कर इस पावन भू-भाग। कब दानव बना पता नहीं चला उगलने लगा आग।। मोह में फंसा था जीवन भर, लिया ना प्रभु का नाम। अपने लिए, अपनों के लिए करता रहा ताउम्र काम।। गरीबों से लेता था धन, अमीरों का किया काम मुफ्त। कहता सभी से बताना नहीं किसी को, रखना गुप्त।। देखकर पहनावा उनका निर्धनों को बिठाता जमीन। जब आता कोई धनवान, उठ खड़ा होता आसीन।। भिक्षु को कभी ना दान दिया ना किया समाज सेवा। भक्ति की ना धर्म के मार्ग पर चला, खुद खाता मेवा।। ईश्वर समान माता-पिता को भेज दिया वृद्धा आश्रम। माया और मांस-मदिरा में लिप्त पाल बैठा था भ्रम।। भटक रहा हूं स्वर्ग और नर्क में रूप लिए श्वेत छाया। निर्मल, पुण्य वाले मिट्टी में दफन है मेरी हाड़ काया।। जला था आजीवन दूसरों से, गुरुर अग्नि की लपटों में। धवल धुआं उड़ गया ग...
जीत की अंधाधुंध तैयारी
कविता

जीत की अंधाधुंध तैयारी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** आखिर एक दिन जीत जाऊंगा मेरे मन में है विश्वास। किए जा रहा हूं तुम्हें पाने के लिए मैं अंधाधुंध प्रयास।। अब नहीं करूंगा बर्बाद समय को यह है अमूल्य निधि। मंजिल हासिल करने अपनाऊंगा तरह-तरह के विधि।। यही अंतिम अवसर है मेरे लिए निरंतर चलूंगा कर्म पथ। विजेता बन दिखाऊंगा दुनिया को आज लेता हूं शपथ।। एक बार विफल हो गया क्या बार-बार असफल होऊंगा। बेबस और निराश होकर अपनी चेतना को नहीं खोऊंगा।। अनुकरण करके हो उत्साहित गलतियों में करूंगा सुधार। अपनी कमियों को दूर करके ज्ञान अर्जिन करना है अपार।। विद्यासागर को बनाकर हमराही बनूंगा अब किताबी कीड़ा। सभी पन्नें को याद करके बूंद-बूंद में भरेगा ज्ञान का घड़ा।। मन, वचन, कर्म अपना, परीक्षा एक सांप सीढ़ी का खेल। काटे विषैला सांप तो अंतिम पायदान पर देता है ढकेल।। चलूंगा इस बार मुंह स...
गुरुदेव
कविता, भजन

गुरुदेव

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जय हो! महाज्ञानी गुरुदेव ज्ञानदाता। सच्चा पथ प्रदर्शक भगवान विधाता।। सूर्य के समान चमक रहा है विद्याधर। साक्षात अंतरात्मा को प्रकाशित कर।। अबोध बालक में जागृत किया बोध। विशेषज्ञ बन किए वृहद नवीन शोध।। ज्ञानी गुरु जड़ बुद्धि में ला देता चेतन। प्रेरणा से लक्ष्य का करवाता है भेदन।। मन में जगा देता है सीखने की इच्छा। मूल्य निर्धारण के लिए लेता परीक्षा।। नैतिकता और संज्ञान में बनाता प्रवीण। खेल, नृत्य, गीत, संगीत में करता उत्तीर्ण।। अंधकार का बनाया उज्जवल भविष्य। सत्य की पहचान कर दिखाया दृश्य।। कोविद ही लाता है जन-जन में सुधार। समाज कल्याण करता प्रभु के अवतार।। वंदना करो गुरु का चरण कमल पकड़। मांग लो तुम आशीष विवेक का जड़।। सहज मानव को योद्धा बना जीतवाता। जीवन जीने की आदर्श कला सिखाता।। परिचय : अशोक कुमार ...
तुम्हारे जाने के बाद
कविता

तुम्हारे जाने के बाद

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** चाह है मेरी तुम्हें पाने की, तुम आती हो बहुत याद। मन लगता नहीं कहीं मेरा, तुम्हारे चले जाने के बाद।। भूल जाता हूं कि मैं कौन हूं, खुद का पता है ना ठिकाना। प्यार में तेरे बन कर पागल, गली में घूमता प्रेम दीवाना।। गूंज रहा है तेरा नाम फिजा में, हर जगह दिखता तेरी तस्वीर। छोड़ कर अकेले चली गई हो, मेरी प्रेरणा तू है मेरी तकदीर।। अब ना देर करो जीवन साथी, लौट आओ तुम बिन मैं अधूरा। तुम अमूल्य हो मणींद्र से ज्यादा, तेरा प्यार मेरे लिए है पूरा-पूरा।। मेरे मनमीत, प्रेयसी, अर्धांगिनी, सुन लो निशब्द दिल की पुकार। तड़प रहा हूं तुम्हें पाने के लिए, तुमसे ही है प्रिय मेरा घर संसार।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पु...
कलमकार
कविता

कलमकार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** मृत हुए जन दिल को जिंदा कर देता, लौकिक जीवन रंगमंच का जादूगर हूं। प्रबल निराशा में मैं आशा की किरण, प्रेरक और मार्गदर्शक कलमकार हूं।। जननी की आंसुओं को लेकर हथेली, चंदन तिलक बना लगा लेता मस्तक। जब-जब पुकारती है नारी दुःखी स्वर, रक्षक वीर योद्धा बन देता हूं दस्तक।। सरहद पर डटे सिपाहियों के हृदय में, राष्ट्रप्रेम और विजय का भाव जगाता। मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर करो, उनके नस-नस में लोहित लहू दौड़ाता।। किसान की दशा, मजदूर की मजबूरी, बदन से निकलता रात-दिन ज्वालाएं। मन की पीड़ा सुनता नहीं सत्ता राजन, मेहनत का हक देकर दूर करो बाधाएं।। देख दीन-हीन बेगार की करुणा दशा, खून के आंसू पी लेता समझ गंगाजल। दिवस जगाता मुक बधिर को बैगा रुप, पाठ पढ़ाता अधिकार का करने मंगल।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली,...
कविराज
कविता

कविराज

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** प्रिय से फुलवारी में मिलकर प्रेम की वर्षा, अद्भुत आनंद की अनुभूति करता रसराज। एकांत में किसी दिन डूब जाता गहरी सोच, शब्द जाल फैला काव्य लिखता कविराज।। भावों को अभिसिंचित अभिव्यक्ति देकर, बनता हूं रचनात्मक क्रान्तदर्शी महाकवि। जाता कहीं भी कल्पनाओं की उड़ान भर, घोर अंधकार को उजाला करता मैं हूं रवि। गगन से उतार देता हूं जमीन पर चांद को, मैं बनाकर विश्वसुंदरी, मनमोहिनी,अप्सरा। टिमटिमाते तारों से जड़ित अंग आभूषण, नील परिधान से सुसज्जित लगती सुंदरा।। छंदों में बंध कर नाचती अपनी नृत्यशैली, अलंकारों से बढ़ता रूपवती वनिता शोभा। गुण विशिष्टता से परिपूर्ण कविता की रानी, नव शब्दशक्ति से फैलाती चहुंओर आभा।। रुप यौवन की रोशनी मुझ पर हुई आभासी, समा गई दिलदार दिल मुझे करके दीवाना। उनसे बात करता हूं अकेले में चुपके-चुप...
भारत देश की आजादी
कविता

भारत देश की आजादी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी थी भारत मां, अपने महावीर लाल से लगा रही थी गुहार। पराधीन बनकर खो दी मैंने अपनी अस्मिता, कोई तो सुन लो अपने जननी की पुकार।। मां की करुणा देख उठ खड़े हुए भारतवासी, जो जन थे पहले बेबस, मायूस और लाचार। शंखनाद करके बिगुल बजा दिए संग्राम की, नहीं सहेंगे राक्षस रूपी अंग्रेजों के अत्याचार।। कृषिक्षेत्र में काम करते किसान हल लेकर दौड़े, फावड़ा ले-लेकर निकले श्रम करते हुए मजदूर। तोप और बंदूक लेकर घेर लिए रक्षक तीनों सेना, उतर गए मैदान में नेता राजनीति सीख भरपूर।। सून गोरे तुम्हारी गोलियों ने हमारे खून को पीया, अभी भी हमारे तन में है तुम्हारे कोड़ों के निशान। हम लोग जुल्म को सहकार बन गए हैं फौलादी, भारत माता की कसम मिटा देंगे तुम्हारी पहचान।। एक गोरा ने कहा मरे हुए दिल अब जिंदा हो गए, म...
मुझसे तुम प्यार करो
कविता

मुझसे तुम प्यार करो

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** बोल दो जो मन में है, प्यार का इजहार करो। सुन स्वर्ग की अप्सरा, मुझसे तुम प्यार करो।। तुम मुझे, मैं तुझे पसंद, क्यों खामोश बैठी हो। छीन ली मुस्कान मेरी, तुम बहुत ही हठी हो।। मेरे दिल को दुखा कर, आखिर क्या मिलेगा। मुझसे बात ना करके, मन बाग कैसे खिलेगा।। मैं जा रहा हूं दूर तुमसे, एक बार आवाज दो। लेकर यादों की परछाई, राह में मेरा साथ दो।। रखूंगा सदा पलकों में, दुःख को सुख में ढ़ाल। हमारा प्यार अमर रहेगा, प्रेमी जन देंगे मिसाल।। झलक पाकर मैं दीवाना, तुझे अपना मान बैठा। बंद आंखों के सपने, खुली आंखों में था झूठा।। बना गायक प्रेम का, गलियों में गीत गाने लगा। बैठ तुम्हारी द्वार पर, मधुर नाद से रिझाने लगा।। लाल गुलाब की कली, मधुकर को बुलाने लगी। आओ मीठा रसपान करो, बदन में आग लगी।। छू लो मुझे एक बार, सहला दो नर्म पं...
रक्षासूत्र
कविता

रक्षासूत्र

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सुन मेरी प्यारी सहोदरा, राखी बांधने आना तुम। देखता रहूंगा राह तुम्हारी, मुझे भूल ना जाना तुम।। खरीदना बाजार से राखी, लाना लड्डू मीठी मिठाई। लगाना भाल विजय तिलक, पुकार रही है खाली कलाई।। भेंट करुंगा एक नया उपहार, खुशी से झूम कर नाचोगी। सुख, समृद्धि कामना करके, रक्षासूत्र जीवन का बांधोगी।। जब संकट में घिर जाओगी, मेरा नाम लेकर देना आवाज। कहना, अभी मेरा भाई जिंदा है, मेरे लिए लड़ेगा वो है जांबाज।। जब कोई मानव,अमानव बन, दुःख और दर्द तुझे पहुंचाएगा। उस दिन बनकर योद्धा रक्षक, तेरा ये भाई दौड़ा चला आएगा।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिक...
ज्ञानमणि
कविता

ज्ञानमणि

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** कोई बन सपेरा नचा रहा है मुझे? अपनी बीन के सुमधुर धुन पर। लहराकर, झूमकर नाच रहा हूं, जादुई आवाज को सुन-सुन कर।। मेरे चारों ओर फैलाया मंत्र जाल, मुझे कोड़ा से पीट रहा है प्रेत दूत। तू ही रास्ता दिखाता है विश्व को, निकालो मस्तक से जो है अद्भुत।। मेरे पास है दिव्यमान ज्ञानमणि, जन मन को करता है प्रकाशित। छीनकर मुझसे ले जाएगा वंचक, जिसे दिया था गुरुदेव कर्मातीत।। फिर क्या रह जाएगा जीवन में ? इसे खोने के बाद तमस-ही-तमस। बन अंधा टकराऊंगा शिलाओं पर, सिर पटक करूंगा आत्म सर्वनाश।। कोई छीन नहीं सकता मेरी प्रतिभा ? बदलूंगा अपना रूप,मैं हूं इच्छाधारी। कर्म करके प्रभु से मिला है वरदान, जय आशीष दिया है भोले भंडारी।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्र...