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भारत देश की आजादी

अशोक कुमार यादव
मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी थी भारत मां,
अपने महावीर लाल से लगा रही थी गुहार।
पराधीन बनकर खो दी मैंने अपनी अस्मिता,
कोई तो सुन लो अपने जननी की पुकार।।

मां की करुणा देख उठ खड़े हुए भारतवासी,
जो जन थे पहले बेबस, मायूस और लाचार।
शंखनाद करके बिगुल बजा दिए संग्राम की,
नहीं सहेंगे राक्षस रूपी अंग्रेजों के अत्याचार।।

कृषिक्षेत्र में काम करते किसान हल लेकर दौड़े,
फावड़ा ले-लेकर निकले श्रम करते हुए मजदूर।
तोप और बंदूक लेकर घेर लिए रक्षक तीनों सेना,
उतर गए मैदान में नेता राजनीति सीख भरपूर।।

सून गोरे तुम्हारी गोलियों ने हमारे खून को पीया,
अभी भी हमारे तन में है तुम्हारे कोड़ों के निशान।
हम लोग जुल्म को सहकार बन गए हैं फौलादी,
भारत माता की कसम मिटा देंगे तुम्हारी पहचान।।

एक गोरा ने कहा मरे हुए दिल अब जिंदा हो गए,
मर रहे हैं हमारे लोग अब छोड़ चलो सब प्रभुता।
लौटा देते हैं भारतीयों को उनकी जननी जन्मभूमि,
कहीं हम गुलाम ना बन जाएं दो उनको स्वतंत्रता।।

परिचय : अशोक कुमार यादव
निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़)
संप्राप्ति : सहायक शिक्षक
सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ‘शिक्षादूत’ पुरस्कार से सम्मानित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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