Saturday, May 18राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

देश का कानून पहले अंधा था अब काना हो गया है

हितेश्वर बर्मन
डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
********************

कानून देश की जाति, धर्म, लिंग,‌ अमीरी-गरीबी व औदा इन सबसे सर्वोपरि होता है। कानून समाज की एक सीमा होता है, जिसकी दीवारें विभिन्न कानूनी धाराओं से मिलकर बना होता है। देश के संविधान के अनुसार कानून से बड़ा कोई भी नहीं है। इसको आम जनता से लेकर आला हुक्मरानों को भी मानना पड़ता है तथा इसी कानून के दायरे में रहकर ही जीवन निर्वाह करना पड़ता है। जो भी इंसान अपने देश या क्षेत्र में बने किसी भी कानून का उलंघन करता है या फिर उसके दायरे से बाहर अनाधिकृत कार्य करता है तो उसको विधि द्वारा स्थापित नियमों के तहत दण्ड भुगतना पड़ता है। हांलांकि कानून समय के साथ परिवर्तन होता रहता है, क्योंकि समय के साथ व्यक्ति की परिस्थितियां भी बदल जाती है। जीवन जीने का नज़रिया यहाँ तक की मनुष्य की सोच भी बदल जाती है।

कानून अंधा होता है, कोई दिक्कत नहीं पर जिस दिन कानून का सिर्फ एक ही आंख दिखाई देने लगे। तो उसी वक्त से न्याय और अन्याय की परिभाषाएं बदल जायेगी। न्याय के नाम पर अन्याय होने लगेगा, कानून से लोगों का विश्वास उठना शुरू हो जायेगा। कानून लचीला हो या कठोर जब तक उस पर कोई आवाज नहीं उठता, प्रश्न चिन्ह ? नहीं लगता तब तक जस की तस चलता रहता है। लेकिन कभी-कभी लोगों को न्याय देने के लिए बनाये गये कानून से ही किसी न किसी के साथ अन्याय हो जाता है। तब कानून और देश के हुक्मरानों पर सवाल उठना शुरू हो जाता है। लेकिन मन में उठते हुए सवालों का कोई जवाब नहीं होता और न ही उसका कोई प्रमाणिक उत्तर मिलता है। जब तक देश के कानून को लेकर मन में उठ रहे सवाल समाज में या फिर न्यायालय तक नहीं पहुंचता तब तक ऐसे सवाल किसी न किसी के हृदय को अपने नुकीले तेज धार से भीतर ही भीतर कुरेदता रहता है।

आज के वर्तमान युग में महिला कानून को लेकर आम आदमी से लेकर राजनेताओं व आला अधिकारियों के मन में भी सवाल होते हैं। ये सवाल दो तरह के लोगों के मन में उठते हैं। एक सवाल उन महिलाओं के मन में उठता है, जिन महिलाओं के साथ वास्तव में अनाचार, शारीरिक शोषण व अन्य अमानवीय घटनाएं घटित हुआ हो। तथा दूसरा सवाल उन लोगों के मन में उठता है, जिन पुरुषों को महिला कानून के नाम पर झूठे केस में फंसाया जाता है। महिलाओं को लेकर देश में बहुत सारे सख्त कानून बनाये जा चुके हैं। कि कोई भी व्यक्ति महिला को उसकी अनुमति के बिना बात करना तो दूर उसको आंख उठाकर देख भी नहीं सकता। इसके बावजूद विभिन्न मामलों में सिर्फ पुरुषों को ही दोषी ठहराया जाता है। भले ही शारीरिक संबंध बनने की स्थिति में महिला भी बराबर की भागीदार हो। एक तरह से कहें तो महिलाओं के मन में उठ रहे सवालों का जवाब उनको नि:सन्देह मिल गया है। लेकिन अभी पुरूषों के सवालों का जवाब मिलना सौ फीसदी बाकी है। अभी कानून को जवाब देना पड़ेगा सबूत व गवाही से ऊपर उठकर न्याय और अन्याय का हिसाब देना पड़ेगा। आँख में बंधी हुई पट्टी को उतारकर समाज के वास्तविक दुनिया को देखना होगा। कानून को खुद से सवाल पूछना होगा कि कहीं महिला कानून के अधिकार का गलत फायदा तो उठाया नहीं जा रहा है। साथ ही कानून को उन सवालों का भी जवाब देना होगा जो पुरुषों के मन ज्वाला की तरह धधक रही है। जो कहते हैं – कि मुझे किसी सड़यंत्र के तहत महिला केस में फंसाया गया है, मैंने उसके बाप को कुछ रूपये उधारी दिया था मांगने गया तो पैसे लौटाने के डर से मुझे-झूठे छेड़छाड़ के केस में फंसा दिया, मैंने अपनी बीबी को किसी गैर मर्द के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया तो उसने मुझे दहेज प्रथा के केस में फंसा दिया, उस महिला को मैनें रिश्वत लेते देखा था तो उसने मुझे उल्टा इज्जत का लूटेरा बता दिया, मैंने अपनी साली के ब्याह में ससुर जी को पांच लाख रुपया उधार दिया था जब मैंने मांगा तो मेरी बीवी ने दहेज प्रथा का झूठा केस कर दिया खुद बेइमानी करके मुझे ही बेइज्जत कर दिया। इस तरह के सवालों का जवाब मिलना बहुत ही जरूरी है। आजकल की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बढ़ तो रही पर कुछ मामलों में महिलाएं द्वारा किए गए अपराध पुरुषों की तुलना में काफी भयानक व अमानवीय होता है। जैसे – आजकल आये दिनों कहीं सड़कों में, तो कहीं नाले में यहाँ तक की कचरे के कूड़े में भी नवजात बच्चे को महिलाओं के द्वारा फेंक दिया जाता है। एक और उदाहरण लेते हैं जो मानव समाज में सदियों तक अमर रहेगा। जब भी उत्तर प्रदेश की ज्योति मौर्या का ख्याल मन में आयेगा तो हर पति अपनी पत्नी को पढ़ाने-लिखाने से पहले सौ बार सोचेगा। बेचारे आलोक मौर्या का विवशता ये है की महिला कानून के चलते वो अपनी पत्नी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता। भले ही वो अपनी पत्नी का अवैध संबंध किसी गैर मर्द से होने के कारण तलाक़ ले सकता है पर ज्योति मौर्या का कुछ बिगाड़ नहीं सकता। लेकिन यदि जब ज्योति मौर्या अपने पति आलोक मौर्या पर किसी दूसरे महिला के साथ अवैध संबंध का आरोप लगाती तो उसके पति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो जाती। स्पष्ट है कि देश का कानून अंधा नहीं है। बल्कि देश कानून एक आंख से काना हो गया है, जिसको सिर्फ पुरुषों का अपराध दिखाई देता है। महिला चाहे कोई भी अपराध करे उसको किसी न किसी बहाने छूट मिल जाती है। महिलाओं को नाजायज़ रिश्ते के संबंधित अपराध में कोई भी सजा नहीं मिलती है। सिर्फ पुरुषों पर दोष मढ़ दिया जाता है। यही कारण है कि महिला संबंधित अपराध दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। यदि देश में नाजायज़ रिश्ते से संबंधित अपराध को खत्म करना है, तो देश के कानून में बदलाव करना होगा ताकि ऐसे मामलों में महिलाओं को भी सजा मिल सके। तब जाकर देश में एक स्वच्छ, निर्भिक और शांति का वातावरण कायम होगा।

परिचय :-  हितेश्वर बर्मन
निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ – बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *