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दीवाना हो गया

मनीष कुमार सिहारे
बालोद, (छत्तीसगढ़)
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पंछी देखा सोंचा मन में
कुछ तो ख्याल करुं
इसे ही पुरी कविताओं में
सोलह श्रृंगार करूं
मन की कई सवालों के पिछे
मैं खुद गुंथता चला
जो था मन में बातें
वो सारी मैं भुलता चला
देख दिवाना हो गया
मानो की मैं कान्हा बना
पहली दफा जो देखी राधा
बांवरा कान्हा हुआ
नीले नीले चमक थी उसकी
मानो गगन तर आयी हो
गिरने को खुब बारिश
घनघोर बिजली छायी हो
कल तलक जो ख्वाब थे
हकिकत में वैसा आ गया
देख दिवाना हो गया
देख दिवाना हो गया

करूं क्या तारिफ उसकी
शब्द भी फीकी लगे
इस कारवां में फना़ हो जाने को
मन मेरा मचलने लगे
ढलती सुरज की रक्त किरण
उसके वस्त्र पर पड़ने लगे
नील वस्त्र धारण वो कन्या
मोती सा चमकन लगे
लगे आईने कपड़ों पे उसके
तर-बदर अर्चि चलने लगे
अचानक वो अर्चि आंखों के मेरे
सामने कहीं खो गया
जैसा सोंचा ना था वैसा संग में
हादसा कुछ हो गया
देख दिवाना हो गया
देख दिवाना हो गया

ना जाने क्यों लोगन ह मेरे
पास-पास आने लगे
जगमगाती आंखो के आगे
अंधियारी छाने लगे
धड़कन तो मेरा तेज़ था
वो भी कम होने लगे
शोरों के गुल को छोड़कर
कांनो मे सन्नाटे भरे
मैं उठ खड़ा तो सामने
अपरिचित लोगों की भीड़ थी
मै देख सकता सबको
सबकी निगाहें कहीं और थी
मैं तो खड़ा था सामने
मेरा तन ज़मीं पड़ा दिखा
मैं आत्मा था यारों
मैं तो था कब का मर चुका
उस हादसा से सपने मेरे
चुर-चुर हो गया
मेरे खातिर अश्रु देख
दिल में खलबली सा हो गया
देख दिवाना हो गया
देख दिवाना हो गया

परिचय :-  मनीष कुमार सिहारे
पिता : श्री झग्गर सिंह
निवासी : पटेली, जिला बालोद, (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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