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Tag: आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु”

वाचिक गंगोदक सवैया
गीत

वाचिक गंगोदक सवैया

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** वाचिक गंगोदक सवैया भारती मातु की आरती के दिये टिमटिमाते रहें झिलमिलाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। छोड़ निज स्वार्थ को छोड़ परमार्थ को, छोड़ माँ-बाप परिजन सखा आइए। प्रीति के जोड़ अनुबंध निज देश से, राष्ट्र सिद्धांत प्रांजल निभा जाइए।। कर्म ही धर्म यह मर्म जानें सभी, स्वप्न साकार माँ के बनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। विश्व में राष्ट्र का मान सम्मान हो, मूल्य नैतिक कभी भी भुलाएँ नहीं। लोक कल्याणकारी रहे भावना, वासना को हृदय में बसाएँ नहीं।। इस प्रजातंत्र के उन्नयन मंत्र को, श्लोक जैसा समझ गुनगुनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। शाँति सुख...
विध्वंकमाला छंद
छंद

विध्वंकमाला छंद

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** पानी बचाओ न फेंको बहाओ। मानो कहा आप हे! मित्र आओ।। पृथ्वी हमारी तभी ही बचेगी।। सातों अकूपाद धारे रहेगी।। रोपो नए वृक्ष प्यारे सखाओं। वर्षा करें मेघ न्यारे सखाओं।। पर्याप्त वर्षा से भूमि प्यारी। फूले फले हो नई पुष्प क्यारी।। मित्रों यही धर्म भी है हमारा। सच्चा सही कर्म भी है हमारा।। आओ उठो बाल वृद्धों युवाओं। व्याही कुवाँरी धरित्री सुताओं।। मैं आपको धर्म सच्चा बताऊँ। दो हाथ से वृक्ष बीसों लगाऊँ।। लो आपभी धर्म का मर्म पाओ। दो-चार-छः वृक्ष नए उगाओ।। नीरांजली तृप्त पृथ्वी बनेगी। वृक्षाम्बरी नृत्य न्यारा करेगी।। ऊर्जा धरा में है नीर लाता।। माँ मेदिनी को सुधा है पिलाता।। सौभाग्य से मानवी देह पाई। निष्णात है कर्म की कौशलाई।। क्या द्वंद क्यों आप नहीं बताते। आनंद क्यों ...
महागौरी वन्दन
भजन, स्तुति

महागौरी वन्दन

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** महामाता महागौरी जगत कल्याणकारी हैं। तुम्हारी आस हमनें नाव दरिया में उतारी है।। शिवानी शैलजा अम्बा त्र्यम्बक तोषिणी गौरी। चतुर्भुज रूप है अनुपम, धरे हैं चंद्रमा मौरी।। लिए त्रयशूल दाएँ कर, बजातीं वामकर डमरू। वृषभ आरूढ़ हैं माता, चलें हैं संग में भैरू।। जिन्होनें भक्त के कल्याण हित लीला प्रसारी है।।१! सुता हिमवान की हो तुम, चुना पति शंभु शंकर को। कठिन तप से पड़ी काली, रिझाया तब शुभंकर को।। पिया सितकंठ आये तब, दिया वर गौर वर्णा हो। बनी शंकर प्रिया शुभ्रा, शिवानी हो अपर्णा हो।। तभी से गौरवर्णा हो, वदन कर्पूर क्यारी है।!२! तुम्हीं दुर्गा तुम्हीं काली, तुम्हीं तो अन्नपूर्णा हो। तुम्हीं शाकाम्भरी देवी, महिष की दम्भ चूर्णा हो।। सुनैना दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गतारिणि हो। भवानी दुर्गभ...
अब तक है शेष डगर साथी
ग़ज़ल, गीतिका

अब तक है शेष डगर साथी

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** अब तक है शेष डगर साथी। आओ चलते मिलकर साथी।। यदि मानव हो तुम भी मैं भी, फिर क्यों इतना अंतर साथी।। तुम उच्च महल मैं हूँ झोपड़, पर मैं भी तो हूँ घर साथी।। उपयोग हमारा दोनों का, है बिल्कुल ही रुचिकर साथी। यदि तुमने वैभव पाया है, पाये नौकर चाकर साथी।। तो मैं आध्यात्म भक्ति सेवा, सत्कार वरित किंकर साथी। हो तुम अपूर्ण मैं भी अपूर्ण, पूरा केवल ईश्वर साथी।। फिर क्यों तन तान मदांध हुए। आओ मुड़कर भीतर साथी। यह जग तो केवल एक स्वप्न, इसमें क्यों मद मत्सर साथी। सबको जब जाना परमस्थल, उस परमात्मा के दर साथी।। फिर क्यों है इतना भेद भला, क्या सेवक क्या अफसर साथी। हम एक पिता की संतानें, है एक जगह पीहर साथी।। तुम 'नित्य' सही को भूल गये, है सबके जो अंदर साथी।। परिचय...
बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।
ग़ज़ल

बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे। तब जा के मुझे तुझमें भी अनवर दिखाई दे।। मज़हब की सियासत ही है इंसान की दुश्मन। नीयत से मुझे इसकी सरासर दिखाई दे।। फ़िरते हैं हवस अपनी मिटाने को भेड़िये। बेशक़ न अभी तुमको ये मंज़र दिखाई दे।। उड़तीं हैं गरम रेत से जो झिलमिलाहटें। मुमक़िन है तुम्हें ये भी समंदर दिखाई दे। अब क़त्ल के सारे वो तऱीके बदल गये। वाज़िब कि नहीं हाथों में खंज़र दिखाई दे। शैतां ने तिलिस्मात बिछाया सियासतन। हर सर है खूँ-ब-खूं नहीं पत्थर दिखाई दे। बस ज़िस्म पे शैदा न हुआ कर ऐ नित्यानंद। हो सकता क़े चूनर में दु-नश्तर दिखाई दे।। हे! हरि के अवतंस प्रभो तुम, हो करुणा निधि श्री भगवान।। परिचय :- आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” जन्म तिथि : ३० जुलाई १९८२ पिता : भगवद्विग्रह...
सोहत श्याम लला मन मोहक
सवैया

सोहत श्याम लला मन मोहक

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** चकोर सवैया भगण+७+गुरु लघु १. सोहत श्याम लला मन मोहक, बाजत है मुरली निधि बाग। नाथत कालिय नाग भगावत, नाचत गोपिन के अनुराग।। सूर सुनावत गीत मनोहर, मोहन मोहन गावत जाग। नंद यशोमति लाल बने ब्रज, ग्वालिन के शुभ जागत भाग।। २. चंदन लेप लिए कुबड़ी तन, हृष्ट बना करते अनुराग। मुष्टिक मुष्टिक मार गिरावत, और नसावत दुष्ट विभाग।। कंस विनाशनहार महाप्रभु, उद्धव ज्ञान करावत त्याग।। दामिनि नीलम मेरु पड़ी तिमि, दंत प्रभा चमके मुख भाग।। ३. पांडव पक्ष रहे मधुसूदन, अर्जुन हेतु सुनावत ज्ञान। यज्ञ सुता तन चीर बढ़ा प्रभु, आप बने शुभता पहिचान।। लाज बचावनहार सखी तन, चीर बढ़ा तुम राखत मान।। हे! हरि के अवतंस प्रभो तुम, हो करुणा निधि श्री भगवान।। परिचय :- आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” जन्म तिथि : ३० जुल...