Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

प्रति गीत (पैरोडी)
गीत, हास्य

प्रति गीत (पैरोडी)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** क्या देश है देशी कुत्तों का? गलियों में गुत्थमगुत्थों का। इस देश का यारों क्या कहना, अब देश में कुत्ते ही रहना।। यहाँ चौड़ी छाती कुत्तों की, हर गली भौंकते धुत्तों की। यह डॉग लवर का है गहना, कुत्ते को कुत्ता मत कहना।। यहाँ होती भौं-भौं गलियों में, होती भिड़न्त रँगरलियों में। जो तुम्हें यहाँ पर रहना है, हर हरकत इनकी सहना है।। आ रहे विदेशी नित कुत्ते, रुक नहीं रहे ये भरभुत्ते। ढोंगिया रोंहगिया झबरीले, कुछ कबरीले कुछ गबरीले।। कहीं जर्मन है कहीं डाबर है, लगता कुत्तों का ही घर है। न्यायालय का यह आडर है, देखो इनमें क्या पॉवर है।। गलियों में नहीं मिलेंगे अब, एसी दिन-रात चलेंगे अब। भोजन पायेंगे सरकारी, बन गए अचानक अधिकारी। बन रहे शैल्टर होम यहांँ, कुत्तों की है हर कौम यहाँ। बेशक गउएंँ काटी ज...
तुम भी ठाकुर बन सकते हो
कविता

तुम भी ठाकुर बन सकते हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** बेशक तुम को क्षत्राणी की, कोख नहीं मिल पाई होगी। हर ठाकुर की शान देखकर, तन में जलन समाई होगी।। दुख भी दुखी हुआ करता है, तुम जिसको सुख समझ रहे हो। क्षत्रिय धर्म यही है जिसको, अपना सपना समझ रहे हो।। इनके दुख लेकर जीवन में, क्या तुम सुख से सो सकते हो? यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर हो सकते हो।।१।। कद-काठी रँग-रूप एक सा, एक धरा का अन्न पचाते। पानी-हवा धूप-छाया में, एक सरीखा स्वाँग रचाते।। बहस किया करते हो अक्सर, इनसे हम कैसे कमतर हैं? खून एक रँग का हम सब में, फिर कैसे इतने अन्तर हैं?? चलो आज इस पर क्या मेरी, कुछ बातें तुम सुन सकते हो? यदि ऐसा कर सकते हो तो, तुम भी ठाकुर बन सकते हो।।२।। तो मैं इतना बतलाता हूँ, ऐसी सीखें नहीं मिलेंगी। किसी पेड़ की दो पत्ती भी, एक सरीखी नहीं मिलेंगी।।...
पानी ही पानी है
कविता

पानी ही पानी है

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** धरती से अम्बर तक, एक ही कहानी है। आँख खोल देखो तो, पानी ही पानी है।। सूखे में पानी है, गीले में पानी है । छाई पयोधर पै, कैसी जवानी है।। नदियों में नहरों में, सागर की लहरों में। नालों पनालों में, झीलों में तालों में।। डोबर में डबरों में, अखबारी खबरों में। पोखर सरोबर में, गोरस में गोबर में।। खेतों में खड्डों में, गली बीच गड्ढों में। अंँजुरी में चुल्लू में, केरल में कुल्लू में।। कहीं बाढ़ आई है, कहीं बाढ़ आनी है। मठी डूब जानी है, बड़ी परेशानी है।। घन की निशानी है, जानी पहचानी है। यही जिन्दगानी है, पानी ही पानी है।। हण्डों में भण्डों में, तीर्थ राज खण्डों में। कुओंऔर कुण्डों में, हाथी की शुण्डों में।। गगरी गिलासों में, लोटा पचासों में । छागल सुराही में, किटली कटाही में।। तसला...
जंगल में चुनाव
कविता

जंगल में चुनाव

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुन चुनाव की बात समूचा, जंगल ही हो उठा अधीर। माँस चीथनेवाले हिंसक, खाने लगे घास की खीर।। धर्म-कर्म का हुआ जागरण, आलस उड़ कर हुआ कपूर। देने लगे दुहाई सच की, असत् हो उठा कोसों दूर।। बिकने लगे जनेऊ जमकर, दिखने लगे तिलक तिरपुण्ड। जानवरों के मरियल नायक, बन बैठे हैं सण्ड-मुसण्ड।। ऊपर से मतभेद भुलाकर, भीतर भरे हुए मन भेद। तू-तू मैं-मैं करके सरके, आसमान में करके छेद।। एक दूसरे के सब दुश्मन, हुए इकट्ठे किया विचार। किसी तरह इस बबर शेर का, देना होगा नशा उतार।। टिकट बाँट की नीति बनाई, किया मसौदा यूँ तैयार। जिसके जितने अधिक वोट हों, सत्ता पर उसका अधिकार।। श्वान न्यौतने लगे बिल्लियाँ, बिल्ली न्यौते मूषक राज। देखी दरियादिली चील की, बुलबुल की कर उठी मसाज।। लूलों ने तलवार थाम ली, लँगड़े चढ़ने लगे...
दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग-२
कविता

दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग-२

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ।।ब।। गली-गली से हुए इकट्ठे, बाँधे पट्टे निकले हैं। अपनी जाति देख गुर्राने, वाले पट्ठे निकले हैं।।१।। जितनी ताकत है दोनों में, उतनी धूम मचायेंगे। जितनी पूँछ उठा सकते हैं, उतनी पूँछ उठायेंगे।।२।। धरती खोद रहे पैरों से, इक-इक टाँग उठा ली है। गुर्राहट बढ़ रही कि, गुत्थम गुत्था होने वाली है।।३।। कुछ भौं-भौं करके भागेंगे, कुछ इस रण को जीतेंगे। बुरी तरह कुछ चिथ जायेंगे, बुरी तरह कुछ चीथेंगे।।४।। जितनी जबर खुदाई होगी, उतनी लोथल खतरे में। जितना अधिक जिन्न उछलेगा, उतनी बोतल खतरे में।।५।। बेशर्मों में शर्म न मिलती, करुणा नहीं कसाई में। माँ के मन में बैर न मिलता, मिरची नहीं मिठाई में।।६।। अकली कुछ ऐसे हावी हैं, नकली असली लगते हैं । और असलियत वाले असली, सचमुच नकली लगते हैं।।७।। फिर भी चाल-...
दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग- १
कविता

दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) भाग- १

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ।।अ।। किसे दोष दूँ किसे सराहूँ किसकी जय-जयकार करूँ। दुविधा नहीं मिटाए मिटती कितना ही उपचार करूंँ।। लो चुनाव आ गए कपट की किलकारी कोरों पर है। हर नेता कस उठा कमर फिर तैयारी जोरों पर है।।१।। सबके अपने-अपने मतलब सबके ठिए ठिकाने जी। सब ने अपनी सांँस रोक कर साधे नये निशाने जी।।२।। कोई जोड़-जुगाड़ों में है, कोई जल भुन उबल रहा। कोई तिकड़म भिड़ा रहा है, कोई दल बल बदल रहा।। इधर उधर से ईंटें लेकर रोड़ा रोड़ा जोड़ा है।। भानुमती ने अपने सुत के हित में कुनबा जोड़ा है।।३।। यै कहते हैं इस कुनबे ने चोरी कर अन्धेर किया। वे कहते हैं चण्ड-मुण्ड ने पूरा भारत घेर लिया।।४।। ये कहते कमजोर अकल से सत्ता क्या चल पाएगी ? सिर पर गुड़ की भेली धरकर क्या चींटी चल पायेगी ??५?? करना हो तो करो सामना गुर्दे में दम...
घनाक्षरी
धनाक्षरी

घनाक्षरी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** १ - परतन्त्रता की बेड़ियों को काटने के लिए, ध्येय गीत था यही स्वतन्त्र वन्दे मातरम्। षडयन्त्र के विरुद्ध कई घोष हुए किन्तु, क्रान्तिकारियों का रहा मन्त्र वन्दे मातरम्। मात्र इसी मन्त्र के सहारे जीत सके जंग, गोरों के विरुद्ध बना तन्त्र वन्दे मातरम्। चूम गए फांँसियों के फन्दे झूम-झूम "प्राण", गाते हुए बलिदानी मन्त्र वन्दे मातरम्।। २ - सीधी-सादी बातचीत में भी लोकगीत जैसा, युद्ध का सघोष भूतभीत वन्दे मातरम्। स्याह रजनी में आशातीत चन्द्रमा सी आभ, दिन में दिनेश तमजीत वन्दे मातरम्। शत्रु भयभीत मानों पड़ा हो परीत पीछे, रूह काँप उठती अधीत वन्दे मातरम्। विपरीत राजनीति के विरुद्ध बनी नीति, पी गया अतीत प्राण जीत वन्दे मातरम्। ३ - गाँव नगरों की गलियों मे ले सुहाना राग, गूँजा ऊँची तान क...
भइया की सारी- भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत
आंचलिक बोली

भइया की सारी- भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ( भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत ) (एक भाभी अपने देवर के साथ अपनी छोटी बहन की शादी कराना चाहती है। वह अपनी दीदी की ससुराल में आई हुई है। उसका सौन्दर्य और अदाएँ देखकर बूढ़े लोग भी विचलित हो उठे हैं। उसकी बहन को भी अपनी दीदी का देवर अच्छा लगता है और देवर को भी भाभी की बहन बहुत अच्छी लग रही है। भाभी अपनी बहन को सीधी गाय और देवर को मजाक में लपका कहती है। देवर भाभी का चुटकी भरा काव्य संवाद भदावरी बोली में पढ़िए।) भइया की सारी का आई सूखी नस हरियाई। फटि सी परी उजिरिया मानो अँधियारे में भाई।। बिना चोंच मारी तोतन की सपड़ी सी पकि आई। बूढ़न तक के होश मचलि गए , देखि अदा अँगड़ाई।। देउर के लखि हाल लालसौं पूछि उठी भौजाई। खुलि कें कहौ लालजी मेरे, मंशा कहा तुमाई।। तुम मेरे इकलौते देउर, चिन्ता हमें तुमाई।। तुम तै...
आज ऐसे क्रान्तिकारी चाहिए
गीतिका, छंद

आज ऐसे क्रान्तिकारी चाहिए

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द में जो स्वयं कर्तव्य पथ की, साधना को साध लें। आपदा की आँधियों को, मुट्ठियों में बाँध लें। थरथरा उट्ठें कलेजे, नाम सुनकर पाप के। शब्द अपने आप उल्टे, लौट जाएँ शाप के।। क्रूर होकर जो अहं को, खूँटियों पर टाँग दें। हर प्रहर मुर्गे सरीखी, जागने की बाँग दें। जो हृदय इंसानियत के, राग के आगार हों। देश पर हर हाल मिटने, के लिए तैयार हों। वे पुरुष हों या कि नारी, चाहिए इस देश को। आज ऐसे क्रान्तिकारी, चाहिए इस देश को।। दूसरों के मुँह न ताकें, साथियों को साथ दें। जो गिरें उनको उठा लें, हाथ को निज हाथ दें। भारती माँ की न निन्दा, भूलकर भी सह सकें। देख कर बेचैन धरती, खुद न जिन्दा रह सकें । प्रेम को पूजा समझ कर, धर्म को आधार दें। जो हृदय की बीथियों में, व्योम सा विस्तार दें। क्या घृणा क्या...
द्वेष
कविता

द्वेष

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** देवता बनकर हमारे आँगनों में द्वेष बैठा। ले विकारों की कलाएँ गृद्ध सा अनिमेष बैठा।। नित्य होती अर्चनाएँ आरती के थाल सजते, दीप जलते पुष्प चढ़ते किन्तु दोष विशेष बैठा।। द्वेष के कारण समस्या राग की ज्यादा बड़ी है। चाहते हैं शान्ति लेकिन भ्रान्ति कुछ ऐसी जड़ी है।। चैन से सोने न देती साथ बेचैनी पड़ी है। भाव मय थी भावना दुर्भावना लेकर खड़ी है।। अट्टहासों की जगह पर हैं अधर पर रुष्ट ताले। छीन कर मुस्कान तक को कर दिया मद के हवाले।। क्लेश थमता ही नहीं है शान्ति के हैं आज लाले। शत्रुता तक आ गए हैं हो रहे सम्बन्ध काले।। लोग कुण्ठाग्रस्त होकर मन मसोसे चल रहे हैं। लग रहे मौनी तपस्वी किन्तु सबको छल रहे हैं।। हम दुखी हैं वह सुखी है इस जलन में जल रहे हैं। इस जलन की डाह पर हम दूसरों को खल रहे हैं।...
शक्ति के पर्व पर क्या करें … गीतिका छ्न्द
छंद

शक्ति के पर्व पर क्या करें … गीतिका छ्न्द

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द शक्ति का त्यौहार है हम शक्ति का संचय करें। शक्ति के अस्तित्व को हम भक्ति से अक्षय करें।। लक्ष्य क्या उपलक्ष्य क्या है हम प्रथम यह तय करें। ध्यान से चिन्तन करें फिर पन्थ का निर्णय करें।।१।। कर्म को निष्काम सेवा मानकर तन्मय करें। बात अनुभव सिद्ध गहरी है न कुछ संशय करें।। भाग्य का निर्माण करता कर्म है निश्चय करें। धर्म की हर धारणा में कर्म है सविनय करें।।२।। आइए स्वागत सहित संसार से परिचय करें। तामसी व्यवहार‌ छोड़ें दम्भ तज विनिमय करें।। द्वेष त्यागें शुभ हृदय अनुराग का आलय करें। आपसी सम्बन्ध गाढ़े और करुणामय करें।।३।। ज्ञान को उपसर्ग कर लें मान को प्रत्यय करें। स्वयं को जीतें स्वयं से दुष्ट पर फिर जय करें।। बाहुबल रण-योजना कौशल-कला लयमय करें। बुद्धि-बल तन-शक्ति मन-संकल्प का अन...
भारत का कीर्ति नाद
छंद

भारत का कीर्ति नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ऋषि मुनियों का देश यहाँ पर मेघ सुधा बरसाते। स्वर्ग त्याग देवता कुटी में बसने को ललचाते।। कवियों की यह धरा जहाँ भावना अछल उठती है। यहाँ सृजन के लिए स्वयं लेखनी मचल उठती है।। अविनाशी वह ब्रह्म यहाँ नव लीलाएँ रचता है। ले-ले कर अवतार स्वयं माँ की गोदी भरता है।। नदियाँ गातीं गीत यहाँ हर झरना भजन सुनाता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत माता।।१।। जिसके बच्चे बचपन से ही रण रचना करते हैं। जबड़े पकड़ बबर सिंहों के दाँत गिना करते हैं।। कच्ची कली खेलती हँसती मर्दानी बन जाती। अबला बाला रण में झाँसी की रानी बन जाती।। मरे हुए पति को जीवित करने को अड़ जातीं हैं। यहाँ नारियाँ सत के बल पर यम से भिड़ जातीं हैं।। यहाँ प्रकृति की हंँसी देखकर मुकुलित मन इतराता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत म...
चेतावनी
छंद

चेतावनी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हर ओर धुँआँ ही धुँआँ मात्र संयोग नहीं, परिणाम निकल कर आए हैं आजादी के। चल पड़ी तोड़ कर अनुशासन यह आबादी, जिस पथ पर पसरे राग बड़ी बर्बादी के।। कहने को कुछ भी कहो आपकी मर्जी है, शायद कुछ भाग्य उदित हों अवसरवादी के। पर हम सचेत करते हैं तुम को यह कहकर, ये लक्षण हैं उन्मादी और फसादी के।। यूँ स्वतन्त्रता का अर्थ नहीं स्वच्छन्द रहो, जीवन संयम के साथ बिताना जीवन है। खुद पर कानूनों नियमों का अंकुश न रखा, तो पराधीन बाहों में जाना जीवन है।। सुनने में कड़ुआ लगे-लगे तो लग जाए, जनता के हक का हरण, बहाना जीवन है। चल रहीं चालबाजियाँ उधर अपने हित में, युग के सुधार का नाम निशाना जीवन है।। नीतियाँ अधमरीं पड़ीं स्वार्थ के वशीभूत, इस त्याग भूमि पर क्या जाने क्या हवा चली। भर लिए खजाने लोगों ने कर लूटमार,...
दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) ।।स।। (अन्तिम भाग)
कविता

दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) ।।स।। (अन्तिम भाग)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** अर्थ-बाण चढ़ गए धनुष पर, खुलने लगे खजाने जी। खुलने लगे खजाने फिर तो ,लगने लगे निशाने जी।।१।। लगने लगे पराए अपने, जुटने लगे पटाने में। ऐसी दरियादिली कि अब तक, देखी नहीं ज़माने में।।२।। बकरी से कह उठे भेड़िए, चल नाले के पार चलें। हरी-हरी है घास वहीं पर, जमकर खेलें खूब चरें।।३।। जमने लगे चिलमची तनकर , फूँक छपाके लेती है। दम भरकर दम मार रहे दम, चिलम लपाके लेती है।।४।। बँटी रेवड़ी अपने खुश हैं, अन्धों की दिलदारी पर। कौए तक ले उड़े कमीशन, कोयल की किलकारी पर।।५।। जब से माँग बढ़ी ककड़ी की, तरबूजों को बुरा लगा। तरबूजों के भाव सुने तो, खरबूजों को बुरा लगा।।६।। बिना बुलाये घेर रहे घर, वोटर की है लाचारी। थोड़ा सा कुंकू चावल है, भीड़ परीतों की भारी।।७।। माँग रहे सब अपनी पूजा, यूँ खुलकर मत दान करो। ...
ऐसा बाग लगाओ माली
गीत

ऐसा बाग लगाओ माली

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ऐसा बाग लगाओ माली, खुशबू बहे जमाने में। लूट सके सो जी भर लूटे कमी न पड़े खजाने में।। उड़ें तितलियाँ रंग बिरंगी, चिड़े चिड़ी डालों पर खेलें। मदमाते मधुकर कुछ गायें, पेड़ों से लिपटीं हों बेलें।। मद्धिम-मद्धिम चलें बयारें, मस्ती की झर उठें फुहारें, कोई कसर न रहे प्रेम की, परिभाषा बतलाने में।। ऐसा बाग .... ।।१।। थके पखेरू भली नींद लें, सुबह मिले कलरव सुनने को। थिरक उठे संगीत प्रीति का, गीत चलें सपने चुनने को।। महक उठे धरती का कण-कण, बीते मदिर राग में क्षण-क्षण, पत्ती-पत्ती खुली हवा में, लग जाए इतराने में।। ऐसा बाग .... ।।२।। कलियों को खिल जाने देना, फूलों को मुस्काने देना। जो भी आना चाहे साथी, खोलो फाटक आने देना।। चौकीदारों से कह देना, सबके कोप तलक सह लेना, कोई रोक-टोक मत...
तुम अजेय हो
कविता

तुम अजेय हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुनो! स्वयं के विश्वासों पर, ही जगती में टिक पाओगे। गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है, यही अन्यथा मिट जाओगे।। साहस - शुचिता से भूषित तुम, धरती माँ के दिव्य पुत्र हो। घबराहट से परे शौर्य की, सन्तानों के तुम सुपुत्र हो।। तुम अतुल्य अनुपम अजेय हो, बुद्धि वीरता के स्वामी हो। स्वर्ण पिंजरों के बन्धन से, मोह मुक्ति के पथगामी हो।। चलते चलो रुको मत समझो, जीवटता का यह जुड़ाव है। संघर्षों में मिली विफलता, मूल‌ सफलता का पड़ाव है।। करते हैं संघर्ष वही बस, पा पाते हैं मंजिल पूरी। भीरु और आलसी जीव की, रहती हर कामना अधूरी।। भरो आत्मविश्वास स्वयं में, स्वयं शक्ति अवतरण करेगी। बैशाखी पर टिके रहे तो, कुण्ठित आशा वरण करेगी।। घोर निराशा भरी कलह का, जीवन भी क्या जीवन जीना । तज कर निर्मल नीर नदी का, गन्दी नाली...
रौद्र नाद
कविता

रौद्र नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हे पाखण्ड खण्डिनी कविते ! तापिक राग जगा दे तू। सारा कलुष सोख ले सूरज, ऐसी आग लगा दे तू।। कविता सुनने आने वाले, हर श्रोता का वन्दन है। लेकिन उससे पहले सबसे, मेरा एक निवेदन है।।१।। आज माधुरी घोल शब्द के, रस में न तो डुबोऊँगा। न मैं नाज-नखरों से उपजी, मीठी कथा पिरोऊँगा।। न तो नतमुखी अभिवादन की, भाषा आज अधर पर है। न ही अलंकारों से सज्जित, माला मेरे स्वर पर है।।२।। न मैं शिष्टतावश जीवन की, जीत भुनाने वाला हूँ। न मैं भूमिका बाँध-बाँध कर, गीत सुनाने वाला हूँ।। आज चुहलबाज़ियाँ नहीं, दुन्दुभी बजाऊँगा सुन लो।। मृत्युराज की गाज काल भैरवी सुनाऊँगा सुन लो।।३।। आज हृदय की तप्त वीथियों, में भीषण गर्माहट है। क्योंकि देश पर दृष्टि गड़ाए, अरि की आगत आहट है।। इसीलिए कर्कश कठोर वाणी का यह निष्पादन है। सुप्...
चलो आज फिर मास्टरी कर लेता हूँ – भाग-1
आलेख

चलो आज फिर मास्टरी कर लेता हूँ – भाग-1

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** नोट- यह ज्ञान मेरे द्वारा हृदयंगम की गई अनुभूति और उसके मन्थन का निष्कर्ष है जो कई विद्वानों की मान्यताओं से भिन्न भी हो सकता है। इतर होने पर जिज्ञासु मुझसे सम्बन्धित विषय पर प्रश्न पूछ सकते हैं। कई जिज्ञासुओं ने जानना चाहा है कि - प्रश्न- देवनागरी लिपि में 'क','ख' 'ग' 'ज', 'प' आदि को अमात्रिक बताया जा रहा है क्या यह उचित है? उत्तर- "नहीं"। स्वर रहित वर्ण को ही अमात्रिक कहना सही है जैसे क्,ख्,ग्, आदि, किन्तु किसी वर्ण पर कोई भी स्वर होने पर वह मात्रिक हो जाता है। इसलिए क,ख,ग अमात्रिक नहीं हो सकते हैंं, क्योंकि इनमें अ स्वर मिला हुआ है। प्रश्न - सर ! अन्य मात्राओं की भाँति इन वर्णों पर कोई मात्रा (किसी स्वर का चिह्न) तो दिखाई ही नहीं दे रही है ? उत्तर- हमारी देवनागरी लिपि में सभी वर्णों की आकृति ...
अर्थ सहित उल्टी-सीधी अनूठी रचना
कविता

अर्थ सहित उल्टी-सीधी अनूठी रचना

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** जीवालय अनुलोम ============ नाहक हय खरगोश वकी मछली गो गज सेरह। नाहर बकरी नाग खर सुअर, बारह कपि तेरह।। शब्दार्थ :- नाहक=अनावश्यक, हय=घोड़ा, वकी=मादा बगुला, गो=गाय, गज=हाथी, सेरह=भेड़िया, नाहर=शेर, खर=गधा, कपि=बन्दर अनुलोम का अर्थ =========== स्वामी ने स्वामी से पूछा हमारे जीवालय में कुल कितने जीव हैं इस पर सेवक ने स्वामी को बताया कि आपने अनावश्यक ही अपने चिड़िया घर में कई पशु पक्षी जिनमें घोड़ा खरगोश बगुली मछली गाय हाथी भेड़िया शेर बकरी नाग गधा सभी एक एक व बारह सुअर एवं तेरह बन्दर पाल रखे हैं। यलवाजी-विलोम =========== हरते पिक हर बार असुर खग, नारी कब रहना। हरसे जग गोली छमकी वश, गोरख यह कहना।। शब्दार्थ :- हरते=चुरा लेते हैं, पिक=कोयल, असुर=राक्षस, खग=पक्षी, रहना=बचना, हरसे=प्रसन्न होता है,...
घातनिपाती शिवस्तुति
श्लोक

घातनिपाती शिवस्तुति

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हर श्रद्धावान को अपने परिवार पर अथवा स्वयं पर आने वाली विपदा व आई हुई विपदा को दूर करने के लिए हर दिन घातनिपाती शिवस्तुति के इन १२ श्लोकों का पाठ अवश्य करना चाहिए। न बन सके तो हर सोमवार को इसका पाठ करें। सावन के महीने में तो इनकी फलश्रुति और भी अधिक महत्वपूर्ण है। जय नन्दीश नदीश निधीश्वर नीर निशीश नटीश प्रभो। चिर चण्डीश फणीश शशीधर शीश शिरीश शिखीश प्रभो।। प्रिय पिण्डीश पतीशपतीश्वर वीर यतीश व्रतीश प्रभो। मम संघातनिपात हराहर घातकपातक प्राण प्रभो।।१।। नव नीतीश क्षितीश सतीश्वर धीर सतीश सतीश प्रभो। कलि कालीश कलीश कवीश्वर कीश करीश कटीश प्रभो।। पद पाणीश परीश कपीश्वर ईश घटीश गतीश प्रभो। हर संघातनिपात हराहर घातकपातक प्राण प्रभो।।२।। जय मौलीश मनीष मतीश्वर मूल मुनीश महीश प्रभो। जय गौरीश गिरीश गतीश्वर ही...
आषाड़ी बरखा
कविता

आषाड़ी बरखा

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** आज बगीचे में बरखा की, बूँदों ने जब नृत्य किया। है संवेदनशील प्रकृति इस, मूल तथ्य को सत्य किया।। सौंधी-सौंधी गन्ध धरा की, घर-घर तक ले उड़ी हवा। पंख फड़फड़ा कर खुशियों को, आमन्त्रण दे उठी लवा।। काले-काले मेघ गगन में, सघन और गतिमान हुए। चारों ओर धुन्ध सी छाई, घर-घर के मेहमान हुए।। मन मयूर मतवाले होकर, नाच उठे फिरकी जैसे। चित्त भंग हो गए संयमी बदली कुछ थिरकी ऐसे।। कहीं खनन खन खन्न कहीं पर, गमक छमाछम के स्वर हैं। कहीं छनन-छनन-छन्न टपाटप, तमक झमाझम के स्वर हैं।। एक-एक पाँखुरी पुष्प की, नस-नस में मकरन्द लिए। सुरभित करने लगी मेदिनी , मधुरिम-मन्द सुगन्ध लिए।। गदराई डाली पर मद से सराबोर हर खिली-कली। पर फैला पसरी मादकता, झूम उठी तर गली-गली।। तब रति-पति रसराज झूम कर, तरकश बाण टटोल उठा। बरखा...
ग्रीष्म
कविता

ग्रीष्म

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। हवा मचलकर लपट फैंकती, पोखर तप्त उबलती है।। दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द्धरात अज्ञारी जैसी, सुबह-शाम अखबारों सी।। सिगड़ी जैसा दहक रहा घर, देहरी धू-धू जलती है। गरमी फैंक रही है गरमी, तपती सड़क पिघलती है।। सीना सिकुड़ गया नदियों का, नहरें नंगीं खड़ीं दिखीं। कुए-बावड़ी हुए बावरे, झीलें बेसुध पड़ीं दिखीं।। उतरा हुआ ताल का पानी, पहुँच गया पाताल तलक। हरी सब्जियाँ ग़म में डूबीं, दाल सुखाने लगी हलक।। आस-पास के बोरिंग सूखे, सरकारी नल चले गए। हैण्ड पम्प में रेत आ गया, ऐसे प्यासे छले गए।। घातक तपन धूप की बेटी, घर के कोने-कोने में। उमस और धमकों को लेकर, उलझी खेल खिलौने में।। बनकर बहू ससुर घर आई, लदी सुहाने सोने में। मगर सास पर अपना गु...
प्रयाग-कुम्भ
कविता

प्रयाग-कुम्भ

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** यह कुम्भ धर्म से संगम है साहित्य संस्कृति सर्जन का। उत्थान पतन चिन्तन मन्थन मन मर्दन मन संवर्धन का।।१।। आलिंगन का आलिंपन का आलम्बन का अवलम्बन का। तर्कों के खण्डन मण्डन का कचमुण्डन पिण्डन पुण्डन का।।२।। यह कुम्भ धर्म से .............।। अंजन मंजन मन रंजन का भय भंजन का दुख भंजन का। कन्दर कानन के आँगन से निकले सन्तानन पादन का।।३।। चतुरानन का पंचानन का सप्तानन और षडानन का। आवाहन का अवगाहन का आराधन का अवराधन का।।४।। यह कुम्भ धर्म से .............।। मोहन मारण उच्चाटन का भोजन भाजन भण्डारण का। चारण उच्चारण तारण का कुल कारण और निवारण का।।५।। गायन नर्तन संकीर्तन का पूजन अर्चन पदसेवन का। वन्दन अभिनन्दन चन्दन का फिर खुलकर आत्मनिवेदन का।।६।। यह कुम्भ धर्म से .............।। स्पर्शन ...
कवि “प्राण” की अर्थ सहित तीन डमरू घनाक्षरियाँ
धनाक्षरी

कवि “प्राण” की अर्थ सहित तीन डमरू घनाक्षरियाँ

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** डमरू का वर्ण विधान और वर्ण विज्ञान =============================== मेरे द्वारा रचित तीनों डमरू घनाक्षरियाँ हैं। इनमें पहली एवं तीसरी घनाक्षरी अकारान्त लघु वर्णों के शब्द समूहों में हैं व दूसरी घनाक्षरी अकारान्त‌, इकारान्त, उकारान्त लघु वर्णों के शब्द समूहों में है। पहली डमरू घनाक्षरी में शुद्ध हिन्दी की क्रियाओं का प्रयोग किया गया है व शेष दो में ब्रज, अवधी और बुन्देली की क्रियाएँ प्रयोग की गई हैं। ऐसा इसलिए किया है क्योंकि जब हम हिन्दी में रचना कर रहे हैं तो हमें शुद्ध हिन्दी की क्रियाओं का ही उपयोग करना चाहिए और यदि किसी अन्य भाषा में रचना कर रहे हैं तो सम्बन्धित भाषा की क्रिया का ही उपयोग होना चाहिए। मेरी जानकारी में हिन्दी में यह प्रथम रचना है। क्यों कि कुछ कवियों ने डमरू घनाक्षरी की रचना तो की है किन्त...
किस कारण साजन छाँह न की
सवैया

किस कारण साजन छाँह न की

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दुर्मिल सवैया में समस्या पूर्ति  स्थिति ==== पति साथ गई नव दृश्य दिखा, सच चौंक गई परवाह न की। असमंजस में सब भूल गई, यह क्या वह क्या फिर चाह न की।। तब पूछ लिया पतिने मुझ से, खुश प्राण रही पर वाह न की। हर बार कहा कुछ पूछ सही, फिर मौन खुला पर आह न की।। समस्या ===== तब एक सवाल किया पति से, जब चालचली अवगाहन की। वह मौन खड़ी नत मस्तक जो, लगतीअसली तिय पाहन की।। यह जीवित है तब कौन कहो, पकड़े रसरी रथ वाहन की। सिर ऊपर घाम चढ़ी फिर भी, किस कारण साजन छाँह न की?? पूर्ति (उत्तर) ======== इस बार जवाब दिया पति ने, वह जीव नहीं प्रिय पाहन की। पकड़े कर में रसरी सजनी, रथ वाहक है पथ वाहन की।। जब लू न लगे तनमें तब क्या, सरदी गरमी अवगाहन की। सिर ऊपर चूनर मूर्ति पड़ी, इस कारण साजन ...