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Tag: गोपाल मोहन मिश्र

आत्ममंथन
कविता

आत्ममंथन

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** क्या खोया, क्या पाया, क्या अपनों से पाना है, जो भी है मुट्ठी में है, यहीं छोड़ कर उठ जाना है I परिन्दे पर निकलते ही घोंसला छोड़ चले जाते हैं, फिर कभी वे लौटकर घोंसला में नहीं आते हैं I जीवन की तो अब एक-एक साँस नित्य प्रति घटी, विघ्न बाधाएँ जीवन के हर मोड़ पर डटी I कल-कल करते, आज हाथ से आरजू निकले सारे, भूत भविष्यत् की चिंता में वर्तमान की बाज़ी हारेI पहरा कोई काम न आया, रसघट रीत चला, कालचक्र के वशीभूत, बस जीवन बीत चला I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के सा...
काँटे क़िस्मत में हो
कविता

काँटे क़िस्मत में हो

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** काँटे क़िस्मत में हो तो बहारें आयें कैसे, जो नहीं बस में हो उसकी चाहत घटायें कैसे I सूरज जो चढ़ता है करते है उसको सब सलाम, डूबते सूरज को भला ख़िदमत हम दिलायें कैसे I वो तो नादान हैं समंदर को समझते हैं तालाब, कितनी गहराई है साहिल से बतायें कैसे I दिल की बातें हैं दिल वाले समझते हैं जनाब, जिसका दिल पत्थर का हो उसको पिघलायें कैसे I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित ...
अयोध्या नगरी
कविता

अयोध्या नगरी

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** २२ जनवरी २०२४ सिर्फ एक तारीख नहीं है पन्नों पर इतिहास लिखा एक जायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या नगरी को सजाया जाएगाI हिन्दू हो तो गर्व करो तुम अपने हिन्दू होने पर लहरा दो भगवा जाकर तुम भारत के कोने-कोने पर लिख दो एक गाथा ऐसी तुम कि, देश गौरवशाली कहलायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या नगरी को सजाया जाएगाI कितने लालों ने जान गवाई सीने पर गोली खाकर के चढ़ गए कोठारी बंधू जो बाबरी के गुम्बद पर जाकर के जो हँसकर जान गवां बैठे, न दूजा गवां कोई पायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या नगरी को सजाया जाएगा। पाँच सौ वर्षों तक प्रभु श्रीराम ने कितने कष्ट सहे सूर्यवंशी मर्यादा पुरूषोत्तम एक टेंट के अंदर बैठे रहे स्वर्ण सिंहासन पर प्रभु श्रीराम को अब बैठाया जायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर...
कौन हूँ मैं….?
कविता

कौन हूँ मैं….?

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** कौन हूँ मैं.....ऐ जिंदगी तू ही बता, थक गया हूँ मैं खुद को ढूँढते-ढूँढते I अब कोई ख्वाहिश नहीं पालता मन में, विरक्ति हो गई है नित एक ही ख्वाब बुनते-बुनते I सुनता हूँ जीवन में फूल भी हैं, काँटे भी हैं, मेरा जीवन बीत गया काँटे ही चुनते-चुनते I तानों कलंकों के बीच, जिंदगी से हारा नहीं हूँ मैं, लोगों की चुभती बातों से, धैर्य टूट जाता सहते-सहते I किसी से शिकायत नहीं अपनी व्यथा पर, मुझे चले जाना है दुनिया से यूँही चलते-चलते I ऊपरवाला भी व्यथित होगा मेरी नियति पर, रो रहा होगा, मेरी करुण-वेदना सुनते-सुनते I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
दूर कहीं अब चल
कविता

दूर कहीं अब चल

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** राहत के दो पल आँखों से ओझल। रोज लड़े हम तुम निकला कोई हल ? न्यौता देतीं नित दो आँखें चंचल। झेल नहीं पाए हम अपनों के छल। भीड़ भरे जग से दूर कहीं अब चल। मौन तुझे पाकर चुप है कोलाहल। कितने गहरे हैं रिश्तों के दलदल। है आस मिलेंगे ही आज नहीं तो कल। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirak...
दिल में ग़म की किताब रखता है
ग़ज़ल

दिल में ग़म की किताब रखता है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** लिख के सबका हिसाब रखता है दिल में ग़म की किताब रखता है। कोई उसका बिगाड़ लेगा क्या खुद को खानाखराब रखता है। आग आँखों में और मुट्ठी में वो सदा इन्किलाब रखता है। जिसने है देखें जमाने की सूरत खुद को वो कामयाब रखता है। उसकी नाजुक अदा के क्या कहने मुट्ठी में वो माहताब रखता है। बाट खुशियों की जोहता है तू दिल में क्यों फिर अदाब रखता है। आइने से न कर लड़ाई, कि वो कब किसी का हिजाब रखता है। समय से गुफ़्तगू करोगे क्या वो सभी का जवाब रखता है। समय चितचोर, नचनिया है कैसे-कैसे खिताब रखता है। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
खुशबू
ग़ज़ल

खुशबू

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** पलकों पर ठहरी है रात की खुशबू अनकही अधूरी हर बात की खुशबू साँसों की थिरकन पर चूड़ी का तरन्नुम माटी के जिस्म में बरसात की खुशबू पतझड़ पलट गया दहलीज तक आकर जीत गई अंकुरित ज़ज्बात की खुशबू अहसास-ऐ-मुहब्बत तड़प तड़प के मर गया जिंदा रही पहली मुलाकात की खुशबू पलकें झुका के कैफियत कबूल की मगर ज़वाबों से आती रही सवालात की खुशबू जुल्फों की कैद में कुछ अरसा ही रहे उम्र भर आती रही हवालात की खुशबू कली रो पड़ी हूर के गजरे में संवर कर भूल ना पाया पड़ोसी पात की खुशबू I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
ग़मज़दा क्यूँ है
ग़ज़ल

ग़मज़दा क्यूँ है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। हम समझते हैं जिसे जानेज़िगर, जानेमन मन का दुश्मन वही बना क्यूँ है। हजारों ख्वाहिशें कुर्बान हैं जिस पर मेरी जान करके भी बुत बना क्यूँ है। जख़्म देता है जो दिल को मेरे तड़पा के दिल का मालिक वही बना क्यूँ है। मैंने अश्कों को बड़ी मुश्किलों से रोका है फिर भी दिल उसका तलबग़ार बना क्यूँ है। दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते...
खुद से लड़ना नहीं आता
कविता

खुद से लड़ना नहीं आता

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** अजब कशमकश में हूँ कुछ समझ में नहीं आता मेरे यार समझते हैं मैं समझना नहीं चाहता जानता हूँ मेरे ग़म से परेशान है हर कोई खुश रहना चाहता हूँ पर ग़म छुपाना नहीं आता चाहत को मेरी उसने मज़ाक बनाकर रख दिया फिर भी बेवफा को दिल से मिटाना नहीं आता घुट-घुट कर जी रहा हूँ हर पल ज़िन्दगी का मर भी जाएँ प्यार में, लेकिन बहाना नहीं आता सोचते हो तुम कि डरता हूँ मुसीबतों से कमज़ोर नहीं हूँ, लेकिन खुद से लड़ना नहीं आता बहा देता ग़म को कब का अपने दिल से तेरी तरह अफसोस, लेकिन लिखना नहीं आता परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...