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दिल में ग़म की किताब रखता है

गोपाल मोहन मिश्र
लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार)

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लिख के सबका हिसाब रखता है
दिल में ग़म की किताब रखता है।

कोई उसका बिगाड़ लेगा क्या
खुद को खानाखराब रखता है।

आग आँखों में और मुट्ठी में
वो सदा इन्किलाब रखता है।

जिसने है देखें जमाने की सूरत
खुद को वो कामयाब रखता है।

उसकी नाजुक अदा के क्या कहने
मुट्ठी में वो माहताब रखता है।

बाट खुशियों की जोहता है तू
दिल में क्यों फिर अदाब रखता है।

आइने से न कर लड़ाई, कि वो
कब किसी का हिजाब रखता है।

समय से गुफ़्तगू करोगे क्या
वो सभी का जवाब रखता है।

समय चितचोर, नचनिया है
कैसे-कैसे खिताब रखता है।

परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र
निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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