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Tag: चेतना प्रकाश “चितेरी”

मांँ
कविता

मांँ

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** बताओ पापा ! मांँ कैसी होती है? जितना मैंने जाना मांँ भगवान की प्रतिरूप होती है। बताओ दीदी! माँ कैसी होती है? जितना मैंने पहचाना माँ ममता की मूरत होती है। बताओ भैया! माँ कैसी होती है? जितना मैंने समझा, हर मांँ सुंदर है, जिसके हृदय में स्नेह अपार होती है। मेरे पापा! मेरी दीदी! मेरे भैया! मैंने महसूस किया, माँ तारा बनकर भी हम सबके पास रहती है। माँ की सूरत कभी नहीं देखी, लेकिन मैं जान गया, माँ किसी से भेदभाव नही करती, माँ सबसे अच्छी होती है। परिचय :- चेतना प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
मैं चेतना हूंँ …
कविता

मैं चेतना हूंँ …

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं सोचती हूंँ, जन्मतिथि पर तुम्हें क्या उपहार दूंँ, तुम स्वयं में चेतना हो। जीवन जीने की कला है तुममें, तुम्हें क्या सीख दूँ, तुम स्वयं में प्रज्ञा हो। नित नवीन सद्विचार लाती हो, तुम्हें क्या उपदेश दूँ, तुम स्वयं में ज्ञानवती हो। जन मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ देती हो, तुम्हें क्या याद दिलाऊँ, तुम स्वयं में सुधि प्रकाश हो। मैं तुम्हें ह्रदय से पुकारती हूंँ, सुनो चेतना ! मेरी अंतरात्मा की आवाज, इस दिवस उर-मस्तिष्क की बधाई स्वीकार करो, स्वयं के साथ-साथ औरों का उद्धार करो। परिचय :- चेतना प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी र...
वे दिन भी क्या थे
संस्मरण, स्मृति

वे दिन भी क्या थे

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे आज भी वे दिन याद हैं जब गर्मी की छुट्टियों में मुंबई से मेरे बड़े ताऊ जी-ताई जी, पापा, भैया-भाभी महानगरी ट्रेन से गाँव आते थे। घर के सभी लोग बहुत ख़ुश होते थे। कि मई माह तक सभी लोग साथ में रहेंगे। १९९० तक मेरे घर का पिछला हिस्सा मिट्टी और खपरैल से, आगे का ओसारा ईंट-सीमेंट से बना हुआ सुंदर लग रहा था। उत्तर मुखी घर का दिशा होने के कारण घर की बायीं तरफ़ एक नीम का पेड़ था। नीम के पेड़ के नीचे छोटा चबूतरा था जिस पर सुबह-शाम लोग बैठकर चाय पीते थे। पास में ही बहुत सुंदर पक्का बैठिका, उससे लगा हुआ आम का बग़ीचा जो बैठिका के पीछे तक फैला हुआ था। घर और बैठिका के सामने ख़ूब बड़ा-सा द्वार, घर के दाहिने ठंडी के मौसम में गाय, भैंस, बैल को रहने के लिए मिट्टी, लकड़ी, खपरैल से बना हुआ घर था। ठीक उसी के सामने बड़ी-सी चर...
जीना इसी का नाम है
आलेख

जीना इसी का नाम है

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** (भाव-पल्लवन) ज़िन्दगी बड़ी ख़ूबसूरत है, हर पल को खुशी से जियो! जाने आनेवाला कल कैसा होगा? उसकी चिंता में इस पल को बेकार न करो! जिंदगी को खूबसूरत बनाना है कैसे? इस पर विचार करो ! हर समस्याओं का समाधान तुम्हारे पास है, माना कि आज के दौर में रहन-सहन, खान-पान बदला है, ऐसे में अपने आप को समाज में स्थापित करना चुनौती का सामना करने जैसा है और इन अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते हैं तो निराशा, उदासी, आदि से घिरे हुए होते हैं, क्षण-प्रतिक्षण मस्तिष्क में अनेकों सवाल लहरों की भांँति आते- जाते रहते हैं, अशांत मन बेचैन रहता है, जब कोई तूफान आनेवाला होता है तो सागर शांत हो जाता है, ऐसे क्षण में व्यक्ति को एकांत में आत्म-चिंतन मनन, ध्यान अवश्य करना चाहिए। समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके पास आय का स्रोत नहीं है, ...
जीवन मेरा सरगम जैसा
गीत

जीवन मेरा सरगम जैसा

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरे प्यार में सजना, तेरी सजनी संँवर रही..२ सात स्वरों से सजा है संगीत , सात फेरों से सजा है जीवन, सात जन्मों तक मिलें सजना तेरा प्यार तेरे प्यार में सजना, तेरी सजनी सज रही, तेरे प्यार में सजना तेरी सजनी संँवर रही..२ तेरे प्रेम के धुन में, घर आंगन चहके, खिल रही मेरी फुलवारी, तेरे रंग में रंग कर, सजना झूम-झूम कर मेरा मनवा नाचे, तेरे प्यार में सजना, तेरी सजनी संँवर रही...२ मिला जो तेरा साथ साजन, जीवन हुआ मेरा सरगम जैसा, ना ग़म की परछाई, चारों और ख़ुशियांँ ही छाई, चंदन जैसा, सुगंधित पवित्र हुआ हमारा बंधन, सजना तेरे प्यार में, तेरी सजनी निखर रही, सजना तेरे प्यार में तेरी सजनी संँवर रही..२ परिचय :- चेतना प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं ...