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जिंदगी खंडहरों में
कविता

जिंदगी खंडहरों में

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** बिखरी हुई छोटी-छोटी खुशियों को, नजरंदाज करके, उलझी पड़ी है जिंदगी खंडहरों में। बेलगाम इच्छाएं, मुंह बाए खड़ी मौत सी, पाने की जद्दोजहद तिल तिल तनाव में। परिवार समाज को छोड़कर, अपनी नज़र से कभी खुद को देखो, तुम खुद पर फ़िदा हो जाओगे। धूल जम गई है हजारों सपनों पर, उन सपनों को बुनने लग जाओगे। एक बार फिर से सुन लिजिए, ध्यान मग्न मुनियों से, भर यौवन बहती नदी की कल-कल को। खिल उठोगे अबोध बालक से, चिंता को किनारे लगा, क्षण भर निहारे खिलते फूलों को। तितली के सुनहरे पंखों सी जिंदगी, गुनगुना ने दो भ्रमर को, गाने दो मन की कोयल को। संघर्ष और जिजिविषा, पहाड़ों की तलहटी में नदी से, सीख ले पत्थरों को चीरना। डूबने का डर छोड़कर जान ले, पानी के वक्ष पर नाव से चलना। कभी सुनो तो सही, बाग में बैठकर शांति से, खेलते बच्...
मां
कविता

मां

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। मां करती जीवन साकार। बिन तेरे यह जग बेकार। मां ईश्वर का अहसास, जन्नत होता मां का प्यार। मां बिन प्रभु भी लाचार। चुकता नहीं मां का उपकार। मां खुश होती है, जग में जीवन अपना वार। मां अनगिनत तेरे प्रकार। तूं ही दुनिया की सरकार। भिन्न नहीं ईश्वर से मां, बनता नहीं बिन मां संसार। संतान में माॅं होती संस्कार। मां ही जग की तारणहार। प्रकृति संवारने में होती, ईश्वर को माॅं की दरकार। मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
बसंत
कविता

बसंत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** अधरों पर मंद स्मित सजाएं, बसंत पूरब से लालिमा लिए। सुरभित सुमन रजनीगंधा के, आ गया पात पात आनंद किए। पीत वसन मुख चांदनी सा, शीतल मन्द समीर लिए। हरी दूब से शबनम चुनता, हलधर दौड़े बसंत लिए। कली फूल चितचोर बने, लता यौवन मकरंद लिए। घर आंगन में उतर गया, ऋतुराज आंखें चार किए। सज स्नेहिल हरित वसुधा, नेह मिलन की आस लिए। फागुन में गौरी बाठ निहारे, यादों की खुशबू पास लिए। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकत...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** लो फिर आ गया है नव वर्ष, दौड़ता हुआ संकल्पों की गर्द से ढका। पहाड़ी प्रदेशों में भेड़ चराता हुआ, सड़क किनारे टुकड़े लोहे प्लास्टिक के चुनता। भीड़ भरे चौराहे पर वाहनों की रेलमपेल में कटोरी थामें, चंद सिक्कों की खनक से मुस्काता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, आंखों में जीजिविषा भरे मेहनत से सरोकार साइकिल रिक्शा पर पसीने से लथपथ पैडल मारता। पतासी के ठेले पर जीरा नमक संग अपनी जठराग्नि से लड़ता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, खेतों की मेड़ों से, हरी दूब पर पूस की ठंड से विकल, टखनों तक पानी में डूबा। उम्मीद को पगड़ी में बांधे, रात गठरी सा ठिठुरता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, दृढ़ निश्चय, कृत संकल्पित हो। कुछ वादे, कुछ इरादे थामें। कच्ची बस्ती से होता हुआ, मध्यम वर्ग के गलियारों से निकलकर स...
नव वर्ष २०२४ पर दोहे
दोहा

नव वर्ष २०२४ पर दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनन्दन नव वर्ष। नई सुबह की नव किरणें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली फूलों से, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नये साल के भाल। नव किरण नव उजास से, पोषित हो नव भोर। शुभ यश जीवन में मिलें, हर्षित हो चहुं ओर। अभिनन्दन नव वर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठा कर हाथ। जीव जगत आनंद में, सदा रहें हर छोर। नये साल से आरज़ू, स्वर्णिम करना भोर। नूतन वर्ष शोभित हो सदा, सदी के भाल। दो हज़ार चौबीस में, भारत हो खुशहाल। झोली भर शुभ कामना, आप सभी को आज। मन में जो सपने बुने, होंगे पूरे काज। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घो...
परिवार
कविता

परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का ताना-बाना। चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मेला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना। मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत। जीने की जिजीविषा, यहां संघर्षों का रेला। सीख कसौटी, मीठी घुड़की, आंगन में मिलती। जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार। बहन- भाई का रिश्ता, मणियों की मीठी माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन। संबंधों में नैतिकता, परिवार पुनीत यज्ञ शाला। दादा - दादी की सीख, नाना - नानी की परवाह। चाचा-चाची, ताऊ-ताई, यूं रिश्तों की चित्रशाला। वैभवी गीता का ...
दादी-नानी
कविता, बाल कविताएं

दादी-नानी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दादी-नानी की बरगद सी छांव में। बच्चे सीखते ज्ञान बैठकर पांव में। प्रज्वलित दीप की स्वर्णिम चमक, आलोकित बिखर रही आंगन में। द्वय शेर शावक से सुकुमार बाल, यूं एकाग्रचित्त ध्यान मग्न कथा में। कब कैसे तोड़े है विकट चक्रव्यूह, और क्या करें उग्र ज्वालामुखी में। जगत में उलझन भरी पगडंडियों, पर चले दुर्गम पथों के छलाव में। संस्कृति, संस्कार, सीख, सभ्यता, समझ लो फर्क शहर और गांव में। धर्म अर्थ काम मोक्ष की परिभाषा, सारे गुण कर्तव्यनिष्ठ पुरूषार्थ में। सुनते सार गर्भित कथा कहानियां, सहायक सुदृढ़ चरित्र निर्माण में। मन वचन कर्म से नर अवधूत बने, धर्म समाहित मां के सच्चे ज्ञान में। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रम...
श्रम साधना
लघुकथा

श्रम साधना

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** चिमनी की टिमटिमाती रोशनी में रामू चटनी के साथ बाजरे की रोटी का कोर मुंह में चबाते हुए पत्नी से शिकायत भरे लहजे में कहा - 'यह लगातार तीसरा महिना है, जिसमें हमारी बनाई ईंटों में ठेकेदार ने कमी निकालकर पैसे काट लिए' गौरी मेरे समझ में नहीं आता, हमारे बाद आकर भट्टे पर लगी भंवरी की ईंटें हमारी बनाई ईंटों से अच्छी कैसे हो सकती है। गौरी चूल्हे पर रोटी सेंकतीं हुई अपने पति की बातें बड़े इत्मीनान से सुन रही थी। वो फिर खीझ और झुंझलाहट से बोला, तुझे रोज कहता हूं गारा (गीली मिट्टी) अच्छी तरह मिलाया कर लेकिन तू मेरी सुनतीं कहां है, अब देख सारा पैसा कट गया, बैंक की किस्त फिर बाकी रहेगी, बैंक का ब्याज दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। रामू फिर बोला 'ठेकेदार भंवरी की ईंटों का पूरा भुगतान किया है, वो कह रहा था 'भंवरी गारा अच्छी तरह मिलाती ह...
मैं जयपुर हूं
कविता

मैं जयपुर हूं

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मैं गुलाबी नगरी जयपुर हूं। लो अपनी कथा सुनाता हूं। समय के स्वर्णिम पृष्ठों पर, इतिहास बनकर अंकित हूं। मैं सत्रह सौ सताइस में जन्मा, सवाई जयसिंह का चित्रित हूं। जयनगर से जयपुर बनकर, वैभवी चरित्र नगर गुलाबी हूं। अरावली की सुरम्य श्रृंखला, अचल शिखरों से संरक्षित हूं। जयगढ़ नाहरगढ़ जंतर-मंतर, आमेर हवा महल में विकसित हूं। सिटी पैलेस सरगासूली गलता, सात द्वार परकोटे में विस्तारित हूं। प्रकृति की गोद में प्रफुल्लित, मैं गालव ऋषि की तपोभूमि हूं। गढ़ गणेश मोतीडूंगरी विराजित, पावन मैं तीर्थों में छोटी काशी हूं। नगर नियोजित विश्व पटल पर, मोहक हरियाली से आच्छादित हूं। शील शिष्ट नैतिक मूल्यों से युक्त, कर्तव्य परायण गुणों से भरपूर हूं। वाशिंदे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, मैं धर्मों में गंगा-...
दिवाली खुशियों वाली
कविता

दिवाली खुशियों वाली

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** सब घर-आंगन खुशहाल रहे। हर द्वार दीपक का उजास रहे। खुशियां लौट आए वनवास से, हृदय में श्रीराम का निवास रहे। पुनीत पावन दीपोत्सव संगम, पर्व खुशियों से प्रफुल्लित रहे। मिटे भेद-भाव गरीबी देश से, निजता में राष्ट्रहित सर्वोपरि रहे। मन से दूर विषय विकार हो, मनुज छवि सब पुरूषोत्तम रहे। शील शिष्ट नैतिक मूल्यों से युक्त, कर्तव्य परायण श्रीराम से रहे। दीन दुखियों के दर्द खिंचकर, आदर्श सर्व कल्याण कर्ता रहे। स्नेहिल भाव विकसित हृदय में, मानवीय गुणों से आल्हादित रहे। जगमग दीप जलें हर जीवन में, ऐसी खुशियों वाली दिवाली रहे। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, ...
नेता जी
कविता

नेता जी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** फिर आया मौसम चुनावों का। नेता करेंगे अब दौरा गांवों का। कैसे हाथ जोड़कर ढोंक लगाते, प्यारे नेता शहर गली चौबारे का। कभी पांच साल में हाल ना पूछें, यूं कहते जन सेवक जनता का। सदा चमचमाती लाल मर्सिडीज, धूल उड़ाता काफिला कारों का। भोले बगुले सी पोशाक पहनकर, गले महके हार सजीले फूलों का। कितने जय जयकारे जोर लगाते, संग झुंड छुठ भैया नेताओं का। कभी वादे इनको याद नहीं रहते, रहे यह चश्मा लगाकर लोभ का। चुनाव में पैर पकड़ते अम्माजी के, यूं साष्टांग दंडवत करते ताऊ का। कितने भोले - भाले देश के नेता, पल-पल रंग बदलते गिरगिट का। यह लोकतंत्र के रोबीले राजा, क्यों सगे कहां कब जनता का। सरोकार नहीं विकास से इन्हें, नेता बस ध्यान रखेंगे जेबों का। जीत चुनाव पाते जादूई छड़ी, माल दोनों हाथ बट...
मैं स्त्री
कविता

मैं स्त्री

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पिता पति दो तटबंधों के मध्य, आजीवन नदी बन बहती रहूं। मैं स्त्री हर कदम पर वर्जनाएं, जन्म से मरण तक सहती रहूं। क्यूं नर जन्म पर बजती थाली, और मैं पराया धन सुनती रहूं। मेरे ही जल से सिंचित जीवन, सदियों से अबला बनती रहूं। मैं जिस आंगन में पली बढ़ी, वो घर बाबुल का सुनती रहूं। ठुमकी मचली जिस देहरी में, कब चिड़िया बन उड़ती रहूं। फल फूल खुश्बू से सरोबार, मैं तरु माफ़िक फलती रहूं। पिता पति के घर को भला, कैसे! मैं अपना बुनती रहूं। पापा रोती होगी तेरी काया, जब मैं दूजे घर जलती रहूं। कोख सिसकती रही मां की, लाल जोड़े में लटकती रहूं। मैं प्रकृति को संवार कर भी, नर से जीवन भर छलती रहूं। सीता अहिल्या द्रोपदी बन, सदा हर युग में बुझती रहूं। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्था...
मां बिन घर
कविता

मां बिन घर

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां बिन घर का माहौल अजीब था। आंगन में दरार और दालान उदास था। छत से भी उदासियां टपकती दिखीं, मुंह बाए खड़ा दरवाजा सुनसान था। ओ मां! तेरी कमी इस कदर खली की, तेरे घर का तो ज़रा - ज़रा परेशान था। परिवार में बच्चों से लेकर बड़ों तक, हर एक से नेह आत्मिक लगाव था। दरवाजे बंधी गौरा गाय समझती थी, तेरे हाथों को चाटने में अमृत स्नेह था। आंगन में चहकती गौरैया जानती थी, तेरे कदमों में ममता का दाना पानी था। आप अनपढ़ होकर भी पढ़ लेती थी, बाबूजी की आंख अभावों का सागर था। बस यादें खूंटी पर टंगी ओढ़नी मां की, यही आंसू समेटता वात्सल्य भरा पल्लू था। कैसे मेरी मां के अपरिमित ममत्व से, चूल्हा चौका खेत खलिहान सरोबार था। मां जताई नहीं दुःख दर्द थकान सिकन, बस उसे परिवार की खुशियों से सरोकार था। परिचय ...
मधुमास
कविता

मधुमास

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरा मांग सिंदूर सजाकर, झिलमिल करती आई भोर। खग कलरव भ्रमर गुंजन, चहुं दिस नाच रहे वन मोर। सुगंध शीतल मन्द समीर, बहती मलयाचल की ओर। पहने प्रकृति पट पीत पराग, पुष्पित पल्लवित महि छौर। रवि आहट से छिपी यामिनी, चारूं चंचल चंद्रिका घोर। मुस्काती उषा गज गामिनी, कंचन किरण केसर कुसुम पोर। महकें मेघ मल्लिका रूपसी, मकरंद रवि रश्मियां चहुंओर। मदहोश मचलती मतवाली, किरणें नभ भाल पर करती शोर। सुरभित गुलशन बाग बगीचे, कोयल कूके कुसुमाकर का जोर। नवयौवना सरसों अलौकिक, गैंहू बाली खड़ी विवाह मंडप पोर। मनमोहक वासंतिक मधुमास, नीलाभ मनभावन प्रकृति में शोर। कृषक हिय प्रफुल्लित आनन्दित, अभिसारित तरु रसाल पर बौर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, रा...
ले वसंत आया
कविता

ले वसंत आया

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** विकल नव कोंपले, नव कली की चित्कार, मुरझाए फूलों का रूदन, ले वसंत आया। गरीब दीनहीन की दुर्दशा, महंगाई की मार, भ्रष्टाचार का विकट जाल, ले वसंत आया। जाति धर्म के नाम रचित, चक्रव्यूह कितने, नित नए षड्यंत्र मनुज के, ले वसंत आया। हर दहलीज पर, मां बहन बेटी का अपमान, बगिया में भंवरों की क्रुरता, ले वसंत आया। अब रिश्ते ही, रिश्तों के काटते गले बेरहम, मां के दूध में चलती तलवार, ले वसंत आया। स्वार्थ की मिठास में, खून से तरबतर दामन, तो कहीं दरारों से भरा आंगन, ले वसंत आया। संबंधों में, अपनों के लिए बदल गये अपने, बाजार से झूठ बोलते आईने, ले वसंत आया। अदली - बदली सरकारें, बिन बदले मतदाता, भोर सुहावनी मृग मरीचिका, ले वसंत आया। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : ब...
कन्याभ्रूण हत्या
कविता

कन्याभ्रूण हत्या

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। जहां आंगन तेरे खेलती, ले फूल सी अंगड़ाई। पापा देख देख मुस्काती, मैं सहती नहीं जुदाई। मैं अंगुली पकड़े चलती मां, जग तेरी करें बढ़ाई। तात-मात से दुनिया कहती, बेटी ही घर महकाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। देख जगत की यह करतूतें, आंखें मेरी भर आई। गर्भ से जब किए निष्पादन, बोटी-बोटी घबराई। मखमल सी मेरी काया को, यूं खंड-खंड कटवाई। चीखें मेरी निकली होगी, मां गर्भाशय मरवाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। कैसे होगा मंगल गायन, कहां बजेगी शहनाई। पाप किया बेटे के खातिर, बेटी जिसने कटवाई। जब बह...
शीत ऋतु
कविता

शीत ऋतु

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जुताई खेती किसानी की जाती हैं। पूस की रात में कैसे नील गायें, हलकु की फसल चट कर जाती हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? फसलों को ठंडी रातों में सींचते हैं। आशाओं पर तुहिन पाला पड़ कर, खेतों में लहलहाते सपने सूखते है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? वादी के ठिकानों में अडिग खड़े है। मां भारती की सरहद पर खदानों में, वीर हिम शिखरों पर मौत से अडे़ है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जो राणा के रणवीर लौहा पीटते हैं। स्वच्छंद गगन के नीचे श्रम स्वेद से, भूखे शरद के पेट में घन ठोकते हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जिस श्रमिक की हड्डियां अकड़ती है। ईंट पत्थरों से भरी तगारि लेकर, आसन्न प्रसव मजदूरिन सीढ़ी चढ़ती है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? चौराहे ...
दोहे
दोहा

दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दीपक बाती तेल मिल, करते तम का नाश। अपना जीवन वार कर, जग में करें प्रकाश।। सीता लांघी देहरी, टूटी घर की रीत। रावण के पाखंड में, साधू वाली प्रीत।। मां के आंचल में मिलें, ममता भरा सुकून। कदमों में जन्नत सदा, बरसे नेह प्रसून।। आज धर्म के नाम पर, होते कितने क्लेश। मानवता को भूलकर, शत्रु बन गये देश।। जय माला शोभित भाल, सूरवीर के संग। रण में झलके वीरता, रुधिर सने हो अंग।। ईश आस्था रखें सदा, सुख दुख में हर बार। जीवन में सहायक है, जग का तारणहार।। आंख शयन की प्रेयसी,नित करती अनुराग। नेह पलक पर सींचती, नयन निंद से जाग।। सात जन्म का साथ था, प्रीत रही अनमोल। नेह लिप्त मीरा रही, रस जीवन में घोल।। लगन लगी जब श्याम से, कहां रहा कुल भान। मीरा माधव प्रेम में, विष का कर ली पान।। सखा श्याम से भेंट...
मित्रता
दोहा

मित्रता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मित सच्चा देखिए, कर दिया जान निसार। यारी ऐसी कहां मिले, ज्यों पीयूष इसरार। जल में डूबा देखकर, याद आया इकरार। संकट में साथ देना, इक-दूजे से करार। यार-यार पर कर दिया, अपने प्राण निसार। अपने मित्र के लिए, सब भूल गया इसरार। मां की ममता भूला, अब्बा का भूला प्यार। सबसे ऊपर हो गया, यार के खातिर यार। हिंदू मुस्लिम सिख ले, दिल से सच्चा प्यार। मानव से मानव मिले, ज्यों पीयूष इसरार। पोखर भी रोया होगा, देख अनोखा यार। मरकर भी न जुदा हुआ, सच्चा इनका प्यार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
बादल
दोहा

बादल

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** काले बादल नभ चढ़े, घटा लगी घनघोर। शीतल मन्द पवन चली, नाच रहे वन मोर। कोयल पपिहा कुंजते, दादुर करें पुकार। काले बादल देखकर, ठंडी चली बयार। काले बादल नभ चढ़े, बरसे रिमझिम मेह। गौरी झूला झूलती, साजन सावन नेह। घटा गगन शोभित सदा, बादल बनकर हार। मेघ मल्लिका रूपसी, धरा सजे सौ बार। प्यासी धरती जानकर, बादल झरता नीर। लहके महके वनस्पति, बरसे जीवन क्षीर। धरती दुल्हन हो गई, बादल साजन साथ। यौवन में मदमस्त है, प्रीत पकड़ कर हाथ। बादल से वसुधा करी, स्नेह सुधा का पान। गागर सागर से भरी, स्वर्ण कलश सम्मान। मूंग मोठ तिल बाजरा, यौवन में मदमस्त। धान तुरही लता चढ़ी, बादल पाकर उत्स। श्वेत नीर फुव्वार से, भीगे गौरी अंग। खुशी खेत में नाचती, बादल हलधर संग। दुल्हा बनकर चढ़ चला, बादल तोरण द्वार। दुल्हन प्...
परिवार
कविता

परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का तानाबाना, चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मैला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना, मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत, जीने की जिजीविषा, और संघर्षों का झमेला। सीख कसौटी मीठी घुड़की, आंगन में मिलती, जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार, बहन भाई का युद्ध और दादा दादी की माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन, संबंधों में नैतिकता, परिवार सद् काव्य शाला। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घो...
पिता
कविता

पिता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरती पर जीवन संबल और शक्ति है पिता। बच्चों के लिए पूंजी और पहचान है पिता। स्नेह, प्यार और आशीर्वाद से छलकता, रिश्तों के सागर में गहरा पानी है पिता। रोटी, कपड़ा और मकान है, बच्चों की किस्मत और शौहरत है पिता। एक परिवार का अनुशासन, घर की छत और बच्चों का अभिमान है पिता। बिना पिता के संतान होती अनाथ, घर परिवार की सुरक्षा और संस्कार है पिता। फूलों के बाग़, बच्चों के खिलौने, घर के भगवान, पालन और पोषण है पिता। सारे रिश्ते नाते उनके दम से, बच्चों की मां की बिंदी और सिंदूर है पिता। महकते चमन के पहरेदार तो, परिवार की धरती और आसमान है पिता। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...
शब्द श्रद्धांजलि
कविता

शब्द श्रद्धांजलि

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मौत भी रोई होगी ऐसा मंज़र देखकर। उसे दरिंदे मिलें इंसानी नक़ाब पहनकर। अनजान पहुंची होगी भेड़ियों की मांद में, वो भोली निश्छल उन्हें अपना मानकर। टूटकर बिखरी थीं इक मां, बहन बेटी, सिसकी घबराई होगी वो खतरा भांपकर। दुराचारियों ने नोंचा मासूम रूह तन को, बचने की लाख कोशिश की हैवान जानकर। पशु भी नहीं करते इतने घृणित कर्म, वो किया दरिंदों ने उसे लाश समझकर। दुःख, वेदना, पीड़ा, आंसू, ख़ून, कत्ल सब, बौने नज़र आये बहन तेरा दर्द जानकर। आंखों पर पट्टी बांधकर गांधारी मत बनो, उठा लो खंजर करोगे क्या हाथ बांधकर। जी कर भी क्या करोगे ऐसी जिंदगी का, कायर डरपोक मरी मानवता साधकर। खोखले कानून और गूंगी बहरी सरकार, रोज रौंधी जाती है नारी नारायणी कहकर। अब सरेराह कत्ल करों, इन दानवों का। इन्हें फांसी पर ...
पंख
कविता

पंख

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दिए है जिसने पंख, उसने आस्मां बख्शा होगा। आज को देख मनुज, कल किसने देखा होगा। व्यर्थ न कर चिंता, चिंता! चिता का स्वरूप है, चिता जलाती मुर्दे को, चिंता जलाती जिंदा होगा। पंख फैलाए उन्मुक्त गगन में, उड़ान भरकर देख, आसमां के तारे तेरे, तू सितारों का आसमां होगा। कोशिश अगर करेगा, जमीं कदमों से नाप लेगा, हसरतों के शहर में, खुशियों का बाजार होगा। ख्वाहिशों के घोड़ों को, लगाम देना सीखिए, दुनिया उसी की है, बुलंद जिसका हौसला होगा। हर आंगन में दरार, यह स्वार्थ का रिवाज है, अपने हो गए पराएं, बस गैरों से परिवार होगा। पंख कतरनें को बैठे हैं, गगन की दहलीज पर, जीत उसी की होगी, जो अपनों से सावधान होगा। बेगैरत है दुनिया, दूध में चलती तलवार देखी है, खंजर पीठ में उतारने वाला, कोई अपना होगा। परिचय :- डॉ....
दर्द से रिश्ता पुराना
कविता

दर्द से रिश्ता पुराना

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दर्द से रिश्ता पुराना, हर किसी का रोना है। दुःख में सुख तराना, घोड़े बेचकर सोना है। अरे! दुःख से कह दो अपनी हद में रहे, दुनिया में क्यों फ़िक्र करूं, मुझे क्या खोना है। खाली हाथ आए है खाली हाथ जायेंगे, आज को छोड़कर, कल में जीना बेगाना है। ना साथ है किसी का, ना हमसफ़र है कोई, झूठे संसार में क्यों मतलबी रिश्ते निभाना है। दर्द से कह दो सितम कर तेरी हद तक, मुझे भी अपने हौसले का सब्र दिखाना है। क्यों बनाते हो चिंता को चिता का रास्ता, जिसे मिली है चोंच उसे चुग्गा खिलाना है। उषा की लाली सूर्यास्त को मत सौंफिए, पंख देने वाले ने, बख्शा आसमां सुहाना है। जी भर कर जिओ जब तक जिंदगी है, आपको कम खुशी में, अधिक मुस्कुराना है। ख्वाबों को रोकना महलों तक जाने से, नज़र में उन्हें रख, झोंपड़ी जिनका ठि...