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Tag: प्रमेशदीप मानिकपुरी

उम्मीद का चिराग
कविता

उम्मीद का चिराग

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तन्हाइयो का सफर हैं तेरा और मेरा तन्हा कैसे कट पाये सफर अब मेरा आप तड़पते बैठे हो अकेले ही वहाँ जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा उम्मीद का चिराग ही जला पा रहे हैं साथ होगा दिल को समझा पा रहे हैं जाने किस विधि साथ होगा अब तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा कैसे भी हालात अब जीना ही पड़ेगा गम के आंसु खुद को पीना ही पड़ेगा कभी तो सफऱ में साथ मिलेगा तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा क्या कभी हम साथ-साथ हो पायेंगे हर हाल में पिया तेरे साथ जी पायेंगे कभी मन निराश ना हो मेरा और तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा उम्मीदों के सहारे जीवन काट लेंगे गम व ख़ुशी आपस में ही बाँट लेंगे तू बने राधा मेरी मै घनश्याम हूँ तेरा जाने किस डगर पर साथ मिले तेरा जी रहे केवल साथ की ही आश में बचा जीवन का सफर हो विश्वास में रब ...
कोई रास्ता भी नहीं बताता है …
कविता

कोई रास्ता भी नहीं बताता है …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मझधार मे तो फंसी है नैया मिल जाये कोई तो खेवैया उलझन समझ नहीं आता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है किस तरह से साथ निभाये कैसे दिल को अब समझाये दांव मे सब कुछ लग जाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है जीवन भी तो जैसे व्यर्थ हो कंही कोई ना अब अर्थ हो निर्वाह का ही डर सताता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है अब करें क्या और कैसे-कैसे उम्र बीत जाये बस जैसे तैसे उम्मीद कुछ हाथ नहीं आता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है उलझा हुआ यहाँ हर आदमी है स्व संघर्ष मे मशगुल हर कोई है कौन किसका साथ निभाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है कुछ करें जतन अब तो मन से शेष है जीवन जो तन मन से शायद यही साथ -२ जाता है कोई रास्ता भी नहीं बताता है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवा...
जब बसंत आता है
कविता

जब बसंत आता है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है बागो मे कोयल जब प्यार के गीत गाती है सरगम की लय पर सस्वर गीत सुनाती है इन मधुर गीतों से दिल मेरा भर जाता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है अमुवा की मौर से फ़िज़ा भी मतवाली है बासंती बयार सबका मन मोहने वाली है सरसराती हवाएं दिल मे आग लगाता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है पीले सरसो के फूल प्रकृति का श्रृंगार है धरा पर बसंत, रति काम का अवतार है इसकी मादकता मन को सदा हर्षता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है रग-रग मे जीने की नवीनतम आश है प्रकृति का अप्रतिम कैसा अहसास है प्रकृति का हर शै प्रेम की बात बताता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है प्रकृति से सीखे परिवर्तन कैसे स्वीकारना विषम परिस्थिति मे भी खुद को निखारना पतझड़ के बाद ही नई-नई कोपले आता है ज...
तो समझो बसंत आया है
कविता

तो समझो बसंत आया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** पलाश भी अब झूम उठे नव कोपल भी खिल उठे पत्ता और डाली हर्षाया है तो समझो बसंत आया है कोयल की राग है नियारी सबकी लगती अति प्यारी सुन्दर राग भी तो गाया है तो समझो बसंत आया है करवट बदलती है फिज़ा सबसे अलग और है जुदा प्रकृति में खुमार आया है तो समझो बसंत आया है तन प्रफुल्लित हो जाये मन प्रफुल्लित हो जाये प्रीत मन में गर समाया है तो समझो बसंत आया है फिज़ा में निखार है आई मदमस्त बाहर भी है छाई भंवरों का मन ललचाया है तो समझो बसंत आया है जीवन में नव-नव हर्ष देने सौन्दर्य का सहज स्पर्श देने हरियाली से जग सजाया है तो समझो बसंत आया है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(ब...
दर्द का अहसास
कविता

दर्द का अहसास

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सामान्य लड़की सभी लड़कियों से खास है जीवन दुभर पर जीने की बेशुमार आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उसकी मानसिकता लड़कियों से भी भिन्न है उसकी सोच माँ के गम से सर्वथा अभिन्न है जिसे माँ के अंदर करनी बाप की तलाश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उमड़ आते है आँख मे गम के आंसू अक्सर सोचती है क्या आयेगी खुशीयों के अवसर कितने गम है फिर भी नवजीवन की आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है अजीब-2 से सवाल उसके जेहन मे उठती है जवाब के तलाश मे खुद से भी तो रूठती है जवाब मिलने का उसे अब भी एक आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सब कुछ होकर कुछ भी तो नहीं होता है? ऐसा इत्तेफाक दुनिया मे क्योंकर होता है? तब से मुझे भी उसके उत्तर की तलाश है एक लड़की जिसे...
कितने रंग दिखाती है जिंदगी
कविता

कितने रंग दिखाती है जिंदगी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी कभी हंसाती कभी रुलाती है जिंदगी चरित्र के चादर मे रंग लगाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी कभी तो अपनों का अपनेपन से ही कभी तो जीवन के झूठे सपनों से ही निज से साक्षात्कार कराती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी समय की पल-पल पड़ती मार से ही प्रवाहित नदी की अविरल धार से ही समयानुकूल जीना सिखाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी समय-समय का अब क्या मोल होगा जीवन जाने कैसे अब अनमोल होगा हर समय की कीमत बताती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी जीवन के सुर, ताल, लय और छंद का प्रतिपल बदलती इसकी हर बंध का सरगम सा जीवन बतलाती है जिंदगी ना जाने कितने रंग दिखाती है जिंदगी परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुर...
बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं
कविता

बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अहसास से सींचे हर एक रिश्तों को जग मे साथ निभाते हर फरिश्ते को दिल जो मिले आश अधूरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं कभी कम या ज्यादा मिल जाता है बागो मे भी कई फूल खिल जाता है अरमा के फूल खिले जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं अब अहसासों से रिश्ते निभाते रहें जीवन के गीले शिकवे मिटाते रहें रूबरू मिलना भी जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं जो मिला है वो भी उसकी मेहर है सुख अमृत है तो दुख ही जहर है सदा सुख मिले हमें जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं है इश्क अगर तो दर्द मिलेगा जरूर कांटों मे नित गुलाब खिलेगा जरूर प्यार मे अंजाम मिले जरुरी तो नहीं बागो मे नित बहार जरुरी तो नहीं दुख-सुख तो जीवन का हिस्सा है जीवन भी एक अनोखा किस्सा है जीवो हंस के कोई मजबूरी नह...
उम्मीदों के दीपक जलाये
कविता

उम्मीदों के दीपक जलाये

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** मन के अंधियारे मे उम्मीदों के आश लगाये संवर जाये जीवन ऐसा कुछ हम कर जाये उम्मीदों के दीपक संग ही दीपावली मनाये आओ किसी के जीवन में खुशहाली लाये आपस के अब तो सारे राग द्वेष मिटा दें जन-जन मे नवीन अब अनुराग जगा दें दिल से दिल के अब तो सारे भेद मिटाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये अपनों को अपनेपन का अब अहसास दें बदलती जीवन को अब नव-नव आश दें चलो सब खुशियों की फुलझड़ीयाँ जलाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये समता, ममता व एकता के अब भाव जगे मानव हित में मानवता के नव अंकुर जगे मन से मानवता की ही अब ज्योति जलाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये मृगतृष्णा में भटक रहें सब मानव अब तो रिश्तों का कंही कुछ लिहाज नहीं अब तो चलो रिश्तों में फिर से नई मिठास जगाये आओ किसी के जीवन मे खुशहाली लाये राग, द्वेष, मद...
सपने सजाये बैठा हूँ
कविता

सपने सजाये बैठा हूँ

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दिल मे कितना बोझ लिये बैठा हूँ दिल मे दर्द के सैलाब लिए बैठा हूँ बहुत दूर तलक है अंधेरा ही मगर पर उम्मीदों की दिये जलाये बैठा हूँ अंधेरा भी मिट जायेगा एक दिन बाहरें फिर लौट आयेगी एक दिन एक दिन आयेगी रौशनी कंही से मन को अब ये समझाये बैठा हूँ रात के बाद दिन का आना तय है दुख के बाद सुख का आना तय है आयेगी नूतन किरण अब नभ से अब सूरज से नजर मिलाये बैठा हूँ अरमानो से सजी सब रातें होंगी खुशियों की नित अब बातें होंगी हर दिन होगी खुशियों का मेला मन मे यह विश्वास जगाये बैठा है कितने सपने भी अब टूट रहें है कितने अपने भी अब छुट रहें है टूटती तारों संग जाने क्यों कर नवीनतम सपने सजाये बैठा हूँ परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- ...
मतलब के रिश्ते-नाते है
कविता

मतलब के रिश्ते-नाते है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** धन दौलत तक माँ बाप से नाता है सबल होते ही तोड़े सब से नाता है अंत मे सब छोड़कर चले जाते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है दौलत हो तो सब के रिश्तेदार है गरीब का कब कहाँ कोई यार है गरीबो से लोग रिश्ते भी छुपाते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है अपना-अपना सब को कहते है पर पीड़ा अपने तक ही रहते है वक्त पड़े कोई साथ नहीं आते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है लोग आते है और लोग जाते है जग मे निज-निज धर्म निभाते है कितने लोग जीवन मे ऐसे आते है मतलब के सब रिश्ते और नाते है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रेजी, डी.एल.एड. कम्प्यूटर में पी.जी.डिप्लोमा रूचि : काव्य लेखन, ...
औरत
कविता

औरत

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिसने जन्म दिया उसका मान नही है क्या? ममता की कंही सम्मान नही है जिस्म के लिए यह कैसे व्याभिचारी है औरत को औरत होने की लाचारी है खूब लगाते नारीवाद के नारे सभी क्या सम्मान दे पाये नर उन्हें अभी क्या? वो जीने के अधिकारी नही है औरत को औरत होने की लाचारी है समता का जब उनको अधिकार है क्यों रखते उनके प्रति दुर्व्यवहार है घात लगाकर बैठे क्यों शिकारी है औरत को औरत होने की लाचारी है क्यों उनको सब अधिकार देते नही बराबर का अधिकार क्यों देते नही क्यों कहलाई जा रही वह बेचारी है औरत को औरत होने की लाचारी है अब सम्मान और समता से जीये क्यो जीवन भर वह विष को पिये स्वाभिमान से जीने के अधिकारी है समता, स्वभिमान के वो अधिकारी है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाच...
इंसान से इंसानियत खो गया है
कविता

इंसान से इंसानियत खो गया है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** परहित परोपकार की बातें करना समाज के लिए जीना और मरना सब कुछ खोखली बातें हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है अच्छे-बुरे की अब परख नही है जीने-मरने मे कोई फरक नही है स्वार्थी अब हर इंसान हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है प्यार-मोहब्बत सब झूठी बातें बेईमानी मे कटती है अब रातें दगा देना,नामे वफा हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है पल-पल बदलती जग की तस्वीर जाने लिखने वाला सबकी तकदीर जीवन कोई फलसफा हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है विकास का क्या असर हो गया है मानव से मानवता ही खो गया है क्यूँ इंसान अब ऐसा हो गया है इंसान से इंसानियत खो गया है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक...
इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर
कविता

इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तेरा नाम नही तो सब मुझसे खुश रहते है तेरा नाम लेते सब मुझसे नाखुश रहते है अपने हिस्से का प्यार सब चाहते है मगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर समझ नही पाते लगाव घट नही सकता ये वो घाव है जो कभी भर नही सकता इश्क सीमारहित जिसका छोर नही पर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर चाहत के अफसाने जो दिन रात बढता उसके अगन से कोई भी बच नही सकता इश्क वो दरिया जिसमे ताउम्र डूबना मगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर आग सीने में लग जाये एक बार इश्क की ताउम्र मिलेगी अब प्रेम में कसक व सिसकी इस कशिश में बीतेगी अब तो जीवन डगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर उम्र गुज़ार देंगे केवल तेरे यादो के साथ मैं इधर लिखूं,आप उधर पढ़ना मेरे साथ अब तो पढ़ के ही प्रेम होगा हमारा अमर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर किसी...
मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना
कविता

मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** गर मै जिंदा हूँ,तू अपना वजूद रखना । वक्त के बदलने का बस ख्याल रखना ।। एक ना एक दिन बहार आयेगी जरूर । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। बेशक कांटे भी मिलेंगे रास्ते मे मगर । दुनिया भी हो जाये इधर उधर मगर ।। दुनियादारी मे खुद का ख्याल रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। क्या हुआ की किस्से अधूरे रह गये । रेत का मकान,एक पल मे ढह गये ।। कांटों को भी सीने से लगाये रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। एक दिन दामन खुशियों से भर जायेगी । बहारे लौट कर बासंती रंगरूप दिखायेगी ।। उम्मीद से जीवन का दीपक जलाये रखना । मेरे वादे मेरे इरादे पर एतबार रखना ।। परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति...
दुखों का आना …
कविता

दुखों का आना …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सुख-दुख दोनों हमारे आसपास है दोनों ही इस जग मे बहुत खास है आगे पीछे आना इसकी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है आना जाना जब पहले से तय है हर गम के लिए पहले से सज्य है सुख-दुख भी उसी की महोब्बत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख दोनों ही करनी फल है इस सम रहकर सहना ही हल है सहने की अब तो बनानी आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है गम की बदली भी छायेगी कभी बसंत से बहार भी आयेगी कभी एकदूजे के पीछे आने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है सुख-दुख मे सम रहकर जीते है दोनों ही अच्छे है सहकर जीते है जो आता, उसे जाने की आदत है दुखों का आना उसकी इनायत है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शि...
रंगों का त्यौहार
कविता

रंगों का त्यौहार

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** रंगों का त्यौहार है, तरंगो का त्यौहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है रंगे रंग एक-दूजे को मिट जाये मलाल रंग दे प्रेम के रंग से, नीला,पीला,ग़ुलाल रंगों की फुलवारी में स्वागत बार-बार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है आत्मा से परमात्मा रंगे, मिल जाये कृष्णा रंगे जीवन को रंगों से मिट जाये हर तृष्णा परमात्मा से मिलन की अब तो मनुहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है पाप की होली जला भस्म से ले संकल्प धर्म पथ पर चले दूजा ना कोई विकल्प कर्म कर अब बदलना निज व्यवहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है होली सदा ही सदभावना का त्यौहार है मानव से मानवता का बनेगा व्यवहार है श्याम रंग में रंग जाये, यही सदव्यवहार है मिलकर खेले होली, रंगों का त्यौहार है रंगों और तरंगो संग आओ खेले होली जात...
कैसी ये प्रीत है
कविता

कैसी ये प्रीत है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** प्रीत की बड़ी अनोखी बंधन है रब की बनाई कैसी आबंधन है जग से निराली कैसे ये रीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है क्या अहसास और इम्तिहान है रब से की दुआ की पहचान है दिलों मे बजती कैसी संगीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है जाति, धर्म से भी ऊँचा नाम है स्व बंधन, जग से क्या काम है मर मिटे एक दूजे पर ये रीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है दूर रहकर भी आसपास लगे हर पल दिल को जो खास लगे प्यासे दिलो मे अनबुझी प्रीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है सबसे ऊपर है मुहब्बत का नाम जिसकी लगा ना सके कोई दाम मुहब्बत तो पूर्व जन्म की प्रीत है दो अनजानों मे कैसी ये प्रीत है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्र...
संग तु और नदी का किनारा है
कविता

संग तु और नदी का किनारा है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** ये दिल कैसे प्यार में आवारा है तेरे बिन जिंदगी कैसे गुजारा है क्या हंसी ये रुत और नजारा है संग तु और नदी का किनारा है रेत पर हम आशियाना बना लेंगे फूल पौधो से इसको सजा लेंगे बचपन की यादों का सहारा है संग तु और नदी का किनारा है उंगलिया अटखेलीया करते रहे नाम को आगे पीछे उकरते रहे रेत का घर ये कितना सुहाना है संग तु और नदी का किनारा है हम नाम लिखते और मिटाते रहे एक दूजे को जैसे आजमाते रहे एक दूजे की यादें ही सहारा है संग तु और नदी का किनारा है आओ मिलकर के घरौंदा बनाये सजिले सपनो से उसको सजाये कितना सुन्दर ये सब नजारा है संग तु और नदी का किनारा है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक श...
दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं
कविता

दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अब जिंदगी मे कुछ भाता नहीं रात ऐसी, जैसे सुबह आता नहीं कोइ आता नहीं कोइ जाता नहीं दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं मखमली बिस्तर, पर नींद नहीं प्यार है उनका, पर साथ नहीं संघर्ष मे कोई साथ आता नहीं दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं जीवन की अनोखी सौगात है पल मे बदलती जैसे हालात है ख़्यालात यूँही तो बदलता नही दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं उम्र दराज मे ही हम तुम मिले है अरमानों के दिल में फूल खिले है उसके सिवा अब कुछ भाता नहीं दर्दे दिल को कोइ मिटाता नहीं हमको मिलाना उसकी मेहर है याद आना अब आठों पहर है दिल में कसक यूँही उठाता नहीं दर्दे दिल को कोई मिटाता नहीं परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक ...
नया सवेरा आने को है…
कविता

नया सवेरा आने को है…

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जनम मरण के बीच जो लकीर है जीवन तो पूर्व जन्म की ताबीर है लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी-मीठी यादो संग जीवन मे बिखरते कुछ यादो और वादों संग कुछ जीवन से जो रीता है कुछ ने सपनो को जीता है जीना है हमें अब उन सपनो के संग-संग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग जो बिता उसे भुला भी दो गम को सारे भूला भी दो वर्तमान को बेहतर कर, भर दो जीवन मे रंग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग आना जाना जग मे जैसे कोई पहेली हो जन्म-मरण जैसे एक दूजे की सहेली हो मिला है जीवन, भरेंगे उसमे नित नव-नव रंग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग नया सवेरा, नया उम्मीद आने को है अपने अपनों के साथ निभाने को है समय की दरकार है रहना अब अपनों के संग लो बीत गया एक वर्ष, खट्टी मीठी यादो संग जीवन मे बिखरते कुछ ...
मैं तुझे भुला ना पाउँगा
कविता

मैं तुझे भुला ना पाउँगा

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तेरी यादो के सहारे ये जिंदगी बसर कर लेंगे जहाँ की सारी दुष्वारियां नजरे करम कर लेंगे तेरी याद आने से पहले, मैं तुझे याद आऊंगा तुम भुला देना मुझे, मैं तुझे भुला ना पाउँगा हम तुम एक ना हुये तो क्या हुआ सनम चाहतो के भी अपने ही होंगे नजरें करम चाहतों के किस्से सारे जहाँ को बताऊंगा तुम भुला देना मुझे मैं तुझे भुला ना पाउँगा पत्थर के शहर में चाहत के शीशे बेच लेंगे सामने ना सही अक्स हम दिल में देख लेंगे दिल में तेरे लिए एक छोटा सा घर बनाऊंगा तुम भुला देना मुझे, मैं तुझे भुला ना पाउँगा जो मिल ना सके हम तुम कोई बात नहीं सवेरे उजाले भी तो होंगे हमेशा रात नहीं खुशियों की महफ़िल में तुमको बुलाऊंगा तुम भुला देना मुझे,मैं तुझे भुला ना पाउँगा हम वादों इरादों संग जीवन सफर कर लेंगे बिछुड़कर यादों संग जीवन बसर कर ले...
माँ के दर्द का अहसास है
कविता

माँ के दर्द का अहसास है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है सामान्य सी दिखती लड़की, सब से खास है दर्द में पली लड़की, जिसे दर्द का अहसास है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उसकी सोच सामान्य लड़कीयों से भिन्न है उसकी गम माँ के गम से सदैव अभिन्न है जिसे माँ मे ही करनी, बाप की भी तलाश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है उमड़ आते है गम के, आंसू आँखों में अक्सर सोचती है क्या आयेगी कभी खुशी के अवसर कितने गम है मगर, अभी भी जीने की आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है अजीब से सवाल उसके जहन में उठती है जवाब के तलाश में, अपने आप से रूठती है जवाब मिलने का, अब भी उसे आश है एक लड़की जिसे माँ के दर्द का अहसास है किसी के सब कुछ रहकर कुछ भी नहीं होता है ऐसा अजीब इत्तेफाक दुनिया में क्यूंकर होता है तब से अब तक हमें उसके उत्तर ...
बचपन मे लौट जाये
कविता

बचपन मे लौट जाये

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** निश्छल प्रेम की नित बहती हो धारा मोहक और हम सबका अति प्यारा दोस्तों के संग खेलखुद मे जुट जाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये बच्चे सदा सब के मन को लुभाते है सपनों की सारी बातें सच हो जाते है आओ सपनो की नई दुनिया सजाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये पिता जिसमे खुशियों का खजाना है माँ की आँखों में ममता का तराना है माँ के आँचल मे छुप, गम भुला जाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये ना फिक्र कोई,ना जिम्मेदारी की बोझ खुशियों की बारातें जीवन मे हर रोज पापा के कांधे बैठ सपने सजा जाये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये खुशियों का समंदर हरपल पास हो जीवन का यह पल हमेशा खास हो आओ बचपन में फिर से घूम आये आओ हम सब बचपन मे लौट जाये परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- ...
जगत मे कोई नहीं अब अपना
कविता

जगत मे कोई नहीं अब अपना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** अपना-अपना जिसको है कहा जिसके बिन नहीं जाता है रहा निकला वह सब झूठा सपना जगत मे कोई नहीं अब अपना स्वार्थ के साथी बोले मीठे बोल स्वार्थ सिधते ही बोली अनमोल वो ही रुलाये माना जिसे अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना पुत्र-पुत्री, भगनी और नर-नारी आपतकाल मे कीजिये बिचारी धन दौलत के रहते सब अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना झूठा है जग झूठी इसकी माया खिलौना है यह माटी की काया हाड़-मांस मे प्राण तभी अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना बेमोल बिकते, ईमान और धरम मानवता नहीं हैवानियत है धरम रिश्तेदार मतलब तक ही अपना जगत मे कोई नहीं अब अपना परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक्षा : बी.एस.सी.(बायो),एम ए अंग्रे...
दशहरा
कविता

दशहरा

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दस विकारो को जीत बढ़ चले प्रगति पथ पर जीत सार्थक तब, जब अछून्न रह सके जीत पर जब मरे विचारों का रावण तब दशहरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा संकल्प लेंगे नहीं हटेंगे अच्छाई की राह से दूर ही रहेंगे काम, क्रोध व लालच की चाह से पवित्र हो विचार तो स्वाभिमान जाग जायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा सत्कर्म की राह पर चलकर पायेंगे लक्ष्य को कर्म करके बताएँगे, जीवन के सब साक्ष्य को कर्मो से ही जीवन मे नित नया सवेरा आयेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा मन के गलियारे मे सज्जनता का होगा बसेरा अरमानो का नित होता हो जहाँ सुखद सवेरा ऐसे नर ही जग मे लक्ष्मी नारायण बन पायेगा जीवन की बगिया को संस्कारो से महकायेगा राम बनना है तो राम सा चरित्र बनाना होगा भीतर के रावण को खुद ही हमें मिटाना ...