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Tag: प्रीति शर्मा “असीम”

हूँ …मैं
कविता

हूँ …मैं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपने डर से बहुत -बार लड़ा हूँ.... मैं । जीने की हर कोशिश में बहुत -बार मरा हूं मैं। सैकड़ों बार टूट -टूट के फिर उन टुकड़ों को जोड़ कर जुड़ा हूँ.. मैं। अपने डर से बहुत -बार लड़ा हूँ.... मैं । अपनों ने ही खींचे थे पाँव। सैकड़ो बार गिरकर लड़खड़ाते हुए फिर भी खड़ा हूँ ..मैं। मिले तो थे हाथ साथ मगर। जिंदगी की राह पर फिर भी अकेला चला हूँ.. मैं। अपने डर से बहुत -बार लड़ा हूँ.... मैं । सवाल बन के क्यों... रह गई जिंदगी। हर उस जवाब की तलाश में अब चला हूँ...मैं। उम्मीदों से छुड़ाकर हाथ अपना। आज आपने साथ पहली बार चला हूँ...मैं। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...
नये साल के नये हिसाब
कविता

नये साल के नये हिसाब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आओ... नए साल पर कुछ हिसाब-किताब कर ले। जिंदगी ने लम्हा-लम्हा कितना घटाव दिया। उस सब का जोड़ कर ले। जो दर्द कई गुना बढ़ते ही गए। आओ... चंद उम्मीदों से उन्हें भाग कर ले।। आओ नए साल पर कुछ हिसा -किताब कर ले। जिंदगी बड़ी तेजी से निकल जाती है। जबकि लगता है यह गुजराती ही नहीं है। इसी बात पर फिर से वहीं बात कर ले। घूम-घाम कर, फिर से उसी घेरे में घूमती है जिंदगी। हम खड़े किसी त्रिकोण में जिंदगी को, फिर से नई उम्मीद से वर्गाकार कर ले। आओ नए साल पर कुछ हिसाब-किताब कर ले। जो लोग....कहते है। यह करेंगे... वह करेंगे रेजोल्यूशन तो एक भुलावा है। जबकि हम भी जानते हैं। पिछले बीते हुए तमाम सालों में कौन-सा खंबा उखाड़ डाला है। आओ फिर भी ...फिर से एक नई उम्मीद कर ले। आओ नए साल पर कुछ हिसाब-किताब...
जिंदगी… बड़ी बेरहमी से सच दिखती है
कविता

जिंदगी… बड़ी बेरहमी से सच दिखती है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी ......बड़ी बेरहमी से सच दिखती है। कितना भी.... बहलाते रहे खुद को। ऐसा नहीं है...??? ऐसा हो नहीं सकता ...!!!! जबकि ..... ऐसा ही था!!!? साथ सच के बीते लम्हों की हर बात को बड़ी खामोशी से बयां कर जाती है। जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है। जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है। झूठी उम्मीद को पाल-पाल कर। लाख कोशिश करें कोई टूटी उम्मीदों को फिर से संभाल कर। जिंदगी उम्मीद से भी उसकी उम्मीद छीन लेती है। जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है। जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है। अपना-अपना कहकर जोड़ते रहे उमर भर छत और दीवारों को। जिंदगी बड़ी बेरहमी से उन घरों के दरवाज़े गिरा कर निकल जाती हैं। जिंदगी बड़ी बेरहमी से सच दिखती है। जिंदगी सच को बड़ी बेरहमी से दिखती है। मतलब तक ...
जिस रोज तुम …
कविता

जिस रोज तुम …

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिस रोज तुम गए थे ..... मुझे छोड़ कर। दो शब्द भी हिस्से न आयें मेरे। कुछ तो कहा..... होता कुछ बोल कर।। जिस रोज तुम गए थे मुझे छोड़ कर।। इंतजार को छोड़ा था मैंने जिस मोड़ पर। दिल को तोड़ा था तूने दिल से जोड़ कर। मैं फरियादें कहा करता रब से कुछ बोल कर। जिस रोज तुम गए थे .... मुझे छोड़ कर।। ना जाते हुए देखा नज़र भर कर। मैं देखता ही रहा... खामोशी से उस मोड़ तक। आज सोचता हूँ.... क्यों रोका नहीं उसे अपनी कसम बोल कर। जब कि वो चला गया मेरी जिंदगी से बिना ... कुछ बोल कर।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हि...
सुधार में पाठ्यक्रम
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सुधार में पाठ्यक्रम

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** भारतीय समाज के सुधार में ... आठवीं कक्षा के पाठ आठ में ... हिंदू पुराणिक कथाओं का, व्याख्यान किया जा रहा है। सती को दक्ष की, पत्नी बताया जा रहा है। इतने से भी सुधारकों का मन नहीं भरा जब। सती प्रथा को सती से जोड़कर जोहर बताया जा रहा है। पुराणों की यह कैसी ... कथाएं बता रहे हैं। विद्यार्थियों में कैसे भ्रम उठाए जा रहे हैं। सिलेबस में इस तरह जोड़ कर पुराणों को अपनी समझ से तोल कर। शिव पुराण कथा में ... काश सती-महादेव को थोड़ा-सा टोटोल कर। सती दक्ष की पत्नी नहीं पुत्री थी। पौराणिक कथाओं को मनगढ़ंत कहानी बोल कर। भारतीय सभ्यता को हर दौर में अपनी गलतियों को सुधारने के लिए बुद्धिजीवी सुधार करते रहे। इतिहास को इस तरह से जोड़ा की सभ्यता का विनाश करते रहे।। परि...
कुछ.. ही सही
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कुछ.. ही सही

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । तू मिला ...... और मिला मुझको कुछ भी नहीं। कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । जीवन के सफर में जब निकले कभी। किनारों की तरह चले थे सभी। साथ तेरा दो कदमों का ही सही। तू चला..... और मिली मुझको मंजिल नही। कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । तू मिला... और मिला मुझको कुछ भी नहीं। सब किस्से मोहब्बत के अधूरे सही। है मोहब्बत तुमसे इतना ही सही। पूरी न हो सकी...चल अधूरी सही।। सब मिला... और फिर भी कुछ भी नहीं।। चाहतों के समंदर में तैरा था कभी आसमानों को किस्सों में उतारा कभी। नाम तेरा लेकर जी लेगें हम। तू मिला पूरे दिल से कभी भी नहीं। कुछ पल के लिए कुछ पल ही सही । तू मिला और मिला मुझको कुछ भी नहीं।। जिंदगी दुआओं से मिलती नहीं। दे बददुआएं कि जान भी निकलती नहीं। जिस कदर अ...
अक्सर जिंदगी …
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अक्सर जिंदगी …

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अक्सर जिंदगी छीन लेती है उन हौंसले के पंख। जो उड़ना चाहते हैं आसमान की उंचाई पर। मापना चाहते हैं क्षितिज के पार क्या पता हो कोई अनुपम संसार। अक्सर जिंदगी छीन लेती है उन पैरों को। जो नाचना चाहते थे जीवन की ताल पर। थिरकते थे जिंदगी के हर नये ख्याल पर।। लेकिन टूट कर रह गये अपनी ही ताल पर। अक्सर जिंदगी छीन लेती है उन सपनों को। जो जिंदगी ने खुलीं आंखों में सजायें। लेकिन सपनों की हकीकत के हिस्से सिर्फ, इन्तज़ार के बंद दरवाज़े ही आयें।। अक्सर जिंदगी छीन लेती है उन अपनों को। जो जिंदगी के हर अहसास में हो समायें। लेकिन जिंदगी की हर वजह में, बजूद न बन पायें। जिंदगी को मार दे और मिटा भी न पायें।। अक्सर जिंदगी छीन लेती हैं प्यार को। प्यार के हिस्सें में सिर्फ भटकाव आयें। जब मिला...
बाकी है
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बाकी है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। जो तुम तक पहुंच न पाई मेरी सदायें बाकी है। मेरे खामोश लफ्जों की हजारों बातें बाकी है। थकी आंखों का लम्बा अभी इंतजार बाकी है। जो रूह को सकून दे जाता तेरा दिदार बाकी है। चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। किस कसूर की दी है सजा अभी इल्ज़ाम बाकी है। मौत का दे दिया फरमान अभी हमारी जान बाकी है। सजदों में बांधी उस डोर की अभी वो गांठ बाकी है। क्यों दुआएं कबूली नही गई वो फरियाद बाकी है। चंद खुशियों की हसरत में बेपनाह दर्द बाकी है। जो बीच रास्ते छोड़ दिया तुमने अभी वो साथ बाकी है। हम ने अजमा लिया सब को खुदा का इम्तिहान बाकी है। इश...
पत्थरों के शहर में
कविता

पत्थरों के शहर में

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** बात पत्थरों की चली। पत्थरों के शहर में हर इंसान ... पत्थर। हंसता-बोलता, रोता-खेलता हर इंसान..... पत्थर। और दुनिया बनाने वाला इंसान का भगवान ...पत्थर। बात पत्थरों की चली.... सब था पत्थर। इंसानियत को दरकिनार करते कुछ किरदार..... पत्थर। अपनों की ठोकरों में आयें कुछ मतलबी वफादार..... पत्थर। बन बैठे सिपाहसालार धर्म और समाज के कुछ अमूल्य.... पत्थर। बात पत्थरों की चली। पत्थरों के शहर में हर इंसान ... पत्थर। पत्थरों के हर शहर का हर मकान..... पत्थर। वक्त की चक्की में पिसता हर आम-खास....पत्थर। दिल कहाँ है... उसकी जगह गढ़ा है कबरिस्तान -सा....पत्थर। बात पत्थरों की चली। पत्थरों के शहर में हर इंसान ... पत्थर। हंसता-बोलता, रोता-खेलता हर इंसान..... पत्थर। और उसी दुनिया को बनाने वाला इंसान का...
गणतंत्र दिवस
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गणतंत्र दिवस

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आजादी को हासिल करके, आज के दिन, भारत को गणराज्य बनाया था। २६ जनवरी १९५० को, देश भारत ने, संविधान पारित कर संविधान लागू करवाया था।। आजादी को हासिल करके, भारत को गणराज्य बनाया था। राष्ट्र का यह पर्व, राष्ट्र के साथ भाईचारे से, हर हिंदुस्तानी ने मनाया था।। संविधान के सम्मान में, खड़े हर नागरिक, जन-गण का मान बढ़ाया था। आजादी को हासिल करके, भारत को गणराज्य बनाया था। विश्व का, सबसे बड़ा संविधान जिसे भीमराव अंबेडकर ने, २ साल ११ महीने १८ दिन में बनाया था।। नेहरू, प्रसाद, पटेल, कलाम ने जिसे बड़ी रूपरेखा से सजाया था । आजादी को हासिल करके आज के दिन , भारत को गणराज्य बनाया था।। आज के दिन, भारत के झंडे की शपथ ले। भारत का जन-जन यह प्रण उठाएगा। गणतंत्र की रक्षा के लिए हर हिंदुस्तानी कदम बढ़ाएगा...
नये….. साल में
कविता

नये….. साल में

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। दूसरों पर रखीं उम्मीदें समेट कर खुद पर उम्मीद कीजिए। नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। एक-एक ग्यारह जरूर होते है। एक बनकर अपनी कीमत की पहचान कीजिए। गलत... गलत... गलत का। जब शोर मचा हो। मैं सही हूँ...... इस बात पर हमेशा गौर कीजिए। नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। उम्मीदें जब टूटती हैं जिंदगी जब बिखरती हैं। उन सभी उम्मीदों को फिर से जोड़ने का काम कीजिए। नये साल में जिंदगी के नये तरीक़े इजाद कीजिए। आप...... जिंदा हो यह बात कबूल कीजिए। अपने टूटे हुए टुकड़ों से सपनों का नया ढांचा तैयार कीजिए। अकेले तुम ही लड़ोगे। राह में साथ कुछ पल ही मिलेंगे। जिंदगी की लड़ाई के लिए खुद को हिम्मत से तैयार कीजिए। हर साल नये साल आते ...
अब से पहले
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अब से पहले

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** पहले भी रात होती थी ...चांद होता था। तारों के साथ -साथ आसमान होता था। उन तमाम रातों में, जो चटक जाते थे तारे, उन्हें देख कर ख्वाब बुना करता था। मैं जागता था ...अनगिनत सपने देखने के लिए। मैं तलाशता था उन राहों को जो है .......मेरे लिए। जिंदगी की राह में लेकिन..... सब बदल गया। रात तो वही है ....लेकिन आसमान बदल गया। क्या ......मैं सोचता था.. अब क्या मैं सपने बुनूं। यह कहाँ ठिठक गया .... किससे कहूँ। वो भरम कि मैं अकेला नहीं.... मेरी तन्हाई से वो भी पिघल गया। अब सोचता हूँ..... कहूँ भी तो क्या कहूँ। आज भी जाग रहा हूँ....... पहले की तरह। लेकिन ख्वाबों का सिलसिला लगता है कि थम-सा गया। जिंदगी जो मृगतृष्णा दिखा रही थी और ..... मैं तो प्यासा ही रह गया। टूटे हुए ख्वाबों के आईने में, ...
यात्रा
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यात्रा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। पीढ़ी-दर-पीढियों ने जिसे प्रताड़ित किया हो। अस्तित्व को हमेशा ही चिन्हित किया हो। असितत्व की ऐसी लड़ाई सुगम नहीं होती। स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। हर दिन जीने की कोशिश में आये दिन मरती। सबके लिए करते हुए भी सुनतीं हैं.... कुछ नहीं वो करती। अपने अधिकार भूला सपनों को, खुद को भूल जीती। बोझ की एक गांठ बन अपमानित हो स्त्री होने से डरती। स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। परम्पराओं , रीति -रिवाजों रूढिय़ों की भेंट चढ़तीं। सृजन की अधिष्ठात्री खामोशी से सिसकियां भरती। जन्मों की बेडियों को जो तोडऩे की कोशिश करती। अपमानित हो अपनों से जीवन जहर हैं पीती। स्त्री की यात्रा सुगम नहीं होती। अपने स्वार्थवश समाज ने ढ़ोग रच लिया है। देकर "देवी" की कारा। अपना जीवन सुगम कर लिया है...
दोस्त
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दोस्त

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कुछ दोस्त उसके। उसे मौत के मुंह तक ले गए। घर की चोखट पर आ के उसके। जिंदगी से दूर सबसे दूर ले गए।। कुछ दोस्त उसके। फरेबी चेहरों को वो जान ना पाया। मतलबी इरादों को भी भाप ना पाया। जिसने किसी ने भी चेहरा दिखाया। सच दोस्तों का उसे कभी ना नज़र आया। कुछ दोस्त उसके। उसे मौत के मुंह तक ले गए। घर की चोखट पर आ के उसके। जिंदगी से दूर सबसे दूर ले गए।। बार-बार धोखों को नजरअंदाज करता रहा। सबको अपने जैसा समझ माफ करता रहा। सोचता था .... रब सब देखता है। फिर क्यों अच्छे लोगों की जिंदगी में बुरों को भेजता है। जिंदगी के सुख-चैन से इस तरह से आराम से खेलता है। कुछ दोस्त उसके। उसे मौत के मुंह तक ले गए। घर की चोखट पर आ के उसके। जिंदगी से दूर सबसे दूर ले गए।। काश!!!!! वक्त रहते समझ जाता। झूठे चेह...
वीर सावरकर
कविता

वीर सावरकर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** भारत की भूमि पर जन्मा, विनायक दामोदर सावरकर ऐसा वीर किरदार कहलाया है। सावरकर का हर एक कदम, विश्व में पहले स्थान पर आया है। भारत मां को समर्पित जीवन, हिंदुत्व का इतिहास बनाया था। सर्वप्रथम उसने ही विदेशी वस्त्रों की होली जला, स्वदेशी होने का मान बढ़ाया था। दुनिया का वह पहला कवि था। जेल को दीवारों को कागज और कील-कोयले को कलम बनाया था। पूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य, सर्वप्रथम उसने ही घोषित कर दिखलाया था। भारत की भूमि पर जन्मा, ऐसा वीर किरदार कहलाया है। सावरकर का हर एक कदम, विश्व में पहले स्थान पर आया है। झुका नहीं वह वीर सावरकर, देश की खातिर सब सह आया था। आंदोलनकारी होने पर, उपाधि वापिस ले स्नातक की, ब्रिटिश सरकार ने तुच्छ कदम उठाया था। सर्वप्रथम उसने ही स्नातक होने का गौरव पाय...
आज के दिन
कविता

आज के दिन

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आज ही ...के दिन अनगिनत उम्मीदों ने दम तोड़ा था। मैं किस रब से जाकर पूछता। सबसे पहले उसी ने विश्वास तोड़ा था। आज ही के दिन अनगिनत उम्मीदों ने दम तोड़ा था। सुना था उम्मीदों पर... जिंदगी कायम रहती हैं। कुछ भी ना हो लेकिन एक उम्मीद कुछ होने की हमेशा कायम रहती हैं। जिंदगी चलती ही चली जाती है इस उम्मीद..... पर । क्या पता......... अगली राह पर मंजिल नसीब होती है। आज ही के दिन.... देखा हर उम्मीद को, मंजिल........... कहाँ नसीब होती है। इंतजार इतना लंबा गया.... और देखता हूँ?????? हर उम्मीद की सिर्फ दर्दनाक मौत नसीब होती है। आज के दिन से, आज ही ........ के दिन तक। अब उम्मीदों को छोड़ चुका हूँ। कितना बिखरा उस दिन से, आज तक के दिन तक। उन टुकड़ों को चुन-चुन कर जोड़ चुका हूँ। अब...
विश्व शांति ….होली
कविता

विश्व शांति ….होली

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** रंग जिंदगी का हिस्सा है। रंग -बिरंगी दुनिया में रंगों का अपना किस्सा है। क्यों ....हम विश्व शांति हेतु प्रयास नहीं कर पाए हैं । लाल रंग की प्यास में अपनी धरती को, मनुष्यता के खून से लाल कर आए हैं। आओ सारे अपनी मेहनत से धरा को हरा-भरा बनाए। कोई पेट भूखा ना हो । विश्व से भुखमरी -लड़ाई झगड़ा हटाएं। रंग -बिरंगे रंगों से विश्व के जन-जन को सजाएं। शांति रूप सफेद रंग का परचम हम लहराएं। युद्ध खत्म हो यूक्रेन-रूस का, इस होली पर विश्व शांति होली दिवस मनाएं। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय...
किताब घर
कविता

किताब घर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानवीय सभ्यता के विकास का किताब-घर जीवन के किस्से-कहानियों वृतांत का किताब-घर जीवन के रस को जिसने पान किया है। काव्य धारा के अमृत धारा का किताब-घर कहानी घर-घर की हो या सभ्यताओं की, अनगिनत सोपानो का सफर करता है किताब-घर कितने पहलू जिंदगी से अनबूझ रहे। हर पहलू का जानकार किताब-घर। जिंदगी सदियों से जिन रास्तों से वह के आई है। इतिहास का स्वर्णिम साक्षरताकार किताब-घर वक्त भूल जाएगा जिन किरदारों को, नये किरदारों का भी होगा किताब-घर मौत के बाद भी जिंदा मिलूंगा। अमर आत्माओं का है किताब-घर। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
हिजाब और बदलाव
कविता

हिजाब और बदलाव

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** औरतों को बस.. डराया जाता है। कभी हिजाब और कभी घुंघट की आड़ लेकर, सभ्यता-संस्कृति का पाठ पढ़ाया जाता है। औरतों को बस... डराया जाता है। वह कुछ नहीं जानती। यह समझा कर, घर की चारदीवारी में बैठाया जाता है । तुम्हारे यह करने .....से तुम्हारे वह करने...... से धर्म का नाश होगा । देवी की उपाधि देकर पत्थर बनाया जाता है। तुम बाहर निकली...... तो, क्या-क्या ??? कहेंगे लोग। चरित्र हीनता का डर दिखाकर, पर्दों के पीछे, तुम बहुत कीमती....... हो। कहकर..... छुपाया जाता है। औरतों को बस... डराया जाता है। फर्क इतना है कि दिल से देखती है। दुनिया दिमाग से आंकती नहीं। प्यार के लिए हर किरदार को जी जाती है। अपमान को भी चिंता-सुरक्षा मान, खुद को जानने की कभी कोशिश करती ही नहीं। हर किरदार में ज...
बसंत ….नहीं आया
कविता

बसंत ….नहीं आया

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** बसंत ....नहीं आया। इस बार बसंत नहीं आया। धूमिल-धूमिल धरा पर छाया। बादल बरसे निसदिन-निसदिन. भरे हृदय की व्यथा कोई समझ ना पाया। इस बार बसंत नहीं आया। मौन प्रकृति व्यथा संग मरण सन थी। कैसे गुंजन करते भंवरे बागों में, जब कोई पुष्प ही खिल ना पाया। इस बार बसंत नहीं आया। जीवन की उमंगे उम्मीदें पिघली पल-पल। जीवन को एक सजा-सा बिताया। उम्मीदों-आशाओं से खिलते हैं उपवन। ना चांद चमका ना कोई तारा आया। धरती सूखा ना पाई अपनी सीलन को। इस बार पेड़ों का पत्ता ना कोई मुस्कुराया। इस बार बसंत नहीं आया। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
जन्मदिन से पुण्यतिथि तक
कविता

जन्मदिन से पुण्यतिथि तक

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी जब .... जन्मदिन से पुण्यतिथि मनाती है। वो कितना टूटी है पल-पल। अपने टूटे टुकड़ों को, जोड़कर पूरा होने का, नाटक बखूबी निभाती है। जिंदगी जब जन्मदिन से पुण्यतिथि मनाती है। कुछ नहीं ....बदलता। लेकिन बहुत कुछ बदल जाता है। चेहरों पर से चेहरे उतर जाते हैं। आसपास की भीड़ के, रास्ते बदल जाते हैं। जिंदगी जब जन्मदिन से पुण्यतिथि मनाती है। बहुत कुछ कहने को होता है। बहुत कुछ कहने को होता है। लेकिन शब्दों में एक, अंदर ......तक। एक घुटनभर जाती है। कैसे बदल जाती है जिंदगी। उस शक्स की, अहमियत पल-पल याद आती है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
नजीर
लघुकथा

नजीर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चंद्रकांत पांडे, जिसे बबलू पांडे........"भैया जी" कहकर पुकारता था। टीवी के हर चैनल पर सब उसके खूंखार अपराधी हत्यारे होने का सबूत दे रहे थे। जबकि....बार-बार उसकी आंखों के सामने चंद्रकांत पांडे का चेहरा सामने आ रहा था जब उसने आखिरी बार उसे देखा था। उसके चेहरे और आंखों में इतनी मायूसियत थी। वह खूंखार अपराधी जिसे मीडिया आंतकवादी भगोड़े का नाम दे रही थी जिस पर दो लाख का इनाम पुलिस रख चुकी थी। उसकी जिंदगी का सच यह था जिसे हर पार्टी उसे अपने साथ मिलना चाहती थी क्योंकि वह उनके लिए वोट इकट्ठी करने का माध्यम है और हर पार्टी एक से एक लालच देकर उसे अपनी तरफ करना चाहती थी उसको अपने हाथ की कठपुतली बनाने के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी नें कैसे मोहरा बनाकर आज एक खूंखार अपराधी घोषित कर दिया था। आज वह हार गया था। क्योंकि ...
कुछ देर सही…पर
कविता

कुछ देर सही…पर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। जब सब करने के बाद भी, खुद पे इलजाम होता है। कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। आँख सूखी भी रहे, पर दिल जार-जार रोता है। कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। शब्द दिल-दर्द चीर जाता है, और कहने वाले को...कहाँ थोड़ा-सा भी अहसास होता है। कुछ देर सही...पर अफ़सोस होता है। हमारा कसूर तो बतायें। बात बिगडे नही, खामोशी की सजा, हमारे ही हिस्से आयें। हम सह...क्यों रहे है। यह जबाब मिल भी न पायेें। सवालों की वो झड़ी, जवाब में डर कर रब भी सामने ना आयें। अपना समझा पर, किसी को अपना बना नहीं पायें। रिश्तों के नाम बहुत थे। पर हकीकत जान ना पायें। करें कोई फिर भला ...क्या??? जब कोई अपना ही पहचान न पायें। जिंदगी निकल गई हर हालात से, जिंदगी जीने की हर कोशिश पर,...
उस रोज़
कविता

उस रोज़

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। इंसान का मानता हूँ..... कोई वजूद नहीं। उस रब ने साथ मिलकर मेरी हस्ती मिटाई थी। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। शगुन-अपशगुण की, कोई बात ना आई थी। समझ ही ना पाया, किसने नज़र लगाई। किसने नज़र चुराई थी। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। ना दुआओं ने असर दिखाया। ना ज्योतिषी कोई गिन पाया। ना हवन-पूजन काम आया। ना मन्नत का कोई धागा किस्मत बदल पाया। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। सजदे में जिसके हम थे। लगता था ..... नहीं कोई गम थे। उसने भी हाथ छोड़ा। विश्वास ऐसा तोड़ा। जिंदगी ने,मार कर फिर से जिन्दा छोड़ा। उस रोज़ कयामत दबें पांव मेरे घर तक आई थी। मै समझा नहीं..... क्योकि अनगिनत विश्वाशों... ने आँखों पर एक गहरी परत चढ़ाई थ...
बाल दिवस
कविता

बाल दिवस

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** १४ नवंबर आज के दिन । बाल दिवस की स्नेहिल अभिलाषा है । देश के आत्मसम्मान को सींचा जिसने । अमर जवाहर चाचा नेहरू की ऐसी गाथा है। १४ नवंबर आज के दिन । बाल दिवस की स्नेहिल अभिलाषा है । कहा था...... जिसने आज के बच्चे कल का भारत बनाएंगे । स्वतंत्र भारत का दिया है सपना । वह स्वर्णिम भारत बनाएंगे ।। सपना देखा सजी बाल-बगिया का जिसने । अमर जवाहर चाचा नेहरू की ऐसी गाथा है । १४ नवंबर आज के दिन । बाल दिवस की स्नेहिल अभिलाषा है । बाल दिवस के मूल उद्देश्य को सार्थक भी बनाना है। बच्चों की शिक्षा, संस्कार का बीड़ा भी हमें उठाना है। हर शोषण से बचें बालमन । नेहरू के भारत को बच्चों की बगिया से सजाना जाना है । परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...