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Tag: मयंक कुमार जैन

वात्सल्य-करुणा की प्रतिमूर्ति- आचार्य प्रमुखसागरजी
आलेख, धार्मिक

वात्सल्य-करुणा की प्रतिमूर्ति- आचार्य प्रमुखसागरजी

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** चंदनं शीतलं लोके चं चंद्रमा। चन्द्रचन्दनद्वयोर्मध्ये शीतलाः साधुसंगतिः॥ वर्तमान में आप श्रमण संस्कृति के सुविख्यात एवं प्रतिष्ठित आध्यात्मिक संत हैं। आप वर्तमान शासननायक भगवान महावीरस्वामी की परंपरा में हुए आचार्य आदिसागर अंकलीकर, आचार्य महावीरकीर्तिजी, आचार्य विमलसागरजी एवं आचार्य सन्मति सागरजी महाराज की निग्रंथ वीतरागी दिगंबर जैन श्रमण परंपरा के प्रतिनिधि गणाचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज से दीक्षित, उनके बहुचर्चित व ज्ञानवान शिष्य हैं। तथा अपनी आगम अनुकूल चर्या एवं ज्ञान से नमोस्तु शासन को जयवंत कर रहे हैं । आज से ०२ वर्ष पूर्व २०२१ में जब इटावा चातुर्मास के दौरान होने वाली पत्रकार संपादक संघ संगोष्ठी में आपके समक्ष पहुंचने का अवसर मिला और आपका वात्सल्य और आशीष से ही में अभिभूत हो गया और ऐसा लगा कि - बहत...
पंचम आरा और कलयुग
आलेख, धार्मिक

पंचम आरा और कलयुग

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** २१००० हजार वर्ष का यह पंचम आरा है उसमें से विक्रम संवत २०२६ वर्ष पूरें हो चुके है। २१०००-२०२६=१८०७४ वर्ष बचें है, पांचवा आरा पूरा होनें में। इस पंचम आरें को कलयुग कहा है। इस युग में जीने की इच्छा से देवता भी धरती पर आना चाहतें है पर जन्म नही ले सकते क्योंकि "कलयुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमिर नर उतरे तारा" अगर प्रभु का स्मरण भाव से व केवल नाम का रटन मात्र से इन्सान भव तिर जायेगें। मगर मन इन्सान के पास नही होगा सो देवता धरती पर आकर क्या करेंगें। साल बितते वक्त नही लगता। समय जैसे पंख लगाकर बैठा है, पलक छपकतें ही बीतता जा रहा है और हमारी मात्र १०० वर्ष की आयु कहाँ बीत जाती है इन्सानों को पता भी नही चलता। ८४ लाख अवतारों में जन्म लेने के बाद ऐसा दुर्लभ मानव भव हमें भाग्य से मिलता है, और अगर इस भव में आकर मानव होने का महत...
शाकाहार – सर्वोत्तम
आलेख

शाकाहार – सर्वोत्तम

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आम के फल का स्वाद नहीं ले सकता। इसी प्रकार बीज रूप में जैसा आहार लिया जाता है, वैसे ही भाव-विचार और आचार होते हैं। आहार दो प्रकार के है- शाकाहार और मांसाहार। शाकाहार अहिंसामूलक है, तो मांसाहार हिंसामूलक। शाकाहार स्वास्थ्यप्रद है, तो मांसाहार रोगों का घर, शाकाहार मानवीय और सौन्दर्यपरक आहार है तो मांसाहार आसुरी और विकृतिपरक, in ७७ सात्विक है तो मांसाहार कालकूटविष, शाकाहार प्रकाश की ओर ले जाता है तो की गौरव गरिमा है। शाकाहार ही मानव के अन्दर संतोष, सादगी, सदाचार, स्नेह, सहानुभूति और समरसता जैसे चारित्रिक गुणों का विकास कर सकता है, मांसाहार कदापि नहीं। शाकाहारी का मन जितना संवेदनशील होता है मांसाहारी का नहीं हो सकता। शाकाहार का तात्पर्य है चारों ओर स्नेह और वि वास का वातावरण बनाकर प्रकृति के कण-कण को सह अस्तित्व ...