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Tag: रुचिता नीमा

रिश्ते
कविता

रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहाँ गए वो सच्चे रिश्ते अब बचे हैं सिर्फ बनावटी रिश्ते दिखावे का नकाब ओढ़े, लीपे पुते से नकली रिश्ते।। दिखते तो हैं रजतपुंज से पर दिलों में द्वेष से परिपूर्ण ये रिश्ते। जितनी खुशी ये बाहर दिखाते अंदर उतनी ही ईर्ष्या भरे ये रिश्ते इस दुनिया की महफ़िल से अब गुम से हो गए सच्चे रिश्ते महानता की अंधी दौड़ में, उलझते गए खूबसूरत से रिश्ते। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
मर्यादा
कविता

मर्यादा

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** इतिहास गवाह है, जब-जब तोड़ी गई है मर्यादा लेकर आई है धरती पर एक नए युग की परिभाषा रावण ने तोड़ी जब मर्यादा, सर्वनाश हुआ था असुरों का दुशासन के दुष्कृत्य से विध्वंश हुआ फिर कौरव का मर्यादा पालन कर श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए श्री कृष्ण गीता के द्वारा, मर्यादा की सीमा बता गए समुद्र भी रहे मर्यादा में जब तक, शरण जीवों को देता है जब तोड़ता है मर्यादा तो, विध्वंश का रूप ले लेता है। मन भी हमारा मर्यादा में रहकर ही कर्तव्य निभा सकता है अगर भटकाव हो ज्यादा तो, जीवन व्यर्थ फिर होता है। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र :...
मित्रता
कविता

मित्रता

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक शब्द है जाना पहचाना सा... दिल के क़रीब कोई अपना सा... जिससे नहीं हो कोई भी सम्बन्ध... पर हो दिल के गहरे बंधन।। जो बिन कहे सब समझ जाएं जिसे देख दर्द भी सिमट जाए... जहाँ उम्र भी ठहर जाए... जिसे देखकर ही आ जाये सुकून और सब तनाव हो जाये गुम... तो वह है मित्र ... जब मुश्किलों से हो रहा हो सामना... और लगे कि अब किसी को है थामना तब जो हाथ बढ़ाये... वह है मित्र... निःस्वार्थ, निश्छल, और सब सीमाओं से परे जैसे हो कृष्ण और सुदामा, जहाँ बाकी न रह जाये कोई आशा... बस यही है मित्रता की परिभाषा परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्...
भीतर की बारिश
कविता

भीतर की बारिश

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भीग रही है धरती सारी झूम रहा है नील गगन हर तरफ है छटा निराली नाच रहा मयूर हो मगन तेरे करम की बारिश में तर बतर है सारा चमन मुझ पर भी रहम कर मालिक धोकर मेरे अंतर का अहम मुझको भी कर तू निर्मल बहाकर मेरे सारे अवगुण कि तुझमें ही रम जाऊ मैं भूलकर सारे रंज ओ गम कर दे तेरे करम की बारिश बाहर भी और भीतर भी तर हो जाए और तर जाएं अबकी बारिश में फिर हम।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
बारिश
लघुकथा

बारिश

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज आसमान पर बादल छाए थे, मानसून का आगमन हो चुका था। सभी को खुशी थी कि अब इस तपती गर्मी से निजाद मिलेगी। लेकिन शोभा ताई अपनी झोपड़ी में बैठे-बैठे ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि पहली बारिश के बाद ही झोपड़े में पानी भर जाएगा, फिर अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहाँ जायेगी। हे ईश्वर! जब तक कहीं रहने का इंतजाम न हो, तब तक कैसे भी करके बादलों को बरसने से रोक लो। तभी नगर पालिका की गाड़ी बस्ती के बाहर आकर रूकी, कि पूरी बारिश में बस्ती के लोगों के रहने के लिए सरकार ने पुराने स्कूल में व्यवस्था की है। सब लोग अपना काम का सामान लेकर उधर रहने जा सकते हैं। तभी बादल बरसने लगे और अब शोभा ताई भी बारिश में खुशी से झूम रही थी। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपन...
हे कान्हा! तेरे प्रेम में
कविता

हे कान्हा! तेरे प्रेम में

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे कान्हा! तेरे प्रेम में कुछ पूरी सी, कुछ अधूरी सी प्रेम रंग में पूरी तरह डूबी सी चढ़ा है तेरा रंग ऐसा कि दूसरा कोई रंग चढ़ता ही नहीं ऐसी रंगी तेरी प्रीत के रंग में कि ये रंग अब उतरता ही नहीं हर रंग तुझसे, हर रंग तुझमें तुझसे ही है रंगीन दुनिया मेरी महज़ एक दिन के गुलाल से नहीं, रोज खेलूं तेरे संग मैं प्रेम की होली होकर तेरी डूब जाऊं तेरे रंग में, कि खतम हो फिर हर तमन्ना अधूरी परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
बसन्ती बहार
कविता, स्तुति

बसन्ती बहार

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आ गया ऋतुराज बसन्त लेकर प्रेम की नई तरंग हर तरफ सुनहरी छटा है बिखरी प्रकृति दुल्हन जैसी है निखरी खेतों में पक गई सरसों की बाली फलों से लद गई अम्बुआ की डाली प्रेम रंग में रंगी है धरती सारी फूलों पर मंडरा रही तितलियाँ प्यारी चल रही शीतल मन्द बयार मतवाली हर तरफ फैली है खुशहाली माँ भगवती भी लेकर अवतार देने आई बुद्धि-विद्या का उपहार करें हम माँ की आराधना बार-बार सब पर हो माँ शारदा की कृपा अपार श्वेताम्बर धारिणी, वीणा वादिनी दे दो माँ मेरे भावों को शब्दों का आकार नित नव रचना का सृजन करू मैं दो मेरी लेखनी को अपना आशीर्वाद परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. क...
पतंग प्रेम की
कविता

पतंग प्रेम की

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चलो स्वछंद आकाश में प्रेम के पेंच लड़ाते हैं, तुम उधर से पतंग उड़ाओ, हम इधर से उड़ाते हैं।। दुनिया की परवाह से बेखबर हम आसमान में ही मिल जाते हैं तुम उधर से उड़कर आओ, हम इधर से ढ़ील बढ़ाते हैं। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। मधुर प्रेम की पतंगों से ही, अपनी दूरियाँ घटाते हैं, तुम मुझको छूकर निकल जाओ, हम इधर शरमाते हैं।। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। लिख दो कुछ प्रेम के सन्देश भी, पढ़कर लिख दु जबाब सभी, तुम भी मुझे समझ सको, इस आस में तुम्हारे घर की तरफ बढ़ाते हैं, चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। काटकर तुम्हारी पतंग को, दिल में सहेज कर रख लेंगे, अगर तुम न भी मिले, तो इससे ही बातें कर लेंगे।। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। रंग बिरंगी प्यारी पतंगों से ही सपनों का संसार बसाते हैं, इस बसन्त के मौसम में, प्...
स्त्री हूं मैं
कविता

स्त्री हूं मैं

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों स्वतन्त्र होकर भी परेशान हूँ मैं अपनी हस्ती से अनजान हूँ मैं कहने को तो हूँ सब ऐशो आराम में, लेकिन फिर भी सबकी मर्जी की ग़ुलाम हूँ मैं।। न कभी मन की चाह व्यक्त कर पाई मैं, और खुद को भी तो न कभी समझ पाई मैं हमेशा झुकती रही सबकी खुशियों की खातिर लेकिन कभी अपनी ही खुशी नही समझ पाई मैं हमेशा बस बन एक गुड़िया सी इठलाई मैं भरा है फौलाद मुझमें भी, दुनिया को कहाँ समझा पाई मैं?? हाँ नारी हु, झुकना मेरा स्वभाव है लेकिन अकड़ना मुझे भी आता है, अगर बात हो स्वाभिमान की तो, खुद को साबित करना भी भाता है।। कमजोर नहीं, खुद्दार हुँ मैं इस धरा पर जीवन की सूत्रधार हु मैं।। आदर मान सम्मान की हकदार हूं मैं, हाँ इस दुनिया मे बराबर की हिस्सेदार हु मैं।। स्त्री हूँ मैं, हाँ स्त्री हूँ मैं.... परिचय :-  रुचिता नी...
बचपन
कविता

बचपन

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** काश की लौट आये एक बार फिर वो बचपन, जब न कोई जबाबदारी थी, न था कोई टेंशन हर वक़्त पर एक खुमारी थी, जल्दी बड़े होने की तैयारी थी, अब लगता है जैसे, एक वही उम्र थी जो सबसे प्यारी थी चलो अब फिर से लम्हें चुराते हैं, एक बार फिर से दिल से मुस्कुराते हैं।। सबकुछ भूलकर फिर वही सुक़ून के दो चार पल निकालते हैं।। चलो अपने बचपन को फिर से वापस दोहराते हैं एक वक्त था जब हर काम के लिए, बड़ो की अनुमति को तरसते थे, आज समय मिलने पर भी हम बाहर जाने से कतराते हैं।। अब कोई रोकटोक नहीं, फिर भी हम जिम्मेदारी में दबे जाते हैं।। सोच सोच कर खाते है, अलार्म लगाकर खुद ही उठ जाते हैं।। और बिना किसी के बोले, चुपचाप काम पर लग जाते हैं।। चलो अब एक बार फिर सब भूलकर बीते दिनों को फिर से वापस लाते हैं, जिंदगी से अपने लिये एक बार...
एक दीप भीतर भी
कविता

एक दीप भीतर भी

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घर-घर अनेक दीप जले, चारों और प्रकाशित है समां, रोशनी की चकाचौन्ध में, हर तरफ दमक रहा है जहाँ।। हो रही तैयारी चहुँ और,, हर कोई उमंग से है भरा, रांगोली से सजे है घर आँगन, और दरवाजों पर नव तोरण बंधा।। नव वस्त्र, नव आभूषणों से, चारों और बाजार है सजा।। चहक रहे है जनमानस सब, दीवाली का त्योहार है बड़ा।। आओ इस पावन पर्व पर, हम भी करें अलग कुछ थोड़ा, द्वार द्वार जैसे दीप जलाए, करें अंतर्मन भी रोशन जरा।। मिटाकर मन से राग द्वेष, करे भीतर को भी साफ़ सुथरा, घर बाहर के साथ साथ, भीतर भी रहे फिर उजास भरा।। भीतर भी रहे फिर उजास भरा।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.ए...
दशहरा
कविता

दशहरा

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** असत्य पर सत्य की विजय का बुराई पर अच्छाई की जीत का असुरों पर सुरों की जय का पर्व है दशहरा।। नारी शक्ति की आराधना का, उसके नव रूपों की साधना का, शक्ति और भक्ति के संतुलन का, पर्व है दशहरा।। भीतर की बुराई के अंत का, खुद की शक्ति के संचार का, एक नई शुरुआत का, पर्व है दशहरा।। मन के अंधकार को मिटाने का, ज्ञान का दीप जलाने का, सुख शान्ति से जीवन का, पर्व है दशहरा।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्...
उड़ता यौवन
कविता

उड़ता यौवन

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नशे के साये में देखो छूट रहा है आज का बचपन, सिगरेट के छल्लों में दिखता, नजर आ रहा उड़ता यौवन।। न संस्कार दिखते हैं, न ही दिखता है अब बड़प्पन, बस मोबाइल और इंटरनेट पर बीत रहा है अब यौवन।। हर शख्स उलझा उलझा सा, नहीं समझता क्या है जीवन, बस झूठे आडम्बरों में फंसकर खो रहा है अपना यौवन।। लगता है गुजर जाएगा बर्बादी में अब ऐसे ही ये जीवन, वक़्त है अब भी सम्भल जाओ, नहीं तो उड़ जाएगा ऐसे यौवन।। चार दिन की है जिंदगी, निकल न जाये व्यर्थ ही जीवन,, अपनी सँस्कृति को पहचानकर, सवाँर लो अपना यौवन।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषण...
मेरा प्यारा घर
कविता

मेरा प्यारा घर

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक प्यारा सा है घर मेरा, जहाँ है मेरे अपनों का बसेरा।। यहाँ महकते हैं रिश्ते, धड़कता है दिल मेरा, खिड़की पर है चिड़ियों की गुंजन, आँगन में तुलसी की छाया।। सर्दी, गर्मी, बारिश, हर मौसम की मार से, यही है बचाता, त्योहारों की गरिमा को भी, हर बार यह बखूबी निभाता।। कभी लहराता तिरंगा ऊपर, कभी दीवाली के दीपों से जगमगाता, कभी गूंजता शंखनाद, तो बच्चों की हँसी से खिलखिलाता।। मिलता है जो सुक़ून घर पर, उसे न कोई कहीं ओर है पाता, ईंट, पत्थरों, सीमेंट का मकान नहीं, यह हमारा प्यारा घर है कहलाता।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा ...
अधूरी ख्वाइशें
कविता

अधूरी ख्वाइशें

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाहतें कुछ अधूरी सी कुछ पाने की, कुछ कर दिखाने की, कहाँ गुम हो जाती है? अपने आप को ढोती सी, हर बार मन को समझाने की, संयम दिखाने की, क्यों जरूरत आ जाती है? क्यों अपने वजूद को तराशती सी, वो अपने हिसाब से अपनी जिंदगी अपनी मर्जी की, जी नहीं पाती है? कब तक किस्मत पर रोती सी, वो दूसरों के ताने सुनती हुई, जमाने को दिखाने की, अपने अस्तित्व को नकारती जाती है? आखिर कब तक? वो ऐसे कमजोर सी, नहीं अब नहीं, अब वो खुद के लिये जीने की, मुस्कुराने की वजह बनाती जाती है।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
वक़्त
कविता

वक़्त

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक़्त देता है इंसान को जीने का सबक, और सबब भी वक़्त ही देता है, वक़्त ही देता है ज़ख्म और घाव भी वक़्त ही भरता है ।। वक़्त ही इंसान को जीना सिखाता है, वक़्त ही मुश्किलों से लड़ना सिखाता है।। वक़्त ही है जो वर्तमान में जीना सिखाता है, वक़्त ही है जो अनुशासन का मार्ग दिखाता है।। आपस में सामंजस्य घड़ी की सुइयां सिखाती है, और अनवरत चलने की राह दिखाती है।। एक वक्त ही तो है, जो हो जाये अगर मेहरबान, तो बना दे इंसान को भी भगवान।।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक...
गुरुवर
कविता

गुरुवर

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की राहों पर चलना आपसे सीखा है, हर मुश्क़िल से पार निकलना गुरुवर आपसे सीखा है।। कच्चे धागे जैसे थे हम, पल-पल टूट जाया करते थे, मन को मजबूत कर रस्सी बनना गुरुवर आपसे सीखा है।। हर काम आसान नहीं, सोचकर छोड़ दिया करते थे, असम्भव को संभव बनाना, हाँ गुरुवार आपसे सीखा है।। समझ न थी सही गलत की, हर बात में गलती होती थी, सत्य की पहचान करना, गुरुवर आपसे सीखा है।। जब भी दुविधा में होती हूँ, तो आप ही राह दिखाते हैं। आपके वचन मेरे लिए ईश्वर की वाणी बन जाते हैं। भाग्यशाली हूँ बहुत, जो गुरु का सानिध्य मिला है, गुरु के आशीष से ही आज मुझको सबकुछ मिला है, सबकुछ मिला है....।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.ए...
मनमीत
कविता

मनमीत

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर पल साथ हो तुम, हमेशा मेरे पास हो, कैसे कहू कि तुम एक खूबसूरत अहसास हो। अतृप्त से मन को तुम प्रेम का पावन दरिया जो पास हो, डूबकर भी जो न बुझे, वो अधूरी सी प्यास हो।। तिमिर को जो दूर करे, वो मन का रोशन चिराग हो।। कह नही सकती क्या हो तुम मेरे लिये, मगर सबसे खास हो।। मनमीत कहु या प्रीतम तुम्हें, हर बन्धन तुमसे आबाद हो।। जन्मों जन्मों का मेरे, तुम पुण्यों का उजास हो।। इस दिल की तमन्नाओं का तुम ही आखिरी पड़ाव हो। पाकर तुम्हें मुक़म्मल हुए हम, इस जिंदगी का अलौकिक प्रकाश हो।। कहने को तो मनमीत हो, पर ईश्वर का दिया खूबसूरत उपहार हो।। यही दुआ है दिल से, हमेशा मेरे हाथों में बस तुम्हारा हाथ हो।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहर...
सुन ले पुकार
कविता

सुन ले पुकार

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हे ईश्वर कहाँ है तू, कहते है कण कण में बसा तू, हर जीव के मन में बसा तू, फिर क्यों नहीं तुझको दिखता, इस जग में कितना आतंक मचा।। चारों और है विध्वंस मचा, मृत्यु का तांडव है रचा, मानवता को ताक में रख, लूटमारी का सब खेल रचा, जो कहलाते है जीवन रक्षक, अब धन के लिये बन रहे भक्षक।। क्या राजनेता सिर्फ अपनी रोटी सकेंगे, निर्धन फिर मृत्यु की बलि चढ़ेगे, कही भूख से, तो कही दुख से, तो कही बेरोजगारी की मार सहेंगे।। हे ईश्वर अब तो कुछ राह दिखा, इस काल को अपना ग्रास बना।। ले अवतार अब ओ तारण हार, इस महामारी से मुक्त करा।। अब बहुत हुआ इसका आतंक तू आकर इसको खत्म कर।। कितने अपनों को लील गया, जग में अनाथ कर छोड़ गया।। अब तू और न विलम्ब कर, सुन ले पुकार, और मदद कर।। जग में फिर से खुशहाली कर। आकर बन्द ये तबाही...
पूछती हूँ रब से
कविता

पूछती हूँ रब से

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पूछती हूँ रब से अकसर, मेरे ही साथ क्यों??? जब भी किसी को दिल से चाहा, उसी को मुझ से जुदा कर दिया। जब भी किसी का भरोसा किया, उसी में मुझसे छल किया। जब भी किसी का भला किया, बदले में सिर्फ अपयश ही मिला। जितना दूसरों को पास लाये, अपने से उतनी ही दूर हो गए। इतनी बड़ी इस दुनिया में, आखिर ये सब मेरे ही साथ क्यों? रब ने भी क्या खूब कहा, तूने जो भी सब किया, उसमें बस एक ही गुनाह किया,, क्यों बदले में दूसरों से उम्मीद करि? यहाँ कोई किसी का नही है रुचि!! तू कुछ भी कर, पर किसी से कुछ उम्मीद न कर। चाहे बदले में तुझे कुछ भी मिले, तू बस निःस्वार्थ कर्म कर, और उसी के पथ पर चल। मत सोच कभी की मेरे ही साथ क्यों? क्योंकि तेरे साथ ईश्वर है रुचि! तेरे साथ ईश्वर है परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुल...
सकारात्मक सोच
लघुकथा

सकारात्मक सोच

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** शहर में चारों तरफ महामारी आतंक मचा रही थी, हर कोई दशहत में था कि मुझे कुछ हो न जाये। लेकिन इन सबसे परे कोई और भी था जो सुनहरे भविष्य के लिये सपने बुन रहा था, राज.... एक बहुत अच्छा और सवेंदनशील लड़का, जिसको बहुत कुछ हासिल करना था। लेकिन लॉक डाउन के चलते वह खुद को बहुत असहज महसूस कर रहा था। उसे लगता था कि जिंदगी की रफ्तार रुक सी गई है। और लोग हताश रहने लगे हैं। और मैं इन लोगों के लिये चाहकर भी कुछ नही कर पा रहा। अचानक सोशल मीडिया पर उसकी मुलाकात उसकी एक बहुत पुरानी दोस्त से हुई, जो कि डॉक्टर थी और दिन रात मरीजों के इलाज में लगी हुई थी, फिर भी वह तनाव मुक्त थी,,, उससे बात करके राज को महसूस हुआ कि जीवन में खुद से ज्यादा जरूरी कुछ नहीं। खुद का मनोबल बनाये रखना बहुत जरूरी है। धीरे-धीरे उसने खुद में सकारात्मक बदलाव किया और अपने परि...
एक उम्मीद
कविता

एक उम्मीद

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** हर तरह प्राणवायु बिखरी है, फिर भी चारों तरफ शोर है।। हम ही काबिल न बचे अब लेने को, हमारे ही फेफड़े अब कमजोर है।। अभी भी वक़्त है सम्हलने का, खुद को ऊर्जा से भरने का।। थोड़ा आसन थोड़ा प्राणायाम और थोड़ा वक्त प्रकृति को देने का।। चलो फिर से पेड़ लगाए, अपनी प्राणवायु स्वयं बनाये।। खुद को फिर मजबूत बनाये अपने को और अपनों को बचाये।। ये वक़्त ही तो है गुजर जाएगा, फिर एक नया सवेरा आएगा।। हम आशाओं के नवदीप जलाए, और दुनिया को फिर से जगमगाये।। माना जो हो रहा है, वो बहुत दर्द दे जाएगा।। मगर हिम्मत रख ले दोस्त, बहुत जल्द ही सब ठीक हो जाएगा।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। ...
पूरे जीवन में
कविता

पूरे जीवन में

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** पूरे जीवन में एक इंसान ऐसा न मिला जिसका कोई स्वार्थ न हो... कितने रूप है तेरे स्वार्थ, हर जगह बस चलता तेरा ही राज।। कितना भी अच्छा हो रिश्ता, कितना भी लगता हो सच्चा।। लेकिन आ ही जाता बीच में, निकाल कर नया रास्ता अब कहाँ महसूस होती रिश्तों में पहले सी गहराई, ऐसा लगता अब तो मुझको हो गई मैं खुद से भी पराई।। जिधर देखो बस अनजाना है सब, अपना होकर भी बेगाना है सब, हर जगह बस तेरा चलता राज, सब में निहित होता तेरा काज।। कहाँ मिलते अब निःस्वार्थ के रिश्ते बहुत मुश्किल से दिखते अब परमार्थ के रिश्ते अगर मिल जाये कभी कोई रिश्ता ऐसा, तो समझना उसको ईश्वर के मिलन जैसा।। खोना नहीं उसे बनकर अनजान सहेजना उसे समझकर सबसे मूल्यवान।। तभी समझना खुद को भाग्यवान।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपक...
जीवन के रंग
कविता

जीवन के रंग

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** जिंदगी तो हर पल ही रंगीन है, एक रंग में रंगना, इसकी तौहीन है।। तरह तरह के रंग है इसमें हर रंग के अनुभव है इसमें हर उम्र की एक नई है भाषा, हर उम्र में एक नूतन अभिलाषा, हर भाव का अपना विशेष रंग चलो हम भी भीगे उसके संग, बचपन, जवानी और बुढ़ापा, जैसे लाल, गुलाबी और जामुनिया।। हर रंग अपना असर दिखलाता वक़्त के साथ बदलता जाता।। तरह तरह के अनुभवों ने जीवन मे अनेक रंग है बिखराये।। कभी गुलाबी खुशीयों की बहार आई, कभी गहरे आँसुओं के सैलाब आये।। कभी सुनहरा पल आया जब क़ामयाबी ने कदम चूमे, तो कभी अंधियारे राहों पर चलते सीधे कदम भी डगमगाए।। कभी हर तरफ लाली छाई, जब खुशियों के क्षण है आये तो कभी श्वेत रंग में डूब गए, जब अपने हम से रूठ गए।। हर सुबह नारंगी धूप एक नई शुरुआत है लाई।। हर शाम की नीलिमा एक नया परिणाम है लाई। हर एक पल बस बीत गया ऐसे, चित्र पटल...
अपना है कौन…?
कविता

अपना है कौन…?

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कहने को तो सब अपने हैं, लेकिन अपना है कौन? इस झूठ, फरेब की दुनिया में, लेकिन सच्चा है कौन? हमदर्द तो बहुतेरे है तेरे लेकिन जो दर्द को कम कर सके, वो है कौन? मुँह पर मीठे, पीछे बुरा कहते ऐसे तेरे अपने, ये तेरे अपने हैं कौन? जो तेरे दुख में बाहर रोते और भीतर मुस्कुराते, और तेरी खुशी देख कुड़कूड़ाते, ये तेरे ख़ास हैं कौन? ये सब कहने को तो तेरे अपने हैं,, लेकिन अपना है कौन? इस रँगबदलती दुनिया मे, कोई बेरंग सा, साफ दिल वाला है कौन? मत उम्मीद कर इन सबसे तू, इन सबको छोड़कर, बस खुद को देख कि तू है कौन? कहि इन्हीं में से एक तो नहीं? परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घ...