असंगत
शैल यादव
लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज)
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जो संगत नहीं होता वही 'असंगत' है,
यह संसार दोनों में ही बहुत पारंगत है।
'असंगत' दैनिक जीवन का ही एक अङ्ग है,
बदलता प्रतिदिन जीवन का जैसे रङ्ग है।
असंगत हैं सभी के शरीर के कुछ अङ्ग भी,
असंगत हैं चाल-चलन असंगत हैं ढङ्ग भी।
शरीर की सभी अंगुलियाॅं होती असंगत हैं,
किन्तु सभी कार्यों में वे होती पारंगत हैं।
असंगत सदैव ही नकारात्मक नहीं होता,
बुराइयों से असंगत होना ही सही होता।
असंगत है संसार के सभी व्यक्तियों का रुप,
मिलता नहीं कभी भी किसी का स्वरूप।
कोई यहाॅं श्याम वर्ण तो कोई पूरा श्वेत है,
कहीं है धरा उर्वर तो कहीं बिलकुल रेत है।
कोई अकिंचन तो कोई धनपति कुबेर है,
कहीं गेंदा, गुलाब तो कहीं केवल कनेर है।
असंगत हैं बोली-भाषा असंगत हैं देश,
असंगत हैं रहन-सहन असंगत हैं वेश।
असंगत को संगत का मिले जब...