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चतुर्दिक

शैल यादव
लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज)
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चतुर्दिक, सबजन को जकड़ा है भ्रष्ट तंत्र ने,
मानवीयता की जगह ले लिया अब यंत्र ने।

यंत्रवत व्यवहार करने लग गए सब लोग,
तन का मन से अब नहीं रह गया योग।

लूट हत्या डकैती का सर्वत्र बोलबाला है,
सर्वत्र अंधेरे से पराजित उजाला है।

कहीं छल है कहीं दम्भ है कहीं द्वेश है,
कहीं झूठ कहीं पाखण्ड कहीं आवेश है।

कहीं भुखमरी है कहीं बेरोजगारी है,
जहाॅं देखें वहीं दिखती लाचारी है।

रोजगार नहीं मिल रहा बेरोजगारों को,
भोजन का संकट है उनके परिवारों को।

सरकारी तंत्र तो बिल्कुल ही सड़ गया है,
सबके अहित हेतु बिलकुल वह अड़ गया है।

परीक्षा से पहले ही उत्तर चतुर्दिक है,
यह कार्य लगता बिल्कुल अनैतिक है।

इस अनैतिकता का दिखता कहीं अन्त नहीं,
इसको रोकने वाला दिखता कोई सन्त नहीं।

राम लला के आने पर भी नहीं कोई भय,
भ्रष्टाचारी चतुर्दिक ‌अब भी घूम रहे निर्भय।

हे रामलला! इनको कुछ दे दो ऐसा दण्ड,
उनकी अनैतिकता हो जाए खण्ड-खण्ड।

परिचय :- शैल यादव
निवासी : लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज)
सम्प्रति : शिक्षक- जीआईसी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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