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Tag: सूर्यपाल नामदेव “चंचल”

वक्त के साये
कविता

वक्त के साये

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** क्या जीत है क्या हार है, कहीं वक्त की मार तो कभी वक्त ही उपकार है। वक्त की तिजोरी नसीब में सबके, बेकद्र जो वक्त है टूटते सपने बेशुमार है।। जीवन मिला है सबको वक्त भी मिला वहीं है। भावना जुदा-जुदा है जिंदगी सबकी वही है।। खुद को पका तपा ले सूरज की तपन वही है। रोशन है तुझसे दुनिया तेरी लगन फिर सही है।। समृद्ध हो तब रत्नजड़ित लिबास तन पर सही है। बिन मांगे ही सहयोग करने खजाने बेशूमार वहीं है।। वक्त बदलने दो लिबास उतरने दो, फैली हथेली ही रही है। लाख मुंह तकना अपनों के लोग वही बहाने हजार सही है।। मुकद्दर की रोटी मेरे हिस्से नहीं हर वक्त रही है। चोरों की बस्ती से मेरा निवाला चुराना सही है।। लिबास की चमक में कहां मुफलिसी मेरी दिख रही है। कुरेद कर देख जरा वक्त नया ज़ख्म पुराना वही है।। इबादत एक तेरी...
दीवारें
कविता

दीवारें

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** दीवारें वही घर बनाती हैं जो मिलकर खड़ी होती है। तनहा पड़ी ईंटों की कोई पहचान नहीं होती।। नींव भले गहरी हो पर नफ़रते जब उनमें बोती है। गगनचुंबी नाम हो कर भी कभी आसमान नहीं होती।। तोड़ द्वेष की दीवारें आज नया विश्वास लिखें, हाथ दिलों पर रख कर प्यार का एहसास लिखें। लकीरें खींच कर रिश्ते मोहब्बत के बदनाम किए, दीवारों से ऊपर उठकर नभ में उड़ते परवाज़ लिखें। दीवारें चौकस ही रहीं जब तलक दरवाजा एक दिखे, खुशियां महफूज ही रही जो इरादे सबके नेक दिखे। निज स्वार्थ की खातिर झरोखे तुम ही बनाया किए, वो निगेहबान दीवार भी छलनी कैसे दर्द को लिखें। दीवारें सख्त जो है ये पुरानी सोच तुम्हारी दिखे, खड़ी कहां इनको करें ये जरूरत हमारी दिखे। घर भी इन्हीं से और नफरत भी इन्हीं से है, आओ सजाकर इनको प्यार का संदेश लिखें। परिचय :- सूर्यप...
मातरम्
कविता

मातरम्

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** शिवालयों से शंखनाद हुआ है गुरुवाणी गुरुद्वारे से। कानों ने अजान सुनी फिर गूंज उठा हर चौबारे से।। मातरम्, मातरम्, वंदे मातरम्, वंदे मातरम्।। तोड़ पुरानी जंजीरों को आज नया इतिहास लिखें, गर्म लहू की धाराओं से राष्ट्रभूमि का श्रृंगार करें। मिट्टी से उपजे मिट्टी को ही बलिहार करें, देश की खातिर मिट जाने का कर ले तू आचरण।। मातरम् मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम्।। ये मिट्टी है बलिदान की किसान और जवान की, तन को आज रंगा कर इसमें सर ऊंचा अभिमान करें। मिट्टी के कण कण से उठते देशप्रेम का गुणगान करें, बच्चा बच्चा देशभक्ति का ओढ़े अब आवरण।। मातरम् मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम्।। मिट्टी में ममता मां की इंसान खेलता गोद में इसकी, मल मल के रज कण जिस्म से मिल शत्रु से संग्राम करें। मैं सपूत मैं रखवाला झुका शीश मिट्टी को प्रणा...
नमामि शिवम्
कविता

नमामि शिवम्

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** नमामि सत्य सुंदरम, नमामि चन्द्रधारणाम। नमामि त्रिलोक त्रिलोचनम्, नमामि नमामि शिव शिवम्।। सत्य शिव सुंदरम, सत्य शिव सुंदरम।। समस्त् पाप खंडनं, समस्त् लोक पोषणं। सत्य ही शिवम् शिवम् , शिवकृपा जनम जनम।। सत्य शिव सुंदरम, सत्य शिव सुंदरम।। समस्त दोष शोषणं, युतं सुखैक दायकं। निकाम काम दायकम्, नमो नमो शिवो शिवम्।। सत्य शिव सुंदरम, सत्य शिव सुंदरम।। त्वमेव ही कृपाकरम, त्वमेव ही सुखाकरम। गरल कंठ सुशोभितम्, नमामि नमामि मस्तकम।। सत्य शिव सुंदरम, सत्य शिव सुंदरम।। परिचय :- सूर्यपाल नामदेव "चंचल" शिक्षा : एम ए अर्थशास्त्र , एम बी ए ( रिटेल मैनेजमेंट) व्यवसाय : उद्यमी, प्रबंधन सलाहकार, कवि, लेखक, वक्ता निवासी : जयपुर (राजस्थान) । घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरा यह रचना स्वरचित ...
विरह का सावन
कविता

विरह का सावन

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** घनघोर घटा और कारी बदरिया सावन बरस ही जाए भीगे बदन मोरा मन भी भीगे मिलन अगन लगी जाए छाए बदरवा न आए सजनवा सूखी अंखियां बहती जाए सावन की झड़ी दिल ऐसे पड़ी याद सताए बस तू नहीं आए। खामोश तनहा बैठी रही तेरा इंतजार आंखों में लिए बारिश की झड़ी मिलन की कशक अब बढ़ा देगी तस्वीर लिए दिल में थी तेरी विरह वेदना दबाने के लिए क्यू आज फिर लगा कि सावन की बूंदे दर्द को जगा देगी बारिश की फुहार मुकम्मल थी अश्क छुपाने के लिए, सैलाब जो बने दरिया का रंज ओ गम ही बहा देगी। बनके हमराज रस्में निभाई थी सारी वफ़ा के लिए, क्यों आज फिर लगा कि तेरी मोहब्बत रुला देगी। रिमझिम झड़ी ही काफी थी हूक उठाने के लिए, छा जाए सावन तो आग जुदाई की ही जला देगी। जज्बातों की तस्वीर जो उकेरी तेरे इश्क के लिए, क्यों आज फिर लगा कि मेरी तन्हाई दबा देगी। परिच...
सच से ऊबते लोग
कविता

सच से ऊबते लोग

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** पानी से पानी का चरित्र पूछते हैं लोग, आईना देख शर्म से पानी में डूबते हैं लोग। लाखों की भीड़ में खुद को ही ढूंढते हैं लोग, क्यों आज फिर लगा कि सच से ही ऊबते हैं लोग। खुदगर्ज हैं कि अरमानों में ही टूटते हैं लोग, मतलबपरस्ती में लोगों की खुशी लूटते है लोग। गुनाहों को अपने आसानी से भूलते है लोग, क्यों आज फिर लगा कि सच से ही ऊबते हैं लोग। मुश्किलों में अपनी जी जान फूंकते है लोग, कठिनाइयों में लोगों की खुशी से झूमते हैं लोग। शर्मसार हो खुद जब फिर आंखें मूंदतें है लोग, क्यों आज फिर लगा कि सच से ही ऊबते हैं लोग। कामयाबियों को अपनी सरेआम चूमते हैं लोग, सफलताओं को दूसरे की शक से घूरते हैं लोग। फल कर्मों का मिल जाए तो रूठते है लोग, क्यों आज फिर लगा कि सच से ही ऊबते हैं लोग। परिचय :- सूर्यपाल नामदेव "चंचल" शिक्षा : ...
किताबें कुछ कहती हैं
कविता

किताबें कुछ कहती हैं

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** कुछ कागज के पत्तों पर सूखी शाख की कलम जब चलती है कुछ अनकही भूली बिसरी कहानियों की यादें लिखती हैं कुछ अल्फाजों में अतीत की दासतां फिर इनमें रहती है जुबां जो हमको सुना न सकें वो सब किताबें कहती हैं संगीत सजा साजों में मधुर लहर स्वरों में बसती है सरस्वती विराजित हो वाणी में शब्दों से गजल बजती है तान और लय का संगम सरगम बन के पन्नों से ये बहती है बोल जो किसी के सिखा न सके वो सब किताबें कहती हैं शिक्षित हो प्राणी गुरुओं की वाणी शिलालेख सा ये लिखती हैं ज्ञानी और अज्ञानी शिक्षा की जब राह चले आईने सी ये दिखती हैं हुई अनमोल नहीं इनका कोई मोल ज्ञान गंगा सी ये बहती हैं ज्ञान जो कैद कोई रख न सके वो सब किताबें कहती हैं बढ़ चले कदम सफलता मिले हरदम राहें पढ़ कर ही मिलती है ज्ञान मिले विज्ञान मिले जीवन का संज्...
आजाद परिंदे
कविता

आजाद परिंदे

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** ख्वाबों के जब आजाद परिंदे हकीकत के आसमानों में उड़ते है। बेखौफ कल्पनाओं को सच करने कदम बड़ा चलो कुछ नया करते हैं। वृक्ष लगा सब हरियाली करते सुबह शाम जल सींचा करते हैं। अनाथ बचपन सींचे खुशियां भरते हैं कदम बड़ा चलो कुछ नया करते हैं। रिश्ते ही चहुंओर खुदगर्ज यहां पर अपने ही खुद अपनों से जलते है। द्वेष भूल अपनो के हम गले मिलते हैं कदम बड़ा चलो कुछ नया करते हैं। वृद्धों की अभिलाषाएं मरती एकाकी जीवन में घड़ियां गिनते हैं। कुछ वक्त गुजार अनुभव सुनते हैं कदम बड़ा चलो कुछ नया करते हैं। परिचय :- सूर्यपाल नामदेव "चंचल" शिक्षा : एम ए अर्थशास्त्र , एम बी ए ( रिटेल मैनेजमेंट) व्यवसाय : उद्यमी, प्रबंधन सलाहकार, कवि, लेखक, वक्ता निवासी : जयपुर (राजस्थान) । घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित...