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तब ही भारत बन पाता है
कविता

तब ही भारत बन पाता है

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नव उदय नव युवानों का नव कर्म प्रवीण महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है दिग् दिगंत दिवाकर बनकर दौड़ रहे दिक्पाल ये तनकर नव संप्रेरक इन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है प्रचंड ज्वाल आँखों में पुरुषार्थ प्रबल हाथों में पाषाण लौह मिश्रित पुष्ट रक्त महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है तिलक लगाकर तत्पर बनकर तुणीर थामे तेजस रणवर तापस संघ महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है अरि के संमुख अडिग अचल अस्त्र-शस्त्र प्रहार प्रबल आयुध-वीर महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है नहीं भ्रमित नहीं व्यथित उपहासों से नहीं श्रमित निःशंक तल्लीन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता ...
हमारी संस्कृति हमारी विरासत
कविता

हमारी संस्कृति हमारी विरासत

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धरा से अम्बर तलक विस्तृत है, हमारी "भारतीय संस्कृति", देती है जो हर जड़ चेतना को, सारगर्भित जीवन की स्वीकृति।। है संगम यहाँ विविधता का, पर लेष मात्र भी नहीं है कोई विकृति, संविधान ने दिए हैं कई अधिकार, जन जन में एकता ही एक मात्र संतुष्टि।। यहाँ बच्चा बच्चा राम है, और हर एक नारी में माँ सीता है, यहाँ हर प्राणी को मिलती माँ के आँचल में प्रेम की गीता है।। बहती नदियों की धारा में आस्था और विश्वास के दीपक जलते हैं, कि मल मल धोये कितना ही तन को, मगर श्रेष्ठ कर्मों से ही पाप धुलते हैं।। इतिहास बड़ा पुराना है शिलालेखों में कई राज़ हमराज से मिलते हैं, मार्ग मिले चार ईश वंदन के, मगर एक ही मंजिल पर जाकर रुकते हैं।। रक्त-रक्त में मिलता एक दिन, यहाँ ना कोई जात धर्म का ज्ञाता है, "रहीमन धागा प्रेम का है", दिलों से रिश्...
हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम
कविता

हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम माँ भारती तव पुत्र-सेवक हम हिन्दी विश्व भाल पर चन्दन प्रथम करते हम मातृ वन्दन राष्ट्र-धरा के हैं उपासक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम अनाहद नाद ने संस्कृत रची माँ शारदा आकर उसमें बसी संस्कृत से हिन्दी को पाते हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम भाषा जिसमें विज्ञान आधार स्वर-व्यंजन-संयोजन विस्तार मानव भाषा के आराधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम संस्कृत से जीवन में संस्कार सर्व जगत ने किया स्वीकार जीवन विकास के साधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक...
जमाने का चलन देखा
कविता

जमाने का चलन देखा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मायूस देखा, कभी हँसते हुए देखा। खुद के बनाये जालों में कभी, फँसते हुए देखा।। कभी ना नजरें मिलाते जो, सलाम आज करते हैं। मतलब बिना जमाने को, ना कभी,झुकते हुए देखा।। उनको मिली है जिंदगी जीने की तहज़ीब फिर भी। बर्बादी की राह पर आदमी को आगे, बढ़ते हुए देखा।। ना मिला सुकून ना चैनो-अमन खुद से जिन्हे। दूसरों की जिन्दगी में खलल, करते हुए देखा।। ढेरों लोग हैं छोड़ी नहीं जाती जिनसे आदतें बुरी। भरी महफ़िल में उनको नसीहतें, पढ़ते हुए देखा।। सिधा सा रास्ता है दिल में उतर जाने का 'इंद्र' जान ले। तुझे प्यार से गले इंसान के, ना कभी, मिलते हुए देखा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र...
तू दिन को रात कर देगा …
कविता

तू दिन को रात कर देगा …

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तू दिन को रात कर देगा, शबों को आग कर देगा। जहाँ बरसें हों अंगारें, वहाँ तू बाग कर देगा।। भरी तुझमे वो मस्ती है, छुपी तुझमें वो शक्ति है। हुए वीराँ नगर हैं जो, उन्हे आबाद कर देगा।। इरादों में तड़प देखी, ज़िगर तेरे धड़क देखी। बुझे कोई जो चिंगारी, तू उनमे ख़्वाब भर देगा।। तेरि इन सुर्ख आँखों में, हिन्दोस्ताँ ही बसता है। अपना बन ठगा जिसने , उन्हें क्या माफ़ कर देगा।। अर्जुन बन तू माधव का, हनुमत बन तू राघव का। थमे जो ना दुराचारी, तू उनका नाश कर देगा ? जननी है जन्मभूमि, तारणी है कर्मभूमि। चुकाने को कर्ज़ इसका, 'इंद्र' अपना सर देगा।। ऐसा तू है परवाना, शमा को जो करे रोशन। नहीं मरने का भय रखना, तू मरकर भी अमर होगा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदे...
महिमा
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महिमा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सच है तेरी लज्जा - मर्यादा भी, नारी तेरा हथियार है । उद्देश्य निकलने का घर से, प्रथम देहली से तू बोलना।। जब भी अवसर आये, अवगुण या आसुरी वृत्ति हो। प्रकट होता शक्ति अवतार, भीतर अपने टटोलना ।। नहीं अरी कोई तेरा, तू सबको देती प्रेम है। हृदय के विशाल महलों से, घृणा के ताले खोलना।। घर के संस्कारों का, सच्चा दर्शन होता वाणी से । स्फुटीत होने वाले शब्दों को, पहले काँटे पर तोलना ।। समर्पण संतोष भाव, दिया प्रभु ने तुझको सहज । थोड़ा मिला ज्यादा मिला, सीखा तुने स्वीकारना।। असीम गुणों का और भी, तुझमे अमित भंडार माँ। निज संतती को देना, और, कहना इसे संभालना ।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से ले...
माँ क्या होती है
कविता

माँ क्या होती है

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** कोख में रखकर नौ महीने, सौ सौ तखलीफें सह सह कर। रात रात भर, जाग-जाग कर, खुद गीले में रह-ह कर। बच्चे को सुलाती सूखे में, प्यार भरी थपकी देकर। बड़े चाव से सेवा करती, कभी न उसमें नागा करती। हो जाए बड़ा, कितना ही बालक, हर विपदा से उसे बचाती, बन करके, उसका रक्षक। नहीं है कोई दुनिया में, उसके जैसा, त्याग, तपस्या और प्रेम की मूरत जैसा। माथे पर उसके, देख शिकन, हो जाती व्याकुलता से बेचैन। बालक के सुख से होती सुखी, बालक के दुख से होती दुखी। माँ की कीमत वो ही जाने, मिली न "सक्षम" जिन्हें देखने। परिचय :- गायत्री ठाकुर "सक्षम" निवासी : नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...