बादल
डॉ. भगवान सहाय मीना
जयपुर, (राजस्थान)
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काले बादल नभ चढ़े, घटा लगी घनघोर।
शीतल मन्द पवन चली, नाच रहे वन मोर।
कोयल पपिहा कुंजते, दादुर करें पुकार।
काले बादल देखकर, ठंडी चली बयार।
काले बादल नभ चढ़े, बरसे रिमझिम मेह।
गौरी झूला झूलती, साजन सावन नेह।
घटा गगन शोभित सदा, बादल बनकर हार।
मेघ मल्लिका रूपसी, धरा सजे सौ बार।
प्यासी धरती जानकर, बादल झरता नीर।
लहके महके वनस्पति, बरसे जीवन क्षीर।
धरती दुल्हन हो गई, बादल साजन साथ।
यौवन में मदमस्त है, प्रीत पकड़ कर हाथ।
बादल से वसुधा करी, स्नेह सुधा का पान।
गागर सागर से भरी, स्वर्ण कलश सम्मान।
मूंग मोठ तिल बाजरा, यौवन में मदमस्त।
धान तुरही लता चढ़ी, बादल पाकर उत्स।
श्वेत नीर फुव्वार से, भीगे गौरी अंग।
खुशी खेत में नाचती, बादल हलधर संग।
दुल्हा बनकर चढ़ चला, बादल तोरण द्वार।
दुल्हन प्यारी सज गई...






