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राम रहीम
कविता

राम रहीम

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दिल को घर ख़ुदा का बना लो। इंसान हो इंसान को अपना लो। मंदिर- मस्ज़िद यूं ही रहने दो, अब गले इक दूजे को लगा लो। यह नफरत की खाई पाट दो, खड़ी रंजिश की दीवार गिरा लो। मुश्किलें जो आ रही सामने, दोनों मिल बैठकर सुलझा लो। भूल से उजड़ गए जो आसियाने, फिर गुलशन ए गुलिस्तां सजा लो। राम-रहीम कंधे से कंधा मिलाकर, इक सुन्दर हिंदुस्तान बना लो। बहने दो मोहब्बत की गंगा-यमुना, अपनी दोस्ती को परवान चढ़ा लो। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्...
शिक्षक/ सद्गुरु
कविता

शिक्षक/ सद्गुरु

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** ओजस्वी दीपक, युग दृष्टा होते है शिक्षक। नवचेतना, ज्ञान, वैभव के धारक होते है शिक्षक। वर्ण विधान, भाषा अलंकरण होते है शिक्षक। आत्मनिर्भर, स्वाध्याय के संबल होते है शिक्षक। ज्ञान उद्दीपक, अंत प्रेरणा के विश्लेषक होते है शिक्षक। हर युग के नायक, अद्भुत चित्रकार होते है शिक्षक। कर्तव्यनिष्ठा, सृजनशीलता के परिचायक होते है शिक्षक। कच्ची मिट्टी से महलों के सृजक होते है शिक्षक। खाद और जड़ विषय संम्प्रेषक होते हैं शिक्षक। अमूर्त भावी पीढ़ी के मूर्तिकार होते है शिक्षक। ज्ञान के आलोक से अज्ञान विनाशक होते है शिक्षक। वाष्प कण से मेघों के शिल्पकार होते है शिक्षक। मां का वात्सल्य, पिता का आशीर्वाद होते है शिक्षक। नेह का अहसान, बहन का आलिंगन होते है शिक्षक। वशिष्ठ, विश्वामित्र, चाणक्य, राधाकृष्णन होते है शिक्षक। द...
हाहाकार
कविता

हाहाकार

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोरोना ने मचाया हाहाकार कृष्णजी लगा दो नैया पार बेचारे बच्चे पूछ रहे हैं कब हम बाहर निकलेंगे? कब हम स्कूल जाएंगे ? कब हम मैदान में खेलेंगे ? सुन लो भक्तों की पुकार कृष्णजी लगा दो नैया पार।। बड़े -बूढ़े प्रार्थना कर रहे, घर में कब तक बंद रहेंगे? हाथ धोए सब परेशान हुए शुद्ध हवा कब सांस लेंगे ? जीना हो गया अब दुश्वार, कृष्णजी लगा दो नैया पार।। मजदूर बेचारे बिलख रहे दाने -दाने को तरस रहे हैं। कामकाज सब छूट गए, घर बार अब टूट रहे हैं।। दाने-दाने को हुई दरकार कृष्णजी लगा दो नैया पार।। जब-जब होवे धर्म की हानि तब तब तुम जग में आते हो कोरोना दानव ताण्डव नृत्य क्यों नहीं अब चक्र उठाते हो? वादे को करो अब साकार। कृष्णजी लगा दो नैया पार।। मानवता अब जाग गई है सर्वत्र सेवा भावना आ गई डॉक्टर, पुलिस, कर्मचारी तन मन...
मौत
कविता

मौत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** बैठे है कब से मेरे सिरहाने आस-पास वे भी, जिन्हें फुर्सत ना थी कभी मुझसे मुलाकात की। जिन्हें पसंद ना थी मेरी शक्ल फूटी आंख भी, अब दर्शन को भीड़ लगी है सारी कायनात की। जिनसे तोहफे में नसीब ना हुआ इक बोल भी, आज वे भी मुझ पर बरसा रहे फूल कचनार की। तरसे- रोये है मुश्किलों में हम एक कन्धे को, और अब बानगी देखिए जरा हजारों कन्धों की। कल दो कदम साथ चलने वाला ना था कोई, अब गणना असंभव है साथ चल रहे कारवां की। कमबख्त जिंदगी मौत से बदत्तर लगी आज, कितने रो रहे यहां कमी नहीं चाहने वालों की। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
जल
कविता

जल

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** प्राणों का आधार जल है। आज जल है तो कल है। जल नहीं तो कल नहीं, जब जीवन रक्षक जल है। पंच तत्त्व की काया को, परिपूर्ण करता जल है। सत्य बात आप पहचाने, प्रकृति का सृजक जल है। बिन पानी दुनिया न बनती, ईश्वर का वरदान जल है। कुएं बावड़ी सागर नदियां, इन सब का स्वरूप जल है। प्रकृति का मानक तत्त्व, फसलों का लहलहाना जल है। बिन पानी अन्न नहीं उपजे, वृक्ष पुष्प पर्ण कानन जल है। अमृत नीर जगत का सानी, पृथ्वी पर जीवन दानी जल है। सब इसे बचाने को करें जतन, जब अनमोल संपदा जल है। जल ही जीवन सत्य है, प्राकृतिक सौगात जल है। मत बहाओ मुझे बेकार, जल भी करता पुकार है। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिक...
पुलवामा के वीर सपूत
कविता

पुलवामा के वीर सपूत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पुलवामा के वीरों से, घात करें थे घाटी में। बैठे गोडसे दिल्ली में, जयचंद पावन माटी में। गीदड़ पहुंचे शेरों तक, छल कर तेरी गोदी में। हंसते-हंसते शहादत पाये, नगराज की चोटी में। गंगा-यमुना चीख उठी, सिंदूर मिली जब माटी में। भेंट चढ़ थी कितनी राखी, जन्नत तेरी छाती में। बेबस बूढ़ी आंखें छलकी, इन वीरों की यादों में। बिलख-बिलख मां रोई, उम्मीदे बिखरी लाशों में। नन्हीं-नन्हीं परियां चीखी, सपने मिल गये माटी में। हिंदुस्तानी धरती रोये, इन शेरों की शहादत में। कदम उठा लो अंतिम, गोली दागो दुश्मन में। अब मत खोजो मानवता, इन नरभक्षी गिर्द्धो में। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
किसान
कविता

किसान

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** भूमि पुत्र के छालों से सजे हाथ देख लेते। कृषि बिल से पूर्व कूछ कृषक से पूछ लेते। जन्म मां ने दिया पोषण अन्नदाता ने किया, कुलिस कर्म उस हलधर को पहचान लेते। रोती जिसकी खुशियां सूदखोर की चौखट पर, सदियों से मौन सह रहा संताप उसे जान लेते। गरीबी, भूखमरी, कष्ट-कसक ही परिजन, वेदना अंतहीन श्रमरत हलवाह देख लेते। कंटकाकीर्ण पथ पर बेचता आशाओं को, तन हड्डियों की गठरी कृषिजीवी जान लेते। तलाश करता सुकुन धरा चीरकर जो, कर्म के रथ पर आरूढ़ हो आह! सह लेते। अच्छे दिन की आस में बनाकर सरकार तुम्हारी, महाजन की बही में अंगुठा गिरवी रख देते। श्रमसाधक चित्रकार जो सबकी जिंदगी का, अन्नदाता धरती का रखवाला पहचान लेते। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत...
बेटियां
कविता

बेटियां

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मंदिर की आरती, मस्जिद की नमाज होती है बेटियां। जिंदगी का गान, दुनिया की आवाज होती है बेटियां। प्रकृति की नींव, मानवता की आधार होती है बेटियां। सभ्यता और संस्कृति की शुरुआत होती है बेटियां। आस्था की प्रतीक, हर धर्म की लाज होती है बेटियां। संसार सागर में, मानव नैया की पतवार होती है बेटियां। हृदय का भाव, बाबूल के सिर का ताज होती है बेटियां। भाई का अभिनंदन, मां की मुस्कान होती है बेटियां। सास की सौगात, ससूर की नाज होती है बेटियां। आंखों की चमक, चेहरे का नूर होती है बेटियां। रिश्तों के सागर में स्नेहिल पानी होती है बेटियां। हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई का त्योहार होती है बेटियां। चांद की चांदनी, सूरज की रोशनी होती है बेटियां। वात्सल्य का सागर, ममता की नदी होती है बेटियां। हाथों की रेखाएं, हर की तकदीर हो...
इक्कीसवीं सदी
कविता

इक्कीसवीं सदी

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** इक्कीसवीं सदी को लगा इक्कीसवां साल। आपको हृदय से मुबारक हो यह नया साल। अभिनंदन नववर्ष नव उमंग उम्मीद किरण, करूं अलविदा शत्-शत् नमन पुराने साल। यह काल याद रखेंगी मानव तेरी पीढ़ियां, चंद्रमा का कलंक सदी में यह बीसवां साल। घबराया महामानव प्रकृति चित्कार उठीं, जैसे- तैसे गुजर गया दानव कातिल साल। सदी में यम का जाल कोरोना काल, समय भी याद रखेगा यह बीसवां साल। आओ पधारों सुस्वागतम नूतन वर्ष, तुझे अंतिम सलाम अलविदा रुग्ण साल। हे प्रभु नववर्ष में हर जन खुशहाल रहे, प्रकृति भी संभलें भूलकर यह बीता साल। इक्कीसवीं सदी को लगा इक्कीसवां साल, आपको हृदय से मुबारक हो यह नया साल। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत...
मां
कविता

मां

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। मां करती जीवन साकार। बिन तेरे यह जग बेकार। मां ईश्वर का अहसास, जन्नत होता मां का प्यार। मां..... मां बिन प्रभु भी लाचार। चुकता नहीं मां का उपकार। मां खुश होती है, जग में जीवन अपना वार। मां..... मां अनगिनत तेरे प्रकार। तूं ही दुनिया की सरकार। भिन्न नहीं ईश्वर से मां, बनता नहीं बिन मां संसार। मां..... संतान में मां होती संस्कार। मां ही जग की तारनहार। प्रकृति संवारने में होती, ईश्वर को मां की दरकार। मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौ...
हिंदी राष्ट्र धरोहर है
कविता

हिंदी राष्ट्र धरोहर है

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** हिंदी है वैज्ञानिक भाषा, भारत की पहचान है। लिपि इसकी देवनागरी, देवों की यह शान है। ब्रह्म गुप्त कुटिल से जन्मी नागर, सरल व्याकरण, इसका सुन्दर वर्ण विधान है अष्टम् अनुसूची में हिंदी राजभाषा, अक्षर-अक्षर करती भारत का गुणगान है। हिंदी भारत मां की सुन्दर बिंदी, हिन्द हिंदी हिन्दुस्तानी, भारत का अभिमान है। युगों-युगों से दुनिया की शिक्षा हिंदी, हिंदी रक्षक अपने देश का संविधान है। गागर में सागर भरती हिंदी, हिंदी राष्ट्र धरोहर है, विश्व में इसका मान है। कबीर पद मानस चौपाई हिंदी, हिंदी है देवों की भाषा पावन इसका धाम है। दुनिया में हिंदी का परचम लहराये, अजर अमर हो हिंदी, यह भारत की जान है। हिंदी सिखाती संस्कृति जगत को, विश्व सरगम भारत, हिंदी इसका गान है। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ...
गुरु नवचेतना वर दो
कविता

गुरु नवचेतना वर दो

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** ज्ञान चाहता है अंतर्मन हर्षित हो जाएं जन जन करते मन में हम यह प्रण शिक्षा का करें अभिनंदन अनुपम प्रकाश भर दो गुरु नवचेतना वर दो। चारों ओर है घोर अंधेरा कर सकते हो तुम उजेरा ज्ञान का होवे यहाँ बसेरा सुख सूर्य का रोज सवेरा ऐसी शक्ति भर दो। गुरु नवचेतना वर दो। नफरत और ईर्ष्या मिट जाए ऊंच-नीच का फर्क मिट जाए जाति-पांति का भेद मिटजाए परस्पर समता भाव लहराए ऐसा ज्ञान भर दो। गुरु नवचेतना भर दो। आज समय की मांग पुकारे कर सकते हो तुम्हें उबारे तुम्ही हो भारत के रखवाले राष्ट्र निर्माता पूज्य हमारे ऐसे गुरु भक्ति दो। गुरु नवचेतना भर दो।। जगती का उद्धार तुम्हीं हो मुक्ति का सही मार्ग तुम्हींहो प्रेम का सद्व्यवहार तुम्हीं हो नैया की पतवार तुम्हीं हो बुद्धि विकास वर दो। गुरु नवचेतना वर दो।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, स...
गजानन सुनलो हमारी पुकार
कविता

गजानन सुनलो हमारी पुकार

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** गजानन सुनलो हमारी पुकार। गजानन लाओ खुशियां अपार।। विघ्नों के हर्ता हो कष्टों के हर्ता हो मंगलदायक तुम सुखों के कर्ता हो भर दो समृद्धि का भंडार गजानन लाओ खुशियांँ अपार।। कोई काम शुरू हम करते पहले नाम तुम्हारा ही लेते हर संकट करे निवार। गजानन लाओ खुशियाँ अपार।। अज्ञान का छाया है अंधेरा कर सकते हो तुम्ही उजेरा ज्ञान की रोशनी अपार गजानन लाओ खुशियाँ अपार।। विपदाओं का लगा है डेरा कोरोना का है रूप घनेरा। कृपा की कर दो बौछार। गजानन लाओ.खुशियां अपार। कोरोना को तुम दूर भगाओ कष्टों से तुम मुक्ति दिलाओ करो मानवता का उद्धार गजानन लाओ खुशियां अपार गजानन सुन लो हमारी पुकार।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र....
आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ
कविता

आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** राम हमारी अयोध्या जन्मे कण-कण राम बसे हैं, सरयू नदी के तट पे अयोध्या पावन नगरी बसे हैं। पावन नगरी अयोध्या को हम राम- नगरी बनाएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ। राजा दशरथ परम प्रतापी अयोध्या नरेश हुए थे, कैकेई सुमित्रा और कौशल्या के चार पुत्र हुए थे। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के दर्शन कर आएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ। राम हैं मर्यादा पुरुषोत्तम परम पूज्य कहलाए, सीता मैया आदर्श जननी जग में पूजी जाएँ। राम सीता के मंदिर को हम जाकर शीश नवाएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ। राम की महिमा गाने से ही कष्ट निवारण होता, राम नाम लेने से ही बस मोक्ष प्राप्त हो जाता। हम भी आज राम दर्शन से थोड़ा पुण्य कमाएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम पर्व मनाएँ। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा -...
आज होली खेलें अपने आंगन में
कविता

आज होली खेलें अपने आंगन में

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** आज होली खेलें अपने आंगन में। रंगों का त्योहार मनाएं फागुन में।। टेसू के रंग यूँ बरसाए , तन मन पीला हो जाये। ईर्ष्या-नफरत दूर रहे, मन प्रेम से भर भर जाए। रिश्तो के फूल खिलाए गुलशन में। आज होली खेले अपने आंगन में। हरा रंग हम ऐसे बरसाए , कण-कण हरियाली होजाए । जन-जन की भूख मिटे , घर पर खुशहाली आजाए। मेहनत के फूल खिलाए उपवन में। आज होली खेलें अपने आंगन में। वंशी कीतुम तान सुनाओ, राधा बन हम रंग बरसाएं। रंग पिचकारी भर-भर के , मन का सार संसार लुटाएं। हम तुम दोनों रास रचाए मधुबन में। आज को खेलें अपनी आंगन में। .परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र. व्यवसाय - सेन्ट पाल हा. सेकेंडरी स्कूल इन्दौर से सेवानिवृत्त शिक...
सिसक रहे आज होली के रंग
कविता

सिसक रहे आज होली के रंग

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** सिसक रहे आज होली के रंग। महंगाई ने करदिया रंग बदरंग।। लाल रंग अब लहू बनके बह रहा पीत वर्ण कायर बन छुपकर रोरहा हरी-भरी वसुंधरा अब कहाँ रही? ऊंची-ऊंची इमारतें आस्माँ छू रही। रह गया बस अब होली का हुड़दंग महंगाई ने कर दिया रंग बदरंग।। बच्चों की पिचकारी औंधे मुंह पड़ी, बिन पानी-रंग टंकी शुष्क सी पड़ी। महंगाई-मार रंग फुहार फीकी पड़ी, फागुनी बयार मन्द-शांत चल पड़ी। बिन पानी कैसी होली पिया के संग। महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग पावन पर्व अस्त-व्यस्त हो रहे , पर्वों की गरिमा क्षत-विक्षत रो रहे। वन-उपवन टेसू के फूल मुरझा रहे खाद्य पदार्थ-भाव आस्माँ छू रहे। मथुरा भी गाये बिन होली सूने अंग महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिक...
औरत
कविता

औरत

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** पराधीनता का है नाम न उसकी कोई पहचान न अपना कोई काम उसका कुछ अपना नहीं सोचा हुआ सपना नहीं जन्म से मृत्यु तक अधीन अन्यथा है वह श्री विहीन है देवी, पूज्यनीया और जननी, जो अपने लिए नहीं, औरों के लिए जीती है। आंखों में आंसू लेकर, औरों को खुशियां देती है। ममता, त्याग, दया की देवी पल-पल, जीती-मरती है। पढ़ी-लिखी होने पर भी, पुरुषों से कम आती जाती है। दहेज के कारण आज भी, भ्रूण हत्या का शिकार होती है। बचपन से लेकर मरण तक जीवन भर चुप रह सहती है। घर-परिवार को संभाल कर, देश की बागडोर भी संभालती है। पर, परतंत्रता में ही उसका अस्तित्व है। स्वतंत्र होकर तो और भी परितंत्र है। वो बेटी, बहना, पत्नी, मां बनती है, तभी तो औरत का गहना पहनती है। आदर्श की बलिवेदी पर वही आग में झोंकी जाती है पवित्रता की आड़ में, वही छली जाती है। सांसें ...
नई सुबह आ रही
कविता

नई सुबह आ रही

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। खेत की माटी बोल रही, ओ कर्मवीर उठ जाओ। प्राणों में अब हुंकार भरो, मेहनत की फसल उगाओ। नई रोशनी आरही अंधविश्वास दूर भगेंगे नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। जीत उसे हासिल होती, आशा के बल पर जीते। बाधाओं को दूर हटाके, वे नील गगन छू लेते। कर्म-आँधी चलरही श्रम- फूल खिलेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। सारे बंधन तोड कर, नई ऊर्जा से भर दें। खौफ का साया जहाँ, हौंसलों के पंख दे दें। नई लहर आ रही आत्मविश्वास जगेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे। चुनौतियों का सामना करो, भाग्य भरोसे बैठो नहीं। पुरुष हो पुरुषार्थ करो , बाधाओं से डरो नहीं। कर्मभूमि सज रही ज्ञानदीप जलेंगे। नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एव...
मकर संक्रांति
कविता

मकर संक्रांति

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** मकर संक्रांति का पावन पर्व। हम भारतीय करते इस पर गर्व। तिल गुड़ की है इसमें मिठास दूर करती रिश्तों की खटास। तिल- गुड़ रखते काया निरोग खाओ-खिलाओ तिलगुड़-भोग। प्रेम-भाव से खूब उड़ाओ पतंग हिल-मिल रहो सभी के संग। गुड़ से मीठे रिश्ते महकते रहें परस्पर सम्बन्ध चहकते रहे। जीवन में खुशियों का रंग भरदे वासंती खुशनुमा उल्लास भरदे। रखो ऊँचा उठने की स्वकामना दूसरों को आगे बढ़ने की प्रेरणा। संक्रांति पर सभी को शुभकामना उउन्नति सफलता यश की कामना ।।   परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र. व्यवसाय - सेन्ट पाल हा. सेकेंडरी स्कूल इन्दौर से सेवानिवृत्त शिक्षिका) प्रकाशन कृतियां - तीन काव्य संग्रह - राष्ट्र को नमन...
मान
लघुकथा

मान

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** अरी  सुलक्षणा कल "हरतालिका तीज" है, याद है ना। अरे माँ मैं तो भूल ही गई थी। अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया, ठीक है कर लूँगी। "अरे माँ आपने अभी तक चाय नहीं बनाई सुबह-सुबह किसको फोन करने बैठ गयीं?" सीमा अपनी माँ के गले में हाथ डालते हुए बोली।" तेरी भाभी को ही फोन लगा रही थी, उसे याद दिला रही थी कल हरतालिका तीज है, व्रत कर लेना "और भाभी ने कहा होगा ठीक है मैं कर लूंगी। "हां तेरी भाभी बोल रही थी कि माँ मैं तो भूल ही गई थी अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया।"  देख मैं उसे याद दिला देती हूं तो निधि बड़ी खुश हो जाती है। पर माँ आपको पता है न कि भाभी व्रत नहीं कर पाती हैं, उन्हें भूख सहन नहीं होती है। फिर क्यों याद दिलाती हो? अब उसकी इच्छा होगी तो कर लेगी नहीं तो कोई बात नहीं है। मैंनें अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। पर देख बेटा मेरा मान तो रख लेती है। कभी म...
आखिर कब… ?
कविता

आखिर कब… ?

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** यह दुराचार कब खत्म होगा? कब तक बेटियाँ असुरक्षित रहेंगी? मासूम बेटियाँ कब तक इन दरिन्दों का शिकार होती रहेंगी। लगता है हर जगह हैवान घूम रहे हैं। जो बालाओं का अपहरण कर रहे हैं, दुष्कर्म कर रहे हैं, नोच नोच कर खा रहे हैं, बोटी-बोटी काट रहे हैं। क्या बेटियां घर से बाहर न जाए? स्कूल पढ़ने न जाए, खेलने न जाए? आखिर कब तक? कब तक वे पीड़ा सहती रहेंगी? कब तक वे अत्याचार का शिकार होंगी? उनके हिस्से की पीड़ा कोई मिटा तो नहीं सकता। जो भोगा है उन्होंने उसे मस्तिष्क से हटा तो नहीं सकता वे बेचारी कब तक शर्म से मुंह छुपाती रहेंगी कब तक दर्द से कराहती रहेंगी ? इन दरिंदों को फांसी क्यों नहीं देती ? सरकार उनके हाथ पैर क्यों नहीं काटती सरकार कहती है पर करती क्यों नहीं? सरकार की कथनी करनी कब एक होगी आखिर इन दरिंदों को फांसी कब होगी आखिर ...