क्या कसूर था मेरा
किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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क्या कसूर था मेरा जो
मेरे सिन्दुर को उजाडा़ गया,
अभी तो मेंहदी भी नही धूली थी
और सिंदुर मिटता माँगो का।
क्या कसूर इतना था मेरा कि
मै एक हिन्दु की कोख से पैदा है हुई।
कितने निर्दय अत्याचारी है
वो क्या बीबी बच्चे नही उनके?
किसी ने माँ को खोया है
किसी ने पिता को खोया है
किसी की राँखी जो सुनी है
किसी की कलाई जो सुनी है।
किसीका घर जो उजडा है
किसी की मांग जो उजडी है।
किसी ने कृष्ण खोया है,
कहीं राधा जो बिछुडी है।
यदि थोडा भी प्रेम होता
यदि थोडी भी दया का भाव भी
होता, नही वो कृत्य ये करते।
उठो अब देश के वासी नही छोडो
इन दुष्टो को अब तो काट दो
इनके होथो को की अब
ये भीख भी ना ले सके,
नही वो ये कुकृत्य ये करते
बस इन्सान वो रहते,
ये तो इंसान के वेश में
नर पिशाचर से कर्म है उनके,
जो मानव होकर के मानव...