एक बाप
किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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एकटक देखता रहा
निहारता रहा नहीं
निगाहें ओझल है उसकी,
चेहरे पर खुशी होंटो पर
मुस्कान लिए देखता रहा
प्यार भरी निगाहों से,
एक पिता बचपन सा
दुलार बचपन का प्यार,
गाड़ी में बिठाते उसका
सामान चढाते फिर
टकटकी लगाते देखता रहा
खिड़की में से, एक बाप !
जब तक बस ना
चली जाए खिड़की पर
ताकता रहा देखता रहा,
पर बेटे की निगाहें ना
टिकी अपने बाप पर।
नहीं मुस्कान नहीं
सम्मान बस डिग्री थी
और ऊंचे पद और
शिक्षा का अभियान,
नई दुल्हन, नया शहर,
नई नौकरी, बस अपनी
मस्ती में मस्त था
एक नौजवान,
भूल गया बचपन !
पिता के कंधे वह
मेलों में जाना
जलेबी, गराडू खाना,
खिलोने की जिद,
गाड़ी पर बैठकर आम
और आइसक्रीम लाना,
स्कूल के लिए बस में
बिठाना और चॉकलेट
टॉफी दिलाना,
मैं देखती रही उसके मिजाज,
उसके आव-भाव, बस
यहां तक ही...

