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Tag: डॉ. भगवान सहाय मीना

नदी फिर से बहना
कविता

नदी फिर से बहना

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कलम बोलती कागज से, आओ मन की कह दूं। झूठे जग के चलचित्रों में, सत् के रंग बतला दूं। सूख गया रिश्तों का सागर, संबंधो में थार मरूस्थल। स्वार्थ के वशीभूत जगत है, बहरूपिया सा अंतस्थल। ज़र जोरू जमीन खास है, रत्तीभर स्नेह कहां सहोदर में। शुष्क लुप्त है आत्मियता, रिसती दरार गहरी आंगन में। बोल चाल बंद अपनों से, कुंठित गैरों से भ्रमित हुए। दूध में तलवार चलती, संस्कार सब धूमिल हुए। वात्सल्य शल्य से ग्रसित, रोये अपनापन संन्यास लिए। मात-पिता में अनबन बडी, बच्चें पढ़ने को वनवास लिए। पति पत्नी के गठबंधन में, निरस गाँठों की भरमार घनी। अलगाव विखंडित मोहब्बत, झूठी शान जिए प्रणय के धनी। कब समरसता को सीखेंगे, अपनेपन में कटे कटे से रहना। यूं विस्तापित जग जीवन में, ममता की नदी फिर से बहना। परिचय :- डॉ...
विजयादशमी
कविता

विजयादशमी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को। आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को। अन्तर्मन में दीप जला, सत्य विजयभव कहने को। आना सद् चरित्र करने, मैं आहुत करूं दशहरे को। असुरों सा संहार करें, काम,क्रोध,मद, लोभ को। वंचक कपटी मन से, प्रभु दूर करें मनोरोग को। धर्म पथिक रहूं सदा, नमन सीता के सम्मान को। कलयुग का केवट करता, नित वंदन श्रीराम को। असत्य पर सत्य की जीत, दोहराना इतिहास को। कलयुग कर दो त्रेता को, अवध मेरे हिंदुस्तान को। हर घर याद दिला दो, इंसा भूल गए भगवान को। मन मंदिर में मानव देखो, क्यूं पूजता लंकेश को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
गुरु महिमा (दोहे)
दोहा

गुरु महिमा (दोहे)

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** गुरु ओजस्वी दीप है, तेज है चहुं ओर। अपने अनगढ़ शिष्य का, सृजन करें हर छौर। विद्यास्थली मंदिर है, गुरु मेरे भगवान। करता नित मैं वंदना, हृदय बसे सम्मान। अभिनन्दन गुरु देव का, है सादर सत्कार। अनुग्रह मिलें शिष्य को, करते नित उपकार। नित गुरु शिष्य भला करे, नव चरित्र सृजनकार। संस्कार की विशेषता, नव वृत्तिक मूर्तिकार। गुरु विशेष की खान है, गुरु कोमल अहसास। गुरु अज्ञान विनाशक है, गुरु नायक विश्वास। गुरु संस्कृति की रोशनी, गुरु विशेषण विशाल। सद् गुरु सा सगा नहीं, गुरु अनमोल मिशाल। गुरु सहज सरल जीवनी, गुरु जग तारणहार। गुरु संबल है शिष्य के, गुरु नव पालनहार। गुरु वितान नव ज्ञान के, गुरु पावन परिवेश। गुरु ओज चरित्र भव्य है, आप मूर्ति अनिमेश। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार...
जंगल हर दिन रोता है
कविता

जंगल हर दिन रोता है

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** एक दिन मैं गुजर रहा था, शाहाबाद के जंगल से। पहाड़ों को काटकर बनाई गई, खुबसूरत डामर की सड़क पर। अद्भुत मनोहर कांतार, पर्वत के शिखर से तलहटी तक सघन आच्छादित सुरम्य। नदी, झरने, घाटी, जलाशय से भरा पूरा परिवार। असंख्य जीव,जन्तु,पशु,पक्षी, भ्रमर, तितलियाँ, फूल,फल, चारों दिशाओं में व्यापक विस्तार। मुझे देखकर सिसकने लगे पेड़, महुआ, पलास, शीशम, छिला। दहाड़े मारने लगे शमी,नीम और कानन के सब पहरेदार। असीम अरण्य रुदन सुनकर मैं भयग्रस्त कम्पित हृदय से विनीत स्वर में पूछा.. हे! विपिन क्या, कोई प्रलय का आभास हुआ या दावानल कही जल उठी। बियाबान में क्रंदन कैसा..? क्यों कोमल किसलय रो उठी। यह सुनकर मेरी मीठी बात, कुछ धीरज धरकर चुप हो फिर अटवी बोला मेरे से, ना प्रलय का आभास हुआ ना दावानल से डरता मैं। मेरे कंद,मूल,...
सावन
दोहा

सावन

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** सावन उमड़ी बादली, बरस रही घनघोर। कोयल कजरी गा रही, नाच रहे वन मोर। रिमझिम पड़ी फुहार से, हुई सुनहरी भोर। खुशियों की बरसात में, हलधर करता शोर। तीज त्यौहार बादली, सावन की बरसात। मेघ चमकती बीजुरी, हरित अमावस रात। काली घटा गगन चढ़ी, गरज गरज कर घोर। सतरंगी सा लहरिया, इंद्र धनुष का छोर। मेघ मल्लिका रूपसी, सजती सौ सौ बार। हरी चुनरिया ओढ़कर, धरा करे श्रृंगार। चातक श्यामा झूलते, मदन तरु की शाख। मीठी टेर दादुर की, पपिया प्यारी वाख। मादक यौवन हरितिमा, निर्मल बहता नीर। हुआ सुगंधित मलयगिरि, शीतल मंद समीर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बिखर गए सांसों के मोती
कविता

बिखर गए सांसों के मोती

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** शब्द श्रद्धांजलि : मृतक बच्चें (हादसा - पीपलोदी शाला, झालावाड़) बिलख रहे बापू जिनके, वो छोड़ गए मां को रोती। टूट गई जीवन की माला, बिखर गए सांसों के मोती। पोथी बस्ता अनाथ हुए, और कलम रह गई सोती। तम के गहरे आघातों से, बुझ गई जीवन ज्योति। मृत्यु बड़ी निर्दय हुई, बाल-सभा को खाती। वीभत्स दृश्य चीत्कार देख, हर आंख आँसू बहाती। मौत भी मजबूर हो, जिस गुलशन को आती। बरसों से क्यों पाले थे, फिर मरघट की सी थाती। क्या आंखो से अंधे थे, अथवा गांधारी की जाति। दिखी नहीं सर्पणी जिनको, मासूमियत को डसती। तुम शीशमहल में रहते हो, क्यों कच्चे हमको पाती। कौन जिम्मेदार बुझाने को, बच्चों की जीवन बाती। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत...
छोटू
कविता

छोटू

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** छोटू चाय लाना..!! यह कितनी सामान्य सी पुकार है। थडी, ढाबा, कैफे, रेस्टोरेंट, बस, ट्रेन आदि, सब जगह मौजूद है छोटू। गंदी मैली सी धारीदार कमीज, मोटे धागे से सिली हुई फटी पेंट काली हवाई चप्पल पहने हुए। सिर के रुखे उलझे बिखरे बाल, मुख मलिन आंखों में चमक लिए। सूरज की पहली किरण के साथ दौड पडता है छोटू दूर तक, चाय गर्म, समोसे गर्म लिए। सरकार, मैं और आप नहीं जानते उसका छोटू बनने का कारण ? बनी होगी चक्र व्यूह सी कठोर विपरीत परिस्थितियाँ। मजबूरी ही बनाती हर बालक को अभिमन्यु और छोटू। जहां लडता है वह योद्धा बन, घर परिवार जीवन बचाने के लिए। वो अपना अजीज खोकर आया होगा यहां छोटू बनने। मां, बाबूजी या दोनों को ही, जिंदगी की अनाथ पगडंडियों पर। आती होगी याद उसे अपनों की, सिसकियाँ भरता होगा अकेले में। थक हारकर जब दे...
मेंढक कब बोलेंगे
कविता

मेंढक कब बोलेंगे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** असीम संभावना का धनी आषाढ गर्मी से बेहाल, सूखे होंठ उदास बैठा है खेत की मुंडेर पर। मुंह मोड़े तीतर पंखी बादली, अलनीनो के प्रेम से बदहवास फिरती दूर गगन के छोर पर। किसान तीर्थ कर आया अलसुबह, खेत सी धरा पावन कही नहीं। मेहनतकश पसीने से, इस रज का कण कण सिंचित है। दंडवत कर निहार थे कुएं की गहराई को, गहरी वेदना से। पानी उतर गया था जिसका, पाताल में अश्विन की बादली सा। आते हुए गांव के पलसे में, नज़र ठिठकी तालाब पर चौतरफ किनारे की हरी भरी दूब सूख गई थी, महाजन की आत्मा सी। जो ठिठहरी सा चीक-चीक करता है दिनभर। जौंक सा तालाब के बाहर, निर्मम चूस रहा है सदियों से। पोखर में नहीं बचा था पानी जिसमें तैर सके कछुए और मछलियाँ, नहा सके छलांग लगाकर नंगदडंग बच्चे। औरतें पिला सके गुनगुनाती हुई गाय, भैंस, बकरियों को...
होली के रंग
कविता

होली के रंग

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** याद आते है, मुझे होली के रंग। मतलबी दुनिया में, इंसान हुए बेरंग। स्वार्थवश गूंगी हुई, भाई चारे की चंग। रंग बदलते लोगों से, अचरज में सब रंग। देख नशा इंसान का, ठगी गई है भंग। उतरे रंग को देखकर, गुलाल रह गई दंग। कंठ कंठ में बजते, कड़वे भावों के मृदंग। ऊसर सब की वाणी, प्रेम वात्सल्य में जंग। भौतिक सुखी अंतर्मन, ठूंठ सरीखे नंग। गांव मौहल्ले भी, लगते शहर से बदरंग। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ...
नव वर्ष
दोहा

नव वर्ष

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** केसर रोली अक्षत से, सजा लिया है थाल। तिलक करूं में हर्ष से, नये साल के भाल। अभिनंदन नव वर्ष का, नव उमंग के साथ। ले नया संकल्प सभी, आज उठा कर हाथ। स्वर्णिम उषा की किरणें, चमक रही है लाल। मंगल गायन हो रहे, देख शुभ घड़ी शुभ साल। नव किरण नव उजास से, पोषित हो नव भोर। जीव जगत आनंद मय, हर्षित हो चहुंओर। जीवन में यश खुब मिलें, मंगल मय अति हर्ष। मन आंगन में सब करें, अभिनंदन नव वर्ष। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के सा...
मुलाकात अपने आप से
कविता

मुलाकात अपने आप से

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मैं सोचता हूँ, कभी मुलाकात कर लूँ अपने आप से। पकड़ लूँ गिरेबान और मिला लूँ आंखे अपने अहम से। मैं हूं बड़ा बदतमीजी, कूट-कूट कर भरा है अभिमान मुझ में। बस पहचान का फितूर चढ़ा है खाली दिमाग में। ईर्ष्या द्वेष द्वन्द्व जैसे साथी संग खड़े हैं मन के मरुस्थल में। है विडम्बना कैसी, मेरे मन से कम खारापन सागर में। मैं अपनी बतला दूं, नैतिकता कहीं दूर खड़ी भाव-भावना बिखरी सी। गुण पर भारी अवगुण, दग्ध हृदय संताप भरा जीवन लीला घिरणी सी। खंडित आभासी वैभव, मोह माया संलिप्त दम्भ में ऐंठे रहता हूं। लघुतर मानू और को, मैं मगरूर आत्मश्लघा अहं में डूबा रहता हूं। मैं सोचता हूँ, कभी मुलाकात कर लूँ अपने आप से। पकड़ लूँ गिरेबान और मिला लूँ आँखें अपने आप से। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान स...
औरत नदी होती है
कविता

औरत नदी होती है

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** औरत नदी होती है, जो बहती रहती है। वात्सल्य से पूरित, स्नेह में परिपूर्ण हो। पहाड़ों से ढलानों में, घाटियों से मैदानों में। असंख्य पत्थरों को, भावों से ठेलती हुई। पिता से पति तक, उतार चढ़ावों से गुजरती पहुंचती है ज्वार भाटे सी, सागर तक बहती हुई। बचपन की वर्जनाएं वह भूलती नहीं है। "शोभा नहीं देती तेरी यह मुंह फाड़ू हंसी", अगले घर जायेगी, तू लड़की है। बालपन से किशोरी होने तक, कितनी ही बार सुनती है। अदब से रहना सीख ले, तेरे संग बंधी है घर की इज्जत। जैसे यह घर उसका नहीं, पिता का घर, माता का घर, जहां उसका जन्म हुआ, वो उसका ठिकाना नहीं है। समझती है वो सत्य को, वो तो सृष्टि की सृजक है, उसे तो पराएं घर जाना है। पहाड़ों से जंगलों में बहकर, मिलना है सागर के खारेपन में। खपाकर जीवन को फिर से, वाष्प बनकर...
टूटते परिवार
कविता

टूटते परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** तोड़कर बांध, पानी निकल पड़ा है बस्तियां डूबोने को। कोशिश तो करों, डालकर पाल पे मिट्टी रिश्ते बचाने को। सिसक रहे आंगन, कहीं ख़ून से तर दामन स्वार्थ भूख मिटाने को। पंख काटने बैठे दर पर, सावधान अपनों से रहना खाएं बाड़ खेत को। रिश्तों के पैमाने, बदल गये जग में कंठ लगाकर दौलत को। टूटते परिवार, भाई बांधव भूलकर खास बना ली शौहरत को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
सावन
कविता

सावन

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेघ आच्छादित नभ क्षितिज तक, झर- झर बरसती काली घटाएं, मन विकल करती शीतल बूंदें, हिय को झकझोरती चंचल पुरवाई। यह सावन भी बड़ा बेदर्दी है, खेलता है कभी पलकों से, अल्हड़ फुहारें जला देती है तन से मन तक उदासी की अगन। भरी बरसात में दहन उठता है अलाव उनकी यादों का, नीम की डाल पर तड़प रहा है झूला आंगन में, मेरे साजन का। हुई थी बात कल रात सैनिक से, बाढ़ राहत शिविर में लगा हूं, बोलें थे बड़े रुआंसे होकर... यह सावन बड़ा बेइमान है। बरसते हैं बादल जी भरकर, प्रति वर्ष सजीले सावन में, बहती है यौवन से परिपूर्ण नदी, लेकिन मिटती नहीं मन की प्यास। अधूरी रह गई गत वर्ष की भांति, इस वर्ष भी चाह झूला झूलने की चल पड़ी गांव के पोखर पर चादर, आत्मा फिर भी प्यासी की प्यासी। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्य...
राखी
कविता

राखी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** आषाढ़ की बादली, सावन की रिमझिम सी, नेह सिंचित राखी लिए, बहिन छबीली आई। चमकीली रेशम की डोरी, भाव जड़ी माणिक, वात्सल्य की बहती गंगा, रिश्तों के सागर आई। भाई बहिन के प्रेम की, नन्हीं राखी प्रति छाया, अमर आत्मिक गाथा, सुख-दुःख की यह पुरवाई। संकट से जब घिरी बहिन, तो भाई बना रक्षक, आन पड़ी जब भ्राता पर, बहिन फ़र्ज़ निभाई। खुशियों की सौगात, अपनों की मिठास राखी, अटूट बंधन नेह समरस, वचन मोली कहलाईं। पंख पैर में लगा आत्मजा, बाबुल के घर पहुंचे, भर - भर आंगन निरखती, प्रीत नैहर की पाई। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
बेटी की विदाई
कविता

बेटी की विदाई

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** लड़वण प्यारी लाड़ली, निरख रही घर आंगन को। प्रणय विदा की वेला में, ढांढस बंधातीं बाबुल को। मां कैसे घर को भूलूंगी, और कैसे तेरे आंचल को। अनुज अंक में बिलखती, छाती भर कर भाभी को। विकल हृदय मयूरी सी, तोड़े अंसुवन बांधों को। क्रंदन करती याद में, रह रह आती यादों को। भरी अंजुरी अक्षत ले, बैठी देहरी पूजन को। झर- झर बरसी आंखें, नयन लजाते सावन को। मां भूल मत जाना प्रातः, पानी अर्पण तुलसी को। बिखेर देना छत पर, मुठ्ठी भर दाना चिड़िया को। मां दवा समय पर लेना, बस स्वस्थ रखना खुद को। भूल जाएं कोई काम धाम, तो लड़ना मत पापा को। भाभी मेरी ख़ास सहेली, संग रखना याद भूलाने को। कभी डांटना मत गुस्से से, बिगड़ा काम सिखाने को। भाभी खुशियों की चादर में, तू बांधे रखना सब को। अब अपना करने मैं चली, किसी ...
पिता
कविता

पिता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पापा बताओं ना, कुछ पिता के बारे में। कोई छंद राग, अपनी कहानी के बारे में। क्या आपके पापा भी करते थे, इतना ही प्यार जितना, भर छाती आप उड़ेलते हो दोनों हाथों से। क्या उनके भी रहती थी, शिकन माथे पर और झलकती थी, चिंता आंखों से। ठगी गई थी अल्हड़ जवानी उनकी भी, ऐसे ही अबोध बच्चों के लिए। अधूरे लगते थे आंखों के सपने, घर परिवार अपनों के लिए। उनकी भी अथक भाग-दौड़, जीजिविषा और संघर्ष मय, कसक भरी कहानी रही होगी। हृदय के किसी कोने में, कुछ बचपन की, कुछ जवानी की इच्छाएं सिसकियां भरी होगी। चाहे होंगे आपके पापा भी, आपकी तरह दुनिया की हर खुशी, अपनों के दामन में महका देना। उनके कंधे भी झुकें होंगे हमेशा, ज़िम्मेदारियों से बोझिल हो, खुशियों को सहारा देना। उनकी भी मुस्कराहटों में, साफ़ झलकती होगी कसक, बड...
जिंदगी खंडहरों में
कविता

जिंदगी खंडहरों में

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** बिखरी हुई छोटी-छोटी खुशियों को, नजरंदाज करके, उलझी पड़ी है जिंदगी खंडहरों में। बेलगाम इच्छाएं, मुंह बाए खड़ी मौत सी, पाने की जद्दोजहद तिल तिल तनाव में। परिवार समाज को छोड़कर, अपनी नज़र से कभी खुद को देखो, तुम खुद पर फ़िदा हो जाओगे। धूल जम गई है हजारों सपनों पर, उन सपनों को बुनने लग जाओगे। एक बार फिर से सुन लिजिए, ध्यान मग्न मुनियों से, भर यौवन बहती नदी की कल-कल को। खिल उठोगे अबोध बालक से, चिंता को किनारे लगा, क्षण भर निहारे खिलते फूलों को। तितली के सुनहरे पंखों सी जिंदगी, गुनगुना ने दो भ्रमर को, गाने दो मन की कोयल को। संघर्ष और जिजिविषा, पहाड़ों की तलहटी में नदी से, सीख ले पत्थरों को चीरना। डूबने का डर छोड़कर जान ले, पानी के वक्ष पर नाव से चलना। कभी सुनो तो सही, बाग में बैठकर शांति से, खेलते बच्...
मां
कविता

मां

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। मां करती जीवन साकार। बिन तेरे यह जग बेकार। मां ईश्वर का अहसास, जन्नत होता मां का प्यार। मां बिन प्रभु भी लाचार। चुकता नहीं मां का उपकार। मां खुश होती है, जग में जीवन अपना वार। मां अनगिनत तेरे प्रकार। तूं ही दुनिया की सरकार। भिन्न नहीं ईश्वर से मां, बनता नहीं बिन मां संसार। संतान में माॅं होती संस्कार। मां ही जग की तारणहार। प्रकृति संवारने में होती, ईश्वर को माॅं की दरकार। मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
बसंत
कविता

बसंत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** अधरों पर मंद स्मित सजाएं, बसंत पूरब से लालिमा लिए। सुरभित सुमन रजनीगंधा के, आ गया पात पात आनंद किए। पीत वसन मुख चांदनी सा, शीतल मन्द समीर लिए। हरी दूब से शबनम चुनता, हलधर दौड़े बसंत लिए। कली फूल चितचोर बने, लता यौवन मकरंद लिए। घर आंगन में उतर गया, ऋतुराज आंखें चार किए। सज स्नेहिल हरित वसुधा, नेह मिलन की आस लिए। फागुन में गौरी बाठ निहारे, यादों की खुशबू पास लिए। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकत...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** लो फिर आ गया है नव वर्ष, दौड़ता हुआ संकल्पों की गर्द से ढका। पहाड़ी प्रदेशों में भेड़ चराता हुआ, सड़क किनारे टुकड़े लोहे प्लास्टिक के चुनता। भीड़ भरे चौराहे पर वाहनों की रेलमपेल में कटोरी थामें, चंद सिक्कों की खनक से मुस्काता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, आंखों में जीजिविषा भरे मेहनत से सरोकार साइकिल रिक्शा पर पसीने से लथपथ पैडल मारता। पतासी के ठेले पर जीरा नमक संग अपनी जठराग्नि से लड़ता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, खेतों की मेड़ों से, हरी दूब पर पूस की ठंड से विकल, टखनों तक पानी में डूबा। उम्मीद को पगड़ी में बांधे, रात गठरी सा ठिठुरता। लो फिर आ गया है नव वर्ष, दृढ़ निश्चय, कृत संकल्पित हो। कुछ वादे, कुछ इरादे थामें। कच्ची बस्ती से होता हुआ, मध्यम वर्ग के गलियारों से निकलकर स...
नव वर्ष २०२४ पर दोहे
दोहा

नव वर्ष २०२४ पर दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनन्दन नव वर्ष। नई सुबह की नव किरणें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली फूलों से, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नये साल के भाल। नव किरण नव उजास से, पोषित हो नव भोर। शुभ यश जीवन में मिलें, हर्षित हो चहुं ओर। अभिनन्दन नव वर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठा कर हाथ। जीव जगत आनंद में, सदा रहें हर छोर। नये साल से आरज़ू, स्वर्णिम करना भोर। नूतन वर्ष शोभित हो सदा, सदी के भाल। दो हज़ार चौबीस में, भारत हो खुशहाल। झोली भर शुभ कामना, आप सभी को आज। मन में जो सपने बुने, होंगे पूरे काज। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घो...
परिवार
कविता

परिवार

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** संस्कारों की जननी, संस्कृति की पाठशाला। जन्मभूमि परिवार, यह कर्मों की कार्यशाला। रिश्तों का गहरा सागर, जीवन का ताना-बाना। चौखट है गीता का ज्ञान, छत संबंधों का मेला। कुरुक्षेत्र यह केशव का, राघव का वनवास घना। मर्यादा की बंधी पोटली, सभ्यता का यह थैला। परिवार शिक्षा का केंद्र, जीवन का आदि अंत। जीने की जिजीविषा, यहां संघर्षों का रेला। सीख कसौटी, मीठी घुड़की, आंगन में मिलती। जो रहता है परिवार में, वो मनुज नहीं अकेला। यहां मां की स्नेहिल लोरी, बापू का तीखा प्यार। बहन- भाई का रिश्ता, मणियों की मीठी माला। कर्मों में कर्तव्य पहले, शिक्षा में आज्ञा पालन। संबंधों में नैतिकता, परिवार पुनीत यज्ञ शाला। दादा - दादी की सीख, नाना - नानी की परवाह। चाचा-चाची, ताऊ-ताई, यूं रिश्तों की चित्रशाला। वैभवी गीता का ...
दादी-नानी
कविता, बाल कविताएं

दादी-नानी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दादी-नानी की बरगद सी छांव में। बच्चे सीखते ज्ञान बैठकर पांव में। प्रज्वलित दीप की स्वर्णिम चमक, आलोकित बिखर रही आंगन में। द्वय शेर शावक से सुकुमार बाल, यूं एकाग्रचित्त ध्यान मग्न कथा में। कब कैसे तोड़े है विकट चक्रव्यूह, और क्या करें उग्र ज्वालामुखी में। जगत में उलझन भरी पगडंडियों, पर चले दुर्गम पथों के छलाव में। संस्कृति, संस्कार, सीख, सभ्यता, समझ लो फर्क शहर और गांव में। धर्म अर्थ काम मोक्ष की परिभाषा, सारे गुण कर्तव्यनिष्ठ पुरूषार्थ में। सुनते सार गर्भित कथा कहानियां, सहायक सुदृढ़ चरित्र निर्माण में। मन वचन कर्म से नर अवधूत बने, धर्म समाहित मां के सच्चे ज्ञान में। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रम...
श्रम साधना
लघुकथा

श्रम साधना

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** चिमनी की टिमटिमाती रोशनी में रामू चटनी के साथ बाजरे की रोटी का कोर मुंह में चबाते हुए पत्नी से शिकायत भरे लहजे में कहा - 'यह लगातार तीसरा महिना है, जिसमें हमारी बनाई ईंटों में ठेकेदार ने कमी निकालकर पैसे काट लिए' गौरी मेरे समझ में नहीं आता, हमारे बाद आकर भट्टे पर लगी भंवरी की ईंटें हमारी बनाई ईंटों से अच्छी कैसे हो सकती है। गौरी चूल्हे पर रोटी सेंकतीं हुई अपने पति की बातें बड़े इत्मीनान से सुन रही थी। वो फिर खीझ और झुंझलाहट से बोला, तुझे रोज कहता हूं गारा (गीली मिट्टी) अच्छी तरह मिलाया कर लेकिन तू मेरी सुनतीं कहां है, अब देख सारा पैसा कट गया, बैंक की किस्त फिर बाकी रहेगी, बैंक का ब्याज दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। रामू फिर बोला 'ठेकेदार भंवरी की ईंटों का पूरा भुगतान किया है, वो कह रहा था 'भंवरी गारा अच्छी तरह मिलाती ह...