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Tag: भीमराव झरबड़े ‘जीवन’

आप का सानी नहीं
गीतिका

आप का सानी नहीं

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रोल अद्भुत आप का है, देख हैरानी नहीं। आप जिसको काटते वह, माँगता पानी नहीं।। सेंक लेते हो चिता पर वोट की सब रोटियाँ, झूठ, धोखे, जाहिली में, आप का सानी नहीं।। ठीकरा नाकामियों का फोड़ते सिर और के, जानती हैं सच प्रजा सब, मान अंजानी नहीं।। मात्र मित्रों के भले को, पेट लाखों काट दें, और इतना निर्दयी कोई, यहाँ प्राणी नहीं।। वेदना कब नारियों की आप समझेंगे मियाँ, है सिंहासन पास में पर, साथ जब रानी नहीं।। आप ने अवतार लेकर, धन्य धरती को किया, आप-सा कोई खुराफाती व अभिमानी नहीं।। बरगलाना, बाँटना बस, हाँकना डींगे महज, ज़िल्लतें ही दी हमें अब, और शैतानी नहीं।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
दर्पण फूट गए
गीतिका

दर्पण फूट गए

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तृषित घटों के नवाचार ही, पनघट लूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। कंकड़-पत्थर की दुनिया से, रूठी जलधारा। इस नभ के सूरज ने दे दी, सपनों को कारा।। आँखों से झरते फूलों पर, चल के बूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। गाजर घास उगाए उर के, उर्वर उपवन में। स्वार्थ छिपे जा सिर की काली, टोपी अचकन में।। तनी हुई लाठी से डर के, दर्पण फूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। जोत दिए कांवड़ में कंधे, पुण्य कमाने को। लगे हुए हैं हाथ स्वर्ग की, डगर सजाने को।। मंच माॅबलिंचिंग के, सच को, घर में कूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। अश्वमेघ को घूम रहे हैं , सत्ता के घोड़े। मार दुलत्ती हटा रहे हैं, पथ के सब रोड़े।। चौखाने पर विषधर ही सब, हो रिक्रूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल...
सपनों का घर
गीतिका

सपनों का घर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों रहना है पीछे मैं भी, चलूँ अगाड़ी में। बना रहा है सपनों का घर, चिन्टू बाड़ी में।। पाँच दशक जीवन के फूँके, छप्पर-छानी में। टूटे काँधे, दुख ढो बदली, देह कमानी में।। जाग रही पर मृग मरीचिका, उभरी नाड़ी में।। बी पी यल का लाभ उठाने, चूल्हा अलग जला। रेत-सरीखा रिश्तों के, आँखों में रोज सला।। बेयरिंग-सा फँस के है खुश, जीवन-गाड़ी में।। चार माह तक रोज सचिव के, पूजे गए चरण। पाँच हजारी पूजा पाकर, पास हुआ प्रकरण।। घुला रेत, सीमेंट साथ ही, स्वयं तगाड़ी में।। किस्तों की आवाजाही में, उभरे अवरोधक। घात लगाकर बैठे जल में, आखेटक से बक।। प्राण-पखेरू ले डूबी पर, रिश्वत खाड़ी में।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
गाली भरे खजाने
गीतिका

गाली भरे खजाने

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शुद्धिकरण का मंत्र किये है मंशा मैली अपनी गंगाजल से धोते फिर भी रही अपावन कफनी रहे पूजते गोबर को नित मार गाय को डंडे नफरत के रोबोट बनाते वहशी हुए त्रिपुंडे सिखा रहे हैं भेदभाव की माला कैसी जपनी।। टांँग उठाकर श्वान मूतते फिर भी पूज्य ठिकाने देख वंचितों पर उड़ेलते गाली भरे खजाने सदियों सुख को पिये अघाने चखी न दुख की चटनी।। भरे हुए हर घट में इनके साजिश के सौ खोखे कपट दुर्ग में धन लाने के लाखों बने झरोखे स्वर्ग-नर्क के इनके दंगल देते रहे पटकनी।। ••• परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
बंद हैं संवेदना की सीपियाँ
गीतिका

बंद हैं संवेदना की सीपियाँ

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रोपना सौहार्द के कुछ बीज प्यारे, बस बबूलों की बची हैं पीढ़ियाँ अब।। नागफनियों - से हुए सब धर्मधारी। विष बुझी है हाथ में जिनके कटारी।। लिख रहे कानून की वे कंडिकाएँ, काटते जो न्याय के पथ की फरारी।। रेत में चट्टान-सा साहस गला है। बंद हैं संवेदना की सीपियाँ अब।। कोसती दुर्भाग्य को ही भूख आदी। खा रही आश्वासनों की दी प्रसादी।। जनसुरक्षा का जिसे अधिकार सौंपा, खून से लगती सनी वह श्वेत खादी।। पीटती है ढोल जो कल्याणकारी, कटघरे में जा खड़ी वे नीतियाँ अब।। दिन ब दिन बढ़ती दलाली की अटारी। त्रस्त होरी के चढ़ी सिर तक उधारी।। सेवकों के द्वार पर की फूलझड़ियाँ, कर रही रंगीनियों से खूब यारी।। जोड़ती जो इस धरा को आसमाँ से, ध्वस्त सारी हो गयी हैं सीढ़ियाँ अब।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रद...
मौसम का जारी तांडव
गीतिका

मौसम का जारी तांडव

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** इस मौसम का जारी तांडव, देख रहे अब हम। रोज कथानक के नव बरछे, चलते पाँवों पर। नमक निचोड़ा हर मौसम ने, गलते घावों पर।। भूख-प्यास की आहें सुन के, सिल बैठे लब हम।। उफन रहे ज्वालामुखियों को, ठंडा करना है। लाशों के बदले लाशों से, लेखा भरना है।। प्रश्न, प्रश्न को मारे कैसे, सीख गए ढब हम।। सिंदूरी फंदों में उलझे, श्वासों के रेले। मावस-पूनम ले आती जो, छल-छंदी मेले।। मिथकों की गठरी के नीचे, सिसक रहे दब हम।। सामाजिक झंझावातों का, चखते स्वाद रहे। इस जीवट 'जीवन' के दम ही, हम आबाद रहे।। जब मुस्कानें सजी अधर पर, कुचले तब-तब हम।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
सूरज बेचें सूप
गीतिका

सूरज बेचें सूप

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तोड़ रहा रोटी का साहस, चटक हटीला धूप। महँगाई की छतरी ताने, सूरज बेचें सूप।। अमराई की छाँव ढूँढते, छाले पहने पाँव। दूर बहुत है थकी हवा का, निर्झर वाला गाँव।। मुख पर डाल नकाब व्यथित है, कोमल तन का रूप।। तान दिया दिनकर ने नभ तक, लू का शिविर अभेद। व्याकुल साँसें पंखा झल अब, ज्ञापित करती खेद।। तरस गया है बूँद-बूँद को, ढो प्यासे घट कूप।। आसमान को ताक रहा है, जंगल का वैराग्य। प्यासे अधरों के जागेंगे, कब तक रूठे भाग्य।। दे फुहार कब मेघ नयन को, देंगे दृश्य अनूप।। एसी कूलर के हंसों ने, भेज दिया फरमान। ठीक दोपहर में जाँचेंगे, रोटी की मुस्कान।। ऊँघ रहा पर ठंडा पीकर, इस मौसम का भूप।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित ...
आक्रोश की भट्टी
गीतिका

आक्रोश की भट्टी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चल रहा मंथन विचारों में, जल उठी आक्रोश की भट्टी।। सलवटों ने डाल कर डेरा। मौन का ऊँचा किया घेरा।। भृकुटियों ने तन कटारी-सा, सुप्त हर दायित्व को टेरा।। वादियों का देखकर तेवर, शांति का संदेश है कट्टी।। धमनियों में बह रहा लावा। कर रहा विस्तार का दावा।। छोड़ दो बारूद के गोले, सूरमा करते न पछतावा।। वंचना के वार क्या सहना, खोल दो हर जख्म से पट्टी।। नैन में है क्रोध की ज्वाला। शत्रु लगता काल से काला।। चीख कर सिंदूर कहता है, ठोंक दो आतंक पर ताला।। सिर उठाएगा नहीं आगे, तोड़ दो दुर्दांत की नट्टी।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
वस्त्र पराली के
गीतिका

वस्त्र पराली के

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** धूम-धाम से घर में आये, दिन खुशहाली के। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। थिरक रही कोने-कोने में, खुशियाँ मणिकांचन। श्रम-जादूगर ने बरसाया, खेतों में शुभ धन।। तपते दिन पर विहँस रहे, गुलमोहर डाली के।। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। दूल्हा बनकर चैता आया, बैसाखी के घर। गूँज रहे मंगलाचरण अब, पाखी के दर-दर।। दमके मुखड़े लगते ज्यों हो, दीप दिवाली के।। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। थर्मामीटर लेकर सूरज, नाप रहा पारा। फाँस रहा ले लू का फंदा, आतप हत्यारा।। गायब दरिया के अधरों से, लक्षण लाली के।। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। तकनीकों ने उत्पादन को, बुस्टर डोज दिया। मगर लोभ ने जड़ के ऊपर, घातक वार किया।। मँडराती अब मौत स्वयं घर, आ रखवाली के।। कृषक आग में झोंक ...
दर्पण फूट गए
गीतिका

दर्पण फूट गए

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तृषित घटों के नवाचार ही, पनघट लूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। कंकड़-पत्थर की दुनिया से, रूठी जलधारा। इस नभ के सूरज ने दे दी, सपनों को कारा।। आँखों से झरते फूलों पर, चल के बूट गए।। गाजर घास उगाए उर के, उर्वर उपवन में। स्वार्थ छिपे जा सिर की काली, टोपी अचकन में।। तनी हुई लाठी से डर के, दर्पण फूट गए।। जोत दिए कांवड़ में कंधे, पुण्य कमाने को। लगे हुए हैं हाथ स्वर्ग की, डगर सजाने को।। मंच माॅबलिंचिंग के, सच को, घर में कूट गए।। अश्वमेघ को घूम रहा है, श्रृद्धा का कोड़ा। मार ठोकरें हटा रहा है, पथ का हर रोड़ा।। हर धमनी में विष भरते जो, हो रिक्रूट गए।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
डरा-डरा हिरना
गीतिका

डरा-डरा हिरना

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शब्द दृगों से ऊलजलूल से। टपक रहे महुए के फूल-से।। बंधन की डोरी थी काटना। भूल गए खाई को पाटना।। ढँके रहे नभ में बन श्वेत घन, पटी उम्र दुखड़ों के धूल से। सूरज का वादा था झाग-सा। फैल गया जंगल में आग-सा।। हरी-हरी घास बिछी बाग में, डरा डरा हिरना पर रूल से।। आसपास काटों के गाँव हैं। हरे - भरे छालों के पाँव हैं।। नदी रखे तिनके से द्वेष अब, बह के हम दूर हुए कूल से।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हे...
बासंती गीत
गीत

बासंती गीत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** थिरक रहे अधरों पर आकर, फिर बासंती गीत। विहँस-विहँस मकरंदित श्वासें, गाएँ रसिया फाग। दृग-चकोर भी परख रहे हैं, विधुवदनी तन राग।। स्वरलहरी के हाथ लगी है, स्वर्ण पदक की जीत।। खिले-खिले महुए के जैसा, तन हो गया मलंग। टपक रहा है अंग-अंग से, जो यौवन का रंग।। प्यास पपीहे-सी भड़काये, तन में कामी शीत।। भाव हुए टेसू-से खिलकर, जलते हुए अलाव। प्रेमिल शब्द बने जख्मों का, करने लगे भराव।। मन का सारस परिरंभन के, पाले स्वप्न पुनीत।। मदिर गंध से आम्र मंजरी, भरती उर उत्साह। दिखा रही है हीर जिधर है, चल राँझा उस राह।। शब्द-शब्द से प्रेम व्यंजना, 'जीवन' कहे विनीत।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी...
भार हुई अम्मा
गीत

भार हुई अम्मा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रुख़सत होते ही बाबा के, लाचार हुई अम्मा। ताने सुन शूलों से तीखे, बेजार हुई अम्मा।। नींव बनाने में जिस घर की, अपनी देह हवन की। रोम-रोम में गंधसार बन, जो सुहाग तक महकी।। उस घर के कोने तक अब, स्वीकार हुई अम्मा।। जठर ज्वाल में जो संतति के, चूल्हे जैसा धधकी। सुबह-शाम वे बूढ़ी आँखें, भूख-प्यास में फफकी।। जिनका बोझ उठाया उन पर, अब भार हुई अम्मा।। बन शहतीर खड़ी हो जिसने, छत का बोझ सँभाला। बैरी कहते जिन्हें खिलाया, मुख का रोज निवाला।। अब भव के नौका की टूटी, पतवार हुई अम्मा।। बेबस हर महिने पेंशन की, करती रही निकासी। छाप अँगूठे की धर देखे, तीरथ मथुरा काशी।। अधिकार पत्र पर जीवन के, दुत्कार हुई अम्मा।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मे...
साँसें साँसत में
गीत

साँसें साँसत में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चलें धार पर रहीं हमेशा, साँसें साँसत में। एक कुल्हाड़ी और दराती, मिली विरासत में।। रोज उज्ज्वला सिर पर ढोती, लकड़ी का गट्ठर, पथ पर भूखे देख भेड़िये, देह स्वेद से तर, भूख-प्यास लेकर बैठी है, देह हिरासत में।। कानी-खोटी सुनकर पाया, दाम इकाई में, नमक-मिर्च भी लाना मुश्किल, इस महँगाई में, है गरीब का सस्ता सब कुछ, यहाँ रियासत में।। पाँच बरस में एक बार ही, मंडी खुलती है, जिसमें अपने जीवन भर की, किस्मत तुलती है, वोट तलक अपनापन मिलता, हमें सियासत में।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
दूर रहो थोड़ा
गीत

दूर रहो थोड़ा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** ख्याल रखो कुछ बिरादरी का, दूर रहो थोड़ा। अभी-अभी तो चोंच निकाली, बाहर अंडे से। लड़ने को तैयार खड़े हो, पोथी पंडे से।। आदमयुग की सभ्य रीति को, कहते जो फोड़ा।। अक्षर चार पढे क्या बच्चू, बनते हो खोजी। अमरित पीकर आरक्षण का, हरियाये हो जी।। मत दौड़ाओ, तेज हवा-सा, अक्षर का घोड़ा।। ढोल गँवार नारियों जैसे, तुम पर कृपा रही। ब्रह्मा जी ने आ सपने में, हम से बात कही।। बचो पाप से मानस के पथ, बनो नहीं रोड़ा।। मिथकों की सच्चाई पर जो, प्रश्न उठाओंगे। कानूनी पंजों में जबरन, जकड़े जाओंगे।। अब भी चोटी के हाथों हैं, कब्जे का कोड़ा।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
रामकली
गीत

रामकली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली। हेंपपंप से भरने गागर, उठके पहट चली।। मैके में तो खुद नल चल के, घर में आता था। ग्वाला घंटी सात बजे नित, बजा जगाता था।। बनी ब्याहता गाँव आ गई, लाड़ो प्रेम पली।। मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।। लीप रही अब चौका चौरा, थाप रही कंडे। अधरों पर मुस्काने भीतर, दुखड़ों के हंडे।। तपी कर्म के चूल्हे पर चढ़, गुड़ की मधुर डली।। मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।। आदर के छींके पर सारी, ख्वाहिश टाँग रखी। बैरी दिन फटकार लगाये, रातें मगर सखी।। तन से मन से औरों के हित, बस ताउम्र जली।। मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
गाफ़िल रामधनी
कविता

गाफ़िल रामधनी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रोप दिए हैं रम्य विपिन में, जब से नागफनी। डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।। कदम-कदम पर खड़े हुए हैं, पहरे आँखों के। उलाहनों ने जला दिये हैं, सब कस पाँखों के।। नैतिकता की सभी नीतियाँ, लगती खून सनी।। डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।। समता के नारे सुन फूले, मन के गुब्बारे। पहुँच नहीं पाये पर घर तक, जय के हरकारे।। सुख की तलवारें दुखड़ों पर, रहती तनी-तनी।। डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।। जनसेवा की पोशाकों में, कामी तन भक्षी। तान रहे हैं तम के तंबू, दिन के आरक्षी।। शहर मतों का लूट ले गई, शातिर आगजनी।। डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
शब्दों के रणवीर
गीत

शब्दों के रणवीर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** लगा रहे जयकारे केवल, शब्दों के रणवीर। गीत हुए हैं चारण सारे, अब क्या करे कबीर।। फुदक-फुदक ये बजा रहे हैं,वाह वाह की झाँझ। लिपटे हैं पति-सी सत्ता से, ज्यों हो सौतन बाँझ।। मगरमच्छ-से आँसू इनके, पल-पल हुए अधीर।। चुन-चुन कर ये मार रहे हैं, पत्थर वाले फूल। रीति नीति के काटें बोते, पथ पर ऊल-जलूल।। तमगों के चाहत में डोले, इनका सर्प ज़मीर।। छल-छंदों में लिप्त मिला है,लालकिले का फर्ज। चढ़ा हुआ भाटों के सिर भी, इसी दुर्ग का मर्ज।। रोज माॅबलिंचिंग कर ढोंगी, करते पेश नज़ीर।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प...
भूख के भजन
गीत

भूख के भजन

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** सत्ता की सड़कों पर फिसल रहें मन। और अधिक मेघ नहीं बरसाओं धन।। लूट गये व्यापारी खेत की तिजोरी। पेट ये बखारी-सा भर न सका होरी। धनिया के माथे की, बढ़ रही थकन।। छूट गई फूलों के हाथों की डोरी। बाँध गए अंटी में नोट सब सटोरी।। महँगा है आज सखे मौत से कफ़न।। काट गई है कैंची, प्रीति की सिलाई। टीस रही पंछी को, धर्म की चिनाई।। थोप दिए हैं मन पर, भूख के भजन।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
वासंती-बंगा
गीत

वासंती-बंगा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शब्दों की धक्का-मुक्की को, कविवर तुम दंगा मत कहना।। मर्यादित है संज्ञा इसको, वासंती-बंगा मत कहना।। केवल कंकड़ ही फेंके हैं, मैंने ही वे भी गुलेल से। कहीं किसी को चोट न पहुँचे, शब्द भिगोये इत्र तेल से।। नमक डालता हूँ घावों पर कहीं इसे पंगा मत कहना।।१ संता बंता और महंता, मेरे सभी सहोदर भाई। अपनी नाक दिखाने ऊँची, इनकी लंका रोज ढहाई।। राज घाट का पानी पी-पी, राजा को नंगा मत कहना।।२ ज्ञान पत्रिका अर्जित करने, भिड़ा दिये थे शब्द मवाली। काँव-काँव के राग सियासी, छीन गये इस मुख की लाली।। मुख से निकल रही जो अविरल, गाली को गंगा मत कहना।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
बुलडोजर का राग
कविता

बुलडोजर का राग

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चींख रहा है अब कानों में, बुलडोजर का राग। गूंगे को गुड़-सा रस देता, सत्ता का मृदु पाग।। मौन खड़ी संसद के भीतर, प्रश्नों की बंदूक। थाम रखी हाथों ने खाली, उत्तर की संदूक।। गरल हुआ फूलों के दिल में, संचित हुआ पराग।। दुखड़ों के जंगल में बदले,सुख-सुविधा के कोष। पनप रहा बंजर आँखों में, चंबल का जल रोष।। धो न सका साबुन सत्ता का, लगे सियासी दाग।। सीना फाड़ दिखाये श्रद्धा,बहुमत का अन्याय। जंगी ताले में बैठी हैं....आशाएँ निरुपाय।। फैल गई है गली-गली तक, तानाशाही आग।। सेवक पंजे करते पग-पग, अब खूनी तकरार। स्वप्न भूख के थके दौड़कर, पीछे छोड़ गुबार।। हवा बसंती भूल गई है, सद्भावों के फाग।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल
गीत

उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। अश्वमेघ को दौड़ रहा है, अहंकार का...
पौष-माघ के तीर
गीत

पौष-माघ के तीर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** बींध रहे हैं नग्न देह को, पौष-माघ के तीर। भीतर-भीतर महक रहा पर, ख्वाबों का कश्मीर।। काँप रही हैं गुदड़ी कथड़ी, गिरा शून्य तक पारा। भाव कांगड़ी बुझी हुई है, ठिठुरा बदन शिकारा।। मन की विवश टिटिहरी गाये, मध्य रात्रि में पीर।।१ नर्तन करते खेत पहनकर, हरियाली की वर्दी। गलबहियाँ कर रही हवा से, नभ से उतरी सर्दी।। पर्ण पुष्प भी तुहिन कणों को, समझ रहे हैं हीर।।२ बीड़ी बनकर सुलग रहा है, श्वास-श्वास में जाड़ा। विरहानल में सुबह-शाम जल, तन हो गया सिंघाड़ा।। खींच रहा कुहरे में दिनकर, वसुधा की तस्वीर।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
हुई समीरण संदल
गीत

हुई समीरण संदल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन के उर्वरा धरा पर, खिले प्रीति के पाटल। नाचे मन चंचल।। भावों का प्रस्पंदन तन में, लेने लगा हिलोरे। स्वप्निल चित्र छापने वाले, पृष्ठ पड़े जब कोरे।। प्रस्वेदी तन लगा महकने, हुई समीरण संदल।। नाचे मन चंचल.... (१) दिव्य प्रगल्भा सम्मोहन की, कुसुमित सेज सजाती। चटुल दृगों के संकेतों से, मुझको पास बुलाती।। लोहित लब पर मधु नद जैसे, स्वर उसके हैं प्रांजल।। नाचे मन चंचल....(२) स्वाति बूँद की आस सजाये, मन का चातक डोले। स्वागत में अभिसारी दृग भी, द्वार प्रणय का खोले।। ऋतुपति ने छू किया पलाशी, दग्ध देह का अंचल।। नाचे मन चंचल....(३) परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
हम बासी उपमाओं से
गीत

हम बासी उपमाओं से

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से। साध लिया है लक्ष्य व्यंजना ने जुगाड़ कर। हार गया अभिधा का भाषण लट्ठमार कर।। जीत न पाये जीवन का रण प्रतिमाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। १ वंचित रहे विशेषण अपने कर्म पंथ पर। सर्वनाम हम, हिस्से आया गरल सरासर।। जान बचाने भाग रहे हम संज्ञाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। २ कूड़ा-करकट धूल हुए उपमान हमारे। संबंधों की नदियों ने दो दिए किनारे।। किंतु बहें हम नौ रस बन के कविताओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। ३ तथ्य हीन शब्दों के जाले में नित उलझे। प्रश्न प्यास के रहे उम्र भर ही अनसुलझे।। हाथ जलाते रहे रोज हम समिधाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। ४ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ क...