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Tag: सुधीर श्रीवास्तव

मतदान
कविता

मतदान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** दान की परम्परा का एक बार फिर निर्वहन करते हैं, आइए! साथ चलकर मतदान करते हैं। मतदान हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है, परंतु देश के नागरिक हैं इसलिए कर्तव्य भी। बस यही याद रखिए कर्तव्य की बलिबेदी पर खुद को न बेंचिए, राष्ट्र, समाज और खुद के लिए मत दान से पहले खूब सोचिए, बिचारिए, किसी के बहकावे में कभी न आइए। खुद ही फैसला कीजिए सही क्या है? अपना ही नहीं राष्ट्र का भविष्य जिन्हें सौंप रहे हैं, उनके बारे में भी तनिक विचार कर लीजिये फिर मतदान कीजिए। क्योंकि तब पाँच साल सिर्फ़ पछताना न पड़ेगा, सब ओर खुशियों का परचम जो फहरेगा । परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, ज...
मित्र और मित्रता
कविता

मित्र और मित्रता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** मित्रता का अपना-अपना उसूल होता है, मित्रता के अनुभव भी बहुत खट्टे-मीठे होते हैं। सच तो यह है कि मित्र बनाये नहीं जाते बन जाते हैं, हम चाहें या न चाहें बस दिल में उतर जाता है। न जाति धर्म मजहब न ही स्त्री या पुरुष का भाव बस वो अपना सिर्फ अपना ही नजर आता है। उसका हर कदम,हर भाव उसकी सोच, उसकी चिंता अपनेपन का बोध कराता है। उसके हर विचार रूठना, मनाना, डाँटना, समझाना, और तो और अधिकार समझना गुस्से में लाल तक हो जाना भी, तो कभी-कभी आँसू बहाना हमारे दुर्व्यवहार को भी शिव बन पी जाना, माँ, बाप, बहन, भाई, मित्र जैसे रिश्ते निभाना, हमारी खुशी के लिए सब कुछ सहकर भी हँसकर टाल जाना, पूर्व जन्म के रिश्तों का अहसास दे जाना सच्चे मित्र की पहचान है। उम्र का अंतर मायने नहीं रखता क्योंकि हमें खुद बखुद उसके कदमों में झुक जाने का मन भी करत...
इंसान बनो
कविता

इंसान बनो

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** जीवन भर हम खुद को मकड़जाल में उलझाए रखते हैं, सच तो यह है कि हमें बनना क्या है? ये ही नहीं समझ पाते। मृग मरीचिका की तरह भटकते रहते हैं, इंसान होकर भी इंसान नहीं रहते हैं। हम तो बस वो बनने की कोशिशें हजार करते हैं, जो हमें इंसान भी नहीं रहने देते हैं। हम खुद को चक्रव्यूह में फँसा ही लेते हैं, और इंसान होने की गलतफहमी में जीते रहते हैं। काश ! हम इतना समझ पाते इंसानी आवरण ढकने के बजाय वास्तव में इंसान बन पाते, काश ! हम अपने विवेक के दरवाजे का ताला खोल पाते जो बनना है वो तो हम बन ही जायेंगे मगर अच्छा होता हम पहले इंसान तो बन पाते। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनिय...
संयोग
आलेख

संयोग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             अब इसे संयोग नहीं तो और क्या कहूँ आप ही बताइए कि आभासी संचार माध्यमों ने कुछ ऐसे नये रिश्तों को जन्म दे दिया कि कल्पना करना कठिन लगता है कि इन रिश्तों के मध्य उपजे आत्मिक संबंध कहीं से भी वास्तविक रिश्तों से कम महत्वपूर्ण अहसास नहीं कराते। बहुतों के साथ हुआ होगा, हो रहा होगा या आगे भी होता ही रहेगा। जहाँ आपको रिश्तों की मिठास, अपनापन, प्यार, तकरार, एक दूसरे की चिंता और वो सब कुछ मिलता है, जो कभी कभी वास्तविक रिश्तों में भी नहीं मिलता, तो ऐसा भी होता है कि जिस रिश्ते का अधूरापन आपको सालता रहता है, वह आभासी माध्यम से बने रिश्तों से पूरा हो जाता है। हालांकि ये कहने में भी कोई संकोच न कि हर जगह कुछ न कुछ गलत भी हो जाता है, लेकिन ऐसा वास्तविक रिश्तों में भी तो होता है। अक्सर आभासी दुनियाँ में ...
ईश्वर की आवाज
आलेख

ईश्वर की आवाज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             सभी जानते, मानते हैं कि हम ईश्वर की ही सृष्टि हैं, ईश्वर का ही निर्माण हैं। फिर यह भी यथार्थ है कि बिना ईश्वरीय विधान के पत्ता तख नहीं हिलता। ऐसे में कर्ता तो मात्र ईश्वर ही हुआ न। फिर भी मानव अपने स्वभाव के अनुरूप खुद को ही सर्व समर्थ मानने की गर्वोक्ति करता रहता है। परंतु सच यह है कि ईश्वर के हाथों में ही हमारे सारे क्रियाकलापों की डोर है, तब यह मानना ही पड़ता है कि जो भी हम करते हैं वह ईश्वरीय इच्छा है। ठीक इसी तरह हम जो भी बोलते हैं वह ईश्वर की ही आवाज़ है, हम वही बोलते हैं जो ईश्वर चाहता है या यूं कहें कि हम मात्र ईश्वरीय प्रतिनिधि के तौर पर इस दुनियाँ में हैं और प्रतिनिधि को वही सब करने की बाध्यता है, जो उसका नियोक्ता चाहता है। ऐसे में यह हमें अच्छी तरह जितनी जल्दी समझ में आ जाये तो ब...
पत्थर में भगवान
कविता

पत्थर में भगवान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** ये महज विश्वास है कि पत्थर में भगवान है, परंतु यही विश्वास हमें बताता भी है भगवान कहाँ है? तभी तो हम मंदिर, मस्जिद गिरिजा, गुरुद्वारों के चक्कर तो लगाते हैं, परंतु कितना विश्वास कर पाते हैं। विडंबनाओं पर मत जाइये अपने हर कठिन, मुश्किल हालात के लिए बिगड़े काम के लिये भगवान को ही दोषी ठहराते हैं, अपनी खुशी में भगवान को शामिल करना तो दूर याद तक नहीं करते, सारा श्रेय खुद ले लेते हैं। जिस भगवान का हम धन्यवाद तक नहीं करते कष्ट में उसी को याद भी करते हैं, पत्थर के भगवान से जिद करते,अड़ जाते हैं विश्वास करके भी नहीं करते। क्योंकि हम खुद पर भी विश्वास कहाँ करते? हमारे अंदर भी तो भगवान बैठा है यह सब जानते हैं, उस पर जब हम विश्वास नहीं करते, तब पत्थर के भगवान पर विश्वास कैसे जमा पाते? हम तो बस औपचारिकताओं में जीते जीते मर जाते, ...
छुटकी
सत्यकथा

छुटकी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                               दिसंबर २०२० के आखिरी दिनों की बात है। सुबह-सुबह एक फोन काल आता है। नाम से थोड़ा परिचित जरूर लगा, परंतु कभी बातचीत नहीं हुई था, क्योंकि ऐसा संयोग बना ही नहीं। उधर से जो आवाज सुनाई दी कि मन भावुक सा हो गया। उस आवाज में गजब का आत्मविश्वास ही नहीं, बल्कि अपनत्व का ऐसा पुट था कि सहसा विश्वास कर पाना कठिन था कि वो मुझे जानती न हो। जिस अधिकार से उसनें अपनी बात रखी, उससे उसका हर शब्द यह सोचने को विवश कर रहा था कि किसी न किसी रुप में हमारा आत्मिक/पारिवारिक संबंध जरूर रहा होगा, भले ही वह पिछले जन्म का ही रहा हो। उससे बात करने के बाद मन इस बात को मानने को तैयार नहीं था कि उससे किसी न किसी रुप में मेरे साथ माँ, बहन या बेटी जैसा रिश्ता नहीं रहा होगा। अब तो मेले में बिछुड़े भाई बहन सरीखे किस्से कहानियो...
खुद का निर्माण करें
आलेख

खुद का निर्माण करें

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                          मानव जीवन अनमोल है, इस बात से इंकार कोई नहीं करता। परंतु यह भी विडंबना ही है कि ईश्वर अंश रूपी शरीर का हम उतना मान सम्मान नहीं करते, जितना वास्तव में हमें करना चाहिए। यह सच है कि हम अपने मिट्टी के पुतले सरीखे शरीर के ऊपरी सौंदर्य की चिंता बहुत करते हैं, अनेकानेक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग निरंतर करते हैं, किंतु इस शरीर के भीतर बैठे ईश्वर और उसके निवास रुपी मंदिर के प्रति कभी सचेत होना ही नहीं चाहते। इसीलिए हम वाहृय निर्माण और भौतिक सुख दुख के चक्रव्यूह में उलझे रह जाते हैं और खुद के निर्माण के प्रति लापरवाह बने रहते हैं।जिसका खामियाजा न केवल खुद हमें बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और समूचे संसार को किसी न किसी रुप में भुगतना ही पड़ता है। आज की अगर सबसे बड़ी जरूरत की बात करें तो वह है खुद के निर्...
काश! मै प्रधानमंत्री होता
कविता

काश! मै प्रधानमंत्री होता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** काश! मैं देश का प्रधानमंत्री होता तो पाक को आखिरी सबक सिखाता फिर भी न मानता तो इतिहास में रह जाता। जाति धर्म का भेद मिटाता आरक्षण हटाता, हर गरीब को शिक्षा के लिए आर्थिक सुविधा का कानून बनाता मजहब के नाम पर फूट डालने वालों दंगा करने/कराने वालों को आजीवन कैद का कानून बनाता। देश विरोधी बयान या कृत्य वालों का नागरिक अधिकार छीन लेता। हर जन प्रतिनिधि की जवाबदेही तय करता। जनता को चुने जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार देता। नाम के साथ जाति लिखना बंद करा देता। एक देश, एक विधान, एक संविधान सख्ती से लागू करता। बहन बेटियों से जो भी करता अनाचार/अत्याचार उसको जीवनभर जेल में रखने का प्रावधान करता। नकसलियों, आतंकवादियों, उपद्रवियों को सीधे गोली मारने का फरमान सुनाता। पूरे देश में गौहत्या पर रोक का कानून बनाता। समान ना...
कुहासा
कविता

कुहासा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** क्या कहूँ? मेरी जीवन में तो हमेशा ही छाया रहता है, बेबसी, लाचारी, भूख का कभी न मिटने वाला कुहासा। औरों का तो छंट भी जाता है मौसमी कुहासा, पर मेरा कुहासा तो छँटने का नाम ही नहीं लेता। ऐसा लगता है ये कुहासा भी जैसे जिद किये बैठा है, जो आया है मेरे जन्म के साथ और पूरी निष्ठा से मेरे साथ यारी निभा रहा है, जैसे प्रतीक्षा कर रहा है मेरे अंत के साथ ही छँटने की। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.) वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र. शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) साहित्यिक गति...
जीवन : एक यात्रा
आलेख

जीवन : एक यात्रा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** मानव जीवन जिंदगी के विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए अपनी अंतिम यात्रा तक पहुंच कर खत्म होती है। परंतु यह विडंबना ही है कि इस यात्रा के किसी। भी पड़ाव पर आपको ठहरने की आजादी नहीं है। जीवन के हर पल में आपको अपनी सतत यात्रा जारी रखनी होती है। आपके हालात, परिस्थिति और समय कैसे भी हों, आपकी यात्रा जारी ही रहती है। आप खुश हैं, दुखी हैं, सुख में हैं या किसी परेशानी में है। आपकी अन्य गतिविधियां, क्रियाकलाप ठहर सकते हैं, मगर कभी ऐसा नहीं देखा गया कि जीवन यात्रा ग्रहों की तरह ही चलायमान है। संभवत ऐसा इसलिए भी है कि यह हमें प्रेरित करने, चलते रहने का सूत्र दे रहा है और हम उसे नजरअंदाज करने की कोशिश में भ्रम का शिकार बने बैठे हैं। यदि हमें अपनी जीवनयात्रा को सरल, सुगम और निर्विरोध बनाना है तो हमें बुराइयों से बचना होगा। ईर्ष्या, ...
जिम्मेदारी
कविता

जिम्मेदारी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** ये देश हमारा है बस इसी गुमान में मत रहिए देश से प्यार भी कीजिए, आपकी भी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं उसका भी निर्वाह कीजिए। देश और देश के संसाधनों पर आपका भी हक है इसमें नया क्या है? देश के प्रति आपकी भी कुछ कर्तव्य भी उसे भी तो कीजिये। ये मत भूलिए कि देश आपका है आपसे नहीं है, आप देश से हैं देश आपसे नहीं है। गुरुर भर मत कीजिए कि देश हमारा है, अपनी जिम्मेदारी निभाइए देश को आगे बढ़ाइए देश को सबसे आगे ले जाना है एकता और विकास का परचम लहराना है, आइए !आप भी कंधे से कंधा मिलाइए हम सब अपनी अपनी यथोचित जिम्मेदारी निभायें तब कहें देश हमारा है तो हमारी जिम्मेदारी भी है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरि...
धरोहर
कविता

धरोहर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हम सबके लिए हमारे बुजुर्ग धरोहर की तरह हैं, जिस तरह हम सब रीति रिवाजों, त्योहारों, परम्पराओं को सम्मान देते आ रहे हैं ठीक उसी तरह बुजुर्गों का भी सम्मान बना रहना चाहिए। मगर यह विडंबना ही है कि आज हमारे बुजुर्ग उपेक्षित, असहाय से होते जा रहे हैं, हमारी कारस्तानियों से निराश भी हो रहे हैं। मगर हम भूल रहे हैं कल हम भी उसी कतार की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे हैं। अब समय है संभल जाइए बुजुर्गों की उपेक्षा, निरादर करने से अपने आपको बचाइए। बुजुर्ग हमारे लिए वटवृक्ष सरीखे छाँव ही है, उनकी छाँव को हम अपना सौभाग्य समझें, उनकी सेवा के मौके को अपना अहोभाग्य समझें। सबके भाग्य में ये सुख लिखा नहीं होता, किस्मत वाला होता है वो जिसको बुजुर्गों की छाँव में रहने का सौभाग्य मिलता। हम सबको इस धरोहर को हर पल बचाने का प्रयास करना चाहिए, बुज...
आस्तीन के साँप
कविता

आस्तीन के साँप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आजकल के इन साँपो को पहचानना बड़ा मुश्किल है, कौन आस्तीन का साँप है कब डस लेगा जानना और मुश्किल है। वैसे तो आजकल हमारे इर्द गिर्द ऐसे जहरीले साँपों का हर समय डेरा है, हमारा ही शुभचिंतक बन कौन कब डस लेगा अहसास कर पाने में सब विफल हैं, क्योंकि ऐसे आस्तीन के बहुतेरे साँप हमारे तो बड़े शुभचिंतक हैं। किसको कैसे पहचानें प्रश्न कठिन है, डसे जाने के बाद समझ में आने का ही क्या मतलब है? देखने में भोले भाले आपके लिए जान की बाजी भी लगाने को तैयार हैं, मौके की तलाश में वो कुछ भी करने को तैयार हैं। बस एक मौके का ही उन्हें इंतज़ार है, इधर मौका मिला नहीं कि बस ! डसकर फुर्र हो जायेंगे कोई नहीं एतबार है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीव...
सरहद पर चाँद
कविता

सरहद पर चाँद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आज करवा चौथ है मगर थोड़ा अफसोस भी है कि मेरी चाँद अपनी चाँदनी से दूर सरहद की निगहबानी में मगशूल है। फिर भी मुझे अपने चाँद पर गर्व है, माँ भारती की सेवा/रक्षा सबसे पहला धर्म है। माना कि मेरा चाँद मुझसे दूर है, तो क्या हुआ? मैं तो मन वचन कर्म से अपना कर्तव्य निभाऊंगी, खूब सज सवंर कर नई नवेली दुल्हन बन मन के भावों से अपने साजन को दिखाऊंगी, हँसी खुशी व्रत, पूजा पाठ कर सारे धर्म निभाऊंगी, माँ पार्वती, शिव,गणेश, करवा माई से अपनी अरदास लगाऊँगी, पति की सलामती का आर्शीवाद लेकर रहूंगी, चंद्रदेव का दर्शन कर अर्घ्य चढ़ाऊँगी आरती उतारुँगी, फिर अपने चाँद का चाँद में ही दीदार करुँगी, तब जल ग्रहणकर करवा चौथ का सुख पाऊंगी, खुशी से अपने चाँद की खातिर जी भरकर नाचूंगी, इतराऊँगी। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : ...
आज का रावण
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आज का रावण

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** कौन कहता है? रावण हर साल मरता है, सच मानिए रावण हर साल मरकर भी अमर हो रहा है। देखिए न आपके चारों ओर रावण ही रावण घूम रहे हैं, जैसे राम की विवशता पर अट्टहास कर रहे हैं। ये कैसी विडंबना है कि मर्यादाओं में बँधे राम विवश हैं, कलयुगी रावण उनका उपहास कर रहे हैं। हमारे हर तरफ लूटपाट, अनाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार, अपहरण, हत्या, बलात्कार भला कौन कर रहा है? ये सब कलयुग के रावण के ही तो सिपाही हैं। अब तो लगता है कि रावण के सिपाही सब जाग रहे हैं, तभी तो वो मैदान मार रहे हैं। रक्तबीज की तरह एक मरता भी है तो सौ पैदा भी तो हो रहे हैं। जबकि राम के सिपाही या तो सो रहे हैं या फिर रावण के कोप से डरकर छिप गये हैं, तभी तो राम भी लड़ने से बच रहे हैं। आज का रावण अब सीता का अपहरण नहीं करता, छीन लेता है, मुँह खोलने पर मौत की धमकी देता है। त...
नारियाँ : अबला या सबला
आलेख

नारियाँ : अबला या सबला

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                                       ये ऐसा विषय है जिस पर पूरे विश्वास से कोई कुछ भी नहीं कह सकता। क्योंकि इस परिप्रेक्ष्य में सिक्के के दोनों पहलुओं का अपना अपना मजबूत पक्ष है और किसी भी एक पक्ष को कम करके आंकना खुद को धोखा देना ही कहा जायेगा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि नारियां नित नये मुकाम पर पहुंच रही हैं। जिंदगी के हर क्षेत्र में अपने आप को न केवल सिद्ध कर रही हैं। बल्कि खूद को स्थापित कर खुद को खुद से ही चुनौती पेश कर कदम दर कदम अपने बुलंद हौसले की मिसाल भी पेश कर रही हैं।शिक्षा, कला, साहित्य, विज्ञान, सेना, खेलकूद, प्रशासन, राजनीति हर जगह अपनी मजबूत उपस्थिति का अहसास करा रही हैं। यही नहीं चूल्हा चौका से बाहर भी नारियां अपनी नेतृत्व क्षमता का भी लोहा मनवा रही हैं। इसलिए ये कहना गलत ही होगा कि नारिया...
कब तक?
कविता

कब तक?

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आखिर कब तक हम बेटियों के साथ हो रही दरिंदगी को देखते रहेंगे। कब तक सख्त कदम उठाने का ढोल पीटते रहेंगे। सख्त कारवाई और कड़ी सजा की आड़ में हम बेटियों की लाशों पर बेशर्म बन रोते रहेंगे। आखिर कब तक हम बेटियों से होती दरिंदगी के बाद हो रही उनकी मौतों पर, उनकी वीभत्स लाशों पर यूँ ही घड़ियाली आँसू बहाते रहेंगे। कब तक हम बेटी बचाओ और बेटी दिवस के नाम पर बेटियों को झुनझुना पकड़ाते रहेंगे। कब तक हम यूँ ही खुद को समझाते रहेंगे। एक और बेटी के साथ हो दरिंदगी की सिर्फ़ बाट जोहते रहेंगे, फिर वही अपना कोरा राग कड़ी कारवाई ,सख्त सजा का राग अलापते रहेंगे। बेटी डर कर जिये या दरिंदगी का शिकार हो मरती रहे हम मुगालते का शिकार हो कब तक खुद को बहलाते रहेंगे। बटी की दर्द पीड़ा से खुद को बचाते रहेंगे। आखिर कब तक.....कब तक और कब तक। परिचय :- सु...
कर्ज
लघुकथा

कर्ज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                         आज रामू काका की बेटी संध्या का आईआईटी में प्रवेश का परिणाम आया। सब बहुत खुश थे कि एक गरीब की बेटी तमाम आर्थिक झंझावातों के बीच सफलता की सीढियां चल रही थी, खुद रामू को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। उनके लिए तो ये सब सपना जैसा था।क्योंकि बेटी को उँचाई पर देखने का सपना देखने वाले रामू काका अथक प्रयासों के बाद भी उसे वो सुविधा नहीं दे पा रहे थे जिसकी उसे दरकार थी। अचानक सारी खुशियों को ग्रहण लग गया, रामू काका पक्षाघात का शिकार हो गये। घर में इतने पैसे नहीं थे कि ढंग से इलाज हो सके। तभी अचानक क्षेत्रीय विधायक रामू काका के दरवाजे पर आ गये। सन्नाटे का माहौल देख वे अचंभित से हुए तभी संध्या बाहर आई और विधायक जी को देखकर रोने लगी। विधायक जी ने उसे ढांढस बँधाया, पूरी जानकारी ली और तुरंत ही अपनी गाड़...
भीख
लघुकथा

भीख

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                          कहते हैं लाचारी इंसान को कितना बेबस बना देती है। कुछ ऐसा ही मि.शर्मा को अब महसूस हो रहा है। कहने को तो चार बेटे बहुएं नाती पोतों से भरा पूरा परिवार है। मगर सब अपने अपने में मस्त हैं। महल जैसे घर में मि.शर्मा अकेले तन्हाई में सिर्फ मौत की दुआ करते रहते हैं। शरीर कमजोर है, आँखों से कम दिखाई देता है। कानों से भी कम ही सुनाई देता है। भोजन पड़ोसी दीपक के यहां से आता है। दीपक एक बेटे की तरह ही उनका ध्यान रखते हैं। उनके बच्चे भी समयानुसार देखभाल कर ही देते हैं। पति-पत्नी तीज त्योहार पर आकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते हैं। ये सब किसी लालच में नहीं करते बल्कि अपने मां बाप की कमी के अहसास को महसूस कर मि.शर्मा में उनका अक्स दिखने और बुजुर्ग के आशीर्वाद की आकांक्षाओं के कारण करते हैं। आखिरकार मि.शर्मा...
जिंदा मुर्दा बाप
कहानी

जिंदा मुर्दा बाप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** इस समय पितृ पक्ष चल रहा है। हर ओर तर्पण श्राद्ध की गूँज है। अचानक मेरे मन में एक सत्य घटना घूम गई। रमन (काल्पनिक नाम) ने कुछ समय पहले मुझसे एक सत्य घटना का जिक्र किया था। रमन के घर से थोड़ी ही दूर एक मध्यम वर्गीय परिवार रहता था। बाप रिटायर हो चुका था। दो बेटे एक ही मकान के अलग अलग हिस्सों में अपने परिवार के साथ रहते थे। पिता छोटे बेटे के साथ रहते थे। क्योंकि बड़ा बेटा शराबी था। देखने में सब कुछ सामान्य दिखता था। दोनों भाईयों में बोलचाल तक बंद थी। अचानक एक दिन पिताजी मोहल्ले में अपने पड़ोसी से अपनी करूण कहानी कहने लगे। हुआ यूँ कि दोनों बेटों ने उनके जीवित रहते हुए ही उनका फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर एक दूसरा मकान, जो पिताजी ने नौकरी के दौरान लिया था, उसे अपने नाम कराने की साजिश लेखपाल से मिलकर रच डाली। संयोग ही था क...
सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन : महान व्यक्तित्व
आलेख

सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन : महान व्यक्तित्व

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                     प्रख्यात दर्शन शास्त्री, महान हिंदू विचारक, चिंतक, शिक्षक सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन का जन्म ०५ सितम्बर १८८८ में मद्रास (अब चेन्नई) से करीब २०० किमी. दूर तिरूमती गांव में गरीब ब्राह्मण (हिंदू) परिवार में हुआ था। राधाकृष्णन चार भाई व एक बहन थी। इनके पिता सर्वपल्ली विरास्वामी बहुत विद्वान थे। इनकी माता का नाम सिताम्मा था। इनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही हुई। गरीबी के कारण इनके पिता इन्हें पढ़ाने के बजाय मंदिर का पुजारी बनाना चाहते थे। आगे की शिक्षा के लिए इन्हें क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल तिरूपति में प्रवेश दिलाया गया। जहाँ ये सन् १८९६ से १९०० तक चार साल रहे। सन् १९०० में बेल्लूर के शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत मद्रास क्रिश्चियन कालेज, मद्रास में अपनी स्नातक शिक्षा प्रथम श्रेणी के साथ इ...
१००८ कोरोनानंद जी महाराज
व्यंग्य

१००८ कोरोनानंद जी महाराज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** नमस्कार दोस्तों, सबसे पहले शुभकामनाओं की एक खेप स्वीकार कर लीजिए। ज्यादा उलझने की जरूरत नहीं है कि शुभकामनाऔं का ये झोंका आखिर किस पुण्य प्रताप के फलस्वरूप आप को दुर्भाग्यवश अरे नहीं-नहीं भाई सौभाग्य का पारितोषिक प्रसाद स्वरूप आपको सुशोभित हो रहा है। कुछ समझ में आया हो तो बता ही डालिए, ताकि शुभकामनाओं का एक और गुच्छा मैं आपकी ओर अबिलम्ब उछाल दूँ। नहीं समझ में आया तो भी कोई बात नहीं है, निराश होने की जरूरत नहीं है आपको फ्री में एक शुभकामना दे ही देता हूँ। हाँ तो बात शुभकामनाओं की चल रही थी। सबसे पहले मैं आपको शुभकामनाओं के साथ बता दूँ कि मेरी शुभकामनाएं एकदम नये किस्म की हैं जिसमें दिल का कोई कनेक्शन ही नहीं है। आजकल शुभकामनाओं का रोग बेहिसाब बढ़ गया है, इतना बढ़ गया है बेचारा कोरोना भी खौफ में है। यही नहीं गुस्से में भ...
मैं यमराज हू्ँ
कहानी

मैं यमराज हू्ँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                      देर रात तक पढ़ने के कारण बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई। पढ़ाई के लिए मैनें शहर में एक कमरा किराए पर ले रखा था। मकान मालिक, उनकी पत्नी और मैं कुल जमा तीन प्राणी ही उस मकान में थे। मकान मालिक पापा के परिचित थे, इसलिए मुझे रहने को कमरा दे दिया वरना इतना बड़ा मकान और रहने को मात्र दो प्राणी, मगर शायद किसी अनहोनी के डर से किसी को किराए पर रखने के बारे में नहीं सोचते रहे होंगे। खैर.........। मैं कब बिस्तर पर आया और कब सो गया, कुछ पता ही न चला। तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी। मुझे लग भी रहा था पर मुझे लगा कि शायद ये मेरा भ्रम है। लेकिन जब रूक रूक कर लगातार दस्तक होती रही तो न चाहते हुए भी मै उठा और दरवाजा खोला तो सामने जिस व्यक्ति को देखा, उसे मैं जानता नहीं था। मैनें उससे पूछा कि आप कौन है? उसनें शालीनता स...
शहीद का बाप
कविता

शहीद का बाप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** बेटे के सेना में भर्ती होने का समाचार सुन बूढ़ा बाप खुशी से झूम उठा, क्योंकि सेना में जाकर देशसेवा का भाव बेटे रूप में आज फिर से जाग उठा। अपने समय में किया हर जतन आज बेटे ने पूरा कर उसके सपने को साकार कर दिया। और आज फौजी न सही फौजी का बाप कहलाने का बड़ा गर्व महसूस हुआ। देखते देखते वह दिन भी आ गया, जब दुश्मन ने धोखे से देश पर हमला बोल दिया। कुछ जवानों की शहादत से देश तो युद्ध जीत गया, परंतु उसका बेटा दुश्मनों की मक्कारी का शिकार हो गया। पर न वो रोया, न ही पछताया, देश पर बेटे की कुर्बानी से बड़ा गर्व हो आया। आज शहीद का बाप होने का उसने सम्मान जो पाया। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक नि...